Anokhi Dulhan - 32 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( छोड़ी हुई दुल्हन_२) 32

राज गुस्से में वीर प्रताप के कमरे में गया। उसके हाथों में आज सुबह का अखबार था। उसने कमरे में जाते ही खिड़कियों से पर्दे हटाएं और सूरज की किरणों का कमरे में स्वागत किया। टीवी का रिमोट ले, उसने लोकल न्यूज चैनल शुरू किए।

अपने आस पास हलचल महसूस कर वीर प्रताप ने आंखे खोली। वो अपने बिस्तर पर सर पकड़ कर बैठा। " ये क्या नाटक है, सुबह सुबह तुम्हे मेरे कमरे में आने की इज्जाजत किसने दी ?" उसने गुस्से में राज से पूछा।

" सुबह, आंखे अगर ठीक से खोलेंगे तो आपको पता चलेगा की दोपहर होने में आधा घंटा ही बचा है। ये क्या है ? इसका जवाब दे सकते है आप ?" राज ने अपने हाथ में पकड़ा अखबार वीर प्रताप की तरफ फेंका।

" ये अखबार है।" वीर प्रताप ने उसे देखते हुए कहा।

" आप कल रात कहा थे ? किस के साथ और क्या कर रहे थे ?" राज को अब अपने कथित अंकल पर गुस्सा आने लगा था। " अगर आपको होश नहीं रहता, तो इतना पीते ही क्यों है ?"

" कहा थे ? किस के साथ थे ? पीते क्यों है ? आप आप भी क्यों कह रहे हो ? सीधा नाम से पुकारो मुझे।" वीर प्रताप ने अपनी नाराजगी जताई।

" मिस्टर. कपूर......." राज आगे कुछ कह पाए उस से पहले वीर प्रताप हवा में उड़ने लगा। राज समझ गया के अब उसने अपने अंकल के अंदर उस शक्तिशाली पिशाच को जगा दिया है। " मेरा मतलब था अंकल, देखिए आपकी शराब ने क्या कर दिया। हम बीच बीच में होने वाली बारिश को मौसम का बदलाव कह मामूली लोगो को समझा सकते है। लेकिन पतझड़ में अगर काटो पर खूबसूरत फूल खिलेंगे तो अब इस चीज़ को क्या कहा जाए ?"

" वह शराब का नहीं गोलियों का असर है। में डिप्रेशन, नींद आने के लिए और भूख लगने के लिए ले रहा था ना। उसकी वजह से यह सब हुआ है। बंद कर दूंगा सब ठीक हो जाएगा। तुम्हे किसी को कुछ समझाने की जरूरत नहीं है। और अगर अगली बार मेरे साथ बहस की तो देख लेना।" इतना कह वीर प्रताप नहाने चला गया।

कुछ देर बाद,

दोनों चाचा भतिजा होटल में बैठ लंच कर रहे थे।

" हेलो, दादाजी।" राज ने अपना फोन उठाते हुए कहा।
" फिक्र मत कीजिए, दादाजी अंकल बिल्कुल ठीक है। उन्होंने कहा किसीको समझाने की जरूरत नही है। हम अभी लंच कर रहे हैं। अंकल को फिश सूप पीना था, वही पीला रहा हूं। सब खाना उन्ही की पसंद का है। जी। दादाजी वो मेरा क्रेडि... हैलो, हैलो।" राज ने अपने फोन को देखा। " देख रहे ना आप। अपने सगे पोते को उन्होंने क्या खा रहे हो पूछना भी जरूरी नही समझा।"

वीर प्रताप ने राज की कंप्लेंट पे ध्यान देना जरुरी नही समझा। तभी यमदूत उस होटल में आया और वीर प्रताप के सामने बैठा। राज ने उसे गुड आफ्टरनून विश किया। " तुम्हे भी आज यहीं आना था ?"

" हा। मैं दोपहर का खाना यहीं करता हूं। ये मेरा पसंदीदा सीरियल है।" यमदूत ने टीवी की ओर इशारा करते हुए कहा और बाद में वेटर को अपना ऑर्डर दिया।

तभी टीवी पर सीरियल में एक बोहोत बड़ा खुलासा हुवा। होटल में बैठे सारे लोग चकित हो गए सिवाय वीर प्रताप के। वो अपने खयालों में व्यस्त था। वो उठा तब से सोच रहा था, के उसने जूही के साथ कल क्या-क्या किया ?

" मुझे तो यकीन नही हो रहा ! " राज ने चकित होते हुए कहा।

" कमाल की बात है ना, उसकी सगी बीवी ने उसे मार डाला।" यमदूत।

" ये सीरियल वाले भी ना। क्यों किया होगा उसने ऐसा ? वो दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे।" राज।

" या फिर यूं मानलो की उसे पता था, की उसकी मौत उसकी बीवी के हाथो लिखी है। तुम्हे पता है, प्यारभरी कहानियों का अंत अक्सर ऐसा ही होता है। दर्दनाक। " यमदूत ने वीर प्रताप की ओर देखते हुए कहा।

अपना खाना खत्म कर वीर प्रताप राज के साथ होटल से बाहर आया।

" अब आप यहां से टैक्सी पकड़ कर सीधा घर चले जाइए मुझे थोड़ा बाहर काम है।" राज ने वीर प्रताप से कहा।

लेकिन उसे वीर प्रताप से कोई जवाब नहीं मिला। " अंकल, आपने सुना मैंने क्या कहा?" राज ने आइसक्रीम अपने मुंह में रखी और वीर प्रताप से पूछा।

" ओ।" वीर प्रताप को उस आइसक्रीम को देख कुछ याद आया। उसने अपने सर पर अपने दोनों हाथ रखे और वह रास्तों के बीच चिखने लगा। आने जाने वाले सारे लोग उसे देख रहे थे। लोक पहली नजर वीर प्रताप पर डालते उसके बाद उसके पास में खड़े हुए राज को देखते। ' मैं इन्हें नहीं जानता। मैं उनके साथ नहीं हूं।' राज हर किसी को इशारे से यही समझा रहा था।

तभी यमदूत वहां पहुंचा, " क्या हुआ ? तुम्हें अब समझ आया कि उसकी बीवी ही उसकी कातिल है?" यमदूत ने वीर प्रताप को देख पूछा।

" चुप रहो। चुप हो जाओ। तुम्हें पता भी है मैंने कल रात क्या किया है।" वीर प्रताप ने गुस्से में यमदूत से कहा।

" यकीनन तुमने एक 17 साल की लड़की को प्रेग्नेंट तो नहीं किया होगा। किया क्या ? " यमदूत के मुंह से यह बात सुन वीर प्रताप ने उसका कॉलर पकड़ लिया।

" अगर यह हुआ होता तो भी मुझे इतनी तकलीफ नहीं होती।" वीर प्रताप ने यमदूत की आंखों में आंखें डालते हुए कहा। " मैंने उसे बता दिया की तलवार निकालने के बाद क्या होगा। उसने मुझे पूछा की तलवार निकालने के बाद क्या होगा ? और मैंने उसे बताया। लेकिन क्या बताया यह मुझे अभी भी याद नहीं आ रहा।" वीर प्रताप ने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा। वह बस यमदूत पर चीखें जा रहा था।

" कौनसी तलवार ? कहां है ? क्या होगा ? मुझे बताइए ना अंकल मुझे भी सुनना है ।" राज ने उत्सुकता से पूछा। पर हर बार की तरह इस बार भी उस पर ध्यान देना दोनों में से किसी ने जरूरी नहीं समझा।

" क्या मतलब तुम्हारा ? तुमने उसे कुछ बताया और अब तुम्हें ये भी याद नहीं है कि तुमने उसे क्या बताया। किस तरह के पिशाच हो तुम ?" यमदूत ने आंखें बड़ी करते हुए कहा।

" अब मैं क्या करूं ? कोई मंत्र फुको मुझ पर। याददाश्त वापस लाओ मेरी। सोचो अगर उसने तलवार निकालने से मना कर दिया तो ? क्या करूंगा मैं ? फिर से मुझे हजार साल की जिंदगी जीनी पड़ेगी। समझते हो इतनी लंबी जिंदगी का मतलब ? " वीर प्रताप ने फिर से नर्वस होते हुए कहा।

" फिक्र मत करो। माना कि शराब पीकर तुम थोड़े बहक जाते हो। लेकिन मुझे नहीं लगता तुमने उसे सब कुछ बताया होगा। और अगर तुम्हें जानना है कि तुमने कल क्या कहा तो जाओ जाकर उससे मिलो। वही तुम्हें बता सकती है।" इतना कह यमदूत वहां से चला गया।

" कितनी बार कहूं वह सब शराब का नहीं मेरी डिप्रेशन की गोलियों का असर था।" वीर प्रताप ने अपने आसपास देखा लेकिन यमदूत का कहीं अता पता नहीं था।

उसने अपने चारों ओर फेरा लगाया। फिर अपने पास खड़े राज को देखा।
" अंकल मुझे भी बताइए ना आप लोग क्या बात कर रहे थे ?" राजने वीर प्रताप का हाथ पकड़ते हुए पूछा।

वीर प्रताप ने उसका हाथ झटका। " कौन हो तुम ? क्यों छू रहे हो मुझे ? क्या मैं तुम्हें जानता हूं ? ह....." इतना कह वीर प्रताप वहां से चला गया।

दूसरी ओर,

दोपहर के वक्त यमदूत उसी पुल पर खड़ा था जहां उसे सनी देखी थी पहली बार। कितना अजीब मंजर था ना वो एक लड़की को देख मौत के सौदागर की आंखों से आंसू आ गए। वो न जाने कितने दिनों से दोपहर के वक्त पुल पर खड़ा रहता।

"आज तो वह दिख जाए ? बस एक नजर उसे देखना है । लेकिन क्यों ? " यमदूत ने अपने आप से सवाल किया। अचानक तभी उसे सामने से आती हुई सनी दिखाई दी।

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