इश्क फरामोश - 18 Pritpal Kaur द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क फरामोश - 18

18. ये भी होना ही था.

सुजाता को भारत आये हुए तीन हफ्ते हो चुके थे. दाढ़ का इलाज भी हो चुका था. फिलिंग सही हो गयी थी. क्राउन भी सही तरीके से फिट हो गया था. इस दौरान उनका पांच बार रौनक से मिलना हुआ. हर बार रौनक ने बेहद आत्मीयता से सावधानी के साथ उनका इलाज किया. आख़िरी सिटींग में क्राउन को थोडा घिस कर उसे बिलकुल आरामदायक बना दिया.

“आप कुछ दिन अच्छे से परख लें. अगर ज़रा सी भी उलझन या परेशानी लगे या मसूढ़े में दर्द हो तो आप मुझे फ़ौरन फ़ोन करियेगा. आप को यहाँ से पूरी तरह फिट कर के ही भेजना मेरी ड्यूटी है. डॉक्टर होने के नाते भी और किरण का दोस्त होने के नाते भी.” रौनक ने कहा था.

इस पर दोनों ही हंस पड़े थे. उस दिन किरण माँ के साथ नहीं आयी थी. ऑफिस में उसे देर हो गयी थी. उसने ड्राईवर को घर भेज दिया था ताकि सुजाता टाइम से डेंटल अपॉइंटमेंट के लिए क्लिनिक जा सके. किरण की रौनक से उस लंच के बाद दो बार इसी तरह की मुलाकात हुयी थी. कोई निजी बात नहीं हुयी. मगर रौनक की आँखों में और बॉडी लैंग्वेज में किरण को काफी कुछ पढ़ने में आ रहा था.

वो चुपचाप सब पी रही थी. उसे इस वक़्त किसी भी भटकाव की न तो ज़रुरत थी और न ही उसकी ज़िंदगी में किसी की आमद की सम्भावना ही थी. वो तो खुद अपने आप से रोज़ाना एक जंग लड़ रही थी.

आसिफ इटावा से तो आ गया था. मगर अब उसके तेवर पहले से भी ज्यादा तीखे हो गए थे. उसकी गैर मौजूदगी में किरण ने सोचा था कि उसके आने पर उसके साथ बैठ कर खुल कर बात करेगी और जो तनाव दोनों के बीच घर कर गया है उसे कम करने की पहल वही करेगी. बहुत हो लिया अलगाव और अनबोला. अब इस घेरे को तोड़ कर दिलों के बीच एक पुल बनाना होगा और ये बात अब तक उसे अच्छी तरह समझ आ गयी थी कि पुल बनाने का काम उसे ही शुरू करना होगा.

किरण ने कई दिनों तक आसिफ से बात करने की नाकाम कोशिश की. लेकिन आसिफ उसी तरह सुबह जल्दी निकल कर, रात देर से आता रहा. सुजाता को हर संभव कोशिश टालता रहा. दो बार सुजाता ने भी उसे रोक कर उससे बात करना चाहा तो वह बेरुखी से बात को टाल कर वक़्त नहीं होने का बहाना कर के निकल गया.

कुछ दिन और बीत गए थे. आज जब सुजाता घर आ रही थी तो मन में तय कर लिया था कि अब आसिफ से बात करनी ही है. बहुत हो गया. आज रात देर तक वह खुद बैठेंगी लिविंग रूम में. जब तक आसिफ नहीं आ जाता. उसके आने पर उसे मजबूर करेंगी बात को साफ़ करने के लिए. आज तो ये काम कर ही डालना है.

दिन तो उड़ रहे थे. इसी तरह उनके लौटने का दिन आ जायेगा. किरण को इस तरह घुटते हुए छोड़ कर नहीं जा सकतीं. छोड़ने की बात तो दूर है इस तरह रोज़ अंदर ही अंदर मन मारती हुयी चुप बनी रह कर सब देखती हुयी किरण उन्हें बार-बार अपने माँ होने के फ़र्ज़ की याद दिला रही थी. कितना भी बड़े हो जाएँ बच्चे, उन्हें माँ की ज़रूरत रहती ही है.

बच्ची नीरू का भी इस तरह के घुटन भरे माहौल में बड़े होना अच्छा नहीं है. ये सभी बातें सोचते हुयी घर पहुँची तो किरण ऑफिस से आ कर चाय पी रही थी.

एक कप कनिका ने उनके लिए भी बना दिया. नीरू वहीं पास में ही बैठी अपने खिलौनों से खेल रही थी. बीच-बीच में माँ और नानी को भी अपनी और कनिका की बातों में लगा लेती थी. सुजाता आज खुश थीं. बस यूँ ही. और इस खुशी को बढ़ाना चाहती थीं. आसिफ से दो टूक बात कर के इस घर में छाये हुए उदासी के बादलों को छांट कर.

रात का खाना हो गया. नीरू वहीं नानी की गोद में सो गयी तो कनिका उसे अंदर ले गयी. किरण ने उठना चाहा तो सुजाता ने रोक लिया.

“आज फ्राइडे है. रुक जाओ. कुछ देर और बैठो. सुबह ऑफिस तो नहीं जाना न?”

“जी मम्मी, कल और परसों ऑफिस नहीं जाना. इस बार सब काम वीक में ही निपटा लिए हैं. आप जब तक यहाँ हैं सिर्फ पांच दिन ही काम करना है.” इत्मीनान की सांस लेते हुयी वह सोफे पर अधलेटी हो गयी थी.

“गुड.”

“कल का क्या प्रोग्राम है? कल कहीं चला जाए? फिल्म और फिर बाहर डिनर?”

“हाँ. ज़रूर. सभी लोग चलेंगे. आसिफ आ जाये उसको भी कहो साथ चले. मेरी तो उससे ठीक से बात भी नहीं हुयी और वापिस जाने का दिन करीब आ रहा है.” सुजाता ने कह ही डाला.

इस बात का कोई जवाब किरण को नहीं सूझा. वह चुप बैठी रही. साजिद आसिफ के लिए खाना मेज़ पर रख कर जा चुका था. कनिका नीरू को अंदर ले गयी थी और खुद भी सो गयी थी. घर में सन्नाटा था. बिलकुल वैसा ही जैसा इन दिनों किरण के मन में छाया हुया था. किरण के जीवन में आये हुए तूफ़ान से बरपाया हुआ सन्नाटा.

कुछ ही वक़्त बीता होगा कि बाहर के दरवाजे के खुलने और फिर बंद होने की आवाज़ आयी. आसिफ अन्दर दाखिल हुया और इन दोनों की तरफ बिना देखे ही अंदर जा रहा था कि सुजाता ने आवाज़ लगाई.

“आसिफ, बेटा, इधर आईये. हम लोग आपका ही इंतजार कर रहे हैं. खाना यहीं ले आइये हमारे साथ बैठ कर खा लीजिये. बातचीत भी करते रहेंगें.”

आसिफ ठिठका, फिर अन्दर जाने लगा, फिर ठिठका. लगा जैसे काफी पेशोपेश में है. मगर फिर रुक गया.

“मैं खाना खा कर ही आया हूँ. आप माँ-बेटी के बीच किसी तरह की दखलंदाज़ी नहीं करना चाहता. इसलिए आजकल बाहर ही खाता हूँ.”

जैसे एक तमाचा उसने सुजाता के मुंह पर मारा था. सुजाता ने खामोशी से उसे पी लिया. उम्र भर के अनुभव ने बहुत ज़हर पीना सिखाया है, जो ऐसे ही मौकों पर काम आता है.

“नहीं, बेटा. आप के आने से तो रौनक होती है घर की. " सुजाता ज्यादा नहीं कह पायीं. किरण की तीखी नज़र आसिफ को घूर रही थी. आसिफ उसे अनदेखा करता हुआ अन्दर जाने लगा तो सुजाता ने फिर रोक लिया.

“चलिए. खाना न खाना हो न सही. मैं भी अब ज्यादा दिन नहीं रहूँगी. आप का घर और परिवार आप ही है. आज कुछ देर बैठ ही जाइये यहाँ. ज़रूरी बातें करनी हैं आपसे. ये मेरा आदेश ही समझ लीजिये. और किसी नाते से नहीं तो उम्र में बड़ी होने के नाते से ही.”

इतना कह कर सुजाता ने अपने सामने वाले सोफे की तरफ इशारा कर दिया. सुजाता के स्वर में आदेश था. एक प्रशासनिक अधिकारी रह चुकी महिला का अधिकार भरा आदेश. आसिफ अब और अवहेलना नहीं कर पाया. उसके कदम रुक गए और बेमन से वह उस सोफे पर बैठ गया.

किरण चौकन्नी हो गयी. आज आखिर माँ की बात होगी आसिफ से. देखें क्या कहता है अपने रवैये के बारे में? सीधी हो कर बैठ गयी.

सुजाता ने भी आँखों ही आँखों में आसिफ और किरण को तौला. सोचने लगीं बात कहाँ से शुरू करें.

लड़का पैदा होने वाली बात नहीं छेड़ना चाहती थी. लेकिन आसिफ ने खेल का पुराना पैंतरा चला. कहते हैं न कि 'ओफेंस इज द बेस्ट डीफेंस'. सो पहला वार उसी ने कर दिया.

“मैं जानता हूँ आप दोनों माँ बेटी मेरे बेटा पैदा होने वाली खबर का बतंगड़ बनाए बैठी हैं. अब इस पर तो उस वार्ड बॉय की खिचाई करनी चाहिए आपको. मुझसे क्या जानना है वो बताइए.”

आसिफ की आवाज़ में वही अक्खड़ पन था जिससे किरण डर रही थी. लेकिन उसे फ़िक्र करने की ज़रुरत नहीं थी. सुजाता को अंदाज़ा था ऐसा ही कुछ होगा. वे तैयार थी. उनके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं आयी.

“देखो बेटा. वो सब बातें गुज़र चुकीं. नीरू जैसी प्यारी बच्ची हमारे घर में आ गयी है. उन तल्ख़ बातों को भूल जाओ. मैं तो आपके और किरण के बारे में कुछ बात करना चाहती हूँ.”

आसिफ ने कुछ बोलना चाहा तो हाथ के इशारे से उसे रोक कर सुजाता ने अपनी बात जारी रखी.

“देखो बेटा, ये सच है कि पति-पत्नी के बीच किसी को नहीं बोलना चाहिए. लेकिन मुझे लग रहा है कि हालात इस तरह के हो गए हैं कि मैं अब चुप बैठ कर नहीं देख सकती. मुझे किरण ने सब कुछ बता दिया है. लेकिन ये उसकी बात है. उसके दिल और जज़्बात की बात है. आप का क्या कहना है आप दोनों के बीच इस दूरी के बारे में? आप मुझे खुद बताइए.”

अब ऊंट पहाड़ के नीचे आ चुका था. कुछ देर आसिफ चुप रहा. फिर बोला, “आप की बेटी ने मुझ पर आरोप लगा है कि मैंने इन्हें रेप किया है. आप ही बताएं पति और पत्नी के बीच सम्बन्ध को रेप कहा जाता है?”

सुजाता उसकी ढिठाई पर हैरान थीं. दुखी भी.

“ये तो हालात पर डिपेंड करता है. आसिफ मियाँ. आप पत्नी को भी उसकी मर्जी के बिना मजबूर नहीं कर सकते. बहुत से मुल्कों में तो इसके खिलाफ कानून भी है.”

“तो आप अपनी बेटी को उन्हीं मुल्कों में भेज दीजिये. ये तो यहाँ रहने लायक ही नहीं है. घर ऐसे चलाती है जैसे मैं कुछ हूँ ही नहीं. हमारे घरों में औरतें हर काम मर्दों से पूछ कर करती हैं. आप की इस मॉडर्न बेटी को तो बस अपना ही कानून चलाना है. ज़रा सी बात क्या हुयी मुझे अपने ही बेडरूम से बाहर कर दिया. मैंने कहा बेटे की तमन्ना थी मुझे, तो क्या गलत कहा? मुझे है बेटे की तमन्ना. आज भी है. हाँ है. इसीलिए चाहता हूँ कि जल्दी से दूसरा बच्चा आये घर में और इस बार बेटा ही आये. और इन्हें तो मेरा इंटरकोर्स करना ही रेप लगता है.”

एक के बाद एक कई कीलें आसिफ ने अपनी और किरण की शादी के ताबूत में ठोंक डालीं थीं. माँ बेटी फटी-फटी आँखों से उसे देख रही थीं.

आखिर सुजाता की ही ज़ुबान बोलने लायक हुयी. सख्त आवाज़ में बोली, “ बच्चा पैदा करने का फैसला मियाँ बीवी मिल कर लेते हैं. इस तरह आप एक तरफा फैसला थोप नहीं सकते किरण पर. और दूसरी बात ….. इस बात की क्या गारंटी है कि अगला बच्चा लड़का ही होगा?”

“क्यूँ नहीं है? जेंडर टेस्ट करवा लेंगें. लडकी हुयी तो एबॉर्शन. दिक्कत क्या है. आधुनिक ज़माना है. सब हो सकता है. बस इच्छा होनी चाहिए. नीरू का भाई तो होना ही चाहिए.”

सुजाता ठगी थी सब सुन रही थी.

“आसिफ आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं?”

“जी बिलकुल ये पुराना ज़माना तो है नहीं कि बच्चे पर बच्चे पैदा किये जाएँ. एक और बच्चा. और वो भी लड़का और बस. इतना ही तो करना है किरण को. मैं कुछ ज्यादा तो नहीं मांग रहा.”

किरण अब तक किसी तरह चुप रह कर सुन रही थी. अब उससे नहीं रहा गया.

“आसिफ. मैं नहीं जानती थी कि तुम ऐसी घटिया सोच रखते हो. मुझे तो खुद पर शर्म आ रही है कि मैं अब तक कैसे तुम्हारे साथ थी. बेहतर होगा हम अलग हो जाएँ.”

आसिफ तो जैसे बारूद का एक ढेर था और किरण ने उसे तीली दिखा दी हो. ऐसा भड़का कि बैठा ही नहीं रह सका. उठ खडा हुया और उसके साथ ही उसकी आवाज़ भी ऊंची हो गयी. पूरा घर उसकी भारी चीख भरी आवाज़ से गूँज उठा.

“देख लिया नतीजा पढ़ी लिखी लडकी से शादी करने का. सिंगल माँ की बेटी है न इसको तो खाबिन्द चाहिये ही नहीं. बच्चा हो गया एक और अब निकाल देगी मुझे. हाँ. हां. बड़ी समझदार बनती है. बेटी को सर चढ़ायेगी जैसे आप ने सर चढ़ा रखा है इसको. अरे औरत है, औरतों की तरह गर्दन झुका कर रहे. पढ़ लिख गयी है तो क्या मरद के सर पर चढ़ कर नाचेगी? नहीं चाहिए तुम्हारी ये सर चढ़ी नकचढ़ी लडकी. ले जाओ इसको वहीं इंग्लैंड. वहीं रहने के लायक है ये. छोटे-छोटे कपडे पहन कर क्लब में नचाओ इसे. समझीं माताजी.”

वो और भी जाने क्या कहता मगर किरण बर्दाश्त नहीं कर पायी. माँ का और खुद अपना इतना अपमान उसने पूरी ज़िंदगी में पहले कभी नहीं देखा था. इतनी अपमानित उस रोज़ भी नहीं हुयी थी जिस रात आसिफ ने उसका बलात्कार किया था.

गुस्से से कांपती हुयी किरण आसिफ के सामने आ कर खड़ी हो गयी. वो चुप तो हुआ था मगर उसके नथुने फूल रहे थे. गुस्से से वो भी काँप रहा था. साथ ही उसके मुंह से शराब का तेज़ भभका किरण के चहरे पर पडा तो वह थोडा पीछे हट गयी.

“सुन. अपनी माँ को समझा ले. मेरा गुस्सा बहुत बुरा है. अभी तक तूने देखा नहीं है. आज देख लेगी तू भी और तेरी माँ भी.” आसिफ के होठों के किनारों से झाग निकल रहे थे. थूक के छींटे किरण के चेहरे और गर्दन पर छिटक गए.

अब किरण खुद को नहीं रोक पायी. उसने अपना हाथ उठाया और कस के एक चांटा आसिफ को रसीद कर दिया. वो लडखडा गया. फिर संभला और किरण की तरफ लपका. किरण चौकन्नी थी. उसने फ़ौरन एक वैसा ही चांटा और उसे रसीद किया. कॉलेज में कराते चैंपियन रही किरण से शारीरिक तौर पर आसिफ पार नहीं पा सकता था. वो भी जब नशे में हो और किरण के आत्मसम्मान को ऐसी गहरी चोट पहुंचाई हो. आसिफ लड़खड़ा कर सोफे पर गिर गया.

तब तक सुजाता संभल चुकी थी. उठी और किरण के हाथ को पकड़ा. साथ खड़े हो कर उसे सांत्वना देती हुयी बेहद कठोर मगर ठहरे हुए लहजे में बोलीं,” मिस्टर आसिफ. आप इस घर में अब नहीं रह सकते. सुबह होते ही अपना कोई ठिकाना कर लें और फिर अपना सामान ले जाएँ. ये शादी नहीं चल सकती.”

“हाँ हाँ क्यूँ नहीं? मुझे निकाल पर फ़ेंक दो. मेरा पैसा भी लगा है इस घर में. ऐसे ही छोड़ दूंगा? एक एक पैसे का हिसाब देना पड़ेगा. समझीं.” उसी तरह सोफे पर अधलेटा वह बोल रहा था. अलबत्ता उसकी आवाज़ अब धीमी हो गयी थी. नींद और नशा उस पर तारी हो रहे थे.

अब किरण बोली, “हाँ दे दूंगी. मुझे तुम्हारा एक भी पैसा नहीं चाहिए. तुम्हारा सारा पैसा दूंगी जितना लगा है. और भी बता देना. दे दूंगी. मगर मुझे माफ़ कर दो अब. मुझे और मेरी बेटी की ज़िंदगी से चले जाओ सुबह होते ही.” उसकी आँखों से आंसू बह रहे थी. गाल भीग रहे थे. मगर आवाज़ में कोई कम्पन नहीं था.

“हाँ हाँ.. हाँ हाँ…. तू क्या समझती है मुझे. तेरी तरफ देख कर थूकता भी नहीं मैं. जा तू ले जा अपनी इस माँ को और उस पिल्ली को भी. मैं भी किसी ढंग की लडकी से शादी करूंगा. अपनी रिश्तेदारी में देख कर. साली नखरे तो नहीं करेगी तेरी तरह. “वो और भी कुछ बोलता मगर सुजाता ने किरण को अन्दर चलने का इशारा किया और दोनों स्त्रियाँ अपने अपने कमरों में चली गयीं.

उस रात सुजाता और किरण में से कोई भी नहीं सोयी. गनीमत ये थी कि ये ड्रामा थोड़ी देर ही चला और नीरू की नींद में खलल नहीं डाल सका. उस नन्ही बच्ची को एहसास भी नहीं हुया और एक ही झटके में वो भी अपनी माँ की ही तरह सिंगल माँ की बेटी बन गयी.

सुबह तक सोचती जागती सोती किरण अपने बेडरूम में ही लेती रही. छह बजे के करीब सुजाता उसके कमरे में आयी और उसके साथ ही कनिका चाय के ट्रे लिए दाखिल हुई.

माँ बेटी ने चाय पी और फिर दोनों ही बिस्तर पर लेट गयीं. बहुत कुछ था दोनों के अंदर. लेकिन दोनों ने ही बिना बोले पिछली रात के बारे में कुछ भी बात न करने का फैसला कर लिया था. अब आगे का सोचना था.

“मम्मी. मुझे लगता है मुझे अब वहीं इंग्लैंड ही शिफ्ट हो जाना चाहिए. हमारी कंपनी की बर्मिंघम ब्रांच में एक पोस्ट खाली हुयी है. मैं मंडे को बात करती हूँ. मुझे उम्मीद है मुझे वहां ट्रान्सफर मिल जाएगा.”

सुजाता की तो खुशी के मारे आँखें ही छलछला आयीं.

“ये तो बहुत अच्छी बात है. नीरू की परवरिश और स्कूल के लिए भी इंग्लैंड बेस्ट रहेगा. मेरे लिए भी ये अच्छा है. हम लोग हर हफ्ते मिल सकेंगे. मैं आ जाया करूंगी. राईट?”

सुजाता के उत्साह से किरण का दिल भीग गया. रात की बदमजगी के बाद माँ के उत्साह को देख कर उसका मन जाने कैसा कैसा हो रहा था. सच है बच्चों के लिए माँ कितने-कितने स्वांग करती है. दुःख में मुस्कुराने के. बुझे दिल से भी उत्साह दिखाने के.

कुछ देर बाद जब वे दोनों बाहर आयीं तब तक कनिका ने उन्हें आसिफ के अपना सूटकेस ले कर चले जाने की सूचना दे दी थी. सुजाता को आशंका थी कि वह सुबह फिर कोई तीखी बात करेगा. इसी मारे जब तक उसके जाने की तस्दीक नहीं हो गयी वो बाहर ही नहीं आयीं.

अगले कुछ दिन बेहद व्यस्त रहे. किरण को जैसा कि उसने उम्मीद की थी, बर्मिंघम में पोस्टिंग मिल गयी. नीरू का पासपोर्ट अर्जेंट में बनवाया गया. किरण के पासपोर्ट पर तो डिपेंडेंट वीसा था. नीरू के लगवाया गया. अदालत में आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दी गयी जिस पर आसिफ तभी राजी हुआ जब तक कि किरण ने उसे पचास लाख रुपये का चेक नहीं दिया. किरण के पास इतने रुपये नहीं थे. सिर्फ पन्द्रह लाख थे. बाकी रुपयों का इंतजाम भी सुजाता ने ही किया.

आसिफ का सारा सामान किरण ने पैक करवा कर उस फ्लैट में भिजवा दिया जो उसने दो साल पहले खरीदा था और किराये पर था. अब वो वहीं रह रहा था. आसिफ की तरफ से एक बार भी किसी तरह के अफसोस या पछतावे जैसी कोई बातचीत या एहसास नहीं हुआ. वो तो इस सारी स्थिति से काफी खुश नज़र आ रहा था.

किरण को अपना घर टूट जाने से काफी अवसाद था लेकिन सुजाता की मौजूदगी से उसे बहुत सहारा मिल रहा था. सुजाता ने भी अपनी छुट्टियाँ बढ़वा ली थी. फैसला कर लिया था कि किरण और नीरू को साथ ही ले कर जाना है. कनिका का बंदोबस्त भी उनके जाने के बाद किरण के एक सहयोगी के घर पर हो गया था. वहां नया बच्चा आने वाला था. साजिद और बख्तावर को एक-एक महीने की तनख्वाह दे कर नयी नौकरी ढूँढने को कह दिया गया था. घर का सामान धीरे-धीरे पैक किया जा रहा था. कुछ साथ ले जाने के लिए अलग पैक हो रहा था.

किरण अपनी जमी जमायी गृहस्थी का ये नया रूप देख देख कर दिल ही दिल में रोने लगती थी. मगर ऊपर से शांत और मज़बूत बनी हुई थी.

ऐसी ही एक रात जब नींद के इंतज़ार में थी, रौनक का फ़ोन आ गया था.

“हाय किरण. कैसी हो ?” रौनक आज मुखर लग रहा था.

“मैं ठीक हूँ. तुम कैसे हो?”

“मैं भी ठीक हूँ. बिजी हो? हाउ इस योर मम्मी? वापिस चली गयीं? इज शी फाइन? जाने से पहले उन्हें एक बार दिखाना चाहिए अपना फिलिंग.”

“हाँ आयेंगीं. अभी गयी नहीं.”

“ओके. तुम भी नहीं मिलीं उसके बाद. कल मिलो. अगर टाइम है तो.”

किरण भी जाने से पहले एक बार मिलना चाहती थी रौनक से.

“हाँ. मिलना चाहिए. तुम्हें कुछ बताना भी है.”

“क्या? सब ठीक तो है न.” रौनक की आवाज़ में फ़िक्र थी.

“हाँ सब ठीक है. कल मिलते हैं लंच पर. वहीं बात होगी. एक बजे. उसी रेस्तौरेंट में.”

“गुड. सी यू देन.”

“सी यू.”

इसके बाद जल्दी ही किरण को नींद आ गयी थी.