Anokhi Dulhan - 31 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( छोड़ी हुई दुल्हन_१ ) 31

" तुमने मुझे बुलाया ?" वीर प्रताप ने पूछा।

" हां। मुझे तुम्हे कुछ पूछना है ?" जूही ने अपने आसूं रोकते हुए कहा। " और यहां से जाने के बारे में सोचना भी मत। ये सारी कैंडल मैंने तुम्हारे लिए जलाई है। तुम जितनी बार जाओगे तुम्हे वापस बुलाऊंगी। और तुम्हे आना पड़ेगा चाहे तुम्हारी मर्जी हो या नही।" जुहीने अपना पूरा कमरा कैंडल से सजा दिया था।

वीर प्रताप ने एक नजर कमरे पे डाली। " बोहोत खूबसूरत सजाया है तुमने। इतने पैसे कहा से आए।"

" राज ने सामान ला कर दिया।" जूही।

" वो लड़का।" वीर प्रताप ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।

" बात क्यों बदल रहे हो। कहा गए थे तुम ? मेरे लिए दरवाजा क्यों नहीं खोला ? कौन हूं मैं ? क्या मैं एक छोड़ी हुई दुल्हन हूं ? कभी दिखाते हो मैं जरूरी हूं और फिर महीनों मिलने नही आते। तुम किसी और से प्यार करते हो तो मुझे यहां क्यों रोका है ?" इस से ज्यादा जूही अपने आप को नही संभाल सकती। उसकी आखों से आंसू पानी की तरह बहने लगे थे।

" कैसी बातें कर रही हो तुम। ऐसी कोई बात नहीं है। तुम मेरी अनोखी दुल्हन हो और रहोगी।" वीर प्रताप ने कहा। लेकिन वो अभी भी जूही से दूर ही खड़ा था। उसने भले ही ‘मेरी’ कहा हो लेकिन उसके चेहरे पर किसी तरह का कोई भाव नहीं था।

" मैं तुम्हारे टाइप की नही हु। इसीलिए तुमने मुझे अपने से इतना दूर रखा है ना ? तुम्हारे इतने बड़े घर में दो कमरे खाली है। फिर भी तुमने मुझे यहां रहने दिया।" जूही।

" तुमसे किसने कहा, मेरे घर में रूम खाली है ? " वीर प्रताप।

" राज।" जूही।

" उसकी तो में।" वीर प्रताप ने आंखें बड़ी करते हुए कहा। वो फ्रिज की तरफ बढ़ा। उस में से बीयर का एक कैन निकाला और पीना शुरू किया।

" तुमने मेरी बात का जवाब नही दिया?" जूही ने अपने आसूं पोछते हुए कहा।

" तुमने रात का खाना खाया?" वीर प्रताप।

" बात बदलो मत।" जूही।

" नही बदल रहा हूं। तुमने खाना खाया ?" उसने फिर से पूछा।

जूही ने ना में गर्दन हिलाई। " चलो कही जा कर अच्छा सा डिनर करते हैं।"

" मुझे किसी होटल में खाना नही खाना ?" जूही।

" तो बताओ कहा जाना पसंद करोगी।" वीर प्रताप के सवाल के कुछ देर बाद दोनो मॉल में थे। " सच में तुम्हे यहां खाना है।"

" कभी कबार छोटी जगह में भी खाना खाया करो।" जूही उसे हाथ पकड़ कर अंदर ले गई।

उसने स्टोर से कुछ स्नैक्स खरीदे। तब तक वीर प्रताप बीयर के दो कैन खत्म कर चुका था। इसका असर ऐसा हुवा की अब उसके होश उड़ चुके थे।

दोनो शहर से दूर पहाड़ के रास्ते पर चल रहे थे। रात का समय ठंडी हवाएं और एक सुनसान रास्ता। अपने प्यारे इंसान के साथ समय बिताने की परफेक्ट जगह।

" अब जितने चाहे उतने सवाल पूछ लो। कोई परेशानी नहीं है।" वीर प्रताप ने कहा।

" अच्छा। तो बताओ क्या तुम उड़ सकते हो ? " जूही।

" ह। बाए हाथ का खेल।" वीर प्रताप।

" मुझे भी उड़ना है ?" जूही।

" जरूर। पर आज नही।" वीर प्रताप।

" जब उदास होते हो, तो बारिश होती है। खुश होते हो तब क्या फूल खिलते है ?" जूही।

" जैसा तुम चाहो।" इतना कह वीर प्रताप ने चुटकी बजाई।

" मैं कौन हूं ?" जूही।

" अनोखी दुल्हन।" उसने जूही की आंखो में देखते हुए। फिर उसका चेहरा अपने हाथों में थामा " मेरी अनोखी दुल्हन।" नशे में कोई कभी अपनी असली भावनाएं छुपा नहीं सकता, जिसने भी कहा है। सच ही है।

" तो बताओ तुम्हारे सीने की तलवार निकालने के बाद क्या होगा ?" जूही की आंखो में फिर से आंसू थे।

वीर प्रताप के चेहरे पर एक दुखभरी मुस्कान छा गई। उसने जूही के आसूं पोछे, फिर कुछ देर के लिया सोचा। " तुमने वो कहानियां सुनी होगी ना शापित राजकुमार वाली। ये उन्ही कहानियों जैसा है।" उसने कहा।

" अच्छा। मतलब जैसे ब्यूटी और बीस्ट, फ्रॉग प्रिंसेस वैसे। मतलब जब हम ये तलवार निकालेंगे, गोबलिन खूबसूरत राजकुमार बन जाएगा।" जूही ने मुस्कुराते हुए कहा।

" हा बिल्कुल सही। राजकुमार।" वीर प्रताप।

" तो चलो गोबलीन को खूबसूरत बनाते है?" जूही ने तलवार पकड़ने की कोशिश की वीर प्रताप ऊस से दूर हो गया।

" आज नही। आज रहने दो। फिर कभी कर लेंगे।" वीर प्रताप।

" फिर कभी। मतलब जब हमे राजकूमार की जरूरत होगी तब।" जूही ने पूछा।

" हा तभी।" वीर प्रताप।

" क्यों ना हम गोबलिन को राजकुमार पहली बर्फ की रात बनाए।" जूही ।

" जरूर। जरूर।" वीर प्रताप।

" तो तुम आज शाम किसी लड़की से मिलने गए थे ?" जूही।

" बिल्कुल नहीं। ये सब कौन भरता है तुम्हारे दिमाग में? जब तुम हो, तो मैं भला किसी और को क्यो देखूंगा? और रही बात आज शाम की बस ये समझ लो किसी दोस्त ने याद किया था। वही गया था।" वीर प्रताप।

" तो मैं तुम्हारे साथ क्यों नहीं रह सकती ?" जूही।

" तुम्हे पता तो है। मैं उस यमदूत के साथ रहता हूं। वो तुम्हे यहां से ले जाना चाहता है और तुम्हे उसी के साथ रहना है।" वीर प्रताप ने पूछा।

" तुमने वो कहावत नही सुनी क्या ? दोस्त को करीब रखो और दुश्मन को सबसे ज्यादा करीब। और वहा तुम भी तो मेरे साथ रहोगे। वो मुझे ले जाना चाहे तो उसे डराना। प्लीज़।" जूही ने वीर प्रताप का हाथ पकड़ते हुए कहा।

" सोचता हूं।" इतना कह वीर प्रताप उसे वापस उसके होटल छोड़ आया।

जूही जानती थी, वीर प्रताप ने जो भी कहा वो नशे में कहा। अगर वो होश में होता, तो कभी जूही से इतनी बाते नही करता। बाते करना उसकी फितरत नहीं है। पर फिर भी जूही को उसकी याद आ रही थी।

अगले दिन सुबह जब वो तैयार हो कर स्कूल के लिए निकली, उसने हर तरफ लोगो को भागते देखा। कुछ लोगो की बाते सुन वो चौक गई।

" अरे जल्दी चलो, इस तरफ। पतझड़ के मौसम में पहाड़ के पूरे रास्तों पर खूबसूरत फूल खिले हैं। लगता है भगवान आज बोहोत खुश है।"

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