मुझे तुम याद आएं--भाग(९) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुझे तुम याद आएं--भाग(९)

सत्या के साथ इतना कुछ घटित होने के बाद अन्जना और उसके पिता सत्या की मदद के लिए सामने आएं,अन्जना ने शहर के सबसे बड़े वकील को सत्या का केस लेने को कहा....
वकील ने मुँहमाँगी कीमत माँगी और वो सब अन्जना और उसके पिता ने दी,इधर कल्याणी पति की मौत और सत्या के जेल जाने से टूट सी गई,दिनभर उदास होकर यूँ ही बैठी रहती,ना कुछ खाती और ना कुछ पीती,कल्याणी की देखभाल के लिए सिमकी उनके पास आकर ठहर जाती,एक दो दिन रूकती फिर वापस आ जाती।।
लेकिन सिमकी के हमदर्दी के बोल भी कल्याणी के दुख को कम नहीं कर पाएं और वो धीरे धीरे बिमार पड़ने लगी,अब अन्जना कुछ कुछ बदलती जा रही थी,वो भी कल्याणी से मिलने अपने पिता के साथ कभी कभी उनके घर पहुँच जाती।।
सत्या के कहने पर उसने अस्पताल की भी जिम्मेदारियाँ सम्भाल लीं,जब अन्जना अस्पताल से जुड़ी तो उसका लोगों की तकलीफों से सामना हुआ,तब उसने जाना कि जिन्द़गी क्या होती है?उसने तो केवल जन्म से सुख ही सुख भोगा था,भुखमरी,गरीबी,लाचारी क्या होती है? ये उसने उन गाँव के गरीब लोगों के बीच रहकर जाना।।
अब उसे लगने लगा कि ये सब समझने में उसने कितनी देर लगा दी,काश वो भी पहले समझ पाती कि मानवता क्या होती हैं,अब उसे उन सब के बीच रहने में बुरा नहीं लगता,उसने डाक्टरी तो नहीं पढ़ी थी फिर भी अस्पताल की सारी जरूरतों का वो ख्याल रखती।।
वहाँ उसने और भी डाक्टर बुला लिए और भी नर्से रख ली ताकि गाँववालों को कोई तकलीफ़ ना उठानी पड़े,अब उसने जान लिया था कि सच्चा सुख बड़े मकान में नहीं,मखमली बिस्तर में नहींं,छप्पन भोग में नहीं,असली सुख लोगों की सेवा करने में है जो वो कर रही थी,उससे वो तृप्त थी संतुष्ट थी।।
कल्याणी की बिगड़ती हुई हालत देखकर अन्जना ने उसे अस्पताल में रख लिया सोचा यहाँ उनकी ठीक से देखभाल होती रहेगी,सबसे हँसेगीं बोलेगीं तो तबियत में सुधार होगा और अब कल्याणी के स्वास्थ्य में सुधार हो भी रहा था,अन्जना उनका पूरा ख्याल रखती।।
अब कल्याणी ने बंगले में ताला लगवा दिया और वो फार्महाउस में ही आकर रहने लगी,वहाँ उनकी सेवा में काशी और सिमकी हमेशा मौजूद रहते।।

उधर सुन्दरपुर में,
मुझे लगता है कजरी बेटी! कि तू अब बिल्कुल से ठीक है,और अब तू अपने गाँव लौट सकती है, मन्दिर के पुरोहित जी ने कहा।।
बाबा! मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ,मुझे अपने गाँव जाना हैं,कजरी बोली।।
दो महीनें होने को आएं,तू पुरोहितन को नदी के किनारे मिली थी,उसने तुझे देखा तो लोगों को मदद के लिए पुकारा,गाँववाले तुझे यहाँ छोड़ गए,वैद्य जी को बुलाया गया उन्होंने कहा कि तुझे लगभग दो महीने लगेगें ठीक होने में,तुझे बीच में होश आता तो पुरोहितन तुझे खिला पिला देती,पन्द्रह दिन के बाद तूने ठीक से आँखें खोलीं,तो तू बोली मै कहाँ हूँ?
तब हम सबने कहा कि बेटी सबर रख,तू सुन्दरपुर में है पहले तू पूरी तरह से ठीक हो जा फिर तुझे तेरे घर पहुँचा देंगें,पुरोहित जी बोले।।
मैं आपका एहसान कभी ना भूलूँगी,मेरे बापू नहीं हैं लेकिन आप मुझे दोबारा मेरे बापू के रूप में मिल गए,कजरी बोली।।
तेरे माँ बाप नहीं है बेटी! तो तू यही ठहर जा हमारे पास अपने गाँव जाकर क्या करेगी? पुरोहित जी बोले।।
बाबा! बचपन से वहीं पली बढ़ी हूँ,उस गाँव से मुझे बहुत लगाव है,कजरी बोली।।
ठीक है तो कोई बात नहीं तू अपनी तैयारी बना ले,मैं तुझे कल वहाँ ले चलूँगा,अपना पता ठिकाना तो याद है ना तुझे,पुरोहित जी बोले।।
हाँ...हाँ...बाबा! सब याद है,कजरी बोली।।
पुरोहितन से तू कहेगी कि तू वापस जा रही है तो उसका दिल टूट जाएगा,पुरोहित जी बोले।।
मैं पुरोहितन अम्मा से माँफी माँग लूँगीं,कजरी बोली।।
जब पुरोहितन को मालूम हुआ कि कजरी वापस अपने गाँव जाना चाहती है तो वो बहुत दुखी हुई, उसने हाथों के कंगन उतारकर कजरी को पहना दिए और उसके जाने की तैयारी लगाने लगी,उसने कजरी के लिए बहुत सारे पकवान बनाएं ले जाने के लिए और सुबह सुबह उठकर पूड़ी सब्जी भी बना दी साथ ले जाने के लिए।।
दूसरे दिन सुबह सुबह कजरी अपने गाँव के लिए निकलने को हुई तो पुरोहितन उसे गले लगाकर फूट फूटकर रो पड़ी,बहुत ही भारी मन से पुरोहितन ने कजरी को विदा किया,कजरी बोली।।
पुरोहितन अम्मा! मैं तुमसे मिलने जरूर आया करूँगीं,
जरूर आना बिटिया! भगवान ने मुझे बेऔलाद रखा,तू मिली तो लगता था कि जैसे मेरी सूनी गोद हरी हो गई लेकिन तू मुझे छोड़कर जा रही है,पुरोहितन बोली।।
अम्मा! चिन्ता मत करो,मैं जरूर तुमसे मिलने आऊँगी और मेरी शादी में आप दोनों ही मेरा कन्यादान करोगे,कजरी बोली।।
ठीक है बिटिया! दोबारा मिलने की आशा रहेगी,पुरोहितन बोली।।
और फिर कजरी और पुरोहित जी चल पड़े कजरी के गाँव की ओर....
दिनभर का सफर करके दोनों गाँव पहुँचें,दिन ढ़ल चुका था और हल्का हल्का अँधेरा भी हो चुका था,कजरी ने सोचा पहले अस्पताल चलकर सुन्दर बाबू को बता दूँ कि मैं बिल्कुल ठीक हूँ,वे ये जानकर कितना खुश होंगें,वो यही सोचती हुई चली जा रही थी फिर उसने पुरोहित से भी कहा कि....
बाबा! हम पहले अस्पताल चलते हैं,वहाँ डाक्टर बाबू से मिलकर फिर घर चलेगें,आपका जब तक मन हो तो आप मेरे घर में रूकना।।
पुरोहित जी बोले....
ठीक है बिटिया! जैसी तेरी मरजी,तू खुश रहे बस,
तभी अस्पताल से बाहर आ रहे अन्जना के पिता सेठ बद्रीनाथ जी की नज़र कजरी पर पड़ी,उन्होंने मन में सोचा कि जैसे तैसे तो अन्जना और सत्यसुन्दर दोनों एकदूसरे के करीब आ रहे हैं,ये फिर से उन दोनों के जीवन में आग लगाने चली आई।।
मैने तो सोचा था कि ये मर चुकी है लेकिन ये अन्धी मनहूस फिर से मेरी बेटी की जिन्दगी में दखलान्दाजी करने आ पहुँची,कुछ तो करना पड़ेगा इसका,कुछ भी करके इसे कल्याणी भाभी और सत्यसुन्दर से मिलने से रोकना पड़ेगा और बद्रीनाथ कजरी के पास रोआँसे होकर पहुँचे और उससे कहा .....
कजरी बेटा! तुम जिन्दा हो,बड़ी खुशी हुई ये जानकर।।
तब कजरी बोली....
जी! आप कौन ? मैने पहचाना नहीं,कजरी बोली।।
कैसी पहचानोगी बेटी! देख जो नहीं सकती,मैं अन्जना का पिता हूँ,बद्रीनाथ बोले।।
अच्छा...अच्छा...माफ कीजिएगा चाचा जी,पहचाना नहीं मैनें,कजरी बोली।।
कोई बात नहीं बेटी!बद्रीनाथ जी बोले।।
अन्जना जी और डाक्टर बाबू तो ठीक हैं ना!कजरी ने पूछा।।
अन्जना तो ठीक है तभी तो पूरे अस्पताल की जिम्मेदारी उसने ही सम्भाल रखी है,बद्रीनाथ जी बोले।।
क्यों? डाक्टर बाबू! कहाँ हैं? कजरी ने पूछा।।
वो तो जेल में हैं,बद्रीनाथ जी बोले।।
जेल में!लेकिन क्यों? कजरी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।।
बाँकें के खून के जुर्म में,बद्रीनाथ जी बोले।।
बाँके का खून,लेकिन उन्हें कैसे पता चला? कजरी ने पूछा।।
तब बद्रीनाथ जी बोले......
उस रात तुम्हें काशी खाना देने आया होगा तो उसने तुम्हें नदी में छलाँग लगाते देख लिया था और बाँकें को तुम्हारे पीछे जाते देखा था उसने,काशी ने ये सब सत्यसुन्दर को बता दिया और उसने बाँकें का खून कर दिया,सेठ गिरधारीलाल जी अपने जवान बेटे का ये अपराध सहन नहीं कर पाएं और चल बसे ,
कल्याणी भाभी तुम्हें ही इन सब का कारण बताती हैं,कहतीं हैं तुम ही मनहूस हो जो उनके बेटे की जिन्दगी में आई तुम ना आती तो ना सेठ जी स्वर्ग सिधारते और ना सत्या जेल जाता,इसलिए तो कहता हूँ बेटी जहाँ से आई हो वहीं लौट जाओ,वरना दुनिया वालों के ताने तुमसे सहन नहीं होगें,सत्या को तो ना जाने कितने सालों की सजा हुई है और अगर वो जेल से छूट भी गया तो कल्याणी कभी भी उसकी जिन्दगी में तुम्हें नहीं आने देंगीं इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम इस गाँव को छोड़कर कहीं चली जाओ।।
ये सारी बातें पुरोहित जी भी सुन रहे थे,उन्होंने कहा....
अगर ऐसी बात है बेटी तो तू वापस मेरे संग लौट चल,मैं तुझे यहाँ हरगिज़ नहीं रहने दूँगा।।
लेकिन बाबा! डाक्टर बाबू! से एक बार मिलना चाहती थी,कजरी बोली।।
लगता है तुम फिर सत्यसुन्दर की जिन्दगी में नया तूफान खड़ा करना चाहती हो,बद्रीनाथ जी बोले।।
मैं ऐसा कुछ नहीं चाहती,कजरी बोली।।
तो फिर चली जाओ इस गाँव से,बद्रीनाथ जी बोले।।
शायद ये बाबूजी ठीक कहते हैं बिटिया! पुरोहित जी बोले।।
चलिए मैं आपलोगों को अपनी मोटर से बसस्टैंड तक छोड़ आता हूँ,बद्रीनाथ जी बोले।।
फिर पुरोहित जी और कजरी भारी मन से बद्रीनाथ जी की मोटर में बैठ गए,बद्रीनाथ ने दोनों को बसस्टैंड पहुँचा दिया और कुछ रूपए देने लगें लेकिन पुरोहित जी ने लेने से इन्कार कर दिया,तब बद्रीनाथ जी ने कहा ये कजरी के लिए है ले लीजिए उसके काम आएंगे लेकिन कजरी ने भी रूपए लेने से मना कर दिया ,बद्रीनाथ झूठ बोलकर अपने मकसद में कामयाब हो गए और उधर कजरी और पुरोहित जी सुबह तक सुन्दरपुर पहुँच गए....

सत्या पर मुकदमा चला,चूँकि उसका इरादा बाँकें की हत्या करने का ना था क्योंकि उस समय उसके पास कोई भी हथियार नहीं था,हाथापाई के चलते धोखे से बाँकें का सिर पत्थर से टकराया था,इसलिए ये हत्या का केस नहीं बनता और फिर सत्या कोई पेशेवर मुजरिम नहीं था,इसलिए उसे केवल दो सालों की सजा हुई।।
अन्जना और कल्याणी ने राहत की साँस ली,तब काशी बोला .....
मालकिन! दो साल यूँ ही गुजर जाएंगे,बस इतनी गनीमत समझइए कि उन्हें केवल दो साल की ही सजा हुई है...
शायद तुम सही कहते हो काशी!,कल्याणी बोली।।
कल्याणी अब अपना सारा समय अस्पताल मे लगाती,वो पढ़ी लिखी भी थी इसलिए मजबूरीवश कारोबार भी सम्भालने लगी इस काम में उसकी मदद बद्रीनाथ जी भी किया करते ,सबकी जिन्दगी यूँ ही चल रही थी।।
इधर कजरी भी अपनी दुनिया में रम गई,उसने सुन्दरपुर में अपना जी लगा लिया,गाँववालों ने चन्दा इकट्ठा करके उसकी आँखों का इलाज भी करवा लिया अब कजरी देख सकती थी,वो अब सारे गाँववालों की मदद किया करती ,शाम सुबह मन्दिर में भजन वही गाती,पुरोहित बाबा और पुरोहितन अम्मा की सेवा किया करती, दिन में तो वो अपना मन कामों में लगाएं रहती लेकिन रात में आँसू बहाती अपने सुन्दरबाबू के लिए....
वो अब भी सुन्दर को ना भूली थी,सुन्दर की यादें अभी भी उसके दिल में दस्तक देतीं थीं लेकिन वो अपना मन मसोसकर रह जाती।।
उधर सत्या भी कजरी के बिछुड़ जाने के ग़म से अछूता ना था लेकिन वो अभागा तो ये समझता था कि उसकी कजरी इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी है,वो रात रात भर जेल में अपने बिस्तर पर लेटकर सोचा करता कि शायद उसकी किस्मत में कजरी का प्यार था ही नहीं इसलिए तो कजरी उससे बिछड़ गई....
लेकिन अगर जिन्दगी जीनी है तो उससे समझौते करने ही पड़ते हैं,क्योंकि जिन्दगी हमसे कभी भी समझौता नहीं करती।।

उधर सुन्दरपुर में....
बेटी! जा तो कुएंँ से ताजा पानी तो भर ला! पुरोहितन बोली।।
हाँ! अम्मा ! बस अभी लाई,कजरी बोली।।
हरिया के खेत से कुछ ताजी सब्जी भी तुड़वा लाना,शाम के लिए कुछ नहीं है,नहीं तो फिर से दाल बनानी पड़ेगी,पैसे बक्से से निकाल ले,पुरोहितन बोली।।
अच्छा अम्मा! और इतना कहकर कजरी पानी के लिए कुएंँ की ओर चल पड़ी।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....