कजरी बगीचे से चली तो गई लेकिन जाते जाते सत्यसुन्दर के अँखियों की निन्दिया और दिल का चैन छीन कर ले गई,कोई लड़की इतनी सुन्दर भी हो सकती है ये सत्यसुन्दर ने कभी नहीं सोचा था,वो तो विलायत से पढ़कर आया था,वहाँ तो उसने एक से एक गोरी मेंम देंखीं थीं लेकिन जो सादगी कजरी में थी शायद वो सादगी किसी देवी की मूरत मे देखने को मिलती है।।
वो खुशी खुशी फार्महाउस लौट आया तब तक सेठ जानकीदास जी आराम कर चुके थे और उन्होंने सत्या से जमीन देखने को कहा...
सब जमीन देखने गए और उन सबको जमीन पसंद भी आ गई....
तो फिर पक्का रहा कि अस्पताल इसी जमीन पर बनेगा,मैं कल ही इस जमीन के मालिक के पास सौदा पक्का करके आता हूँ और एक अच्छा सा मुहूर्त देखकर जल्द से जल्द इसका भूमिपूजन करवा लेते हैं,अब शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए,सेठ जानकी दास जी बोले।।
हाँ! बाबूजी! आप बिल्कुल सही कहते हैं,जितनी जल्दी अस्पताल बन जाएगा,उतनी जल्दी ही गरीबों को मुफ्त में इलाज मिल सकेगा,सत्यसुन्दर बोला।
चलो फिर घर चलते हैं,जिस दिन इसका दाम चुक जाएगा और कागजात हमारे में हाथ में आते ही इसके चारो ओर घेराबन्दी करवा देते हैं और भूमिपूजन के बाद फौरन ही नीव डलवाकर काम शुरू करवा देंगें,सेठ जानकीदास जी बोले।।
जी,बिलकुल ठीक है जी! कल्याणी बोली।।
और उधर कजरी के घर पर......
जैसे ही कजरी घर पहुँची....
कजरी के बाबू रामाधीर ने पूछा....
इतनी देर कहाँ कर दी बिटिया! मुझे तो तेरी चिंता हो रही थी..
बापू! वो बगीचें में कोई मिल गया था,उससे बात करने लगी थी,कजरी बोली।।
कितनी बार कहा है कि अन्जानों से बात मत किया कर ,इतनी जल्दी तू किसी पर भी भरोसा कर लेती है,रामाधीर बोला।।
बापू वो भला आदमी लगता था,कजरी बोली।।
बिटिया! सभी भले ही दिखते हैं,लेकिन कब ,कौन, किसका , कहाँ गला काटकर भाग जाए,ये कोई नहीं जानता फिर तू तो देख भी नहीं सकती,रामाधीर बोला।।
मैं अन्धी हूँ ना! इसलिए तुम्हें चिन्ता लगी रहती है,कजरी ने रामाधीर से पूछा।।
ऐसा क्यों कहती है ? पगली! तेरे अन्धे होने से नहीं ,चिन्ता इसलिए रहती है कि मैं तेरा बाप हूँ और हर बाप को अपनी बेटी की चिन्ता रहती है,रामाधीर बोला।।
ठीक है बापू!अब से देर नहीं किया करूँगीं,कजरी बोली।।
ये ले खाना मैने बाँध दिया है,बाजार जाकर फूल बेच आ और हाँ सम्भलकर जाना,रामाधीर बोला।।
ठीक है बापू! और कहकर कजरी ने अपनी फूलों की डलिया सिर पर रखी,खाना लिया और लाठी के सहारे चल पड़ी बाजार की ओर....
थोड़ी दूर चली ही थी कि किसी ने आवाज दी....
कहाँ चली ?कजरी!
अरे,बाँके ! तू यहाँ क्या रहा है ?करमजले! कजरी बोली।।
बस तेरी ही राह देख रहा था,बाँके बोला।।
क्यों तू क्या मेरी राहों पर फूल बिछाएगा? कजरी ने पूछा।।
बस ! एक बार ब्याह के लिए हाँ बोल दें मेरी जान! तेरे लिए आसमान से चाँद तारें ना तोड़ लाऊँ तो कहना,बाँके बोला।।
क्यों ? सुबह से और कोई नहीं मिला क्या? जो मेरा दिमाग़ खा रहा है,कजरी बोली।
मिले तो बहुत लेकिन तेरा जैसा नहीं मिला मेरी जान! बाँके बोला।।
ये औकात में रह नहीं तो इस लाठी से तेरा सिर फोड़ दूँगी,आवारा कही का,कजरी बोली
आवारा नहीं तेरा आशिक हूँ,चल अभी जाता हूँ लेकिन देख लेना तुझे एक ना एक दिन अपना बनाकर ही रहूँगा,बाँके बोला...
चल ..चल..जा..जा..तेरे जैसे बहुत देखें हैं,बड़ा आया अपना बनाने वाला,कजरी बोली।।
हाँ....जाता हूँ....जाता हूँ,इतनी अकड़ किसको दिखाती है और इतना कहकर बाँके वहाँ से चला गया और कजरी भी बाजार निकल गई....
शाम तक जानकीदास जी का परिवार फार्महाउस से लौट आया....
रात के खाने के बाद ज्यों ही सत्या अपने मखमली बिस्तर पर पहुँचा उसे कजरी का ध्यान हो आया...
रह रहकर वो उसके बारें में सोचने लगा...
कितनी मीठी आवाज थी उसकी,कितनी मोहनी सी सूरत थी और मैने कहा कि मैं गरीब हूँ तो उसने भरोसा भी कर लिया,कितनी भोली और मासूम है,सत्या अपनी आँखों में कजरी की सूरत बसाकर झपकने लगा और थोड़ी देर में सो भी गया.....
उधर कजरी के घर पर....
घर के नाम पर कहें तो एक छोटी सी कोठरी है,पीछे आम का पेड़ लगा है और आगें एक कुआँ है,जहाँ थोड़ी सी फूल फुलवारी लगी है और कुछ सब्जियाँ भी लगीं हैं,छोटी छोटी डण्डियों को जोड़कर घर को घेर रखा है,जहाँ दोनों बाप बेटी रहते हैं....
कजरी के बापू रामाधीर ही खाना बना रहे थे क्योंकि कजरी जब भी खाना बनाती है तो चूल्हे की आग से अपना हाथ जरूर जला बैठती है,इसलिए रामाधीर ,कजरी को खाना नहीं बनाने देता....
और आज कजरी का मन भी नहीं था खाना बनाने का इसलिए वो चुपचाप बैठी कुछ सोच रही थी....
क्या सोचती हैं बेटी? रामाधीर ने पूछा।।
कुछ नहीं बाबू!वो बाँके मिला था रास्ते में और आज फिर फालतू की बातें कर रहा था,कजरी बोली।।
तो तू उसे एक चमाट ना देती,लोफर कहीं का,रामाधीर बोला।।
मैं भी कहाँ दबने वाली थी,खूब सुनाया उसे,आखिरकार उसे भागना ही पड़ा,कजरी बोली।।
बिल्कुल ठीक किया बेटी! रामाधीर बोला।।
लेकिन बाबू जो आज बगीचे में मिला था,वो अच्छा आदमी लग रहा था,कजरी बोली।।
अन्जाने कभी अच्छे नहीं होते पगली! कितनी बार कहा है,रामाधीर बोला।।
लेकिन उसकी बातों से तो ऐसा नहीं लगता था,कजरी बोली।।
अच्छा! चल अब ये सब छोड़ चल खाना खा ले,रामाधीर बोला।।
दोनों बाप बेटी ने खाना खाया और अपनी अपनी खाट पर लेट गए....
लेकिन कजरी कुछ सोच सोचकर मुस्कुरा रही थी,वो सुन्दर की बातों को सोच सोच कर खुश हो रही थी और सुन्दर के बारें में सोचते सोचते कब उसकी आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला....
सुबह हुई.....
सत्यसुन्दर उठा,आज उसे सब अच्छा अच्छा महसूस हो रहा था और वो सैर पर निकल गया वापस आकर उसने नहाया और नाश्ते की टेबल पर बैठ गया.....
क्या बात है? साहबजादे! आज आप समय पर हाजिर हो गए,जानकीदास जी ने पूछा...
जी,बाबूजी! सैर करके थोड़ा जल्दी आ गया था,सत्या बोला।।
भाई! कल्याणी अपने साहबजादे का स्पेशल नाश्ता तो ले आओ,सेठ जानकीदास जी बोले....
अभी लाई...कल्याणी बोली।।
और कुछ ही देर मे कल्याणी ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया...
नाश्ता करते करते सत्यसुन्दर बोला.....
बाबूजी ! सोचता हूँ कि आज और फार्महाउस की ओर घूम आऊँ...
लेकिन क्यों? कल सब ठीक से देख तो लिया था,सेठ जानकीदास बोले...
लेकिन गाँव देखना बाकीं रह गया है,सोचता हूँ गाँव के आस पास का भी मुआयना कर ही आऊँ,सत्या बोला।।
फिर कभी चले जाना,आज ही क्यों? जानकीदास जी बोले....
जाने दीजिए ना! घर में भी तो दिनभर किताबों में ही घुसा रहता है,ले दे कर एक ही दोस्त है और वो भी बाहर गाँव गया है,कल्याणी बोली।।
ठीक है तो घूम आओ,मैं दफ्तर की ओर निकलता हूँ और इतना कहकर सेठ जानकीदास जी मोटर में बैठे,फिर ड्राइवर से दफ्तर चलने को कहा....
बेटा तुझसे एक काम है,कल्याणी ने सत्या से कहा...
बोलो ना माँ! क्या काम है? सत्या बोला।।
मैं सोच रही थी कि तू फार्महाउस तक जा रहा है तो थोड़ा बगीचे तक भी चला जाता,नींबू के झाड़ से कुछ पीले पीले और पके हुए नींबू तोड़ लाता ,अचार बनाना है तेरे बाबूजी को नींबू का अचार बहुत पसंद है,कल्याणी बोली।।
यही तो माँ! मैं यही तो चाहता था,सत्या अचानक बोल पड़ा ।।
लेकिन तुझे तो नींबू का अचार बिल्कुल भी पसंद नहीं है,तू नींबू का अचार खाना चाहता है,तो पहले क्यों नहीं बताया,कल्याणी बोली।।
नहीं! माँ! मैं तो ये ही चाहता था कि तुम बाबूजी के लिए नींबू का अचार बनाओ क्योंकि कल मैने देखा था कि बगीचे में नीबू के पेड़ पर बहुत अच्छे पीले पीले नीबू लगे थे,सत्या ने अपनी बात की सफाई पेश करते हुए कहा....
ओह...तू तो आजकल अपने बाबूजी का बहुत ख्याल रखने लगा है,कल्याणी बोली।।
मै नहीं रखूँगा तो कौन रखेगा?आखिर मैं उनका बेटा जो हूँ,सत्या बोला।।
हाँ,अब चल जा !ज्यादा बातें मत बना,कल्याणी बोली...
ठीक है माँ ! तो मैं फार्महाउस होकर आता हूँ और इतना कहकर सत्यसुन्दर मोटर में बैठा ,मोटर स्टार्ट की और चल पड़ा,फार्महाउस की ओर......
कुछ ही देर में वो फार्महाउस पहुँच गया उसे देखकर काशी चौंक गया और बोला .....
छोटे मालिक ! आप यहाँ!
हाँ,काका! माँ ने नींबू मँगाए हैं अचार के लिए तो चला आया लेने,सत्या बोला।।
ठीक है तो छोटे मालिक आप थोड़ी देर रूकिए,मैं अभी बगीचे से नींबू तोड़कर लाए देता हूँ,काशी बोला।।
नहीं काका! आप क्यों जाऐगें नीबू तोड़ने बगीचे में, मै ही चला जाता हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
ना! ना! बबुआ! मेरे होते हुए भला आप क्यों जाऐगें नीबू तोड़ने?काशी बोला।।
आपको पता नहीं चलेगा ना! कि माँ को कैसे नीबू चाहिए,सत्यसुन्दर बोला।।
कैसी बातें करते हो बबुआ? उम्र बीत गई है मेरी यही काम करते हुए, अचार में कौन सा नींबू इस्तेमाल होता है ये भला मुझे मालूम ना होगा,काशी बोला...
नहीं काका! मेरे कहने का ये मतलब नहीं था,सत्यसुन्दर बोला।।
तो क्या मतलब है? मेरे छूने से क्या तुम्हारे नीबू अछूत हो जाऐगें,काशी गुस्से से बोला....
नहीं काका! कैसी बातें कर रहे हो?बस मैं तो बगीचे की सैर करना चाहता था,सत्यसुन्दर बोला।।
तो ऐसा कहो ना! और बबुआ सुनो ,वहाँ रामाधीर की बेटी फूल तोड़ने आती है,अन्धी है बेचारी,जब कभी उसे लगता है कि बगीचे में कोई चोर घुस आया है तो वो अपनी लाठी फेंककर मार देती हैं,जरा सावधान रहना,काशी बोला।।
ठीक है काका!अब मैं जाता हूँ,सत्यसुन्दर बोला....
ठीक है बबुआ और सुनो ये झोला भी संग लेते जाओ नहीं तो नींबू कैसे लाओगे? काशी बोला...
हाँ,ये तो सही कहा आपने और इतना कहकर सत्या झोला लेकर बगीचे की ओर चल पड़ा....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....