अतीत के पन्ने - भाग ३ RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग ३

आलेख की जिम्मेदारी मैंने ली थी क्योंकि। और अब आगे।।



डॉ ने रेखा दीदी का आपरेशन किया था जिस कारण उसे आराम करने की हिदायत दी गई थी।वो तो बेहोशी में पड़ी रहती थी दवा का असर इतना ज्यादा था कि उसे कुछ होश नहीं रहता था और ऊपर से उसे खाना खिलाने का काम एक दाई करती थी।मैं क्या क्या करती हवेली सम्हाल कर फिर बाबू को लेकर ही सारा दिन कैसे निकल जाता था पता नहीं चलता और फिर एक अजीब सा डर भी लगा रहता था।कही कुछ अनहोनी न हो जाए। मां भी सब देख रही थी कि आलेख को अपने सन्तान जैसा प्यार ही तो दे रही थी मैं कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी मैंने। मैं क्या करूं मां आप ही बताइए मैं कैसे सब कुछ भुला दूं और आगे बढ़ जाऊ। ये जिंदगी तो नासूर बन गई है मेरे लिए। रेखा दीदी जब ठीक हो कर आलेख को मेरे जीवन से अलग कर देंगी क्या मैं सब सहन कर पाऊंगी।पर मैंने तो वादा किया है कि मैं कभी भी कुछ नहीं मांगूंगी।
और फिर मेरी ममता सबसे पहले आलेख के प्यार ने ही जगाया था।

रेखा दीदी को तो कुछ भी याद नहीं रहा कि वो एक बेहोशी में पड़ी रहती थी। शरीर बहुत ही कमजोर हो गई थी और दर्द की वजह से डाक्टर ने इंजेक्शन चालू कर दिया था।उस समय मैंने एक मां की तरह ही उस नन्हे से बच्चे को प्यार और दुलार किया था। सुबह से रात उसी को लेकर बीत जाता था।कब सुबह होती कब रात मुझे ये होश न रहता था। एक छोटे से बच्चे की परवरिश एक मां ही तो करती है ऐसा ही सुना था पर मेरा बाबू से कैसा रिश्ता था ये तो भगवान ही जानते थे।

उसकी तेल मालिश से लेकर सब कुछ मैं ही करती थीं और फिर आलेख एक साल का हो गया। मैंने उसे हमेशा मुझे छोटी मां बोलना ही सिखाया था।वो तुतला कर मुझे वो हक दे दिया जो हक शायद मुझे कोई न दे सका।
मां आप तो सब जानती थी कि मैंने कुछ भी जानबूझ कर नहीं किया था ।पर सब कहते जन्म देने वाली मां ही सब कुछ होती है, मैंने कभी भी किसी से कोई आशा नहीं किया।
अब आलेख दो साल का हो गया था और रेखा दीदी भी धीरे धीरे काफी अच्छी हो गई थी उनका स्वास्थ्य ठीक हो गया था। फिर एक दिन जिसका मुझे डर था वो ही हुआ। मां से पता चला कि कल आलोक आ रहे हैं। काव्या ने कहा अच्छा तो अब आलेख चला जाएगा मां।। सरस्वती ने कहा हां वो तो आएंगे ना अब कितने दिन रहेंगे। काव्या ने कहा हां ठीक है मां। फिर काव्या अपने कमरे में जाकर आलेख को सोता देख दौड़ कर उसे बहुत सारे प्यार करने लगी और रोने लगी। जैसे कोई कुछ उससे बहुत दूर होता जा रहा हो। एक अनजान सा भय उसे और क्या क्या करने को मन चाहा पर वो एक बेबस हो कर आलेख को गोद ले कर पुचकारने लगी एक दम पागलों की तरह उसे चूमने लगी क्या पता फिर कभी उसे ये सुख मिले ना मिले।। फिर शायद उसे एक तन्द्रा सी लग गई और फिर अचानक उठ गई और उसे लगा कि आलेख को लेकर यहां से कहीं दूर चली जाऊं पर पैरों में किसी को दिए गए वादे की बेरिया नजर आ गई और फिर आलेख सपने में हंसने लगा ये देख काव्या खिल उठी और सारी रात आलेख को देखते हुए बिता दिया। दूसरे दिन आलेख अपने तुतलाहट से काव्या को उठाया। और फिर रोज की तरह आज भी आलेख को तैयार कर दिया और उसे नाश्ता कराने बैठ गई। आलेख को तो ये पता भी नहीं कि आज उसके पापा आकर उसे हमेशा के लिए लेकर चले जाएंगे।
कुछ देर बाद ही आलोक आ गए।
और कैसी हो काव्या। काव्या ने बिना देखे ही एक नमस्ते कहा और अन्दर चली गई। आलोक ने कहा अरे अम्मा जी सब ठीक है ना? सरस्वती ने कहा हां बेटा ठीक है पर क्या है ना काव्या ने बाबू को एक मां का प्यार दिया और अब उसे तुम लोग लेकर जाओगे।। आलोक ने कहा हां मैं समझ सकता हूं। मैं रेखा से मिलकर आता हूं।
आलोक रेखा के पास जाकर बैठ गया और फिर बोला देखो अब हमें कल निकलना होगा। रेखा ने कहा हां ठीक है मैं सब कुछ सामान रख दिया है। आलोक ने कहा देखो बाबू को तो काव्या ने।। रेखा ने कहा हां मुझे पता है पर अब वो हमारे साथ जाएगा।
काव्या आलेख को लेकर अन्दर पहुंच गई और फिर बोली रेखा दीदी ये लो अब सम्हाल लो।
रेखा ने जल्दी से बाबू को गोद ले लिया।पर आलेख रोने लगा पर काव्या बिना कुछ बोले ही वहां से निकल गई।
अपने कमरे में जाकर खुब रोने लगी।
कुछ देर बाद ही आलोक अन्दर पहुंच गए और फिर बोलें। काव्या मैं समझ सकता हूं पर तुम ही बताओ मैं क्या करूं? तुम्हारी तकलीफ देखी नहीं जाती।। और रेखा की हालत। काव्या ने कहा आलोक जी आप ये सब किस लिए बोल रहे हैं। मुझे तो पता है कल आप लोग जा रहें हैं। आलोक ने कहा काव्या मुझे कुछ कहना था। काव्या ने हंस कर कहा अरे आलोक जी मुझे कुछ सुनना नहीं है। ये कहते हुए बाहर निकल गई। बाजार पहुंच कर अपने बाबू के लिए सारे जरूरत का सामान खरीद लिया और उसके लिए खिलौने भी खरीद लिया।

सरस्वती ने कहा अरे ये भरी दोपहरी में कहा चली गई थी? काव्या ने कहा अरे मां वो बाबू के लिए खरीदने गई थी। ये बात सुनकर रेखा ने कहा अरे तुम्हारे इन सब की कोई जरूरत नहीं है हमारे बच्चे को हां।सब रख लो अपने पास किसी भिखारी को दे देना। ये सुनकर सारा थैला काव्या के हाथ से गिर गया और फिर उसने अपने आंसुओं को रोक कर सामान लेकर अन्दर चली गई। आलोक ये सब देख कर दंग रह गए पर कुछ नहीं बोल सकें।
फिर सब एक दूसरे को देखने लगें पर कोई कुछ नहीं बोल सका।
काव्या ने कहा हां अब तो आएंगे ही मेरे जिगर के टुकड़े को लेकर जाएंगे।।बस हंस पड़ी काव्या जोर जोर से।। तभी आलोक अन्दर पहुंच गए और फिर बोला अरे काव्या क्या हुआ? काव्या ने कहा हां क्यों मैं हंस भी नहीं सकतीं क्या? ऐसा क्यों होता है आलोक जी।। मैं कुछ गुनाह कर दिया जैसे।।
आलोक ने कहा नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है मैं तुम्हारी अवस्था समझ सकती हुं। काव्या ने कहा जाने दिजिए क्यों जले पर नमक छिड़कने का काम करते हैं। आप लोग कब निकलेंगे? आलोक ने कहा हां बस कुछ देर बाद ही। काव्या ने कहा हां ठीक है। मैंने तो अपना काम कर दिया।।
मैं मेरी ममता को मार कर रेखा दीदी को उनका आलेख सौंप दिया ।अब जाइए यहां से वरना रेखा दीदी को कुछ ना कुछ कहने का मौका मिल जाएगा वैसे भी वो कोई भी मौका चुकती नहीं है।। और फिर रेखा दीदी के स्वभाव में जरा सा भी परिवर्तन मुझे नहीं दिखाई दिया ।।
फिर आलोक वहां से निकल गए और फिर तीनों लोग निकल गए। आलेख को कुछ पता नहीं चल पाया क्योंकि वो सो चुका था।

काव्या नीचे उतर गई और फिर बोली मां
रेखा दीदी ने एक बार भी नहीं सोचा कि आलेख को इतना बड़ा किसने किया उसे तो सिर्फ हक जताना आता था। मेरी जिंदगी से जैसे दुख कभी कम नहीं हो सकता है आलेख के जाने के बाद मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरा बहुत ही अनमोल चीज कहीं खो गया हो। और अब जीने का क्या फायदा।
उनके जाने के बाद मैंने तो जीना ही छोड़ दिया था मां।मेरा तो आलेख पर जैसे कोई भी हक नहीं ये तो सिर्फ भगवान जानते हैं। हवेली में एक सन्नाटा छा गया था और फिर मां ने कहा कि
काव्या अब तू भी शादी कर ले।
पर मैंने तो कभी अपने बारे में सोचा ही नहीं।। खाने पीने का मन ही नहीं होता और न ही कहीं जाना आना सब चला गया था और फिर एक दिन।
चार दिन तक ना खाने की वजह से अचानक
शरीर में पानी की कमी हो गई थी बेहोश हो गई और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। काव्या को‌।
कहने को तो कोई भी नहीं था बस सोहन लाल ने जल्दी से एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। मेरी हालत सुन कर जतिन जी आ गए थे।
देखा ना खाने का नतीजा क्यों ऐसा करती है मुझे चैन से मरने भी नहीं देंगी ये बात सरस्वती जी ने कहा। जतिन ने कहा हां ये सच है काव्या तुमको अपना ध्यान रखना चाहिए।।और मांजी आप की तबीयत कैसी है अब? सरस्वती ने कहा अब कुछ बेहतर है।।

शाम घर आकर ही सरस्वती ने रेखा को फोन किया तो पता चला कि वहां आलेख को भी बुखार और दस्त होने लगे थे।न जाने क्या रिश्ता था दोनों का जब अलग हो गए तो ये हो गया।
रेखा ने कहा कि मां क्या जाने काव्या ने कोई जादू ना कर दिया हो, जो ये सब झेल रहे हैं।।
सरस्वती ने कहा नहीं बेटी ऐसा मत बोल ये सब कुदरत का करिश्मा है।तु एक बार यहां आ जाती तो बहुत अच्छा होता। रेखा ने कहा नहीं, नहीं डाक्टर ने कहा है कि अभी उसको कहीं भी नहीं ले जाना है। दवाई चल रहा है और फिर टीका भी बाकी है।पर आलोक ने फोन लेकर कहा
हां अम्मा हम जरूर आयेंगे।

फिर दो दिन बाद काव्या घर आ गई।
घर पहुंचते ही काव्या काम करने लगीं उसे वो हवेली काटने को आ रहा था।उसे अब घर बैठे अच्छा नहीं लगता था। और फिर उसने कहा मां मैं फिर से स्कूल की नौकरी कर लेती हुं। सरस्वती ने कहा हां ठीक है। फिर उसी शाम सरिता भी अपने मौसी के घर से वापस आ गई और आते ही एक प्रस्ताव दे दिया।
सरिता ने कहा अब हमें भी इस हवेली से छुटकारा चाहिए मां,मै काव्या नहीं हुं कि सब कुछ त्याग कर दुंगी। मैंने अपने लिए एक लड़का देख रखा है बस उसी से शादी कर के इस शहर से दूर चली जाऊंगी।

काव्या ने कहा हां सरिता दीदी आप कर लो शादी,मैं हूं मां के साथ। सरिता ने कहा कल ही राजीव के घरवाले आ रहे हैं। और हम मंदिर में जाकर शादी कर लेंगे। सरस्वती ने कहा जैसा ठीक समझो।

दूसरे दिन सुबह राजीव के घरवाले गए और सरिता को रोका करके चले । काव्या से जो बन पड़ा उसने खरीदारी की और फिर उसी महीने की आखरी में दोनों की शादी एक मंदिर में हो गई।

और विदाई भी हो गई।
सरस्वती ने सिर्फ इतना ही कहा। हां, खुश रहना और मरने की खबर सुनकर आना जरूर।।
इसी तरह दिन बीतने लगे।
राधा भी कालेज टूर पर गई थी उसे कुछ ना पता चला। जब घर आई तो उसे सब कुछ पता चला और उसने कहा कि सब चले गए।

इसी तरह दिन निकलते गए। एक दिन, एक महीना, और एक साल बीत गए थे।
पर रेखा फिर कभी वापस नहीं आईं।
काव्या ने कहा मां आलेख तो अभी दो साल का हो गया होगा।उसका जन्मदिन भी आने वाला है।
सरस्वती ने कहा काव्या तूने जो किया वह शायद कोई नहीं कर सकता पर बेटी आलेख रेखा की प्रथम संतान है।
काव्या ने मन में मुस्कुरा कर कहा हां मेरे जीवन में संतान सुख है ही नहीं।
राधा ने कहा काव्या दीदी देखा ना सब अपना अपना घर बसा लिए सिवा आपको छोड़ कर।

काव्या ने कहा देखो राधा ये ही नियति है।
देखते-देखते तीन साल बीत गए। आज मां की अवस्था बहुत ही खराब थी डा ने जबाव दे दिया था। मैंने फोन पर सबको खबर दे दिया था।
इतनी बड़ी हवेली में अब मैं और मां ही तो रह गए थे। राधा को सरकारी नौकरी भी मिल गई थी तो वो इलाहाबाद चली गई।
सरस्वती ने कहा काव्या तूने जो किया उसका कोई मोल तो नहीं देगा पर तेरी मां तुझसे एक वादा करती है कि अगले जन्म में तेरे कोख में आऊं।
काव्या ने कहा मां ये क्या बोल रही हो तुम हो तो सब कुछ है। तुम नहीं तो कुछ भी नहीं है।
सरस्वती ने कहा बेटा तेरे बाबूजी मुझे याद कर रहे हैं।
काव्या ने कहा मां तुम ऐसे नहीं जा सकती हो।
सरस्वती ने कहा बेटा इस हवेली को कभी मत बेचना।बस ये बोलते ही सरस्वती ने अपनी आंखें बंद कर दिया हमेशा के लिए।
काव्या ने कहा ये क्या किया मां, मुझे किस के सहारे छोड़ कर चली गई तुम।
कुछ देर बाद रेखा, आलोक और आलेख आ गए।

रेखा ने कहा मां मुझे बिना मिले चली गई।
और आलेख तो दौड़ कर काव्या से लिपट गया और बोला छोटी मां देखो मैं आ गया।
काव्या ने देखा और कहा अरे बाबू चार बरस का हो गया।
फिर हवेली में सन्नाटा छा गई। सरिता और दामाद भी आ गए थे और अब राधा का इंतजार हो रहा था। राधा भी आ गई और फिर सब सरस्वती की अन्तिम यात्रा पर निकले। इनका कोई लड़का नहीं था तो पंडित जी ने कहा काव्या तुम ही सब कुछ करोगी।काव्या ने हां ये हक सिर्फ मेरा ही है। मुझे मेरी मां का अंतिम संस्कार करना होगा। और मैं ही अपनी मां का अन्तिम संस्कार करूंगी।।विघि अनुसार कंवारी लड़की ही कर सकती थी। और काव्या को ही सरस्वती ने कहा था कि तू एक बेटे से भी बढ़कर है इस लिए तू ही मेरा मुख अग्नि करेंगी। काव्या जोर जोर से चिल्लाती रही कि मां ओ मां तू कहां चली गई क्यों मुझे अकेले छोड़ दिया मां। फिर सारी विधिः अनुसार काम किया और फिर गंगा नदी में स्नान करने के बाद अपने मां की अस्थियां विसर्जित करने गई और बोली हे भगवान मेरी मां को मुक्ति मिले।
काव्या ने कहा हां मां देख आज मैंने ही तुझे हमेशा के लिए विंदा कर दिया।

फिर जो ,जो श्मशान घाट गए थे सारे लोग स्नान करने लगे। फिर वहां से मिठाई की दुकान पर आलोक ने बहुत सारी मिठाई खरीदी और वहां उपस्थित सभी लोगों को मिठाई और पानी पिलाया और सभी घर पहुंच गए।
काव्या की हालत गंभीर बनी हुई थी उसे मां के जाने का ग़म हो रहा था उसे ये विश्वास नहीं हो रहा था कि मां अब नहीं है।पर नन्हा सा आलेख ने बड़े प्यार से अपनी छोटी मां को सम्हाल लिया था।हर के दिन आलेख ही काव्या से चिपका रहता था। काव्या तो इस दुःख से नहीं निकल पा रही थी। इसी तरह ग्यारह दिन में पंडित जी आकर सारे विधिवत श्राद्ध करवाया। नीति अनुसार ब्राह्मण भोज भी करवाया गया जिसमें सरस्वती जी के पसंद का भोजन भी बना था। काव्या ने सभी काम बड़े मन से किया।रह ,रह कर उसे मां की कहीं हुई हर बात याद आ रही थी। काव्या अपने मां के कमरे को कभी अकेला नहीं छोड़ती थी। वहीं पर व़ो सोती थी।उसे हर पल मां के होने का अहसास होता था।वो बात करती, अपने आप हंसती, कभी रो पड़ती तो कभी सो जाती।
इस तरह एक महीने गुजर गए थे।


क्रमशः।।