जीवन के सप्त सोपान - 7 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जीवन के सप्त सोपान - 7

जीवन के सप्त सोपान 7

( सतशयी)

------------------------------

अर्पण-

स्नेह के अतुल्नीय स्वरुप,उभय अग्रजों के चरण कमलों में

सादर श्रद्धा पूर्वक अर्पण।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

आभार की धरोहर-

जीवन के सप्त सोपान(सतशयी)काव्य संकलन के सुमन भावों को,आपके चिंतन आँगन में बिखेरने के लिए,मेरा मन अधिकाधिक लालायत हो रहा है।आशा और विश्वास है कि आप इन भावों के संवेगों को अवश्य ही आशीर्वाद प्रदान करेंगे।इन्हीं जिज्ञाशाओं के साथ काव्य संकलन समर्पित है-सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़

गुप्ता पुरा(ग्वा.म.प्र.)

मो.9981284867

चित्त होए एकाग्र जब,मन समाधी में जाए।

कुछ मिलतीं है सिध्दियाँ,योगी जन ही पाए।।

चित में ब्राजी- वासना, चार अवस्था पाए।

प्रसुप्त,उदार,विच्छिन्न,तनु,साधक मन हो जाए।।

हौं बिकल्प संकल्प चित,मन चित को पहिचान।

मन चित की एक क्रिया है,मन को यौं ही जान।।

चित में जब कोई क्रिया हो,कहते उसे बिचार।

वे विचार ही क्रिया बन,बुध्दि नाम उचार।।

शिव स्वरुप में जानिए,लिंग साधना योग।

योगी जन हीं पा सके,कृपा रुप संयोग।।

द्वादश ज्यौर्तिलिंग है,सोमनाथ, गुजरात।

रामेश्वर केरल लखो,नागेश्वर गुजरात।।

औकारेश्वर एम.पी.,वैद्यनाथ है बिहार।

विश्वनाथ यू.पी. मिलै,उत्तराखण्ड केदार।।

त्रयम्वकेश्वर आँध्र में,मध्य प्रान्त महाकाल।

मल्लिकार्जन केरला,भीमाशंकर महाराष्ट्र।।

श्री धूम्रेश्वर अर्चना,महाराष्ट्र में होए।

पूरण करते कामना,नहिं है संसय कोए।।

सतयुग,त्रेता,द्वापर, कलियुग नाम उचार।

चर्तुयुगी इसको कहत,गणना का आधार।।

चार लाख बत्तीस सहत्र,है कलियुग परिमाण।

आठ लाख चौसठ सहस्त्र,द्वापर गणना जान।।

त्रेता सत्रह लाख अरु,अठ्ठाइस सहस्त्र विधान।

सतयुग चौतिस लाख संग,छप्पन सहस्त्र प्रमाण।।

पद्मनिधि,महापद्मनिधि,संख मकर निधि जान।

कच्छप,कुन्द,मुकुन्द अरु खर्व,नील निधि मान।।

जीव भोगता भोग जहाँ,निज करनी आधार।

स्वर्ग नरक की वंदना,करलो बारम्बार।।

प्रमुख नरक गणना सुनो,तामिस्त्र,रौरव,संघात।

लोह शंकु,महा रौरव,काल सूत्रक घात।।

लोह,तोय,सम्प्रतावन,साविष और काकोल।

संजीवन,महानिश्चय,पूत मृतक अनमोल।।

शाल्मली,अरु कुण्डमल,महापथ,अवीचि जान।

अन्धतमिश्रा,संप्रतापन,कुम्भी,तपनिहि मान।।

रक्त पीव के कुण्ड भी,मल मूत्रहु के मीत।

नरक यातना भोगिए,जन जीवन भयवीत।।

पारस,पारख पात है,जब पार्थ के नाम।

अभय होए जीवन सरस,बन जाते सब काम।।

पारथ,अर्जुन,अच्युत,कुन्ती प्रथा,आर्य।

महावाहा,अरिसूदन,निद्रा विजयीकार।।

गुड़ा केश,सव्यसाचिन,पाण्डुपुत्र,कौन्तेय।

भरत श्रैष्ठ अरु धनन्जय,आर्य पुत्र,कुरुश्रेय।।

भारत,कुरु नंदन गिनो,भरतवंशी,इन्द्रावतार।

जपो निरंतर परन्तप,बाईस नाम उचार।।

जीवन पा जीवन जिए,जीव जगत में आय।

संसकार सोलह तपे,रीति अनेकन गाय।।

गर्भाधरण,पुंशवन,सामंत,जन्म विचार।

अन्न प्रासन,मुण्डनम,विधारम्भ उदार।।

यज्ञोपवीतम,दीक्षा,सुचि विवाह भी लेख।

वानप्रस्थ संन्यास भी,अन्त्येष्टि अभिलेख।।

त्रयोदशी अरु श्राध्द गिन,जन्म दिवस को जान।

विवाह दिवस भी अब मनै,संस्कारी अभिधान।।

जगत गुरु से पाए जग,जीवन शिक्षा ज्ञान।

भरत भूमि के परम तप,पाँच जगत गुरु जान।।

शंकर,रामानु,निम्बिका,मध्वा,श्री कृपाल।

पाँच जगत गुरु पुजत जग,जगत नियंता लाल।।

गुरु ज्ञान की ज्योति है,पृथ्वी तुल्य महान।

धैर्य क्षमा धारण करै,रुप अलौकिक मान।।

पवन,वात,वायु,हवा,गति साधक अनुरुप।

स्थिर रहना लक्ष्य पर,संत चलन के रुप।।

आकाशी के पोल में,नाद अनहदी होए।

है अखण्ड ज्यौं ब्रह्मवत,संत साधना सोए।।

जल पानी अरु नीर की,सुचि सुद्धता अमोल।

सब मिल,सबके रुप रंग, देते निज को घोल।।

आग अगिन और अनल से,ज्ञान प्रकासन होए।

ज्ञात और आज्ञात सब,खोज सकै सब कौए।।

चन्द्र चन्द्रिमा शशि का, एकाकारी रुप।

घटना बड़ना समय संग,संतन भाव अनूप।।

सूर्य भानु और रवि में,दान भाव पहिचान।

परोपकारो के लिए,तप पथ का अनुमान।।

जन,मृग,अण्डज,स्वण्डज,भ्रमण करै चहुँ ओर।

लौट आए निज आश्रमह,ठहरैं अपने ठौर।।

अजगर रुपक सर्प बन,बन जाए मनमस्त।

सकल चेष्ठाएँ तजे,मनोभाव हो अस्त।।

सागर,जलनिधि,नीरनिधि,सुख समुद्र की रेख।

भावों की गंभीरता,संत साधना लेख।।

सीख पतंगे दे रहें,अनाशक्ति हो जाव।

मोह त्याग की साधना,है कीटों का भाव।।

भौरां अलि और भ्रमर की,प्रीति एक रस मान।

पने रंग में रम रहे,मोह भाव तज पान।।

गज हाथी और नाग से,मोह त्याग ले ज्ञान।

सकल व्याधि आशक्ति में,संत लेय पहिचान।।

मधुमक्खी से सीख लो,संग्रहशील न होए।

संग्रह दुःख का गेह है,अन्तहि सबकुछ खोए।।

मृग मारग मत जाइए,ध्वनि मोहनि जंजाल।

शब्द मोह,बेधत बधिक,फंस जाते है जाल।।

मीन हस्ति मृग मानवाँ,है इन्द्रिएँ आधीन।

लोभ पास में फंस रहैं,समुझो चतुर प्रवीण।।

सतपथ के मारग चलन,लोह पिंगला से जान।

भक्ति भाव अपना गई,त्याग सकल व्यवधान।।

ज्ञान दे रहे पक्षीगण,पुररी मत को मान।

तप त्यागों की मूर्ती बन,बनीं जगत पहिचान।।

मस्त रहो ज्यौं बाल मन,चिंता रहित विशेष।

अलमस्ति जीवन जिओ,मोह भाव नहीं लेश।।

क्वारी बाला ज्ञान नें,द्वेत भाव दयो खोय।

एकाकी जीवन जिओ,द्वन्द न मन में होय।।

लक्ष्य आपना साधिए,त्याग सकल जंजाल।

दृष्टि साध्य साधु बनो,वाण बना या भाल।।

भ्रमण सर्पवत कीजिए,लिए स्वतंत्रता भाव।

गेह नेह का त्याग कर,रख सबसे अलगाब।।

मकड़ी से सीखो सदाँ माली जाली खेल।

खुद ही रच,खद मैट दें,श्रुति मत यहीं अपेल।।

भृंगी साधक साधना,जो करता एहि लोक।

एक रंग,एकाग्रता,रहता सदा अशोक।।

विधाएँ है अनगिनत,पर चौसठ को जान।

युग पुरुषी की धारणा,बनता पुरुष प्रधान।।

गायन विद्या जानिए,गीत-रीति अरु राग।

वादन विद्या सीख लो,स्वर तालक अनुभाग।।

नृत्य नाचना जानिए,अनगिन रुप सरुप।

नाट्य,नाटको की विधा,गहन भाव से सीख।।

चित्र कला में चातुरी, बेल-बूटियाँ साज।

पूजा विधि के रुप कई,फूलन सेज सुसाज।।

अंग वस्त्र,रंगन सहित, दंतावली विशेष।

मणिमाणिक से फर्स रच,सौया रंजन लेख।।

जल वंधन सिध्दि करत,हार माल श्रृगांर ।

कान चोटि फूलन श्रजन,भूषण गहने हार।।

आभूषण विधि,अनगिनत,पल्लभ के श्रृंगार।

गंध वस्तुओं का श्रृजन,जादू विविध प्रकार।।

मन चाहत बहु भेष धर,हस्त लाघवी काम।

पकवानों की विविधता,पेय पदार्थ पान।।

सूची कौशल है विविध,कठपुतलीं का नाँच।

प्रमिमा और पहेलियाँ,कूट ग्रंथ का साँच।।

दरी गलीचें पट्टिका,नाट्य समस्या पूर्ती।

काष्टकला,निर्मित भवन,कई धातु रच मूर्ती।।

खानों की पहिचान कर,मणि रतनों को जान।

वृक्ष चिकित्सा,खग लड़न,कई विधि बोली गान।।

शब्दोच्चारण,कचसृजन,गुप्त भेद पहिचान।

शकुन साधना,काव्य छवि,बहु विधि भाषा ज्ञान।।

यंत्र जंत्र साजन सृजन,रतन काट गुह्य ध्यान।

सांकेतिक भाषा समझ,मन कट रचना ज्ञान।।

नभ खोजन का विविध विधि,क्षल क्षदमों के खेल।

कोषों का संज्ञान रख,छन्दों के अभिलेख रख।।

भूषण बदलन की विधि,क्रीडा ध्यूत विशेष।

आकर्षण कर्षण विधा,बाल क्रियाएँ लेख।।

विजय मंत्र विधा प्रबल,बेताली गुह्य जाल।

चौसठ विद्या जान कर,हो जाओ जग लाल।।

000