मुझे तुम याद आएं--भाग(७) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुझे तुम याद आएं--भाग(७)

कजरी अपने घर में उदास खड़ी थी एकाएक उसे बाहर से बाँकें ने पुकारा....
कजरी रानी! मेले नहीं चलोगी मेरे संग,चलो ना साइकिल पर बैठाकर ले चलता हूँ।।
तू फिर से आ गया मेरी जान खाने,नासपीटे मरता क्यों नहीं है? कजरी बोली।।
क्यों ? मन नहीं लग रहा क्या डाँक्टर बाबू के बिना? उसी के संग मेला जाओगी क्या? बाँके बोला।।
तुझसे क्या मतलब ? मैं किसी के भी संग जाऊँ,तू कौन होता है पूछने वाला? कजरी बोली।।
हाँ! भाई! अब सब कोई तो तेरा वो डाक्टर बाबू हो गया है,दिखता नहीं है क्या मुझे? महीनों से उसके साथ ही तो नजदीकियांँ बढ़ाईं जा रही है,बाँकें बोला।।
चुप कर अपनी गंदी जुबान,तुझे मेरे निजी मामले में दखल देने की कोई जरुरत नहीं है,कजरी बोली।।
निजी मामला....भाई मैं भी तो सुनूँ कैसा निजी मामला? जैसे सारे गाँव को खबर ही नहीं है कि महीनों से तोता-मैना के बीच क्या गुँटर-गूँ हो रही है? बाँकें बोला।।
खबरदार! जो सुन्दर बाबू के लिए कुछ भी गलत बोला,कजरी बोली।।
बड़ी शरीफ़ बनती है,जैसे किसी को कोई ख़बर ही नहीं है कि तू दिन दिनभर बगीचे में डाक्टर बाबू के संग क्या करती है?बाँकें बोला।।
बाँकें! अब पानी मेरे सिर से ऊपर गुजर रहा है ,चुप हो जा वरना,कजरी बोली।।
मुझे धमकाती है,आई बड़ी धमकाने वाली,तेरी जैसी बाँकें रोज छत्तीसों देखता है,इतना मत गरज उस डाक्टर बाबू के दम पर,बाँके बोला।।
तभी सिमकी काकी भी वहाँ आ पहुँची और उसने कजरी ,बाँकें की बीच की बहस सुनी फिर बाँकें से बोली.....
तू क्या हर घड़ी लड़की को परेशान किया करता है,कुछ लाज-शरम रह गई हैं तुझमें या नहीं।।
काकी! लाज-शरम की बातें तुम कजरी से क्यों नहीं करतीं? पूरा गाँव जो थू-थू करता है,वो तो डाक्टर बाबू की वजह से कोई मुँह पर नहीं कहता क्योंकि गाँववालों का वहाँ मुफ्त इलाज हो जाता है और कुछ लोगों को वहाँ रोजगार मिला हुआ है इसलिए,बाँकें बोला।।
तू अपना मुँह बंद करता है या नहीं,सिमकी काकी बोली।।
काकी! तुम मेरा मुँह तो बंद करवा लोगी,लेकिन सारे गाँव का क्या ? जो इन दोनों के पीठ पीछे खुसर-पुसर करता है,बाँकें बोला।।
ठीक है! इस पर हम बाद में बातें कर लेंगें लेकिन तू अभी यहाँ से जा! काकी बोली।।
अभी तो मैं जाता हूँ लेकिन आसानी से मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ,मुझसे अकड़ती है,अंधी कहीं की,बाँकें बोला।।
अंधी हूँ तो क्या तू मुझे खिलाता है? कजरी चीखी।।
बाँकें ! अब बस बहुत हो गया चुपचाप चला जा यहाँ से ,सिमकी काकी बोली।।
वहाँ से बाँकें चला तो गया लेकिन कजरी के मन को घाव दे गया,कजरी ने सोचा उसने क्या गलत कहा? अंधी तो है वो,भला किस काबिल है? जो ठीक से चल नहीं सकती भला वो डाक्टर बाबू को सहारा क्या दे सकेंगी,कजरी ये सब सोच ही रही थी कि सिमकी ने कहा.....
चल कजरी! मैं तुझे मेले लिवा चलती हूँ तेरा जी बहल जाएगा....
नहीं! काकी! मेरा मन नहीं कर रहा,कजरी बोली।।
चल ना! उस बदमाश बाँकें की बातों को क्यों मन से लगाती है?सिमकी काकी बोली।।
काकी! अभी तुम जाओ,मैं बाद में और किसी के साथ आ जाऊँगी,कजरी बोली।
हाँ! ये बता तेरे बाबू कहाँ है? सिमकी ने पूछा।।
अस्पताल गए थे तबियत दिखाने,ना जाने अभी तक क्यों ना लौटें?कजरी बोली।।
अरे,आते ही होंगें तू चिन्ता मत कर,अच्छा मैं जाती हूँ और इतना कहकर सिमकी चाची मेला देखने चली गई....
और इधर कजरी का मन बहुत ही उदास हो आया था,वो अपने बाबू का इन्तज़ार करती हुई चारपाई पर जाकर बैठ गई,तभी रामाधीर भी घर आ पहुँचे,रामाधीर की आहट सुनकर कजरी बोली....
तुम आ गए बापू! बहुत देर लगा दी....
हाँ! बेटा! देर हो गई,डाक्टर बाबू ने आज कुछ ज्यादा लम्बी जाँच की,मैने पूछा भी कि क्या हुआ है मुझे?लेकिन वें बोलें,रिपोर्ट आ जाने दो तब पता लगेगा...
बापू! कोई घबराने की बात तो नहीं है,कजरी बोली।।
क्या पता बिटिया? भगवान जाने! क्या पता उसके घर से बुलावा ना आ गया हो,रामाधीर बोला।।
ऐसा ना कहो बापू! तुम्हें कुछ नहीं होगा,कजरी बोली।।
अब जो भी हो,तू मुझे पानी ला दे तो मैं दवाई खा लूँ,रामाधीर बोला।।
अभी लाई बाबू!कजरी बोली।।
तू मेले में नहीं गई,रामाधीर ने पूछा।।
मेला तो अभी तीन चार रोज तक और चलेगा,मैं बाद में चली जाऊँगीं,कजरी बोली।।
ठीक है तो बाद में चली जाना,मैं अब थोड़ा आराम कर लेता हूँ,पैदल चलकर अस्पताल से आया हूँ तो थक गया हूँ,रामाधीर बोला।।
ठीक है बाबू! तुम आराम कर लो,मैं जब तक कपड़े धो लेती हूँ....और इतना कहकर कजरी अपने काम में लग गई।।
दूसरे दिन सत्यसुन्दर ,कजरी के घर आया तो रामाधीर बोला...
आइए डाक्टर बाबू! बिराजिए।।
काशी काका ने बताया कि गाँव में मेला लगा है तो सोचा मेला देख आऊँ,यहाँ से निकला तो सोचा आपकी तबियत भी पूछता चलूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
तबियत ठीक ही है,वैसे आपने वो इतनी सारी जाँच क्यों करवाई थीं? रामाधीर ने पूछा।।
रिपोर्ट आ जाने दीजिए फिर सब बताता हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है तो ऐसा लगता है कि शायद कोई गम्भीर बिमारी है इसलिए आप छुपा रहे हैं,रामाधीर बोला।।
नहीं! काका! आप परेशान ना हो,ऐसा कुछ नहीं है,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है तो अगर आप मेला देखने जा रहे हैं तो इस पगली को भी संग ले जाइए,ये अभी तक नहीं गई,इतने रोज हो गए मेला लगे हुए,रामाधीर बोला।।
इसकी जरूरत नहीं है बापू! वैसे भी मैं मेला जाकर क्या करूँगी? देख तो सकती नहीं,ऊपर हे सुन्दर बाबू पर बोझ और बन जाऊँगी,कजरी बोली।।
ऐसा क्यों कहती हो कजरी! तुमसे किसी ने कुछ कहा है क्या? सत्यसुन्दर ने पूछा।।
नहीं सुन्दरबाबू! मन नहीं है मेरा,आप अकेले ही चले जाइए,कजरी बोली।।
चली जा पगली! डाक्टर बाबू की भी बात नहीं मानेगी क्या?रामाधीर बोला।।
चलो ना कजरी! तुम्हें अच्छा लगेगा,सत्यसुन्दर बोला।।
रामाधीर और सत्या के कहने पर कजरी मेला जाने के लिए राजी हो गई,आज कजरी अपना नया वाला घाघरा और ओढ़नी पहनकर तैयार हुई,दोनों कुछ ही देर में मेले भी पहुँच गए क्योंकि नदिया गाँव से ज्यादा दूर नहीं है.....
मेले की भीड़ में सत्या ,कजरी का हाथ पकड़े पकड़े चल रहा था क्योकिं रात को बारिश हुई थी और जमीन की मिट्टी फिसलन भरी हो गई थी,सत्या को डर था कि कहीं कजरी फिसल ना जाए,उनका ऐसे साथ साथ चलना गाँव की औरतों को अखर रहा था,वो सब एक दूसरे से खुसर पुसर कर रहीं थीं और उधर मौजूद बाँकें ने भी दोनों को देखा तो उसके भी तन-बदन में आग लग गई.....
और वो कजरी के सामने आकर बोला....
कजरी ! मैने मेरे साथ मेले आने को बोला तो तू उबल पड़ी लेकिन ये देखो अब डाक्टर बाबू के संग कैसे गुलछर्रे उड़ाए जा रहे हैं।।
बाँकें! ये क्या बक रहा है तू?अपनी औकात में रह,कजरी बोली।।
औकात तो तू भूल गई है कजरी रानी! बाँकें बोला।।
ये क्या कह रहे हो बाँकें? सत्या बोला।।
डाक्टर बाबू! मैने ऐसा क्या गलत कहा है?आप जो ऐसे कजरी के हाथों में हाथ डाल कर घूम रहे हो तो सारी दुनिया देख रही हैं,गाँव वालें आपका संकोच करते हैं इसलिए कुछ कहते नहीं,आपको क्या लगता है कि आप दोनों की ये करतूतें किसी को दिखाई नहीं देतीं,यहाँ सब कजरी की तरह अन्धे नहीं है,आँखें हैं सभी की , देख सकते हैं,सामने कोई नहीं कहता लेकिन पीठ पीछे तो सब कहते ही हैं ना!,बाँके बोला।।
बाँकें! तुम अपनी हद पार कर रहे हो,सत्या बोला।।
मैं सही तो कह रहा हूँ,आप ही बताइए कि कजरी के साथ आपका क्या रिश्ता है ? जो आप उसके संग हाथों में हाथ डाल कर घूम रहें हैं, बाकें बोला।।
और तभी मेले में मौजूद और भी गाँव वालों ने सवाल उठाएं,वें सब कजरी के चरित्र पर लांछन लगाने लगें और बोले कि तुम उसके अन्धेपन का फायदा उठा रहे हों,हम तो महीनो से तुम दोनों की करतूतें देख रहे हैं,तुम्हारा संकोच इसलिए करते रहें कि तुम हमारा मुफ्त इलाज करते हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि तुम हमारे गाँव की बहु- बेटियों को बदनाम करते रहोगे और हम सब चुप रहेगें।।
सबकी बातें सुनकर फिर सत्या चुप ना रह सका और मजबूर होकर सत्या ने सबसे कहा...
आप सब जानना चाहते हैं ना! कि मेरा कजरी से क्या रिश्ता है? तो सुनिए मैं उससे प्रेम करता हूँ और जल्द ही मैं उससे शादी करूँगा,मेरे माँ-बाबूजी को कजरी पसन्द है और कुछ सुनना चाहते हैं आप लोंग कि बस करूँ।।
सत्या की बात सुनकर फिर गाँव वालों की बोलती बंद हो गई और आग लगाने वाला बाँकें भी चुपचाप खिसक गया।।
तब सत्या की बात सुनकर कजरी की आँखों से बेइंतहा आँसू बह निकले,उसके आँसू देखकर सत्या बोला....
कजरी! तुम रो रही हो।।
हाँ! सुन्दर बाबू! आपने जो कहा वो सच है या आप इन गाँववालों को बहलाने के लिए ऐसी बातें कर रहे हैं।।
नहीं! कजरी! ये सच है,तुम माँ को पसन्द हो और बाबूजी ने कहा कि तुम्हारी आँखों के इलाज के बाद वो हम दोनों की शादी करा देगें,सत्या बोला।।
सच कहते हो सुन्दर बाबू! कजरी ने एक बार फिर पूछा।।
हाँ! कजरी! एकदम सच! भरोसा ना हो तो मेरे घर चलकर मेरी माँ से पूछ लो।।
भरोसा है बाबू! मुझे आप पर खुद से भी ज्यादा भरोसा है,कजरी बोली।।
तो अब थोड़ा सा मुस्कुरा दो,सत्या बोला।।
और उस दिन सत्या के प्रति सबके मन का मैल धुल गया,गाँववालों का भी और कजरी का भी....
लेकिन उस दिन के बाद रामाधीर की तबियत कुछ ज्यादा ही बिगड़ने लगी और उसकी रिपोर्ट में आया कि उसे तपैदिक है और अब वो ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं है।।
ऐसे ही एक दो महीने बीते और कजरी के आँखों के आँपरेशन की नौबत नहीं आ पा रही थी क्योंकि वो अपने बापू की तबियत को लेकर परेशान रहने लगी थी,सत्या भी कजरी का पूरा पूरा सहयोग कर रहा था,फिर रामाधीर को अस्पताल में ही भरती कर लिया गया।।
लेकिन एक रोज रामाधीर की इतनी तबियत बिगड़ी कि फिर सम्भाले ना सम्भल सकीं और वो कजरी को भगवान के भरोसे छोड़कर इस दुनिया से चला गया।।
कजरी बहुत रोई...बहुत बिलखी लेकिन जाने वाले कब वापस आते हैं? कजरी ने फिर समझौता कर ही लिया अपनी जिन्द़गी से.....

क्रमशः......
सरोज वर्मा......