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गोद

तमिल कहानी लेखिका माधंगी जयरामन 

अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा

‘‘हम गोद ले’’ जैसे ही मैने कहा मेरे पति ने मुझे घूर कर देखा। ‘‘क्यों हमारी दो बेटियों की शरारत कम लगी क्या ? तुम्हें एक बेटे की इच्छा है तुमने पहले नहीं कहा?’’ व्यंग्य से बोले। मेरी आँखों में जो इन्होने खामोशी देखी उन्हें मेरे पक्के इरादे समझ गये। मजाक छोड़ उन्होने कहा ‘‘सॉरी ! क्या कहना चाहती हो साफ बोलो ना?’’ मेरे उद्देश्य व इरादे को देख वे गौरवांवित हुए। ‘‘तुम्हारे फैसले से मैं गर्व का अनुभव कर रहा हूँ। हम दोनो अपने दोनो बच्चों को तरीके से समझा देंगे। बाद में जो करना है उसे कायदे और कानून से करेगें। ‘तुम कितनी साहसी हो गई हो! मेरी प्रशंसा कर वे चले गए।

शादी होने के बाद लॉस एजिंल्स में कदम रखते ही मुझे बहुत डर लग रहा था। मेरे हाथ में हनुमान जी की पूंछ की तरह एक लम्बी लिस्ट थी। मेरा डर मुझे याद आते ही मैरी का साहस भी मुझे याद आ गया। स्कर्ट, टाप, स्कार्फ, लिपस्टिक, टक-टक कर चलने वाली उसकी चाल, हमेषा चेहरे पर मुस्कान लिए किसी की भी समस्या मालुम होते ही मदद करने वाला उसका मन ... यही सब तो मैरी की पहचान है। मैं खिड़की के पास मैं बैठी तो मुझे सामने मैरी दिखी। सबसे पहले मैने उसे काफी के मग लेकर बैठदेखा।

वह खिड़की ही मेरे मनोरजंन का एक मात्र साधन थी। मेरी इस खिड़की को मेरे पति बोधि वृक्ष कह मुझे चिढ़ाते। ‘‘आज क्या मालुम किया। वह औरत अकेले ही है क्या? उसका नाम क्या है? उसकी उम्र क्या है?’’ ऐसी बाते ही हमारे डाइनिंग टेबल की मुख्य बाते होने लगी। मैरी एक अमेरिकन है। उसका पति नहीं है। उसकी मेरी उम्र की एक लड़की है जो न्यूयार्क में रहती है। उसके साथ उसका ज्यादा लगाव नहीं है।

हमारे घर पहली बार जब मैरी आई वह अनुभव बहुत ही कामेडियन था। मैं नई-नई आई, अकेली किसी तरह खाना बना रही थी। कुकर का प्रेशर अधिक होने से बहुत ज्यादा आवाज आ रही थी व उसमें से भांप निकल कर चारों तरह फैल रहीं थी। तब अचानक सायरन बनजे लगा। क्या कंरू पता नहीं चला। डर के मारे मैं घबरा कर कांपती हुई एक तरफ खड़ी हो गई। इतने में कांलिग बेल की आवाज आई वहां मैरी खडी थी। उसने घर के अन्दर झांक कर देखा और मेरे हाथों को पकड़कर बाहर निकाला। बाहर अड़ोसी-पड़ोसी सब इकट्ठे हो गए।

‘‘और कोई घर के अन्दर है क्या ?’’ उसने पूछा। नहीं ’’कह मैनं सिर हिलाया। फिर मैंने बडे नादानी से पूछा ‘‘ये क्या सायरन की आवाज ?’’ ‘‘यह आपके घर का सुरक्षा अलार्म है।’’ कह उसे कैसे बन्द करते है मुझे बताया। उस दिन से मेरी नादानी, बेवकूफी, संशय, का समाधान का जवाब मैरी, ही मुझे देती थी।

मैरी की उम्र मेरी अम्मा जितनी है, सुन कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था। उसमें कितनी फुर्ती थी। सुबह माण्टूसेरी स्कूल में टीचर, शाम को सोशल सर्विस। मैंने एम.एम. साईकोलाजी में की है उसे पता लगते ही मुझे कांउसलिंग करने के लिये तैयार किया व मुझे अपने पैंरो पर खडे होने के लिए साहस मैरी ने ही दी। मैरी, तुम्हें मैं गोद लेने वाली हूँ वह सही है इसकी हिम्मत क्या तुम मुझे दोगी मैरी?

अपने ख्यालों की दुनियां से बाहर आ बच्चे दिव्या व काव्या की पसंद का लेचानियां और लाल केस्पिकम का सूप बनाया। यें विदेशी व्यंजन बनाना मुझे मैरी ने ही सिखायां। मेरा प्रसव अमेरिका में ही हुआ। तब मैरी ने सिर्फ मेरी सेवा ही नहीं की, बल्कि मुझे हिम्मत भी बंधाती रही।

मेरे दुख के समय जब मेरे सास-ससुर गुजरे या जब मेरे मम्मी-पापा गुजरे थे, तब उसने हीं मुझे तसल्ली व सांत्वना दी, और  मेरे परिवार का ख्याल भी रखा।

मैरी मेरा तुम्हें गोद लेना ठीक है ना? तुम्हारी राय मेरे लिये बहुत जरूरी है। जवाब दोगी ना? मौन पसरा हुआ था।

मैरी मुझे जवाब देने की हालत में आज नहीं है। पिछले एक साल से ही उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आये थे। अपने आप बात करना, हसंना आदि। ऐसा एक दिन भी नहीं गया होगा, जब उसने प्रभु से यह प्रार्थना न की हो कि मुझे वृद्धाश्रम जाने की नौबत कभी न आये। अकेलापन व बुढ़ापे ने उसे व्याकुल कर दिया था। मैंने ये बात समझी और में आई मैने  कई बार कौंउसलिंग की।  डाक्टरों के पास भी ले गई। दिन-ब- दिन उसकी हालत खराब होती  गई। अब और रूक नहीं सकते सोच कर पहली बार मैरी की बेटी सांत्रा को मैंने फोन किया। ‘अगले माह आकर देखंूगी’ं उसने कहा तो मैंने उसे उनकी हालत की नजाकत बताई।  दो दिन में आने की बात मानी, परन्तु बेमन से।

सांत्रा आ रहीं है जब मैरी को मैंने बताया तो वह बहुत खुष हुई। वहीं पुरानी हिम्मत व उत्साह उसके चेहरे पर दिखा। इस काम को मैंने पहले क्यों नहीं किया सोच मैं अपने आप को दोषी मानने लगी।

सांत्रा के अन्दर आते ही उसे ‘हलो’ कह कर मैं धीरे से बाहर आकर खड़ी हो गई। माँ बेटी के बीच बात करने के लिए तो बहुत से विषय होगे। थोड़ी देर में ही वह कमरे से बाहर आ गई ‘‘मुझे मम्मी को एक अच्छे वृद्धाश्रम में छोड़ना होगा। उसके बाद ही मैं रवाना होऊगी।’’ कह कर वह बाहर चली गई।

मैरी के कमरे के अन्दर घुसने में ही मुझे डर लगा। मैरी का चेहरा ऐसा लगा जैसे किसी भूत-प्रेत को प्रत्यक्ष देख लिया हो। भ्रमित होकर बैठी थी। मैंने तुरन्त एम्बूलेंस को बुलाकर अस्पताल में उन्हें भर्ती करवाया। सांत्रा से मैरी के डिस्चार्ज होकर आने तक यहीं ठहरने के लिए मैंने उसे बड़े मुष्किल से उसे मनाया। मैरी के शरीर में कोई कमी न थी। उसका मन नही प्रभावित हुआ था। प्यार, सांत्वना ही उसकी दवाई है डाक्टरों के कहने के कारण मैं रोज एक घण्टा उनसे बातें करना अपनी आदत बना ली। परन्तु मैरी को कुछ भी समझ आया ऐसा मुझे नहीं लगा।

मैरी के तबियत खराब होने के कारण मैं बच्चों को समय नहीं दे पाई। इस कारण मैरी को गोद लेने वाली इच्छा को मैं बच्चों को बता नहीं पाई।

रात डिनर के समय मैने बात करनी शुरू की। ‘‘गोद लेने का मतलब क्या है तुम्हें पता है?’’ दिव्या मालुम है कर सिर हिलाई तो छोटी काव्या ‘आई नो आई नो’ कहकर चिल्लाई। आगे कहने लगी ‘‘मेरे दोस्त माईकल की मम्मी ने उसके पापा को उसके एक दोस्त नहीं है कहकर उन्होने उसे खरीद लिया’’ बोली।

मैं व मेरे पति हँसते हुए उनसे हमारी इच्छा को आराम से बताया। ‘‘वाऊ, सचमुच में! वेरी हेप्पी,’’ दोनों बोले। ‘‘अम्मा के स्टेडी रूम को बेडरूम में बदल देेगे। मैं आपकी मदद करूंगी दिव्या बोली। बड़े उत्सुकता से काव्या बोली ‘‘मैं वेलकम कार्ड बनाऊँगी।’’ उनके उत्साह ने मेरा विष्वास बढ़ाया। मेरे पति ने कानून के विषय पर सामग्री इकठ्ी की।

दूसरे दिन सुबह मैरी को देखने गई। उसनें कोई भी बदलाव नहीं था। मैरी के हाथो को पकड़कर मेरी गोद लेने की इच्छा, बच्चों व पति का उत्साह सबको मैंने उन्हें बताया। उन्हें क्या समझ में आया पता नहीं उसने मेरे हाथों को जोर से पकड़ लिया। उसकी आँखो में जीवन की चमक आते, मैंने महसूस किया। नर्स के साथ अन्दर घुसे डाक्टर आष्चर्य चकित रह गए।

तभी वहाँ आये सांत्रा से मैं बोली ‘‘तुम से मेरी एक बिनती है क्या उसे पूरा करोगी?’’ क्या है जैसे वह मुझे देखने लगी।

‘‘तुम्हारी मम्मी को मुझे गोद दे दोगी? मैं उनकी देखभाल अपनी मम्मी जैसे करूंगी। मुझे किसी तरह की कोई रूपयों की जरूरत नहीं। वेष कीमती अपनी मम्मी को क्या मुझे सौंप दोगी?’’ आँसुओं के साथ मैंने उससे बिनती की।

डाक्टर व नर्स आष्चर्य चकित हो खड़े रहें। सांत्रा के जवाब देने के पहले ही मैरी की आवाज मेरे कानों में शहद जैसे घुली।

‘‘बेटी! मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी माँ बन कर आने को तैयार हूँ।“

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तमिल कहानी लेखिका माधंगी जयरामन 

अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा 

बी-41 सेठी कॉलोनी जयपुर-302004

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