Anokhi Dulhan - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( वो नजर _२) 6

वो समंदर के किनारे हाथो मे केक पकड़े बैठी हुई थी।
" हा जानती हु। मैंने कहा था की कभी आपसे कुछ नही मांगुगी। पर अब मुझसे सब्र नहीं होता, आखिरकार कब आपको मेरी तकलीफ दिखाई नहीं देगी।" आसमान की तरफ देखते हुए जुहिने कहा। फिर अपनी जेब से माचिस निकाल उसने केक पर लगाई मोमबतिया जलाई। हाथ जोड़े आंखे बंद की और अपने पूरे दिल से भगवान को याद किया।
" प्लीज़ मुझे बस तीन चीज़े चाहिए। एक अच्छी पार्ट टाइम जॉब, मौसी के घर से छुटकारा और एक प्रेमी। प्लीज मेरी दुवा कबूल कीजिए।"

दूर कही गुलाब के खेतो मे खड़ा वीर प्रताप अपने अमर जीवन के बारे मे सोच रहा था, के तभी अचानक उसे आवाज सुनाई दी। " मुझे बस तीन चीज़े चाहिए। एक अच्छी पार्ट टाइम जॉब, मौसी के घर से छुटकारा और एक प्रेमी।" वो आवाज़ उसके आस पास घूमने लगी। सिर्फ उस लड़की की आवाज " मुझे बस तीन चीज़े चाहिए। एक अच्छी पार्ट टाइम जॉब, मौसी के घर से छुटकारा और एक प्रेमी। " ।

जूही ने जैसे ही यहां मोमबतिया बुझाई, ठीक उसी वक्त वीर प्रताप ने अपने आप को उसके पीछे खड़ा पाया।

" तुम। तुमने ये कैसे किया ?" वीर प्रताप।

जूही ने पीछे मुड़कर देखा " में । क्या में ? मैने क्या किया ?"

" मुझे बुलाया यहां। जबरदस्ती। ये कैसे किया तुमने ? इतने सालो मे किसी की हिम्मत नही हुई ऐसा करने की।" वीर प्रताप।

" क्या तुम एक आत्मा हो ? " जूही।

" नहीं।" वीर प्रताप।

" हा । वो सारे यही कहते है। मैने तुम्हें देखा था बारिश मे। मेरे स्कूल के बाहर। में आत्माओं को देख सकती हू इसलिए वो लोग कभी कभी मेरे तरफ खिंचे आते है। ये तुम्हारे हाथ मैं क्या है ? " जूही।

" तुमसे मतलब?" वीर प्रताप।

" हां ????" जूही।

" गुलाब के फूलो का गुलदस्ता। ये भी नहीं पता क्या तुम्हे ? " वीर प्रताप।

" लाओ मुझे देदो। ये तुम्हारे हाथो मे अच्छा नहीं लगता मिस्टर।" जूही।

" हां ???? ये बकवास है। तुम्हारी पसंद बोहोत बुरी है।" वीर प्रताप।

" आज मेरा जन्मदिन है। एक उदास दिन। क्या अब भी तुम ये फूल मुझे नहीं दे सकते।? " जूही।

एक जीझक के साथ उसे देखे बिना वीर प्रताप ने फूल देने के लिए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया। जूही ने मुस्कुराते हुए उन फूलो को कबूल किया, तब वीर प्रताप ने अपनी एक नजर उस पर डाली। "उदासी से ज्यादा हसी अच्छी लगती है, उसके चेहरे पर खूबसूरत।" वीर प्रताप ने सोचा।

" पता है, ये मेरा दूसरा जन्मदिन होगा जब मुझे ऐसा अजीब तोहफा मिला। मेरे सातवे जन्मदिन पर नानी ने सब्जियां गिफ्ट की थी।" इतना कह जूही हसने लगी।

वहा ज्यादा देर रुकना वीर प्रताप के लिए मुसीबत खड़ी करेगा बस ये सोच उसने कहा, " अपने घरवालों से विदाई की तैयारिया कर लेना, जल्द ही तुम्हे रहने के लिए दूसरी जगह मिल जायेगी। एक चिकन आउटलेट पर तुम्हे पार्ट टाइम जॉब मिल जायेगी।"

" आ तुम हो कौन ? तुम्हे कैसे पता मुझे ये चाहिए ?" उसके पास जाकर जूही ने पूछा।

" ऐसा कोई जो कभी कभी लोगो की ख्वाइशे पुरी करता है। समझलो आज तुम्हारा लक्की डे है, जो तुम्हारी मुलाकात मुझसे हुई। अब कभी मुझे मत बुलाना समझी।" इतना कह वह नीली रोशनी के साथ कही गायब हो गया।

" लेकिन प्रेमी का क्या ? मैने उसे भी तो मांगा था? हेल्लो कहा चले गए।" जूही आसमान की तरफ देख चिल्ला रही थी।



" आखिर उस लड़की ने ये किया कैसे ? अजीब है।" वीर प्रताप जैसे ही घर पोहोचा उसने यमदूत को अपने घर पाया।
" मुझे नहीं लगता मैंने कभी भी तुम्हे मेरे घर बुलाया । " वीर प्रताप।
" नहीं। लेकिन मैं यहां हूं क्यो की ये घर अब मेरा है।" दूत।
हाथो मे कॉफी का ट्रे लिए राज यमदूत के पास जाता है।
" टेनन अंकल। आपकी कॉफी।" जैसे ही राज ने वीर प्रताप को देखा वो चौक गया। एक मुस्कान के साथ वो उसकी तरफ बढ़ा, " अरे अंकल आप गए नहीं। अब तक।"
" ये यहां क्या कर रहा है ??" वीर प्रताप ने गुस्सैल अंदाज मे पूछा।
" में बस देख रहा था की हमारा पुराना घर कितने रुपयों मे बिक सकता हैै। इसीलिए मैंने इन्हे टेनन के हिसाब से रखा है।" राज ने कहा।

" जानते भी हो किस चीज को घर उठा लाए हो?" वीर प्रताप।
" फिक्र मत कीजिए मैने पैसे नहीं लिए। अगर आपको पसंद नही तो मैं इन्हे मना कर दूंगा।" राज ने वीर प्रताप के कानो मे कहा।
" मैने बाहर नई कार खड़ी हुई देखी ? " वीर प्रताप।
" और मैने पुरे पैसे दिए है। साथ ही साथ ये कॉन्ट्रैक्ट अग्रीमेंट। " यमदूत ने एक हाथ मे कागज पकड़े हुए कहा।
वीर प्रताप ने बस एक चुटकी बजाई, और बस कुछ सेकंड के भीतर वो कागज यमदूत के हाथो मे राख बन गया।
" कॉफी के साथ साथ मेरी मेहमान नवाजी यही खत्म हुई अब आप यहां से जा सकते है।" वीर प्रताप।
" ये तो कॉपी थी। ओरिजनल पेपर्स रजिस्ट्रार के पास है।" यमदूत ने कॉफी के कश्त लेना शुरू किया।
" तुम्हे तुम्हारे सारे पैसे वापस मिल जायेंगे। चुपचाप यहां से चले जाओ। वरना एक पिशाच का गुस्सा तुम्हे पता है।" वीर प्रताप।
" अगर में यहां से चला गया, तो अपने साथ साथ इस बच्चे को भी ले जाऊंगा। नियम तोड़ने की सजा मे दे सकता हू। जानते हो ना महा शक्तिशाली पिशाच। " यमदूत।
" मेरे घर मे तुम्हारा स्वागत है।" वीर प्रताप ने नकली मुस्कान के साथ कहा, " फिलहाल तुम घर जाओ राज तुमसे में बाद मे निपटुंगा। अभी किसी ओर की बारी है।"

वो यमदूत की तरफ आगे बढ़ा, उसकी आंखो मे देखते हुए उसने कहा, " आगे का सफर काफी पथरीला होने वाला है। इसलिए अपने कुर्सी की पेटी बांध लीजिए।"

एक मुस्कान के साथ यमदूत एक कदम आगे बढ़ा। वीर प्रताप के बिल्कुल सामने " ये तो देखा जाएगा। किस के लिए ये सफर पथरीला होता है। रूमी.........."


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