मुझे तुम याद आएं--भाग(६) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुझे तुम याद आएं--भाग(६)

अन्जना के जाते ही कजरी बोली....
सुन्दर बाबू! ये आपने अच्छा नहीं किया,हम जैसे गरीब लोगों के लिए आपने अन्जना जी से कुछ ज्यादा ही भला बुरा कह दिया...
तुमने देखा ना!कि उसे कितना घमंड है,रईस होगी तो अपने लिए,ये रईसी अपने घर में ही झाड़े,सत्यसुन्दर बोला।।
लेकिन सुन्दर बाबू! ये अच्छा नही हुआ,रामाधीर बोला।।
अरे,आप लोंग उस पर नहीं,खाने पर ध्यान दो,सत्यसुन्दर बोला।।
लेकिन सुन्दर बाबू! अगर सेठ जी को कुछ पता चल गया तो,कजरी बोली।।
बाबूजी को उसके बारें में सब पता है,वो कुछ नहीं कहेंगें,सत्या बोला।।
और उधर अन्जना गुस्से में घर पहुँची तो उसके पिता सेठ बद्रीनाथ जी ने उससे पूछा कि....
बेटी! अन्जना क्या बात है ?
कुछ नहीं डैडी! सत्यसुन्दर बहुत ही बतमीज़ है,आज उसने सब मजदूरों के सामने मेरी बेइज्जती कर दी,मैं अब उससे कभी नहीं मिलूँगीं,अन्जना बोली।।
ऐसा नहीं कहते बेटी! सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी है वो,इतना बरदाश्त कर लिया करो,सेठ बद्रीनाथ बोले।।
मै अब उसे बरदाश्त नहीं कर सकती,अन्जना बोली।।
ठीक है तो जब वो अपने घर में हुआ करें तो कभी कभी वहीं मिल आया करो,सेठ बद्रीनाथ बोले।।
ठीक है,अगर आप कहते हैं तो,अन्जना बोली।।
और अब अन्जना कभी कभी सत्या के घर जाने लगी लेकिन सत्या को उसका स्वाभाव पसंद नहीं था,वो उससे दिलखुश होकर ना मिलता,ऊपर से कल्याणी को भी उसके बोलने के तरीकें में घमंड झलकता हुआ दिखता,कल्याणी ने सेठ जानकीदास जी से सख्ती से मना कर दिया कि वो हर्गिज़ भी अन्जना को अपने घर की बहु नहीं बनने देगी,अन्जना सत्या के काबिल नहीं है,बेचारे सेठ जानकीदास भी क्या करते जब लड़की ना माँ को भाती है और ना लड़के को,तो उन्होंने भी इस रिश्ते को मजबूत करने का भी नहीं सोचा,अन्जना आती और ऐसे ही चली जाती।।
ऐसे ही पंख लगाकर दिन बीत गए और छः महीने के भीतर ही सबकी मेहनत रंग लाई,क्योंकि अस्पताल बनकर तैयार हो चुका था,बस उसका रंग-रोगन बाक़ी था,उस दिन अस्पताल की छत पड़ी ,सेठ जी ने उस दिन भी पूजा करवाई और सारे गाँव को फिर भोज कराया।।
सब बहुत खुश थे तभी सत्या ने एकान्त में जाकर कजरी से कहा....
बहुत दिन हो गए हमलोंग बगीचे नहीं गए,वैसे भी यहाँ सब लोंग काम सम्भाल रहें हैं,चलो हम लोग कुछ देर के लिए बगीचें में टहलकर आते हैं...
लेकिन सुन्दर बाबू! किसी ने हमें साथ में देख लिया तो कुछ कहने ना लगें,कजरी बोली।।
भला कोई कुछ क्यों कहेगा? हम दोस्त हैं इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए,सत्यसुन्दर बोला।।
आप जमाने को नहीं जानते बाबू! जरा सी बात पर ना जाने लोंग कैसी कैसी बाते किया करते हैं,कजरी बोली।।
ठीक है अगर तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहती तो कोई बात नहीं,सत्या बोला।।
ऐसा नहीं है सुन्दर बाबू! लेकिन किसी ने देख लिया तो रुसवाई का डर है,कजरी बोली।।
अच्छा,ठीक है तो चलो कुछ देर उस पेड़ के नीचे तो बैठ ही सकती हो मेरे साथ,सत्या बोला।।
हाँ,चलिए,कजरी बोली।।
और दोनों कुछ देर के लिए एकान्त में एक पेड़ के नीचे जा बैठे,उन्हें ऐसे अकेले में बैठा हुआ देखकर फिर से बाँकें ने देख लिया और वह वहाँ से वापस चला आया लेकिन उसने सेठ जानकीदास जी के पास जाकर ऐसा कुछ कहा....
सेठ जी! राम...राम! कैसे हैं?बाँकें बोला।।
राम..राम भाई! तुम भी यहाँ अस्पताल में काम करते हो,नाम क्या तुम्हारा?सेठ जानकीदास जी ने बाँके से पूछा।।
जी! सेठ जी! बाँके नाम है मेरा,मैं यहाँ लगातार तो नहीं करता लेकिन कभी कभी यहाँ काम करने आ जाता हूँ,बाँके बोला।।
क्यों और भी कोई काम करते हो क्या? सेठ जानकीदास जी ने पूछा।।
ऐसी बात नहीं है सेठ जी! कुछ लोगों ने यहाँ का माहौल खराब कर रखा है,बाँके बोला।।
भाई! कौन है वो? जरा मै भी तो सुनूँ,सेठ जानकीदास जी ने पूछा।।
जी! अब क्या बताऊँ? सेठ जी! वो रामाधीर है ना !बताओ जिस थाली में खाता है,उसी में छेद करता है,बाँके बोला।।
ऐसा क्या किया रामाधीर ने? मुझे भी बताओ,सेठ जानकी दास जी ने पूछा।।
रामाधीर ने तो नहीं लेकिन उसकी बिटिया कजरी ने जरूर किया है,बाँकें बोला।।
क्या कहते हो? मुझे यकीन नहीं होता,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अगर आपको यकीन नहीं होता तो वो देखिए,उस पेड़ के नीचे,रामाधीर की बिटिया की करतूत आपको दिख जाएगी,देखिए ना कैसे हँस हँस कर छोटेमालिक से बातें की जा रहीं हैं,बाँके बोला।।
मेरा नमक खाकर,मुझसे ही नमकहरामी, अच्छा हुआ तुमने बता दिया,मुझे सतर्क कर दिया,सेठ जानकी दास जी बोले।।
क्या करूँ सेठ जी? मेरा स्वाभाव ही कुछ ऐसा है,दूसरे का दुख नहीं देखा जाता मुझसे,मुझे लगा कि आपको सतर्क कर देना चाहिए,इसलिए बताने चला आया,बाँके बोला।।
बहुत अच्छा किया बाँकें तुमने,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अच्छा! सेठ जी! अब चलता हूँ फिर कभी मुलाकात होगी और इतना कहकर बाँकें आग लगाकर चला आया।।
इधर जानकीदास जी ने ये बात कल्याणी से जाकर कही....
अजी !सुनती हो! उधर देखों ना! सत्या और कजरी उस पेड़ के नीचें अकेले बैठकर क्या कर रहे हैं? लोंग देखेगें तो हजार तरह की बातें बनाएंगे...
तो क्या दोनों ने कोई जुर्म कर दिया ? कल्याणी बोली।।
मेरी हर बात का तुम तो गलत मतलब निकालती हो,जवान लड़का लड़कीं हैं कुछ ऊँच नीच हो गई तो,देखती नहीं लोगों को तिल का ताड़ बनाने में देर नहीं लगती,सेठ जानकीदास जी बोले।
लोगों का क्या है?वो तो कुछ भी कहेगें,इसका मतलब है कि आपको अपने बेटे पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है,कल्याणी बोली।।
मुझे तो भरोसा है अपने बेटे पर लेकिन उस लड़की पर नहीं है,कहीं सत्या को अपने प्रेम जाल में फँसा लिया तो,जानकीदास जी बोले।।
कहना क्या चाहते हैं आप ? अगर सत्या उसे पसंद भी करता है तो क्या फर्क पड़ता है?लड़की इतनी सुशील और सुन्दर है,कल्याणी बोली।।
लेकिन मुझे फर्क पड़ता है ,तो क्या एक अंधी लड़की को तुम अपनी बहु बना लोगी?सेठ जानकीदास बोले।।
अगर सत्या को कजरी पसंद है तो मुझे कोई एतराज़ नहीं,कल्याणी बोली।।
कैसी बातें करती हो तुम?वो लड़की हमारी बराबरी की नहीं है ,कहीं तुम्हारा माथा तो नहीं फिर गया,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अपने बेटे की खुशी से बढ़कर और कुछ नहीं है मेरे लिए,कल्याणी बोली।
तो क्या मैं अपने बेटे का दुश्मन हूँ?सेठ जानकीदास जी बोले।।
मैने ऐसा तो नहीं कहा,कल्याणी बोली।।
तो क्या मतलब है तुम्हारे कहने का? सेठ जानकीदास जी बोले।।
तो एक बात कान खोलकर सुन लीजिए,वो नकचढ़ी अन्जना कतई भी मेरे घर की बहु नहीं बन सकती,कल्याणी बोली।।
मैने तो पहले ही कहा था कि अगर अन्जना ,सत्या को पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं हम और कोई लड़की देखेगें,सेठ जानकी दास जी बोले।।
लेकिन कजरी में क्या बुराई है? कल्याणी बोली।।
वो देख नहीं सकती,क्या सत्या ऐसी लड़की के साथ अपनी जिन्द़गी गुजारेगा? सत्या ही कजरी का ख्याल रखता रहेगा तो सत्या का ख्याल कौन रखेगा?हम दोनों के जाने के बाद,सेठ जानकीदास जी बोले।।
सत्या ने कहा है कि उसकी आँखों का इलाज हो सकता है,एक बार अस्पताल बन जाने दीजिए,फिर कजरी की आँखों की रोशनी भी आ जाएगी,वो बचपन से अन्धी नहीं थी,एक हादसे में उसकी आँखों की रोशनी चली गई थी,कल्याणी बोली।।
मुझे ना तो कजरी के गरीब होने का मलाल है और ना अनपढ़ होने का,लेकिन एक अन्धी लड़की के हाथों में अपने बेटे का जीवन सौंपना कतई गवारा नहीं,सेठ जानकीदास जी बोले।।
एक बात बताइए क्या आपको पक्का पता है कि सत्या ,कजरी को चाहता है? कल्याणी ने पूछा।।
ये तो पता नहीं है ,सेठ जानकीदास जी बोले।।
तो फिर आप मुझसे बिना बात के क्यों झगड़ रहे हैं? कल्याणी बोली।।
ये तो सही बात है,आखिर हम दोनों झगड़ क्यों रहे हैं,कल्याणी बोली।।
और यही सोचकर दोनों हँसने लगें....
आप इतना क्यों सोचते हैं? दोनों साथ में अस्पताल का काम करते हैं,इसलिए दोनों अच्छे दोस्त बन गए,दोनों हमउम्र भी हैं और फिर आप ये क्यों नहीं सोचते कि हमारे सत्या के कोई भाई बहन तो हैं नहीं जो वो अपने मन की बात उनसे कर सकें,अब हर बात बेटा माँ-बाप से तो कह नहीं सकता,इसलिए तब उसे दोस्त नज़र आते हैं,समझे मेरी बात या अब भी नहीं समझें,कल्याणी बोली।।
समझ गया भाग्यवान! सब समझ गया,सेठ जानकीदास जी बोले।।
अगर आपके मन में कोई मलाल है तो शाम को घर पहुँचकर सत्या से बात कर लिजिएगा और अगर वो सच में कजरी को पसंद करता है तो उसकी पसंद पर मोहर लगा दीजिए,लेकिन याद रहें मेरे बच्चे का दिल ना टूटे एक ही तो बेटा है हमारा,उसकी खुशी का ख्याल रखना हमारा फर्ज है,कल्याणी बोली।।
वो तो ठीक है लेकिन कजरी की आँखों का इलाज होने के बाद ही मैं सत्या से उसका रिश्ता जोड़ूगा,जानकीदास जी बोले।।
ठीक है !मुझे मंजूर है,कल्याणी बोली।।
और इधर शाम को सब घर पहुँचे तब सेठ जानकीदास जी ने सत्या के मन की बात जाननी चाही और उससे पूछा...
क्या तुम्हें कजरी पसंद है?
ये कैसा सवाल है बाबूजी? सत्या ने कहा।।
अगर पसंद है तो सच सच बता दो,सेठ जी बोले।।
जी! पसंद है ,सत्या बोला।।
तो क्या तुम उससे शादी करने को राज़ी हो?सेठ जानकीदास जी ने पूछा।।
जी,हाँ!बाबूजी! सत्या बोला।।
लेकिन वो देख नहीं सकती,सेठ जी बोले।।
उसका इलाज हो सकता है बाबूजी ! वो हमेशा से अन्धी नही थी,सत्या बोला।।
ठीक है तो इसका इलाज हो जाएं,तब मुझे ये रिश्ता मंजूर होगा,सेठ जी बोले।।
मुझे आपकी शर्त मंजूर है बाबूजी! सत्या बोला।।
ठीक है तो जल्दी से अस्पताल बनवाकर उसका इलाज करवाओ,सेठ जी बोले।।
जी!बाबूजी!,सत्या बोला।।
और उस शाम सेठ जी और सत्या के बीच काफी बातें हुई,सेठ जी रिश्ते के लिए मंजूरी तो देदी थी लेकिन कजरी की आँखें ठीक होने के बाद लेकिन सत्या ने तो अभी तक अपने दिल की बात कजरी से नहीं बताई थी और उसके घर में बात शादी तक आ पहुँची थी,लेकिन जो भी हो सत्या बहुत खुश था,उसके बाबू जी जो मान गए थे।।
इस तरह कुछ ही दिनों में अस्पताल भी बिल्कुल से तैयार हो गया,अस्पताल में सभी उपकरणों सहित जरूरत का सभी सामान मौजूद था,गाँववालों की खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि अब उन्हें मुफ्त और समय पर इलाज मिलने वाला था,सत्या ने और भी डाक्टरों को अपने साथ मदद के लिए रख लिया था जो गाँव में आकर काम करने के इच्छुक थे,कुछ नर्सेज कुछ वार्डब्वाय भी अस्पताल में काम करने लगे थे।।
इधर बाँके की हर चाल उल्टी पड़ती जा रही थी वो हर हाल में कजरी से ब्याह करना चाहता था लेकिन जब भी कोशिश करता तो उसके मन्सूबों पर पानी फिर जाता ,वो बहुत ही खिजाया हुआ था बस मौके की तलाश में था कि कब कजरी उसके हाथ लग जाए?
दिन बीतते जा रहे थे,ऐसे ही सावन का महीना चल रहा था और गाँव की नदिया के पास हर साल की तरह उस साल भी मेला लगा और हर साल कजरी मेले में जाती थी लेकिन वो भी अकेले लेकिन इस साल वो सावन में अकेली नहीं थी,उसके संग इस साल सुन्दर बाबू जो थे,उसे भी सुन्दर बाबू से प्रेम का एहसास हो चला था लेकिन वो गरीब और आँखों से अंधी थी इसलिए वो खुद को सुन्दर बाबू के काबिल नहीं समझती थी,इसलिए कभी कह नहीं पाई कि वो उनसे प्रेम करती है और जब वो सुन्दर बाबू के साथ होती है तो उसके मन का मयूर नाच उठता है,उसका कोमल मन अँगड़ाइयाँ लेने लगता है,उसे सबकुछ अच्छा लगने लगता है......
वो चाहती है कि सुन्दर बाबू हमेशा उसके साथ रहें,उससे बातें करें लेकिन शायद ये इस जन्म मे सम्भव नहीं है क्योंकि वो अंधी है और उनके जीवन को केवल अँधेरा ही दे सकती है,ये सोचते सोचते कजरी एक पल में उदास हो उठी......

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....