मुझे तुम याद आएं--भाग(११) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुझे तुम याद आएं--भाग(११)

कजरी को नीचें बैठता देख सोमनाथ ने उसके पास जाकर उसे सहारा देकर खड़ा किया फिर कुर्सी पर बैठाकर उसके एड़ी को देखकर छूते हुए पूछा....
कहाँ चोट लगी है?यहाँ पर या यहाँ पर...
सोमनाथ के सवाल का कजरी ने कोई जवाब नहीं दिया तो सोमनाथ ने जरा तेज आवाज में कहा...
मुँह में दही जमा है क्या? बोलती क्यों नहीं?
मुझे चोट-वोट नहीं लगी है,मुझे घर जाना है,कजरी बोली।।
खड़ा तो हुआ नहीं जा रहा,देवी जी! चलकर घर जाएंगीं,सोमनाथ बोला।।
आपको इससे क्या? मेरा पाँव टूट भी जाएं लेकिन पहले आप डाँट लीजिए,कजरी बोली।।
कजरी की बात सुनकर सोमनाथ को लगा कि शायद उसने कुछ ज्यादा ही तेज आवाज़ में बात कर ली है फिर कजरी से वो प्यार से बोला....
अच्छा नहीं डाँटूगा,बोलो तो चोट कहाँ लगी है?
यहाँ !एड़ी के थोड़ा ऊपर,कजरी बोली।।
रूक जाओ,मैं मरहम दिए देता हूँ,इसे दिन में तीन बार लगा लेना कल तक बिल्कुल ठीक हो जाओगी,चलो अब मैं तुम्हें घर छोड़ आता हूँ और सोमनाथ ने अपना सहारा देकर कजरी को घर पहुँचा दिया,तब तक शाम हो चली थी तो पुरोहितन ने डाक्टर बाबू से कहा....
बेटा! अब रात के खाने का समय हो गया है तो खाना खाकर ही जाओ।।
सोमनाथ ने मन में सोचा.....
चलो! इतना कह रही है तो खाना खा कर ही जाता हूँ।।
सोमनाथ फिर अन्दर जा बैठा और पुरोहित जी से बातें करने लगा,इसी बीच पुरोहितन खाना तैयार करने लगी और कजरी भी साथ मे उनकी थोड़ी बहुत मदद करती जाती,कुछ ही देर में खाना भी तैयार हो गया,पुरोहितन ने खाने में उड़द की दाल लहसुन के बघार वाली,बैंगन का भरता,प्याज की चटनी और बाजरे की रोटी बनाई,रोटी में ढ़ेर सारा शुद्ध देशी घी डालकर दो थालियाँ परोसकर पुरोहित जी और सोमनाथ के आगें रख दीं,खाने की खुशबू से सोमनाथ का मन महक गया और जब वो खाना खाने बैठा तो रूका नहीं।।
खाना खाकर बोला....
अम्माजी कितना स्वादिष्ट खाना था,खाकर आनंद ही आ गया,खासकर बाजरे की रोटी और प्याज की चटनी।
वो तो कजरी ने बनाई थी वो दोनों ही चीज बहुत अच्छी बनाती है,उसके हाथों में बहुत स्वाद है,पुरोहितन बोली।।
अरे,वाह कजरी! ने बनाई चटनी और रोटी,बहुत ही स्वादिष्ट बनाती है,खाकर मजा ही आ गया,सोमनाथ बोला।।
सोमनाथ की बातें सुनकर कजरी को सत्या की याद आ गई कि उसको भी तो उसके हाथ की बनी बाजरे की रोटी और प्याज की चटनी बहुत पसंद थी,कितने चाव से खाया करते थे बाजरे की रोटी और चटनी लेकिन कभी सामने आ जाएं तो पहचान ही ना पाऊँ,क्योंकि पहले आँखें नहीं थी,अब देख सकती हूँ तो वें सामने नहीं है,उनकी आवाज से शायद उन्हें पहचान जाऊँ,वो ये सोच ही रही थी कि पुरोहितन बोली....
कजरी चल खाना खा ले बिटिया! डाक्टर बाबू चले गए।।
हाँ,अम्मा ! अभी आई,कजरी बोली।।
दोनों माँ बेटी खाना खाने बैठी तो पुरोहितन कजरी से पूछ बैठी....
बिटिया! कैसे गिर गई?
अम्मा! बेंच पर चढ़कर सामान रख रही थी,बेंच कमजोर थी उसका पाया टूटा और मैं गिर गई,कजरी बोली।।
कोई बात नहीं अब वहाँ जाने की जरूरत नहीं है डाक्टर बाबू ने कहा है कि घर पर आराम करे जब तक पाँव ठीक नहीं हो जाता,पुरोहित जी बोले।।
ठीक है ,अब मैं वहाँ कभी ना जाऊँगीं,मै गिर गई मुझे चोट लग गई और डाक्टर बाबू मुझे डाँट रहे थे,कजरी बोली।।
डाक्टर बाबू ऐसे ना है बिटिया! किसी उलझन में होगें तभी तुझे डाँटा,पुरोहित जी बोले।।
उन्होंने मुझे बिना मतलब के डाँटा है,वो बिल्कुल भी अच्छे ना है,कजरी बोली।।
ऐसा ना बोल लड़का बहुत सीधा है,पुरोहितन बोली।।
पता नहीं डाक्टर बाबू ने तुम दोनों पर कौन सा जादू कर दिया है,उनके खिलाफ तुम दोनों कुछ सुनना ही नहीं चाहते,कजरी बोली।।
तू गलत सोचती है बिटिया!डाक्टर बाबू सच में बहुत अच्छे इंसान हैं,पुरोहित जी बोले।।
मैं बिल्कुल सही सोचती हूँ बाबा!कजरी बोली।।
और इसी तरह कजरी ,पुरोहित जी से बहस करती रही और वें सोमनाथ की तरफ से सफाई पेश करते रहें।।
इसी तरह दिन बीत रहे थे,सोमनाथ को उस गाँव में रहते अब डेढ़ साल होने को आया था, अक्सर सोमनाथ को पुरोहित जी अपने घर खाने पर बुलाने लगें,पुरोहित जी का मकसद तो कुछ और ही था,वे चाहते थे कि सोमनाथ,कजरी को पसंद करने लगे,वे कजरी की पूरी कहानी जानते थे कि कजरी ने किन हालातों में उनके घर में पनाह ली थी,वें सत्या के बारें में भी सब जान चुके थे।।
उन्होंने सोचा कि कजरी बेचारी ने बचपन से कितने दुख झेले हैं और अगर उनकी कोशिशों से कजरी का घर बस जाता है तो कितना अच्छा होगा,उन्हें सतुष्टि होगी अगर कजरी का जीवन सुखी हो गया तो,उनका धरती पर जन्म लेना सिद्ध हो जाएगा।।
और फिर अगर कजरी का रिश्ता डाक्टर बाबू से जुड़ जाए तो सोने पर सुहागा हो जाएगा,वें अपनी जिम्मेदारियों से फारिग हो जाएंगे अगर कजरी बिटिया अपने घर की हो गई तो और इसी तरह उन्होंने एक दिन सोमनाथ का मन लेने के लिए उससे पूछा....
डाक्टर बाबू! आपसे एक बात कहूँ।
जी! पुरोहित जी! कहिए,सोमनाथ बोला।।
सोचता हूँ कि कजरी का ब्याह कर दूँ तो कैसा रहेगा? पुरोहित जी बोले।।
ये तो बहुत बढ़िया सोचा है आपने,आपकी नज़र में कोई लड़का है क्या? सोमनाथ ने पूछा।।
है तो सही लेकिन डर लगता है कि वो कहीं कजरी से ब्याह के लिए मना ना कर दे,पुरोहित जी बोले।।
वो कोई बेवकूफ ही होगा जो कजरी से ब्याह करने को मना करेगा,वो तो बहुत भली लड़की है,सभी कामों में निपुण है,भला! ऐसी सुघड़ लड़की को शादी के लिए कौन मना कर सकता है,सोमनाथ बोला।।
तो आपको कजरी पसंद है,पुरोहित जी ने पूछा।।
भला ! कजरी में बुराई ही क्या है? सोमनाथ ने पूछा।।
तो आप करेंगें उससे ब्याह,पुरोहित जी ने पूछा।।
मेरे कहने का वो मतलब नहीं था,सोमनाथ बोला।
माँफ कीजिए डाक्टर बाबू! मैं कुछ ज्यादा ही गलत समझ बैठा,पुरोहित जी बोले।।
नहीं! पुरोहित जी! मैने मना भी तो नहीं किया ना ब्याह से,सोमनाथ बोला।
तो क्या आप इस ब्याह के लिए रा़जी हैं? पुरोहित जी ने एक बार फिर सोमनाथ से पूछा।।
कजरी जैसी अच्छी लड़की से ब्याह करने को कौन मना कर सकता है भला! सोमनाथ बोला।।
बहुत खुशी हुई ये जानकर कि आपको कजरी पसंद है,आपने मेरे मन का बहुत बड़ा बोझ हल्का कर दिया,पुरोहित जी खुश होकर बोले।।
लेकिन कजरी से भी आपने उसकी पसंद पूछी है या नहीं,सोमनाथ ने पूछा।।
मैं उससे पूछकर जल्द ही आपको बताऊँगा।।
और घर आकर पुरोहित जी ने कजरी और पुरोहितन से ये बात कही लेकिन कजरी ने साफ साफ मना कर दिया कि वो तो ना डाक्टर बाबू से ब्याह करेगी और ना किसी और दूसरे से,वो अपनी सारी जिन्दगी सुन्दर बाबू की यादों के सहारे काट देगी।।
बाबा! तुम तो सब जानते हो मेरे बारें में फिर भी ब्याह करने की जिद कर रहे हो,मैं सुन्दर बाबू को कभी नहीं भूल सकती,मेरे मन में वो आज भी बसते हैं।।
उसकी बात सुनकर पुरोहित जी परेशान से हो गए और बोले.....
बिटिया! अभी तू दुनिया और समाज को नहीं जानती,अकेली स्त्री का जीना दूर्भर कर देते हैं ये दुनिया वालें,ये तो जीवन है बिटिया! यहाँ तो मिलना बिछड़ना लगा ही रहता है,किसी के चले जाने से या बिछड़ जाने से ये दुनिया नहीं रूकती,तेरे बापू भगवान के पास चले गए तो क्या तूने जीना छोड़ दिया?नहीं ना! तो अपनी जिन्दगी बर्बाद मत कर ,हम तेरी सगाई डाक्टर बाबू से कर देते हैं फिर तू ब्याह के लिए जितना भी समय लेना चाहे ले सकती है,जब तुझे लगने लगें की तू उनसे ब्याह का मन बना चुकी है तो तभी हम तेरा उनसे ब्याह करेंगें।।
ठीक है बाबा! मुझे थोड़ा वक्त चाहिए सोचने के लिए ,कजरी बोली।।
हाँ! बेटी! जितना चाहें उतना वक्त ले ले,महीने..दो महीने...छः महीने,बस लेकिन तू ब्याह के लिए हाँ कर दे,पुरोहित जी बोले।।
मैं अभी सगाई भी नहीं करना चाहती,मुझे डाक्टर बाबू को समझने का तो थोड़ा मौका दीजिए बाबा!,कजरी बोली।।
ठीक है तो ,जैसी तेरी इच्छा फिर पुरोहित जी ने कजरी से कुछ नहीं कहा और उसके हाँ करने का इन्तज़ार करने लगें।।।

और इधर अब सत्या को जेल में रहते दो साल पूरे हो चुके थे और एक दिन वो जेल से रिहा भी हो गया,घर पहुँचा,कल्याणी उस दिन उसे लेकर मंदिर गई,आशीर्वाद दिलाने और सत्या मंदिर आया ,लेकिन वहाँ पहुँचकर उसके मन में ना तो कोई उत्साह था और ना कोई उमंग थी,उसका मन बुझा बुझा सा था,उसके जीवन में अब केवल उदासीनता के सिवाय और कुछ ना था और उसका कारण कजरी थी,कजरी के बिना उसकी दुनिया एकदम खाली हो चुकी थी और सत्या के जीवन में कजरी के चले जाने से जो रिक्तता आई थी उसे कोई भी शख्स नहीं भर सकता था।।
उसका मन बहुत ही अशांत और बेचैन था,उसे मन की शांति चाहिए थी जोकि उसे नहीं मिल रही थी,कल्याणी उसे मंदिर के पुजारी के पास ले गई,मंदिर के पुजारी ने जब सत्या की हालत देखी तो बोलें....
बहन! कल से सत्संग शुरू है मंदिर मेंं,बहुत ही पहुँचे हुए ज्ञानी है, बाबा शंखनाद कहकर पुकारते हैं उन्हें सभी,गाँव गाँव जाकर सत्संग करते हैं और भिक्षा माँगकर खाते हैं,जो अपने गाँव में शरण दे देता है तो चले जाते हैं,कुछ दिन रहकर उपदेश करते हैं फिर किसी और गाँव चले जाते हैं,उनका कोई एक जगह ठिकाना नहीं है,अगर आप चाहें तो कल अपने बेटे को लेकर आएं शायद उनका सत्संग सुनकर आपके बेटे को मन की शांति मिले और उसकी उदासीनता दूर हो जाएं।।
दूसरे दिन मंदिर में बाबा शंखनाद पधारें और उनका सत्संग भी हुआ,कल्याणी भी सत्या को लेकर वहाँ पहुँची,सत्या ने बाबा शंखनाद का प्रवचन सुना तो मंत्रमुग्ध सा हो गया और ध्यान से उनकी बातों को सुनने लगा,उसमें एक नई ऊर्जा और शक्ति का संचार होने लगा।।
सत्संग खतम हुआ तो सत्या बाबा शंखनाद के पास पहुँचा और उनसे बोला.....
बाबा! मैं बहुत परेशान हूँ,मुझे कोई भी आशा की किरण दिखाई नहीं देती,जीने की इच्छा खतम हो चुकी है,कृपया कर आप ही मुझे मुक्ति का मार्ग सुझाएँ,मुझे सही दिशा प्रदान करें ताकि मैं भारमुक्त हो सकूँ।।
सत्या की बात सुनकर बाबा शंखनाद बोले....
बेटा! ये ही जीवन-धारा है और अगर तुम इसके अनुसार नहीं चलोगे तो ऐसे ही चिन्तित और दुखी रहोगें,अगर तुम्हारा मन दुखी है तो ऐसे कार्य करो जिनसे लोगों के चेहरे पर मुस्कान आएं,लोगों की सहायता करो,उनकी सेवा करो फिर देखना तुम्हारे मन को कैसा सुख मिलता है?
अगर तुम्हारा मन करें तो कुछ दिन तुम मेरे साथ रहकर देखो,हो सकता है मेरे साथ रहकर तुम्हारे विचलित मन को ठहराव मिल जाएं और सत्या को बाबा शंखनाद का सुझाव अच्छा लगा और वो कुछ दिनों के लिए उनके शिष्यों के साथ रहने लगा,उसने गेरुए वस्त्र धारण कर लिए , बड़ी दाढ़ी और बड़े बाल भी रख लिए,गले में रूद्राक्ष की माला और साधुओ का वेष धरकर लिया,अब उसके विचलित मन को एक ठिकाना मिल गया था।।
बाबा शंखनाद को सत्संग करते अब काफी दिन हो चुके थे और अब उन्हें दूसरे गाँव से बुलाया आ गया,बाबा ने उस गाँव जाने की सोची.....
उनकी बात सुनकर सत्या बोला....
बाबा! बुरा ना माने तो कुछ दिन और मैं आपके संग रह सकता हूँ।।
हाँ! क्यो नहीं ? तुम भी हमारे साथ दूसरे गाँव चलो ,वहाँ हमारे साथ रहना और जब तुम्हारा अशांत मन शांत हो जाए तो वापस अपने घर आ जाना लेकिन याद रहें उस गाँव में तुम्हें यहाँ जैसी सुख-सुविधाएं नहीं मिलेगीं,बाबा शंखनाद बोले।।
बाबा! मुझे बस आपका साथ चाहिए,मैं कैसी भी स्थिति में वहाँ रह लूँगा?सत्या बोला।।
और फिर सत्या ने कल्याणी से भी ये बात पूछी तो उसने भी हाँ कर दी वो भी तो अपने बेटे को फिर से हँसता-खेलता देखना चाहती थी।।
सत्या ने बाबा के संग जाने की तैयारी बना ली......

और उधर एक दिन पुरोहित जी कजरी से बोले.....
बिटिया! मंदिर के धर्मशाला की सफाई कर दो,एक पहुँचे हुए बाबा अपने कुछ शिष्यों के साथ यहाँ पधारने वाले हैं।।
हाँ! बाबा! मैं सब कर दूँगी,तुम चिन्ता मत करो,वें कब तक यहाँ पहुँचेगें,कजरी ने पूछा।।
बस ! आज-कल में पहुँच जाऐगें,गाँव के लोंग चाहते थे कि उनका सत्संग यहाँ भी हो ,इसलिए बुलवा लिया।।
अच्छा किया! मैं अभी धर्मशाला की सफाई करने जाती हूँ और ये कहकर कजरी धर्मशाला की सफाई करने जा पहुँची...

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....