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अनोखी दुल्हन - ( भरोसा_ २) 8

" मेरे महाराज। आपने मुझे होटल मिलने क्यो बुलाया?" मि कपूर ने वहा पोहोचते ही पूछा।

" काफी अकेला अकेला महसूस कर रहा था। सोचा क्यों ना इन इंसानों के साथ कुछ वक्त गुजारू।" वीर प्रताप।

" मेरे महाराज। क्या आप से एक बात कहूं ? " मि कपूर।

" हा। कहिए।" वीर प्रताप।

" आप किसी से प्यार केे कोई संबंध क्यो नही बना लेते। यहा इतनी सारी औरते है। आप का अकेला पन कोई भी खुशी खुशी दूर कर देगी।" मि कपूर।

" उस का कोई मतलब नहीं है। अपनी हजार साल की जिंदगी मे, कई औरतों से मिलने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा। उन मे से कोई वो नही थी, जिसका में इंतेजार कर रहा हू।" वीर प्रताप।

" आपकी कैनेडा की टिकेट्स तैयार है। अगली बार जब आप वापस आए तो शायद में आपको ना मिलू।" मि कपूर।

" आपकी इतने सालो की मेहनत का शुक्रिया।" वीर प्रताप।

" महाराज। मेरी हर पीढ़ी आपके ऋण मे बंधी हुई है। जब तक आप इस धरती पर है। मेरे परिवार का हर सदस्य आप का गुलाम रहेगा। में अपने पूर्वजों का वादा निभावूंगा।" मि कपूर।

" मैने कितनी बार आपसे कहा है, आप मेरे गुलाम नहीं है।" वीर प्रताप।

" ये आपकी महानता है मेरे महाराज। में आपका दास हू और हमेशा रहूंगा।" मि कपूर।

" दास का तो पता नही। पर आप हमेशा पीने मे मेरे साथी जरूर रहेंगे।" वीर प्रताप ने हसते हुए मि कपूर के हाथ मे ग्लास दिया। वो शाम फिर वीर प्रताप के अकेले पन के साथ खत्म हुई।


"हम्म्म शायद ये काम करेगा।" जूही चर्च मे मोमबत्ती लिए खड़ी थी। उसने भगवान को देखा, और मोमबत्ती फुक मार कर बुझा दी। जूही ने अपने आस पास देखा वो कही नही था।

" हा । क्या वो नही आया ?" जूही।

" ओ। तुम्हे और कोई जगह नही मिली क्या? मुझे इनसे बात करने मे कोई दिलचस्पी नहीं है।" वीर प्रताप ने मूर्ति के पीछे से बाहर आते हुए कहा।

" तुम चर्च मे आ सकते हो। मतलब तुम कोई भूत या आत्मा नहीं हो।" जूही।

" मैने तुम्हे किस भाषा मे समझाया था। में कोई आत्मा नहीं हू।" वीर प्रताप।

" तुम पिशाच हो।" जूही।

" नहीं।" वीर प्रताप।

" क्यो झूठ बोल रहे हो ? क्या तुम्हे में पसंद नही।" जूही।

" ह ?????" हजार साल की जिंदगी मे पहली बार किसी लडकीने वीर प्रताप से उसकी पसंद पूछी थी। वो बस जूही को घुरे जा रहा था।

" क्या में खूबसूरत नही हु ? या तुम्हारी जिंदगी मे कोई ओर है ????" जूही।

" ये क्या बाते कर रही हो? उम्र क्या है तुम्हारी? पढ़ाई पे ध्यान दो।" वीर प्रताप।

" सच बताओ। मुझे अपनी दुल्हन क्यो नही मानते।" जूही।

" क्या तुम्हे मुझ में कुछ अजीब दिखता है?" वीर प्रताप।

" नहीं। तुम बिल्कुल इंसानों जैसे हो। बस कुछ खास शक्तियां है तुम्हारे पास।" जूही।

" इसी वजह से तुम मेरी दुल्हन नही हो।" वीर प्रताप।

" इसका मतलब तुम ही पिशाच हो।" जूही।

" मैने कहा ना नही। मेरी आखों मे देखो।" वीर प्रताप की आखों का रंग बदल कर लाल हो गया था। जैसे ही जूही ने उसकी आंखो मे देखना शुरू किया, उसने वशीकरण मंत्र शुरू किए।" आज के बाद तुम मुझे नहीं जानती। मुझे वापस नहीं बुलावोगी। कभी नहीं समझी।"

" मिस्टर। क्या तुम बीमार हो? तुम्हारी आखों का रंग बदल गया।" जूही ने उसके चेहरे को छूते हुए कहा।

" ये क्या मज़ाक है । मेरी शक्तियां इस पर काम क्यो नही करती ? कही ये सच मे अनोखी दुल्हन.........। नहीं ।" उसने भगवान की मूर्ति की तरफ देखा। " सच मे एक सोलह साल की बच्ची। आपको तो बड़ा मज़ा आ रहा होगा ये नाटक देखने मे।"

" में सतराह साल की हू। 11 महीनो बाद अठारह की हो जाऊंगी।" जूही।

" चुप रहो। बिल्कुल चुप।" इतना कह वीर प्रताप फिर नीली रोशनी मे गायब हो गया।

" मुझे चुप रहो कह कर खुद चला गया।" जूही। " खैर कोई नही। कम से कम उसे कैसे बुलाना है ये तो पता चल ही गया।

उसके बाद जूही ने एक लाइटर एक माचिस की डिब्बी वो सारी चीज़े जिनसे आग लगे अपने पास रखली। उसने हर चीज जलाकर बुझाई जब जब उसकी फुक से आग बुझी, बस कुछ सेकंड के अंतराल से वीर प्रताप उसके सामने था। फिर चाहे जिस भी हालत मे वो हो। कभी अच्छे कपड़ों मे, कभी किताब पढ़ते हुए। कभी खाना बनाते हुए, एक बार तो तब जब वो बस नहाकर बाहर ही निकला होगा। अब जब भी वो घर पर आता हमेशा बस जूही के बारे मे सोचता।

" आ वो लड़की। मुझे कभी भी बुला लेती है। समझ रहे हो तुम। मुझे हर वक्त तैयार रहना पड़ता है।" वीर प्रताप ने टीवी देख रहे यमदूत से कहा।

यमदूत उसकी हरकते समझ नही पा रहा था। " लगता है। हजार साल अकेला रहने की वजह से उसका दिमाग हिल गया है।"



जूही ने अपने मोबाइल पर एक ऐप निकाला। उस मे एक केक पर सजाई हुई मोमबतिया बुझाई। जैसे ही वो बुझी वीर प्रताप वहा पोहोच गया। इस बार मिलने की जगह स्कूल की लायब्रेरी थी।

" क्या चाहती हो?" उसने पूछा।

" में तो बस देख रही थी। ये भी काम करता है।" जूही ने मुस्कुराते हुए कहा।

" बोहोत अच्छे। वेलडन। अब आज शाम में बाहर जा रहा हु। तो मुझे मत बुलाना प्लीज।" वीर प्रताप।

" तुम सूट पहन कर किसी शादी मे जा रहे हो।" जूही ने उसके सामने आकर पूछा।

" नहीं। कुछ काम से बाहर जाना है।" वीर प्रताप।

" किसी लड़की से मिलने।" जूही।

" तुम्हे इस से क्या मतलब है? हटो मेरे रास्ते से।" वीर प्रताप।

" इसीलिए मुझे अपनी दुल्हन नही मानते ना, क्यो की तुम्हारा बाहर चक्कर है।" जूही।

" तुम्हें मुझ में कुछ अलग दिख रहा है ? " वीर प्रताप।

" अच्छे दिख रहे हो। सूट मे। हैंडसम।" जूही ने शरमाते हुए कहा।

" तुम अनोखी दुल्हन नही हो। अब हटो मेरे रास्ते से।" वीर प्रताप उस से आगे चला गया।

" मतलब तुम ही पिशाच हो।" जूही।

" नहीं और अब आज के लिए मुझे मत बुलाना समझी। तुम मेरी दुल्हन नही हो, ना होगी, ना में तुम्हे कभी अपना मानूंगा।" वीर प्रताप ने इतना कह एक दरवाजा खोला और बाहर चला गया।

जूही को उसकी बाते सुन बोहोत बुरा लगा। वो भी उसके पीछे चली गई।" क्या मतलब तुम्हारा ? तुम होते कौन हो ऐसा कहने वाले।"

जूही को वहा देख वीर प्रताप चौक गया, " तुम ! तुम उस दरवाजे से बाहर कैसे आ सकती हो? कौन हो तुम?"

जूही ने आंखे पोछते हुए आस पास देखा, " ये कहा है हम ? लायब्रेरी के बाहर शूटिंग चल रही है क्या? हम सेट पर है ?"

" तुम हमेशा मुझे चौकाने वाले काम कैसे कर लेती हू? हम क्यूबेक मे है। कैनेडा।" वीर प्रताप।

" क्या ? आउट ऑफ इंडिया वाला कैनेडा। नॉर्थ अमेरिका के साइड वाला ??" जूही।

" हा। वही कैनेडा।" वीर प्रताप ने उस से थोड़ा दूर जाते हुए कहा।

" वाउ।" जूही आस पास देख आगे आगे भागने लगी वीर प्रताप उस के पीछे पीछे जा रहा था। उसने कुछ मिनटों मे आस पास की जगह का मायना कर लिया। फिर वो एक तालाब के पास रुकी।

" अगर तुम ये कर सकते हो तो मैने तय कर लिया है।" जूही।

" क्या ? " वीर प्रताप।

" ये होके रहेगा।" जूही।

" किस बारे मे बात कर रही हो।" वीर प्रताप।

" हा । यही हमारी किस्मत है।" जूही।

" अब तुम मुझे डरा रही हो।" वीर प्रताप।

जूही उसके करीब आई और कहा, " इसका यही मतलब है। तुम पिशाच हो। में तुमसे शादी करूंगी। ये हमारा पहला हनीमून है। I Love u।"

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