मैं कौन हूं! S Bhagyam Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं कौन हूं!

तमिल कहानी लेखिका चूड़ामणी

अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा

ये मेरी कहानी है। मैं कौन हूं पूछ रहे हो? मैं ही भगवान हूं। ये कौन पागल है सोच रहे हो क्या? पागल नहीं होता हो इस तरह की एक दुनिया को बनाता? ऐसे भी सोच सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आप लोग सोचते हो कि मैंने दुनिया बनाई है।

मेरे कई नाम हैं। ईश्वर, जीहोवा, बुद्ध, अरूकन, परमपिता, अल्लाह, अहुर्मजदा... ठीक है ठीक है बस करता हूं। मनुष्यों को किसी की तारीख यानि प्रशंसा सुनने की इच्छा व सहन शक्ति नहीं होती ये मालूम है। इसके अलावा और बहुत से नाम भी मेरे हैं। आप बोर न हों इसलिए थोड़ा समय देकर दूसरे विषयों पर बातें कर फिर उन नामों को बताता हूं।

मेरे बारे में आप लोगों ने एक गलत धारणा बनाई है कि ‘‘मैं सर्वशक्तिमान हूं।’ (मैं सर्व शक्तिमान हूं क्यों कहते हो मैं सर्वशक्तिशालीनी हूं भी कह सकते हैं? मैं लड़का हूं या लड़की या कुछ और तुम्हें क्या पता? कुछ लोग मुझे देवी कहते हैं सिर्फ... पर मान लो पुरूष का प्रयोग करें, तो पहले बताए सारे नाम मेरे पुरूष के ही तो आपने कल्पना करा है?

मैं क्या कह रहा था? हां सर्वज्ञ। मैं जो कहने जा रहा हूं वह कि मैं सर्वज्ञ नहीं हूं, नहीं हूं, नहीं हूं। होता तो संसार में इतने दुःखों व अन्यायों सबको ताण्डव करने के लिए छोड़ देता? इन कष्टों की वजह ‘‘आज में से कईयों के जीवन का कोई अर्थ ही नहीं है। सब कुछ अव्यवस्थित है। भगवान जैसा कुछ भी नहीं है।’’ ऐसा कुछ लोग बोलते हैं। अज्ञानता से ही पूछ रहा हूं, क्या मैं हूं! ऐसा पहले मैंने आपको कहा? फिर क्या मैं गुम हो गया? तुम्हारे आस्तिकता व नास्तिका से मेरा क्या सम्बन्ध है?

मैंने संसार को बनाया है ये गलत है। अपनी सुविधा व अपने मरने के डर के कारण को दूर करने के लिए तुम लोगों ने मुझे बनाया...

अरे ये क्या! कहीं से एक लड़की के बुलाने की आवाज? ‘‘अरे भगवान! तेरी आंखे नहीं हैं?’’

यही बात तो पसंद नहीं! तुमने ही मुझे स्वरूप दिया, फिर क्यों? तुम्हें आंख नहीं है क्या? नाक नहीं है क्या? बोलने का क्या अर्थ है? रहने दो। यहां क्या शोर-शराबा हो रहा है जाकर देखता हूं। यहां से ही मुझे सब कुछ पता चल जायेगा ऐसा सोच रहे हो क्या? ये ही तो नहीं है। तुम्हारे जैसे ही मुझे भी वहां जाने पर ही पता चलेगा कि वहां क्या हो रहा है। मेरी उत्पत्ति तो तुमने ही की है। मैंने पहले ही तुम्हें बोला। बनाने वाले से बनाई हुई चीज बड़ी कैसे हो सकती है?

उस लड़की की उम्र पैतीस साल के लगभग होगी। उसकी सुन्दरता दुःख की वजह से वर्षा के दिनों की शाम जैसे मंद पड़ गई थी। उसी के जैसे सुन्दर उसके बगल में उसी की कार्बन कापी चैदह साल की एक लड़की व दस साल का लड़का खड़ा था।

वह गरीब नहीं है। लाख रूपयों वाला वह छोटा घर उसका निजी घर है। उसका पति अच्छे हालत में था तब लिया था। पर चंनपकम अभी पैसे वाली नहीं थी। यही उनकी समस्या है।

उसके पति व उसके बड़े भाई दोनों ने अलग-अलग व्यवसाय शुरू किया। बड़ा भाई खूब-खूब लाभ कमाकर उन्नति कर एक मोटर कम्पनी का मालिक बनकर विजय पताका फहरा रहा था। छोटा भाई कनकराजा नाम में तो कोई कमी नहीं पर उसमें लकड़ी के सामन के व्यवसाय में हिस्सा लेकर भाग्य कहो या चतुराई की कमी के कारण अपने हाथों से ही अपनी सारी जायदाद को गंवाया। अब सिर्फ एक मकान ही है। बाकी सब कुछ दांव पर लग गया। परन्तु मकान को बेचो तो ही जायदाद, वैसे उसमें रहने के लिए सिर्फ छांव ही तो है। भूख के लिए खाना तो वह दे नहीं सकता। दूसरा कोई कमाई होना चाहिए। कनकराजन नौकरी ढूढने लगा तो आखिर में एक निजी कम्पनी में छोटी नौकरी लिखने पढ़ने की मिल गई। उससे उनका व कुटुम्ब का काम चलने लगा।

अचानक उसके पेट में दर्द हुआ। उसके आंतों में कोई बड़ी खराबी थी। अतः आपरेशन होगा। जिसका खर्चा तीस हजार बताया।

कनकराजन तीस हजार रूपये के लिए अपने बड़े भाई के पास गया। तीस हजार रूपये तो मिले। आपरेशन हुआ। परन्तु उसकी उम्र नहीं थी अतः चल बसा। परिवार ने मुखिया खोया। उसके बाद अगले आठ महीने चनंपकम की भावनाएं मरी हुई हालात में थी जो धीरे-धीरे ठीक होने के पहले ही उसका जेठ आकर आग उगल रहा है। उसकी छाती पर मूंग दल रहा है।

तीस हजार रूपये उसने अपने भाई को सिर्फ उधार या ब्याज में ही नहीं दिया। इस मकान को गिरवी रखे तो ही उधार दूंगा बोला था और मौके का फायदा उठाया। घर के कागजात को गिरवी रख कर उस कागजों को अपने घर के लोहे के अलमारी में बंद सुरक्षित रख लिया।

अब कह रहा है तीस हजार ब्याज सहित तुरन्त चाहिये। नहीं तो इस रूपये के ऊपर दस हजार और देने को तैयार है उसे लेकर घर को उसके नाम करने को कह रहा था।

‘‘ये क्या अन्याय है।’’ चनंपकम चिल्लाई।

‘‘अन्याय क्या है? तुम तीस हजार रूपये ब्याज सहित वापस दे सकती हो क्या? दे सकती हो तो बोलो तब मैं बिना दूसरी बात चुपचाप पैसे लेकर उधार पूरा हुआ का रसीद दे दूंगा।’’

‘‘ऐसे मजाक करो तो अच्छा है क्या बड़े भैया? मैं किस स्थिति में हूं यह मालूम होते हुए ऐसी बात कर रहे हो! अचानक इतने रूपयों के लिये मैं कहां जाऊंगी? आपके अनुज के जाने के बाद से ही कुछ जानकार लोगों की मदद से ही घर चल रहा है। पिछले महीने से इनकी कम्पनी ने मुझे कृपा कर नौकरी दे दी उनके बदले में। हमें मान के साथ जीना है। बच्चों को बड़ा करना है। केवल एक जायदाद मकान है उसे भी आप ले लो तो हम क्या करेंगे? कहां जायेंगे? अपने घर में तो जगह देागे क्या?’’

‘‘ये कैसे हो सकता है चनपकम? मैं मान भी लूं, तो तुम्हारी जेठानी नहीं मानेगी ना! उसकी विधवा मां और बिन ब्याही बहन हमारे साथ ही हो रहते हैं। अपना सेतू भी अब बड़ा आफिसर हो गया है ना? आने जाने वाले हैं व उसके बहुत काम है। उसके लिए अलग आफिस का कमरा दिया है। इसके अलावा कल उसकी शादी होगी तो उसके परिवार के लिये हमें जगह पूरी नहीं पड़ेगी। फिर तुम्हारे व तुम्हारे बेटे के लिए कहां से जगह दूंगा।’’

‘‘इसका मतलब हमारे बारे में अपको कोई मतलब नहीं है यही कह रहे हो ना आप?’’

‘‘क्यों, जबान ज्यादा लम्बी हो रही है?’’

‘‘बस करो! इस घर को बेचकर तुम्हारे कर्जे को चुका कर बाकी रूपयों को बैंक में जमाकर मेरे बच्चे व मैं आराम से खाना खा सकेंगे...’’

‘‘घर के कागजात मेरे पास हैं। भूल मत जाना। उसके बिना घर को कैसे बेचोगी? उसके अलावा जो घर गिरवी रखा है उसे कौन लेगा?’’

वह मुरझा गई।

‘‘मैं कह रहा हूं उसे सुनो चंनपकम। मैं दे रहा हूं उस दस हजार को ले लो। उसे फिक्स डिपाजिट में डालो। उसमें ब्याज भी बढ़ता रहेगा। कोई विपत्ति या जरूरत में सहायता देगा। तुम्हारी नौकरी तो है ही तुम्हारे खाने के लिये। कहीं किसी चाल में 100-150 रूपये में एक कमरा मिल जायेगा। कल ही यदि उमा प्लस टू कर लेगी तो मैं ही किसी नौकरी में लगवा दूंगा। अपने अनुज के बच्चे के लिए ये भी नहीं करूंगा क्या? क्या कह रही हो? कल सुबह सेतू को दस हजार रूपये चेक... नहीं, तुम्हारा बैंक अकाउन्ट तो है नहीं अतः दस हजार रूपये कैश भेज देता हूं। क्यों? देखो, तुम पर विश्वास कर पहले तुम्हें रूपये देता हूं। बाद में गिरवी रखे घर को बेच रहीं हूं मेरे नाम से रजिस्ट्री करवा देंगे।’’ पर उसकी चमक रही थी। इस घर पर उसकी आंखे कितने दिनों से थीं?

‘‘बड़े भैया! कुछ समय दीजियेगा। धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ कर कर्जे को मैं किसी तरह चुका दूंगी। आपके भाई जीवित रहते तो मेरे शक्ति अलग होगी। उनके साथ छूटने का दुःख ठीक होने के पहले एक और सदमे को मत दीजियेगा। हमारे इकलौते सहारे को भी मत छीनियेगा। मुझे व मेरे बेटे को सड़क पर मत करियेगा। मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं।’’

हाथ जोड़ी। अरूणगिरी एक जहरीली हंसी हंसा? ‘‘सड़क पर क्यों खड़े रहो तुम चंनपकम! तुम दिखने में अच्छी हो। तुम्हारी बेटी भी तुम जैसे ही है। मन हो तो जीना क्या मुश्किल है।’’

‘‘अरे! पापी! उसका सिर घूमा’’। गालों, पर मूर्ख जैसे चाटा लगाये जैसे उसे लगा।

‘‘तुम लोगों को अभी जो नरक है वह बस नहीं है। एक नया स्पेशल नरक की सृष्टि करें तो ही तुम्हारे जैसे लोगों को वहां डालेंगे...’’ लड़पती निगाहों से देख विनती की। ‘हे भगवान, तुम्हारी आंखें नहीं है क्या?’’

‘‘फिर मैं आता हूं चनपकम। कल पैसे के साथ सेतू को भेजता हूं। उसे ले लोगी तो फिर घर मेरे नाम नहीं तो मेरे उधार को वापस मांग कर वकील का नोटिस आयेगा।’’

अरूणगिरी बाहर आ गया।

क्या कर रहे हो? ‘‘एक लड़की के सिर पर आसमान बार-बार फट रहा है। तुम जाकर क्यों नहीं बचाते? तुम नहीं करते तो तुम्हारी आंखें नहीं है। ये सही बात है।’’ बोल रहे हो क्या?

मुझे हंसी आ रही है। किससे बोल रहे हो इसे? बाहर बेकार हवा से? मैं तो सिर्फ यहीं हूं ना! मैं तुम्हारे इच्छा वाले आकाश में विचरण करने वाला हवा हूं, तुम्हारे सपने में आने वाला भी मैं ही हूं। तुम्हारे ऊंचे लक्ष्य का स्वरूप मैं! मुझे संचालन करने वाले आप। फिर कहां जाकर मैं इसे करूं? तुम लोग बिना अंगुली हिलाए चुपचाप ईश्वर - ईश्वर करके चिल्लाये तो मैं कहां से आऊंगा? आप आंखे बंद कर लो तो मुझे कैसे दिखाई देगा?

यहां चलो। कैसे तो भी सवेरा हो गया। पूरी रात चनपकम सोई नहीं उसके आंखों को देख कर बता सकते हैं।

आज क्या फैसला करें? दस हजार लेकर घर से हाथ धोये? नहीं मना कर ... मना करके?

अचानक उसका शरीर कांपने लगा। बाहर बाइक आकर रूकने की आवाज कानों को भूकम्प जैसे लगी।

वह शक्तिहीन होकर पत्थर जैसे खड़ी थी तब सेतूरमन अन्दर आया।

26 साल का युवा, लम्बा आदमी बिजली के खम्बे जैसा लग रहा था। उसका हीरे जैसे चमकीला दुबला पतला बदन। सुन्दर चेहरा जो अभी चेहरा उसे लाल दिखाई दे रहा था।

‘‘चाची कैसी हो? बालु, उमा ठीक है? क्या बात है? हमारे घर की तरफ आते ही नहीं? बड़े भैया को भूल गये?’’

उसे देखकर बात न करके बच्चों को देख बात कर रहा था तो उसकी धड़कन और बढ़ गई। भींचे हुए ओठों के बीच से कैसे तो भी ‘‘आओ’’ एक शब्द बोल पाई।

अब उसने उसे देखा। मुस्कराने में एक हिचक उसे दिखाई दी। ‘‘चाची आपके पास इसे देकर जाने के लिये ही आया।’’ कहते हुए अपने हाथ में जो लेदर बैग था उसे खोला। उसकी घबराहट उच्च स्तर पर पहुुंच गई। एक विकट स्थिति में आने से सेतु संकोच कर रहा था। पिता जैसे बिना किसी संकोच के मन को रूई से पोछ कर बात करने के लिए इसे और बड़ा होना पड़ेगा।

थैले में से एक ब्राउन रंग के लिफाफे को निकाल कर उसको देने लगा। लम्बा ब्राउन लिफाफा। कोई अटमबम को देखा जैसे उसे देखने लगी। हाथ उसे लेने के लिए उठे ही नहीं।

‘‘ले लो चाची।’’

‘‘ये... क्या है ये... रूप....या?’’

‘‘इसमें घर के कागजात व चाचाजी ने मेरे पिताजी से जो तीस हजार रूपये मकान को गिरवी रखकर स्टाम्प पेपर में हस्ताक्षर करके दिया वह पेपर है ले लीजियेगा।’’

वह आंख फाड़-फाड़ कर देखने लगी।

‘‘उस गिरवी के पत्र को फाड़कर फेंकियेगा।’ घर के कागजात को संभाल कर रखियेगा।’’

‘‘मेरे... कुछ समझ में... नहीं आ रहा सेतू... तुम्हारे पिाजी को कह रहे थे मैं दस हजार रूपये लेकर इस मकान को दे दो ऐसा नहीं बोला?’’

‘‘मुझसे भी ऐसा ही कहा।’’

‘‘फिर’’

‘‘बड़े लोगों की बातों को छोटों को सम्मान देना चाहिये ये सही है चाची। पर छोटे जब बड़े होकर स्वयं सोचने की शक्ति आ जाये तो फिर बड़े लोगों की बात को न्याय व अन्याय की कसौटी पर रख कर नहीं देखना चाहिये?’’

चनपकम के दिल में उबाल आ गया।

‘‘इसे पकड़ो चाची।’’

‘‘तीस हजार रूपये घर के नाम पर हमने उधार लिए हैं बेटा! वह आज ब्याज मिलाकर...’’

‘‘इन कागजों को आप ले लोगी तो मकान को गिरवी रखने का सबूत नहीं रहेगा। इस कर्ज को आपको नहीं लौटाना पड़ेगा।’’

‘‘नहीं नहीं, लिया कर्ज वापस दिये बिना नहीं रहूंगी।’’

‘‘ठीक है। आपकी सोच में मैं बीच में नहीं हूं। पर उस कर्ज के बीच में मकान को लाने की जरूरत नहीं। गिरवी के कागज को फाड़ कर फेंकने पर आपके ऊपर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं रहेगा। कर्ज को आपके सहुलियत के अनुसार धीरे-धीरे दीजियेगा। बस उसके लिये मैं भी आपकी सहायता करूंगा।’’

धन्यवाद कहने की कोशिश की पर जीभ जम सी गई। शब्द निकले उसके पहले सेतु चला गया। चनपकम को कल उस आदमी की व्यंग्यात्मक हंसी बार-बार आंखों के सामने आती रही। उसे हटाकर अपने हाथ में जबरदस्ती थमाये हुए भारी लिफाफे को देखती। उस अपमानजनक स्थिति की तुलना जिसका समाधान बेटे ने किया उसकी तुलना करते हुए काफी देर असमंजस की स्थिति में बैठी रही।

‘‘आखिर में तुमने आंखे खोल कर देखा। तुम भगवान ही हो।’’ ऐसा कह कर चिल्लाओगे? मैं वहां था यह सच है तो मुझे लेकर आने वाला सेतूरमन ही था। मैंने कहले ही कहा था ना! आपके बिना मुझे चलाने वाला और कोई नहीं? ठीक है, ठीक है कहानी खत्म, आप घर जा सकते हो। तुम्हारे हजारों काम होंगे। जेट युग के आदमी हो... क्यों? मेरे बारे में कहानी है कह कर दूसरी कहानी मैं बोला, ऐसा सोच रहे हो क्या? ठीक है बीच में दूसरी कहानी आए तो भी मैं पहले ही बोला जैसे आखिर में कह रहा हूं। मेरी कहानी आखिर में समाप्त हुई ना? इसमें भी मुझे तृप्ति ही है। मैं (तुम्हारे जैसे) झूठ नहीं बोलता भाई!

‘तुम्हारी कहानी कहां आई? मुझसे क्या होगा? ऐसा तुम झूठी नम्रता दिखाकर कह रहे हो। बातों ही बातों में मैं वहां था’ मजे से छाती ठोकते हो। तुम वहां कहां थे? हमने तुम्हें देखा नहीं? हमने जिन पात्रों को वहां देखा वे चनपकम, उसके बच्चे, अरूणगिरी, सेतूरमन बस इतने ही।

अरे बाप रे! कितना शोर मचाते हो! मेरा कान होता तो मैं जरूर बहरा हो जाता। तुमने वहां मुझे नहीं देखा! यहीं ना? माफ करो? वह तुम्हारी गलती है। पहले ही मैं अपने सब नामों को बता रहा था तो मुझे बताने देते तो आप मुझे वहां पहचान जाते। यही ईश्वर कह कर चार-पांच नामों को बताते ही प्रशंसा सुनने का धैर्य न होने पर तुम नाक भौं सिकुड़ने लगे। जाने दो। अभी तो सुन लो। मैंने पहले बताया उन नामों के अलावा और नाम भी हैं मेरे उदाहरणार्थ दया, न्याय की सोच, मानव का आत्मसम्मान।

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तमिल कहानी लेखिका आर.चूडामण्ी

एस.भाग्यम शर्मा

बी.41 सेठी कालोनी जयपुर 302004

09468712468