Anokhi Dulhan - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन ( शुरुवात ) - 2

उसने अपनी तलवार के साथ राज्य में कदम रखा। जो भी उसे रोकने आगे बढ़ा हर एक का सर अपने शरीर से अलग था।


महल में जुल्मी राजा अपनी पूरी सेना के साथ खड़ा था। उसका वजीर जहांगीर पाल वीर प्रताप को देख गुर्राया।


" देख रहे हैं आप इस गद्दार को सिर्फ गद्दी कि लालच है। इसे आपकी आज्ञा से कोई मतलब नहीं। अगर ये जिंदा रहा तो कोई आपको राजा नहीं मानेगा। वो अपनी ताकद के बलबूते पर हर किसी को काबू कर रहा है। उसे अभी मार डालिए महाराज।" उसने ईस्तार के कानो मे कहां।


उसका चेहरा बता रहा था, वो ये नहीं करना चाहता था।


"अभी भी वक्त है वहीं से वापस लौट जाओ वीर प्रताप वरना अंजाम बुरा होगा।" उसने घोषणा की।


वीर प्रताप फिर भी बिना रुके आगे बढ़ रहा था, राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया। सिपाही वीर प्रताप का घर संभालने वाले २५ गाव वालो को बंदी बना लाए और वहीं उसके सामने उनके सर काट दिए गए। फिर भी वीर प्रताप आगे बढ़ता जा रहा था। सिपाहियों ने दीपराज को पकड़ उसे घुटने के बल बिठा दिया। जब वो राजा तक पोहोचने के आधे रास्ते पोहोचा तो सिपाही उसकी छोटी बहन और उस राज्य की रानी को पकड़ लाए। वो बिल्कुल वीर प्रताप के सामने खड़ी थी। गले पर तलवार होने के बावजूद उसके आंखो में बिल्कुल डर नहीं था। वीर प्रताप उसके पास जाकर खड़ा हो गया।


" अभी भी सोच लो वहीं से वापस लौट जाओ। तुम इसे रोक सकते हो।" ईस्तार ने कहा।


रानी के चेहरे पर एक मुस्कान छा गई " आगे बढ़ो भाई। अब कुछ बदल नही सकता। जो आप करोगे मुझे वो स्वीकार होगा। आज इस राज्य की महारानी आपको आदेश दे रही है, आगे बधिए और वो चीज़ पूरी कीजिए जो आपने सोची है।"


वीर प्रताप ने उसके सर पर अपना हाथ रखा। एक नजर भर उसे देखा और वो वहा से आगे बढ़ गया। उसने जैसे ही अपना कदम राजा की और बढ़ाया राज आदेश से रानी का गला काट दिया गया। वो वहीं गिर गई। उसकी आंखो में आंसू थे और लबो मे मुस्कान, " मुझे माफ़ कर देना ईस्तार। तुम्हे अकेला छोड़ कर जा रही हूं।" उसने राजा की तरफ देखा फिर अपने हाथ की हरि अगुठी को देखा और अपनी आखरी सांस ली।


वीर प्रताप राजा तक पोहोच गया।


" मुझे तुमसे एक बात केहनी है ईस्तार।" उसने घुटनो के बल बैठ उसे कहा।


" तुम्हारे कर्मो की सज़ा सिर्फ मौत है। अगर तुमने कभी भी मुझे अपना राजा माना हो तो आज ये राजा तुम्हे मरने की सजा सुनाता है।" ईस्तार की नजर सिर्फ अपनी रानी पर थी।


" ठिक है। अगर तुम्हारी यही मर्जी है।


दीपराज। मेरी तलवार उठाओ और मेरे सीने के आर पार कर दो। अगर मेरी मौत तय है तो मे उसे अपने सैनिक के हाथो स्विकारूंगा।


" नहीं सेनापति जी ऐसा मत कहिए। मुझसे नहीं हो पाएगा ये पाप। आप राजा है मेरे इस दास को अभिशाप मत दीजिए।" दीपराज सिपाहियों के चुंगल से छूट वीर प्रताप के पास बैठ गया।


" क्या तुम चाहोगे की मेरी मौत किसी गद्दार के हाथों हो अगर ऐसा है तो हट जाओ सामने से और अगर तुम चाहते हो के में वीर मरण लू तो उठाओ ये तलवार और कर दो मेरे सीने के दो टुकड़े।" वीर प्रताप के दिल की आच आखिर दीपराज तक पोहोच गई, उसने तलवार उठाई। " अगर ये मेरे भगवान की ईच्छा है, तो आज ये दास उसे पूरा करेगा।" उसने एक वार मे तलवार उसके सीने से आर पार कर दी। वो वहीं गिर पड़ा। उसके गिरते ही, राजा वहा से चला गया। "आप का ये दास भी आपके रास्ते पर चलेगा सेनापती जी।" एक यलगार के साथ दीपराज ने अपनी तलवार से अपना गला काट लिया।


" गद्दार की लाश उठा कर फेंक दो।" वजीर जहांगीर पाल ने हसते हुए सिपाहियों से कहा। वहीं दुर खेतों मे सीने मै तलवार लिए वो आठ दिन पड़ा रहा, उसने हर घड़ी भगवान से मौत मांगी। पर ये इतना आसान भी नहीं था। उसकी तलवार पर लाखों का खून लगा था, उसे इतनी आसानी से माफी नहीं मिलती। आखिर कार उसने भगवान से कहा, " अगर आप मौत नहीं दे सकते तो मेरा अनंत जीवन वापस दे दीजिए। में उसे संभाल लूंगा। मुझे आपकी दया की जरूरत नहीं है ना होगी।"


" मे तुम्हे जीवन दूंगा, एक ऐसा अनंत शापित जीवन जिसमे ना जीवन होगा ना मौत।" उस खेत को तितलियों के साथ एक अजीब रोशनी ने घेर लिया।


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