लेखिका आर. चूड़ामणी
अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा
बुढ़िया अपनी काले रंग के प्रीमियर पदमिनी के पीछे की तरफ दोंनो हाथों को बांध कर बैठी थी। वें अकेली थीं। दरवाजा खुला रखकर हवा खा रही थीं। एक प्लास्टिक की बोतल में पानी को अपने पैरां के पास रख रखा था।
मरीना सागर तट पर आज अच्छी हवा चल रही थी। रोज ऐसा होगा ऐसा विष्वास नहीं कर सकते। कभी-कभी षाम के समय तो यहां बहुत उमस होती है। चेहरे व गर्दन से पसीना बहता रहता है। रात को बरसात होगी ऐसा मन को लालीपाप देकर आष्वासन देना होता है।
आज ऐसा नहीं है। सचमुच में दो दिन अच्छी बारिष होने की वजह से ठण्ड़क जो हवा में फैली थी। अकेले में बूढ़े शरीर को ऐसा लग रहा था जैसे कोई चामर (पंखा) चला रहा हो। बारिष के दिन होने के कारण अंधेरा छाने लगा था। नही तो षाम के साढ़े छः बजे कभी अंधेरा हो सकता है।
’’ साढ़े छः क्या ? ’’ चष्मे को ठीक करके हाथ घड़ी को देखा। साढ़े छः बनजे में आठ मिनट रहते थे।
सागर तट पर हमेंषा की तरह भीड नहीं थी। चने बेचने वाले लड़के भी गायब थे। वर्षा के डर से या अंधेरे के कारण बहुत से लोग चले गये। खाली स्थान पर यहां वहां कुछ लोंग दीखे जिन्हे गिन भी सकते थें।
वहां भी एक़ नौजवान रंगहीन धुधंले रंग का पैंट पहना था। पंैट के अंदर किये गये पूरी आस्तीन का स्लेटी रंग का शर्ट, एक जमाने में वह सफेंद रहा होगा। शर्ट की बंाहों को मोड़ा हुआ था। बारीक मूछें,ऊंचाई ठीक-ठाक थी; न मोठा न पतला ऐसा शरीर था।
वह यहीं चक्कर काट रहा था, उसे बुढ़िया ने पहले ही देख लिया था। थोड़ी देर पहले तक उसके कार के पास एक यामाहा बाइक में दो युवा लड़कियां बैंठ कर गप्पे हांक रहीं थीं। वह लड़का वहीं चोंरों जैसे देख रहा था।उसी तरफ वाॅकिग कर रहे जैसे आगे पीछे चल रहा था। वह जवान लड़कियों से छेड़छाड़ नहीं कर पा रहा था क्यों कि वह बुढ़ियां पास में थी, जो उसे नहीं पा रहा है ऐसा लग रहा था।
यें बेवकूफ लड़कियां बेकार सामने से उसको आँखें से दावत देने जैसे बैठ कर गप्पे हांक रहीं थीं ! सिनेमा के बारें में ही बात कर रहीं होगी। इसीलिये ही तो इतनी मग्न हो रहीं हंै। सागर-तट पर लोगों की भीड़ कम हो रही है।,तो भी वे नहीं चेती ......... अंधेरा अलग हो रहा है। यें कितनी दुस्साहसी हैं। कितने भी माॅडर्न हो ! हमेंशा सतर्क तो रहना चाहिये।
वह लड़का यहीं घूम रहा था।
एक निष्चय के साथ कार में से उतर कर बुढ़िया लड़कियों के पास गई।
‘‘एक्सक्यूस मी। ’’
बाल पूरे सफेद, चेहरे पर झंुरियां, हैण्डलूम की साड़ी पहने व हाथ में शान्ति निकेतन का हैण्डबैंग व शोलापुरी चप्पल पहने अंग्रेजी भाषा में बोलते सुन वे आष्चर्य में पड़ गई, उनके मुंह से बोलते हुये ‘‘ प्रषान्त.....’’ शब्द आधे में ही रह गया।
‘‘मेरे कहने को गलत मत लेना यंग लेडीज। तुम्हारी दादी की सी उम्र की हूं मैं। तुम्हारे अच्छे के लिये एक बात कहती हूं...........’’
‘‘ क्या जीसस आ रहे हैं क्या ? ’’ एक ने सीरियस होकर पूछी। दूसरी कोषिष करे बिना हंस रही थी।
‘‘ बड़ी होषियार हो ? मजाक करो तो भी सही तो करो। मेरे माथे पर इतनी बड़ी एक रूपये के बराबर कुंकुम की बिंदी लगाई हैं, उसे देखे बिना बात कर रही हो ? इतनी ही है! तुम्हारी देखने की शक्ति ? जाने दो। अभी मैं कह रही हूं उसे ध्यान से सुनो, ‘‘ एक बेकार आदमी यहीं चक्कर लगा रहा है। मैं बहुत देर से देख रही हूं। वह लड़का तुम्हें ही लाइन मारने की कोषिष कर रहा है। यहां सुनसान भी है। बेकार की कोई बात हो अतः जल्दी से यहां से रवाना होकर, अपनी मां को बिना परेषान किये घर जाओ बच्चियां। ‘प्रषान्त’ के बारे में समीक्षा घर पर रख लेना। उसके पहले उनकी उम्र बढ़ेगी नहीं। ’’
वह लाइन मारने वाला ऐसा षब्द प्रयोग करने के कारण वे समझ गई कि वे पुराने जमाने की नहीं हैं ये माॅडन जमाने की सभ्य दादी है। एकदम दादी को, गर्दन ऊँची कर देखने लगी लड़कियां जब पलटी तो वह ‘मवाली लड़का’ उन्हें देखने वाला तुरन्त उसने आँखे दूसरी तरफ कर ली। इसे देख वे घबराई।
‘‘हुम,हुमं, निकलो तुम लोग। दादी के कहने को टालो मत ये सिर्फ सिनेमा में ही नहीं है। ’’
‘‘षी इस राइट, शुचि, चलो, चलते हैं। ’’
‘‘ ठीक है रे ! चलते है दादी, थैक्स। ’’
‘‘ वेलकम ’’
उस जवाब को सुन थोड़ा आष्चर्य किया। फिर दूसरे ही क्षण बाइक में सवार हो उड़ कर चली गई। बुढ़िया गर्व से मुसकराई। उस बेकार आदमी पर एक नजर ड़ाल कर फिर आकर कार में बैठ गई।
ये सब खतम होकर थोड़ी देर ही हुआ, ये लड़का अभी भी अपनी जगह क्यों नहीं छोड़ रहा है ? और कोई युवा लड़की भी आँखों में दीख नहीं रहीं रही !
तीन आदमी लोग आसमान को देखकर, ‘‘ आज भी बारिष आयेगी ’’ बात करते हुये, चप्पल की आवाज करते जल्दी-जल्दी चले गये।
बुढ़िया ने ध्यान दिया। लड़के का सिर नजर नहीं आ रहा था। चलो किसी तरह चला ही गया क्या ? हे प्रभु ! अब मुझे भी रवाना होना चाहिये।
इस पार्किग की जगह उसकी कार के सिवाय और कोई कार नहीं है। जब वह आई थी तब दो टुरिस्ट बस व एक ऊदा रंग की मारूति, तीन बॅाइक खड़ी थी वे जाने कब के चले गये। वह लड़कियों के जाने के बाद कोई वाहन यहां नहीं है।
ठण्ड़ी हवा के चलते ही उसके सफेंद बाल उड़ने(फडफडाने) लगे। हाथों से उसे ठीक कर सीधी होकर बैंठी। सिर घूमाया। आष्चर्य में पड़ गई। वह नवयुवक उसकी कार के पास ही खड़ा था।
खुली हुई कार के दरवाजे पर थोड़ा झुका हुआ उसे ही देखने लगा। उसके ओठों पर एक व्यंग्य पूर्ण मुस्कराहट थी। उसके निकटता से, शर्ट में से हलकी सी पसीने की बदबू आई।
यहां पर क्यों खड़ा है ? उन लड़कियों को मैंने भेज दिया, इसके कारण गुस्से से उससे लड़ने आया क्या ? उसे गुस्सा आने लगा।
‘‘ तुम कौन हो भई ? यहां आकर क्यों खड़े हो ? अपने काम को देखों और जाओ। ’’
‘‘ मेरे काम को ही देख रहा हूं। ’’ सभ्यता का स्वर, ऊँचा नहीं पर आवाज स्पष्ट। फिर से वहीं मुस्कराहट ‘‘क्यो बुढ़िया, तुम्हारे साथ कौन आया है ? पति ? बेटा ? पोता ? ’’
वह बिना बोले स्तब्ध रह गई।
‘‘बोल बुढ़िया, कौन आया है ? समुद्र में पैर भिगोने गये है क्या ? तुम्हें यहां अकेले छोड़कर ? ’’
गुस्से से ज्यादा उसे घबराहट हुई। आंखे पहुंचने तक दूर तक वह सिर्फ अकेली है ये उसने महसूस किया। कुछ भी न दिखाते हुये साहस के साथ बोली ‘‘कौन है रे तू ? क्यों यहां आकर अनावष्यक रूप से तमाषा कर रहा है ? चुपचाप चला जा। ’’
‘‘नही ंतो क्या करोगी ?’’
बुढ़िया का मुंह सूख गया। युवक के हाथ में अचानक एक चमचमाता चाकू दीखा। बायें हाथ में शर्ट को मोड़ कर रखा था वह खुला हुआ था। एक क्षण में कैसे किया .......
‘‘ तुम्हारा आदमी, लड़का, पोता नहीं है, सबके वापस आने के पहले मैं अपने काम को खतम कर चला जाऊँगा। नो,नो,नो डरो मत बुढ़िया। मैं जो कह रहा हूं वैसा सुनोगी तो मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा। सबसे पहले, उस तरफ थोड़ा सरक कर बैठो। मैं अन्दर आकर तुम्हारे पास बैठता हंू। एक दो जो लोग सामने चल कर जा रहें है उन्हें भी कोई गलत संदेह नहीं होगा। ’’
वह धड़ से पीछे आकर उसके पास बैठ गया। बाहर से देखने वालों को आंखों से दिखाई न दे ऐसा उसका बायें हाथ का चाकू पीठ के पीछे था।
‘‘नोंक चुभ रहा है ना ? खबरदार! तुमने कोई आवाज दी, कोई शोर मचाया तो नोक समेत चाकू तुम्हारे शरीर में घुस जायेगा। ’’
भयंकर सपना देख रहें जैसे उसे लगा। कोई डरावनी पिक्चर टी.वी. में देख रहें हो जैसे लगा,परन्तु इस पिक्चर में वह भी एक पात्ऱ है। कहानी उसे नहीं मालूम पर उसका हिस्सा पात्र में है। ये कैसे खतम होगा ?
सफेद बालों से लेकर पैरों तक पसीना बाढ जैसे बह रहा है।
वह कुछ सोचा जैसे हंसा।
‘‘ एक मजाक तुम्हें पता है बुढिया ? तुम्हारी कार के पास ही बाइक में दो लड़कियां बैठीं थीं ना ? उनके होते कैसे तुम्हारे पास आकर तुम्हें धमकाये मैं बहुत टेन्षन में था। आजकल की लड़कियां अलग तरीके की हैं। संदेंहात्मक व्यक्ति जैसे लगे तो एकदम से झपटा मार कर चार कराटे लात मार कर पुलिस को पकड़ा भी सकती हैं। क्या करें सोचता हुआ इधर-उधर घूम रहा था। वे तो जाने वाली ही नहीं लगीं। फिर मेरी तकदीर ; तुम ही उनके पास जाकर कुछ कह कर उन्हें भगा ! ’’ फिर से हंसा।
उसे सदमा लगा। हे प्रभु ! ऐसा एक विधी का खेल ? अपने पैर पर स्वंय कुल्हाड़ी मार ली.........आज उसको विपŸिा में पड़ना विधि द्वारा पक्का, लिखा, हुआ था। अब डर कर कुछ नहीं होगा।
‘‘ ठीक है ओ डोकरी, विषय पर आते है.........’’
‘‘ ये देख भई, बात, बात पर ये क्या, मुझे व्यग्ंय से डोकरी! ब्ुाढ़िया कहते हो ? बड़ी हूं तो क्या वह एक कसूर है ? मनुष्य किस तरह ज्यादा जी सकता है, उसके लिये वैज्ञानिक षोध कर रहें हैं। लेख लिखते है। दूसरी तरफ बड़ी हो जाय तो व्यग्ंय करना चाहिये ? तुम बूडढ़े नहीं होगे क्या ? एक दिन तुम भी डोकरे नहीं होगे क्या ? कहीं तुम छोटी उम्र में ही मर जाओ, ऐसा कोई संकल्प किया है क्या ? ’’
उसने आष्चर्य से उसकी ओर देखा।
‘‘ अरे, वाह तू तो समझदार बुढ़िया है ! डोकरियां भी इस तरह बोल सकती है। क्या ? ठीक; अब बुढ़िया, डोकरी नही बुलाऊंगा। इसलिये तुम्हें छोंड़ कर चला जाऊंगा ये अर्थ नहीं है। ’’
उसे फिर से डर लगा। दूर पर सागर का लहरों की आवाज आ रहीं थी। रेत में सिर्फ कुछ एक दो लोग दीख रहें थे। जहां कार खड़ी हुई थी, उसके सामने कुछ लोग चल कर जा रहे थे। कार को एक दो लोगों ने देखा। दादी पोते है एक सुन्दर कुटुम्ब का है। इस जमाने में भी इतने प्यार करने वाला पोता है सोच कर आष्चर्य कर रहे होगें, षायद!
शोर मचाये ? हत्या, हत्या कह कर चिल्लाये ? मुंह खोलने के पहले नुकीला चाकू पीठ में रगड़ खाने लगा। खुलने वाला मुंह बंद हो गया।
वे लोग चले गये। अब सागर तट सुनसान हो गया। अंधेरा ज्यादा हो गया। बादल छाये अंधेरे में सोडियम के बल्ब से छाई रोषनी ही थी। ठण्डी-ठण्डी हवा के कररण या डर से या बुजुर्ग षरीर में रोंगटे खड़े हो गये।
‘‘क्यों रे तेरी दादी-नानी नहीं है क्या ? इतना अन्याय कर रहे हो ! ’’
‘‘ सचमुच में तू नई तरह की हो बुढ़िया, छेड़छाड़ करने वाले लड़कों से लडकियां तुम्हारे दीदी, छोटी बहन नहीं है क्या ? पूछते हंै। तुम तो, तुम्हें दादी नहीं है क्या पूछ रही हो ? ’’
‘‘ तुमने एक दादी को ही घमकाया है। उसके अलावा यहीं सही प्रष्न है। सभी लड़कों के दीदी, छोटी बहन होनी चाहिये जरूरी नहीं। परन्तु संसार में सभी लोगों के दादी व नानी जरूर होती ही है। ’’
वह हंसा। ‘‘ तू तो बहुत बड़ी खिलाड़ी है ! हां तुम्हारे अपने लोग अभी तक वापस नहीं आये ? अंधेरा होने के इतनी देर बाद भी एक उम्र दराज औरत को अकेले छोड़कर पानी में घूमते रहेगे ? ’’
बुढ़िया कुछ न बोली। उसने उसे घूर कर देखा।
‘‘ अच्छा अकेला ही आई हो क्या ? ’’
मौन पसरा।
‘‘ बड़ी दुस्साहसी हो। फिर ! तुम कार चलाना जानती हो बोलो।’’
मौन !
‘‘ फिर क्यों पीछे के सीट में बैॅठी हो ? ’’
‘‘ हवा खाने के लिये। आगे के सीट के दरवाजे को खोल कर बैठू तो लाइट आंखों में चुभेगी नहीं ? मेरे साथ चूहे-बिल्ली का खेल मत खेल भाई ! मैं हाथ जोड़ती हूं। इस बुढ़िया से सहन नहीं होगा। तुम्हें क्या चाहिये ?’’
‘‘ एक बुढ़िया के पास से क्या चाहिये होगा ? गहने, पैसे नही ंतो जान। ’’
‘‘हवा खाने आये , आकर बैठे हुए जगह पर गहने व पैसों का क्या काम ? क्या गाॅदरेज अलमारी लेकर आई हूं ? ’’
‘‘ जो तम्हारे पास है उसे ही दे दे बस है। तुम्हारे कान में बड़ा सोने के टाप्स है जो चमक रहा है, तुम्हें इस भार की क्या जरूरत है। फिर गले में सोने की जंजीर जो तीन तोले की तो होगी? ’’ फटाक से जंजीर को खींच कर उसे हाथों से तौलने लगा। ‘‘होगी कितनी। हाथ में जो घड़ी भी बांधी है वह भी अच्छी कंपनी की है। अच्छा दाम मिलेगा। दूसरे हाथ में जो सोने की चूड़ियां है। ’’
‘‘ ये सब सोने के पानी चढ़ाया हुआ (कवरिंग) है। ’’
‘‘ उसे मैं देख लूंगा। फिर हैण्डबैंग। वाह ! बडी स्टाइल वाली हो। हैण्डबैग खाली थोडी होगा ? पोते के लिये कुछ तो लाई होगी। ’’
जल्दी से जांघ के नीचे छुपाने का प्रयत्न किया उस हैण्डबैंग को, तो उसने पूरे हक के साथ उसे बाहर निकाल कर उसे खेला।
ये सोने के टाप्स,चंेन, चूड़ियों व घड़ी इन सब को देख कर ही उसे निषाना बनाया क्या ? बदमाष ! चोर रास्ॅकल ! आज यदि जिंदा बच कर चली जाऊँ तो सीधे पुलिस स्टेषन ही जाऊँगी।
कर के लाइट को जलाकर पर्स के अन्दर की चीजों को देखने लगा।
‘‘ नाम, पता- बुढ़ियों का भी सरोजा नाम होता है क्या ? ड्राइविग लाइसन्स,कार की चाबी, छोटी सी पुड़ियां में कुछ टेबलेट, दूसरी पुड़िया में कुम्कुम, एक रूमाल,एक बाल पेन, कुछ खाली कागज......… रूपये ही नहीं ?’’
वह,बिना बोले ही रही।
‘‘ अरे हां,एक ओर जेब है ! इसमें नोट ही होगा ! एक 100रू.व एक 50 रू/ का। बस इतना ही ! कार और सब चीजें रखी हो तो एक हजार रूपयें भी नहीं लाना चाहिये क्या ? ’’ ओठों को सिकोडा फिर बोला ‘‘ कजूंस दादी है ! जाने दो; एडजस्ट कर लेता हूं।’’
‘‘आधे रास्ते में अचानक कार में पट्रोल खतम हो जाय तो पांच लीटर तो डाल कर जाय इसीलिये तो रखा है। ’’
वहीं तो पहले ही ये बात सोचने वाली दादी के लिये अच्छा है। अभी पोते के लिये सहायक हुआ है ना देख ! पर्स मे जो रूपये है उसी को ले रहा हूं दादी। ’’ लाइट को बुझा कर नोटों को पैंन्ट के जेब में डाल कर और किसी को न लेकर हैण्डबैग को बंद करके उसे उसको दे दिया। ’’यें। क्या, पैरों के पास कुछ चमक रहा है ? ओ पानी की बोतल है ? साफ सुथरा घर का पीने का पानी रखा है ! ठीक है जी, बिना आवाज के गहनों को, घड़ी को उतार कर दे दो, मैं चला जाऊँगा। तुम्हें भी तो घर नहीं जाना क्या ? तुम्हरे पति, बेटा व पोता फिकर करेंगे नहीं ? ’’
बुढ़िया सिर झुकाये बिना हिले बैठी थी।
‘‘हुम, हुमं,जल्दी उतार के दो बुढ़िया। मुझे देर हो रही है, और बहुत देर मेरा धैर्य नहीं रहेगा। ’’
बुढ़िया गर्दन उठा कर उसे देख। कार के अंदर मध्यम प्रकाष में सागर के किनारे की लाइट में उसने कुछ क्षण उसे झेला फिर अंाखों को दूसरी तरफ कर लिया।
‘‘मुझे ऐसे घूर कर मत देखो बुढ़िया। कुछ फायदा नहीं है। जल्दी से घड़ी व गहने दे दोगी तो दोनों के लिये ही अच्छा है। ’’
बुढ़िया ने चुपचाप घड़ी को खोला, चूड़ियों को उतारा। गले की जंजीर को उतारी। कानों के टाप्स को खोला। सबको अपनी हथेली पर रख कर उसके सामने किया।
‘‘ अलग-अलग हो तो कैसे ले जाय ? एक नीचे गिर जाय तो भी पता नहीं चलेगा। रूमाल रखा है ना ? उसमें बांध कर दे। ’’
उसने रूमाल में रख कर गांठ लगा कर दिया।
उसने ले लिया। पैंट की जेब में रख लिया। चाकू को मोड़ कर शर्ट का हाथ जो खुला था उसमें रख कर उसे मोड़ लिया। कार के दरवाजे को खोल कर उतरा। उसे देख सिर हिलाया।
‘‘जा रहा हूं बुढ़िया। गुड नाइट। ’’
वह तेज तेज चल कर थोड़ी दूर चला गया। हवा रूक रूक कर चल रही थीं। घने बादलों ने नक्षत्रों को ढ़क रखा था। अचानक पीछे से उसकी आवाज। दूर से होने के कारण कमजोर होने पर भी जितना हुआ उतना जोर से बुलाने की जल्दी जल्दी की आवाज।
‘‘ इधर देख, भाई, इधर देख...........तुम्हें कह रहीं हूं। एक मिनट रूको प्लीस ! ’’
वह रूक कर घूमा। चार कदम आगे आया।
‘‘ क्यों तुम कुछ ड्रिकं करने की सोच रही हों क्या ? क्या होगा पता नहीं ? ’’
अपने शर्ट के हाथ के मोड से चाकू निकाला।
‘‘यहां कोई दूसरा आदमी नहीं है ध्यान रहें। ’’
‘‘नहीं भई, ऐसा सब कुछ नहीं है। ’’
‘‘ फिर क्या है ? ’’
‘‘थोडा........थेाडा सा उस घड़ी में देख कर बता समय क्या हुआ है।साढ़े सात बजे मुझे बी.पी. की गोली लेनी है। देर हो जाय और गोली न ले तो बी.पी. ज्यादा हो जायेगा। डाक्टर ने कहा है कि बहुत ध्यान से रहने को कहा है। ’’ विनती करने वाली आवाज व उसकी आंखो में भी याचना के भाव रहे होंगे । हल्के प्रकाष में उसे ठीक से दिखाई नहीं दिया।
उसकी बड़ी उम्र की अंाखों में उसके चेहरे के भाव ठीक से पहचान न पाई होगी। वह उसे ही थोड़ी देर घूर कर देख रहा था तब वह पता चला।
वह पास में आया। कार के दरवाजे को खोला पैन्ट के जेब से रूमाल बाहर निकाला व उसके गांठ को खोला घड़ी निकाली। कार की लाइट को जलाया, उसके नीचे समय देखा।
‘‘ सात चालीस, थोड़ी देर हो गई। कोई बात नहीं। ’’
पर्स को खोल गोली को निकाली। मुंह में ड़ाली प्लास्टिक के बोतल को खोल पानी के साथ गोली निगली। सीधी होकर उसे देख मुस्कराई।
‘‘ बहुत थैक्स। ’’ बोली।
उसे ही देखती रहीं, वह फिर से कार में चढ़ा।
‘‘क्यों भई........? ये..........क्यों ? ’’
वह बिना बोले उसके हाथ में ठीक तरह से कलाई में घड़ी को बांध दिया। गहनों को फिर से रूमाल में गंाठ बांध कर उसे उसके पर्स में रखा। अपने पैंट के जेब से 100रू व 50रू के नोट को निकाल कर उसके पर्स में रख कर उसे बंद कर उसके गोदी में पर्स को रखा।
आष्चर्य के कारण उसका मुंह खुला नही।
‘‘चलता हूं बुजुर्ग । मैं जन्म से चोर नहीं हूं। मेरा पेषा चोरी नहीं है। कहूंगा तो विष्वास करेागी या नही ! पांच दिन हो गये, ठीक से खाना खाये। कल से मेरा आहार सिर्फ चाय ही है। इसलिये कुछ भी ऐसा वैसा मत सोच लेना। मैंने एम.काम. किया है। एक गघा होता तो इस डिग्री के छपे कागज को ही खा कर भूख मिटा लेता। ’’
कार के दरवाजे को बंद किया।
‘‘ गुड नाइट बुढ़िया। तुरन्त रवाना होकर ठीक से घर पहुंचो। तुम्हारी उम्र के मुताबिक इस समय अकेली बाहर रहना ठीक नहीं। शहर में चोरी का डर ज्यादा है। ’’
हंस कर जल्दी चलने लगा।
‘‘ ये बच्चे.........ये लड़के..........नाम नहीं मालूम अतः तकलीफ हो रही है। ओ, जेन्टलमेन चोर, थोड़ा ठहरो भाई...........’’
‘‘ क्या ठहरो ? ’’ चिड़चिड़ाते हुये घूमा। भाग-भाग कर दौड़ कर हांफते हुये उसके सामने खडी थी वह बुढ़िया। उसके हाथ में कुछ फंसाया।
‘‘लो नोट। एक सौ का एक पच्चास का।‘‘
‘‘ भीख दे रही हो क्या ?’’ गुस्से से आंख लाल करते बोला।
‘‘ नहीं। मेरे जीवन की रक्षा हो गई उसकी खुषी मना रहीं हूं। पहले जाकर एक अच्छे होटल में एक पूरी थाली मंगवा कर पेट भर कर खाओ। बाकी रूपयों को हाथ खर्ची के लिये रखो। फिर.........मारने मत आ, तुम्हारे एम.काम. को थोड़ा अलग रख उसी होटेल में जो भी काम की जगह खाली हो पूछ कर देखो। वहीं काम षुरू कर दो, कोई भी काम करने में कोई बुराई नहीं है। तुम अच्छे लड़के हो। आल दी बेस्ट। ’’
वह कार के पास लौटी। तेजी से उसे ले जाते हुए उसे पार कर जाते समय शुरू हुई बारिष में वह अपने आप में न रह कर वहीं स्तब्घ खड़ा हुआ दिखा।
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लेखिका आर. चूड़ामणी
अनुवाद - एस.भाग्यम शर्मा
बी 41 सेठी काॅलोनी जयपुर 302004
मो.9468712468- 9351646385