अतीत के पन्ने - भाग २ RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

अतीत के पन्ने - भाग २

रेखा ने कहा मेरे बाद तेरी बारी है। और अब आगे।।



फिर से काव्या अपने वर्तमान में आ गई। और फिर रेखा उसके पति आलोक और छोटा बेटा
नीरज सब आ गए।
छाया ने सबका सामान लेकर अन्दर आ गई। काव्या ने कहा जाओ रेखा दीदी के कमरे में रखवा दो।
रेखा ने कहा बाप रे कितनी गर्मी है यहां?
काव्या ने कहा छाया जा फ्रिज में से शरबत ले आ।
आलोक ने कहा और कैसी हो काव्या? काव्या ने कहा बस ठीक हुं ।
नीरज ने कहा अरे मासी भाई कहां है?
काव्या ने कहा बस आता ही होगा। आप लोग फे्श हो जाओ और फिर नाश्ता कर लीजिए।

फिर रेखा और आलोक दोनों कमरे में जाकर फे्श होकर सीधे नीचे आ गए।

काव्या ने कहा रेखा दीदी आप लोग नाश्ता कर लीजिए।
फिर आलेख आ गया और उसने रेखा और आलोक के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
रेखा ने कहा कितना दुबला हो गया मेरा बेटा।
आलेख ने कहा अरे बड़ी मां एक दम ठीक हूं मैं, पर आप कुछ ज्यादा ही मोटी हो गई।
आलोक हंसने लगे।
रेखा ने कहा हां ठीक है खुब हंसो तुम लोग। ये बताओ पुजा कितने बजे हैं?
काव्या ने कहा वो ८बजे पंडित जी आएंगे।
सरिता कब आ रही है? ये बात रेखा ने पूछा।
काव्या ने कहा वो रात तक आएंगी।
रेखा ने कहा आज शाम को हम अपने दोस्त के घर जा रहे हैं, डिनर भी वही करेंगे।
आलेख ने कहा हां बड़ी मां वो तो पता है हर साल ऐसा ही होता है।
काव्या ने कहा अच्छा अब आप लोग आराम कर लिजिए। रेखा ने कहा हां कैसा आराम ना तो कूलर से हवा आती है और ना ही बरामदे में बैठने का मजा। हमारे घर तो चारों तरफ एसी लगा है। काव्या ने हंस कर कहा हां दीदी ठीक ही कहा आपने, हमें तो आदत सी हो गई है पर हमें गर्मी लगती ही नहीं। कितना शूकून सा मिलता है। रेखा ने कहा हां तू तो‌ ठहरी पागल।खुद रहेगी पर किसी को रहने नहीं देंगी। काव्या ने कहा ग़लत इल्जाम तो ना लगाओ दीदी। मेरी क्या औकात जो किसी को ना रहने दूं।आप लोग भी रह जाओ ना।नीरज ने कहा मम्मी चलो चल कर आराम कर लो। रेखा ने कहा हां ठीक है चलो और तेरे पापा कहां गए?नीरज ने कहा वो तो सो गए।
तभी आलेख बोलने लगा छोटी मां ये हुआ और बातों बातों में आलेख ने जतिन की बात बताई।
आलेख ने कहा अरे छोटी मां रास्ते में जतिन सर मिले थे वो कल मैंने उनको बुलाया है।
रेखा ने ये सुनकर कहा अरे काव्या जतिन ने अभी तक शादी नहीं किया तेरे लिए?
काव्या ने कहा अरे रेखा दीदी ऐसा नहीं है वो करेगा पर बाद में।
रेखा हंसते हुए बोली हां।।हां।।हां।। तुझे तो सब पता है। नीरज ने कहा मम्मी अब चलो भी मुझे नींद आ रही है। रेखा ने कहा अरे बाबा चलो ‌फिर दोनों ऊपर चलें गए।

काव्या कुछ बिना बोले ही अपने कमरे में चली गई और सहसा अपने अतीत के पन्नों को फिर से पलटने लगी।
हवेली में अब कुछ पैसे आने लगे थे और फिर एक दिन आलोक अपनी मां के साथ हवेली आ पहुंचे।और सीधे काव्या का हाथ मांग लिया।
पर घर में ये बात जैसे आग की तरह फ़ैल गई।
सरस्वती जी ने कहा कि अरे पहले बड़ी बेटी की शादी करवाना है।
आलोक ने साफ बोला कि हमें काव्या पसंद है । आलोक ने कहा हम बात कर सकते हैं क्या? काव्या ने कहा हां ठीक है। फिर दोनों छत पर जाकर बैठ गए। हम तो एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे मैंने ही आलोक को मना कर दिया था कि अभी कुछ ना बताए। पर किस्मत का लिखा कहा बदल पाता है।
काव्या ने कहा हमने अभी शादी के बारे में सोचा नहीं है। पहले दो दीदी की शादी होगी।आलोक ने कहा देखो काव्या मुझे तुमसे ही शादी करनी है।। और तुम जो चाहो वही होगा।
मैं सारी उम्र इन्तजार कर सकता हूं। काव्या हंसने लगी और फिर बोली क्या बुढ़ापे में शादी करनी है। आलोक ने कहा हां और क्या तुम्हारे दो दीदी जो है पहले तुम शादी करने से रही।।
काव्या ने हंस कर कहा हां, हां अरे पहले मेरी दो दीदी की शादी होगी फिर।।
आज काश! काव्या ने आलोक का हाथ थाम लिया होता तो उम्र के इस मोड़ पर दुनिया में अकेली ना रह जाती।
फिर एक महीने बाद ही रेखा दीदी का रिश्ता टूट गया वो जो रिश्ता आया था उनको तो दहेज लेना था। फिर हवेली में आग की वर्षा होने लगी थी रेखा दीदी मे एक कमी थी कि उनका सहन करने की शक्ति नहीं थी।और वो पूरी हवेली में किसी को जीने लायक नहीं छोड़ा था। खाना पीना सब बन्द कर दिया था दीदी ने।

उस समय अगर मुझे आलोक ना याद आया होता तो पता नहीं क्या हो जाता। मैंने बिना कुछ सोचे ही उसे घर बुलाया और वो आ भी गए थे पर रेखा दीदी ने जैसे ही आलोक को देखा तो मुझे चार बात सुना दी थी।

रेखा ने गुस्से में कहा वाह! काव्या जैसे ही देखा कि मेरी शादी टूट गई तो खुद शादी करने का सोचा।।घर की जिम्मेदारी से भाग जाना चाहती हो ।।मां ओ मां,देखो अपनी लाडली बेटी की करतूत।वैसे मां तुम तो पर्दा करती आई हो।

सरस्वती ने कहा बिना सोचे समझे कुछ मत बोल रेखा।

काव्या के आंखो से लगातार बहते आंसु कोई नहीं देख सका।आलोक देख रहे थे पर कुछ ना कह पाए। फिर काव्या ने आलोक को कहा कि कुछ जरूरी बातें हैं।
काव्या ने कहा आलोक जैसा आपको पता है कि घर पहले बड़ी बेटी की शादी होती है तो आप रेखा दीदी को अपनी जीवन शगिनी बना लिजिए और हां रेखा दीदी में वो सारे गुण है जो एक लड़की में होना चाहिए।
आलोक बिना कुछ बोले वहां से चला गया था।पर कहते हैं कि जो होना होता है वो होकर रहता है। फिर आलोक के घर से रेखा दीदी का रिश्ता भी आ गया।। काव्या ने सब कुछ मन में दबा लिया और फिर सोचा कि क्या ये बलिदान था या कुछ और मैं कभी समझ नहीं पाईं। सरस्वती ने कहा हमसे जो बन पड़ेगा हम करेंगे।रेखा तू खुश तो हो ना? रेखा ने कहा हां क्यों नहीं इतना कारोबार है और अमीर है मुझे और क्या चाहिए। हां मां पर आप लोग भिखारी की तरह अपने दामाद से मांगने मत आ जाना। काव्या ने कहा वाह रेखा दीदी क्या बात है हां।हम भूखे मर जाएंगे पर कभी तुम्हारे पास नहीं आएंगे। फिर सब इंतजाम किए काव्या ने ही।
और बड़े धूमधाम से शादी हो गई। रेखा दीदी की विदाई है आज। सारे रश्मों के साथ ही शादी हो गई।
रेखा दीदी जाते समय बोली कि ये मत सोचना कि तूने कोई एहसान किया है मुझ पर। तेरी शादी आलोक से कभी नहीं होती।
जाते जाते भी रेखा दीदी ने ताने मारना नहीं छोड़ा ये बात राधा ने कहा। काव्या ने कहा अरे जाने दो उसे अपना संसार मिल गया और क्या चाहिए।

सरस्वती ने काव्या को गले से लगाया और कहा मैंने कोई तो अच्छा काम किया होगा जो तेरी जैसी बेटी को पाया है और आज तेरे बाबूजी जिन्दा होते तो ये कहते, ये सब कहते हुए रोने लगी।
काव्या ने कहा मां क्या मैंने कुछ गलत किया? सरस्वती ने कहा नहीं मेरी लाडो तू कभी ग़लत नहीं कर सकती ,तूने तो वो बलिदान दिया है जो रेखा कभी नहीं समझेंगी। काव्या ने कहा शायद आप ठीक कह रही हैं मां।।

फिर खटखटाने की आवाज से काव्या की तन्दा टूट गया और सुना तो आलेख पुकार रहा था छोटी मां कहा है आप।
अरे आलेख अब क्या हुआ? ये काव्या ने कहा।
आलेख ने हंस कर कहा अच्छा भुल गई आप मेरे सर पर तेल कौन लगाएगा?
काव्या ने हंस कर कहा हां बाबा याद है। जब तक मैं हूं मैं करूंगी फिर तेरी दुल्हन करेंगी।
आलेख ने कहा छोटी मां,मैं शादी नहीं करूंगा।
काव्या ने कहा क्यों नहीं करेगा।।
आलेख ने कहा छोटी मां आप क्यों नहीं कर पाई?? शादी।
काव्या ने अपने आंसु रोक कर कहा अरे मेरी छोड़ मुझे समय नहीं मिला ना इसलिए।
आलेख ने हंस कर कहा छोटी मां मुझे भी नहीं करनी है शादी। काव्या ने कहा मेरे बाद तेरा ख्याल कौन रखेगा।
आलेख ने कहा आप कहां जा रही हो? काव्या ने कहा क्या पता कब आंख बन्द हो जाएं मेरी एक ही खाव्हिश रह जाएगी।
आलेख ने जोर से कहा कि फिर कभी ऐसा मत बोलना,कल नानी की बरसी है और आज आप।।
काव्या ने कहा अच्छा ठीक है चल तेल लगा देती हुं।
आलेख ने कहा छोटी मां वो गाना गाओ ना।
काव्या ने फिर वो धुन छेड़ा।
बरस गया रे सावन , अब ना बसरो आंखों से अश्रु।।
फिर शाम को चाय नाश्ता करने के बाद रेखा ने कहा हमलोग सात बजे तक निकल जाएंगे। काव्या ने कहा हां दीदी ठीक है। आलेख जाएगा स्टेशन सरिता दीदी को लेने। रेखा ने कहा हां कब तक पहुंच जाएंगे। काव्या ने कहा क्या पता गाड़ी लेट होगी तो देर होगी।
रेखा ने कहा हां ठीक है हम तैयार हो जाते हैं। फिर रेखा,नीरज, आलोक निकल गए।
आलेख ने कहा अरे छोटी मां जल्दी से खाना दे दिजिए। काव्या ने कहा छाया जल्दी से खाना परोस दो। आलेख ने जल्दी से खाना खा कर स्टेशन निकल गया। काव्या ने कहा छाया ज्यादा रोटी सब्जी दाल बनाई हो ना, और हां चावल भी गर्म गर्म चढ़ा दो।
छाया ने कहा हां दीदी ठीक है।वो महाराज जी कल आएंगे ना? काव्या ने कहा हां अच्छा याद दिलाया अभी फोन करती हुं। काव्या ने फोन की डायरी निकाल कर महाराज जी को कल से आने के लिए कहा। छः बजे का समय दे दिया काव्या ने। बरामदे में जाकर बैठ गई थी और फिर गर्म हवाओं से बरामदे पर रहना मुश्किल हो रहा था।

काव्या ने मन में सोचा कि अभी सरिता दीदी भी आकर बोलेंगी कितनी गर्मी है।
कुछ देर बाद ही छाया आकर बोली अरे सरिता दीदी जीजाजी आ गए हैं। काव्या ने कहा अच्छा ठीक है उनको शर्बत पीने को दो। फिर काव्या भी नीचे उतर गई। सरिता ने कहा अरे काव्या कितनी गर्मी है हवेली में।हर साल का रोना है। काव्या ने कहा अरे सरिता दीदी कैसी हो? जल्दी से नहा धोकर कर आओ। खाना खाने। सरिता ने कहा हां आते हैं। आलेख ने कहा अरे मासी समान कमरे में रख दिया है।
सरिता और दामाद चले गए।



फिर रात के खाने में सब एक साथ टेबल पर एकत्रित हुए।
सरिताने कहा अरे आज भी रूखा सूखा खाना होगा। और रेखा दीदी का अच्छा है बहार गई डिनर के लिए। आलेख ने कहा हां सरिता मासी को भी ले जाती बड़ी मां।। सरिता ने कहा आलेख को लाड़ प्यार ने बिगाड़ा है इस काव्या ने।।
काव्या ने कहा हां दीदी सही कहा आपने। और हर बार तो आती हो ना , फिर भी भूल जाती हो कि आई क्यों हो? मां की बरसी में हर साल सादा भोजन करते हैं। राजीव ने कहा अरे किस लिए इतना बहस हां। चलो खाना खा लो।
फिर सब खाने लगे और तब रेखा, आलोक और नीरज भी डिनर करके आ गए। सरिता ने कहा अरे वाह रेखा दीदी मोटी हो गई हो? रेखा ने कहा हां और क्या?तू तो वैसी है। काव्या ने कहा अब सभी सो जाओ कल जल्दी उठकर तैयार हो जाना है। आलेख ने कहा छोटी मां मैंने सबके कमरे में कूलर में पानी भर दिया है। सब अपने कमरे में जाकर सो गए ।।



रोज की तरह काव्या अपने मां के कमरे तक जाती थी क्योंकि उसको लगता था कि आज भी मां वहीं कहीं है तो बस दिखाईं नहीं दे रही है।
काव्या फिर से मां के कमरे में जाकर पलंग पर बैठ गई और फिर बोली मां अब और अच्छा नहीं लगता कुछ तेरे बिना इस दुनिया में। लगता है बरसों से नहीं सोई हुं मां, तेरे आंचल की छांव में रहना है तेरे गोद में सोना है। तेरे हाथों का स्पर्श पाने को तरस गई हुं, तेरे कदमों की आहट को अभी भी महसूस कर सकती हुं और तेरे हाथों का बना हुआ गाजर का हलवा आज तक मेरे मुंह में लगा हुआ है ये मां, तेरा बार बार ये कहना कि खाना खा चले चल।सच मानो या अब तो ना ही वो स्वाद बचा है और ना ही वो भूख बचा है।बस जीने के लिए अन्न का दाना बस मुंह में किसी तरह से ठूंस लेती हुं अब ना वो इस बचा है ना ही वो प्यास बचा है । जानती हो सब मुझे पागल समझते हैं मां उनको क्या पता कि पागल नहीं हूं मैं। मुझे विश्वास है कि तुम यहीं कहीं हो ना मां, मैं तुम्हारी ममता को महसूस करती हुं।

ये कहते हुए काव्या रोएं जा रही थी। और फिर वो बोली कि देखो
आलेख कहता है शादी नहीं करेगा, मैं और इस कलंक को लेकर नहीं जी सकती हुं।
आप तो सब जानती हो उस समय क्या हुआ था आपकी तबियत बिगड़ी थी उस समय रेखा दीदी गर्भवती थी और वो आ गई थी। सरिता दीदी ना आ सकीं।
आप ने अपनी देखभाल करना छोड़ दिया था और रेखा दीदी की देखभाल मैं करतीं थीं उनको डाक्टर के पास ले जाना और फिर खाना पीना सब।।
पर मां मेरी गलती क्या थी बस इतना की जब आलेख हुआं तो उसकी सारी जिम्मेदारी मैंने ले लिया था क्योंकि।।

क्रमशः