इश्क फरामोश - 6 Pritpal Kaur द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क फरामोश - 6

6. जान में जान आयी

यही सब सोचता हुआ रौनक बैठा था जब उसने एक वर्दी धारी पुलिस अधिकारी को अन्दर दाखिल होते हुए देखा. टेढ़ी कुर्सी पर बैठा हुआ रौनक काफी देर से उठने का बहाना ही ढूंढ रहा था. फ़ौरन उठ खड़ा हुआ. वे उसकी तरफ बढ़े. रौनक भी आगे बढ़ा.

बैज पर नाम पढ़ा. सूर्यनारायण सिंह.

“रौनक छाबड़ा.” रौनक ने कहा और सिंह के सम्मुख खडा हो गया. हाथ मिलाने के लिए बढ़ाने ही वाला था कि याद आया आज यहाँ एक अपराधी की हैसियत से उसका बुलावा हुया है. फ़ौरन हाथ नीचे कर लिया. लेकिन तभी सिंह ने हाथ आगे बढ़ाया और बेहद सलीके से मिलाया.

“आइये, अंदर बैठते हैं. मेरे कमरे में. आपकी पत्नी को बुलाने के लिए आदमी भेज दिया है मैंने.”

“जी बेहतर.” इतना कह कर वह उनके पीछे-पीछे कमरे में दाखिल हो गया. कमरा वैसा ही था जैसा बाहर से दिख रहा था. उजड़ा-उजड़ा सा वीरान. अलबत्ता मेज़ करीने से लगी हुयी थी. साफ़ सुथरी भी थी.

सिंह ने बैठ कर रौनक को भी सामने वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया. रौनक बैठ गया तो कुछ देर सिंह अपने सामने रखे कागजों में मसरूफ हो गए. फिर जैसे कुछ याद आया हो, "चाय पियेंगे मिस्टर छाबड़ा?"

"हाँ प्लीज. सुबह ही यहाँ का बुलावा आ गया तो सीधे उठते ही यहाँ आ गया हूँ." रौनक की बात में अफ़सोस तो था मगर एक ऐसा अफ़सोस जो बेवजह बिना किसी गलती के अपवाद में घिर आये व्यक्ति की बात में हो, कुछ कुछ वैसा ही.

"हूँ.... " इतना कह कर सिंह ने भर-नज़र रौनक को देखा.

लगभग छह फीट ऊंचा, भरे बदन का गंदुमी रंगत वाला सुन्दर नाक नक़्शे का युवक, चालीस के आस-पास उम्र. सिंह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका.

"आप करते क्या हैं? " अब तक सिंह अपने मेज़ पर रखे कागज़ एक सरसरी नज़र से देख चुके थे. शायद उन्हीं में वो शिकायत वाली अर्जी भी हो जिसकी बिना पर इस वक़्त रौनक चौकी में पुलिस अधिकारी के सामने बैठा था.

"डेंटल सर्जन हूँ. सेक्टर पचास में मेरा क्लिनिक है. "

"ओह! अच्छा. वो छाबडा डेंटल क्लिनिक आपका ही है?"

"जी सर. "

"ठीक." कह कर सिंह फिर चुप हो गए. कुछ देर नज़रों से रौनक को तोलते रहे. रौनक ने भी सीधे उन्हें देखना जारी रखा.

रौनक को इंसानों को भी देखने-परखने का बेहद शौक है. अपने मरीजों से उसकी अक्सर अच्छी जान-पहचान हो जाती है. कईयों से तो दोस्ताना रिश्ता ही बन जाता है. उसे सिंह अच्छे मिजाज़ का मज़बूत किरदार वाला इंसान लगा. इस लेवल के आम पुलिस अधिकारीयों से कुछ अलग, चुस्त दुरुस्त और तेज़ नज़र वाला.

"आप जानते हैं आप के खिलाफ आप की पत्नी ने शिकायत की है?"

"जी जानता हूँ." आगे कुछ कहने को नहीं था रौनक के पास. दिल में ये बात कांटे की तरह चुभ रही थी. उस वक़्त से, जब से सुबह उसने कॉल बेल बजने पर घर का मेन डोर खुद खोला था और वहां खड़े सिपाही ने उसे अपने साथ पुलिस चौकी चलने को कहा था.

वह हैरान था. हँसते हुए पूछा, "किसकी दाढ़ में दर्द है भैया? उनको क्लिनिक ही ले आओ. वहां तो मैं कुछ नहीं कर सकूंगा."

इस पर सिपाही कुछ सकपका गया था.

"सर. आप के खिलाफ आप की पत्नी ने रिपोर्ट की है. इसलिए थानाध्यक्ष ने आप को चौकी पर आने को बोला है. मैं आप को साथ ही ले कर आऊँ, ऐसा बोला है सर."

सुन कर रौनक का माथा चकरा गया था. कल देर रात क्लिनिक से लौटा. तीन सर्जरी थीं. फिर एक दांत दर्द का मरीज़ और आ गया. सब को निपटाते हुए रात के नौ बज गए थे. नहाते-धोते खाना खाते-खाते ग्यारह बज गए थे. सोनिया उसके आने से पहले ही खाना खा कर बच्चों के साथ उनके कमरे में चली गयी थी. और वहीं सो भी गयी थी.

पिछले कई दिनों से दोनों के बीच अबोला चल रहा था. कई कारण थे. पिछले काफी वक़्त से सोनिया की हर जायज़ नाजायज़ मांग मानते हुए वह एक ऐसे मोड़ पर आ गया था जहाँ उसे लग रहा था कि अब सोनिया को समझना चाहिए कि उसकी हर मांग नहीं मानी जा सकती. उसे परिपक्व हो कर वयवहार करना होगा. बच्चे बड़े हो रहे हैं. जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं. माँ और भापा जी बूढ़े हो रहे हैं. उनकी तरफ भी उसकी ज़िम्मेदारियां बढ़ रही हैं. सोनिया को उसके रास्ते में रुकावटें खड़ी करने की बजाय उसका सहयोग करना चाहिए. लेकिन सोनिया थी कि सिर्फ अपने ही बारे में सोचती थी.

पिछले कुछ दिनों से उसने इस बात की रट लगा रखी थी कि ये घर छोटा पड़ने लगा है सो उन्हें एक नए फ्लैट में शिफ्ट कर जाना चाहिए. जब कि रौनक का मानना था कि वह अब भापाजी और माँ को छोड़ कर नहीं जाएगा. बल्कि इसी घर में ऊपरी मंजिल पर बच्चों के लिए दो और बेडरूम बनवाने का काम अगले हफ्ते से शुरू होने वाला था. नक्शा सोनिया की पसंद से बनवाया गया था और सारी बातें भी उसके सामने ही तय हुयी थीं.

फिर अब क्या नया हो गया था कि सोनिया को उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत करनी पड़ीं. रौनक बेहद हैरान था.

एक बारगी तो वो अपना आपा ही खो बैठा. लेकिन फिर उसने धैर्य के साथ दो घड़ी सोचा. सिपाही को सोफे पर बैठने को कह कर अंदर गया. सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर पहली मंजिल पर पहुंचा. पति-पत्नी और बच्चों के कमरे इसी मंजिल पर हैं.

घड़ी देखी. आठ बजने ही वाले थे. बच्चों के कमरे से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी. नौ बजे वे दोनों प्ले स्कूल जाते हैं. सोनिया खुद उन्हें अपनी कार में छोड़ने और एक बजे वापिस लेने जाती है. उसने कमरे का हैंडल घुमाया तो पता लगा कमरा अंदर से लॉक है.

उसने खटखटाया. कोई आवाज़ नहीं. उसने जोर-जोर से थपथपाया.

"सोनिया. दरवाज़ा खोला यार. क्या हो गया है? बाहर आओ. बात करनी है तुमसे. ज़रूरी है."

लेकिन कोई आवाज़ नहीं आयी. फिर लगा जैसे अदिति बोली, "पापा..." लेकिन फिर लगा जैसे उसका मुंह बंद करके उसे आगे बोलने से रोक दिया गया है. इसके बाद कुछ देर दोनों बच्चों और सोनिया के फुसफुसा कर बात करने के बाद शांति छा गयी.

रौनक समझ गया ये मामला इस तरह नहीं सुलझेगा. पुलिस को बीच में डाल ही लिया है सोनिया ने तो ज़ाहिर है अब आगे उन्हीं के रहमो-करम पर चलना होगा. मगर मन में शांति थी. जानता है उसने कोई गलती नहीं की है. सब ठीक हो ही जायेगा.

सो इसके बाद सीधे नीचे आया. भापा जी के बेडरूम का दरवाज़ा खटखटाया और अंदर चला गया. गायत्री अभी सो ही रही थीं. भापा जी बेड पर आलथी-पालथी मारे बैठे थे. उनके सामने चाय और बिस्कुट की ट्रे लकड़ी की ब्रेकफास्ट टेबल पर रखे थे. वे सुबह के अखबार तल्लीनता से पढ़ रहे थे. एक नजर उठा कर उस पर डाली और चाय का एक सिप लिया.

"भापा जी. कुछ मामला गड़बड़ हो गया है."

रौनक चाहता था पूरा मामला सुनने से पहले वे इस बात के लिए तैयार हो जाएँ कि सुबह-सुबह रौनक कोई अच्छी खबर ले कर उनके पास नहीं आया है.

"की होया पुत्तर?" वे इत्मीनान से थे. बेटा अब बड़ा हो गया है. बाल-बच्चों वाला है, सारे मामले खुद ही संभाल लेता है. ये भी संभाल लेगा. इसका भरोसा है उनको.

उन्हें तो बताने आया होगा या फिर कुछ रुपये-पैसे की कमी पड़ गयी होगी. देखा जाएगा. इसी का तो है. आज ले या कल. वैसे भी समझदार बच्चा है. भापा जी आँख मूँद कर रौनक पर भरोसा करते हैं.

"भापा जी. सोनिया ने पुलिस में मेरे खिलाफ रिपोर्ट कर दी है. खुद बच्चों के कमरे में जा कर दरवाज़ा बंद कर के बैठ गयी है. बच्चे उसके साथ ही हैं. सिपाही मुझे चौकी ले जाने के लिए आया है. कहता है पूछ-ताछ करनी है. मुझे जाना पड़ेगा. मैं तैयार हो कर जा रहा हूँ."

भापा जी ने अखबार को बिस्तर के नीचे फेंका. चाय का कप एक ही घूँट में खत्म किया. एक भद्दी सी गाली दी. जाने किसको? बहु को, या ज़माने को या पुलिस को या फिर अपनी किस्मत को.

और साइड टेबल पर पडा फ़ोन उठा लिया. चश्मा लगाया और रौनक की तरफ मुखातिब हुए, " सुन बेटा. डरना मत. तूने कोई गलत काम नहीं किया है. बेख़ौफ़ हो कर सिपाही के साथ जा. मैं वकील को लेकर चौकी आता हूँ. गुस्सा मत करना और गुस्सा आये तो कुछ बोलना मत. बिलकुल चुप हो जाना. सारी बात सच्ची-सच्ची पुलिस वालों को बता देना. तेरा भापा जी अभी जिंदा है तुझे कुछ नहीं होएं देगा. तू जा बच्चे. "

उस बीच गायत्री भी उठ चुकी थीं. उसी तरह बिस्तर पर लेटी हुयी सारी बातचीत सुन रही थीं.

वे बोलीं, " ये लडकी तो पागल हो गयी है बिलकुल. बियाह कर लाये थे तो कैसी फूल सी कोमल और प्यारी थी. क्या हो गया है इसको? मेरा दिल करता है दो थप्पड़ लगा कर इसका दिमाग ठिकाने लगाऊं. बसा-बसाया घर हमारा उजाड़ने पर तुली हुयी है. फूल जैसे बच्चों का भी ख्याल नहीं. " इतना कह कर वे रोने लगी थीं.

रौनक उनके पास बैठ गया. सहलाने लगा तो भापा जी ने उसे जाने को कहा. और पत्नी को चुप हो कर चाय पीने और अपनी दवा खाने का आदेश दे दिया.

गायत्री उनकी हर बात पत्थर की लकीर की तरह मानती हैं. इस उम्र में आ कर वो वैसे भी बीमारी के चलते उनके और भी अधीन हो गयी हैं. लगभग बच्चे की तरह उनकी हर बात से इत्तेफाक रखती हैं. चुपचाप उठीं. साइड टेबल पर रखी दवा की बोतल में से एक गोली निकाली. वहीं रखे क्रिस्टल के गिलास से पानी के साथ निगल ली और भापा जी के सामने रखी चाय की ट्रे से अपने लिए चाय ढाली और बिस्कुट के साथ पीने लगीं.

इसके बाद भापा जी अपने फ़ोन में लग गए.

दो घंटे बाद वे अपने वकील और दोस्त के साथ नॉएडा के पुलिस अधीक्षक के घर की तरफ जा रहे थे. गायत्री उनके साथ थीं.

"क्या शिकायत की है आपकी पत्नी ने आप को पता है?" सिंह की आवाज़ आयी तो रौनक फ़ौरन वहीं लौट आया.

"जी नहीं. अभी तक किसी ने कुछ नहीं बताया. " क्या कहता?

कहने को एक बड़ी लम्बी कहानी थी. उसे भी सोनिया से बहुत सी शिकायतें थीं लेकिन वो उनके निपटारे के लिए पुलिस के पास नहीं जाना चाहता था. वे तो खुद सोनिया ही दूर कर सकती थी. दूसरा कोई इस बारे में कुछ नहीं कर सकता था.

“ये पढ़ लीजिये.” कह कर सिंह ने एक तीन पन्ने की अर्जी रौनक के सामने रख दी.

अर्जी में रौनक के खिलाफ वे तमाम बातें थीं जो उसने सपने में भी नहीं सोची थीं. कि वह उसे फिल्म दिखाने नहीं ले जाता. बच्चों को घुमाने नहीं ले जाता. उन्हें दिन भर घर में पड़े रहना होता है. सोनिया से उम्मीद की जाती है कि वह सारा दिन सास-ससुर की सेवा में लगी रहे.

जबकि सच तो ये था कि घर में भापा जी और माँ के लिए एक हाउसकीपर अनीता थी जो उन दोनों के सारे निजी काम देखती थी. चौबीस घंटे वहीं रहती थी. उसका कमरा उन दोनों की बगल में ही था. जब कि बच्चों के लिए एक आया अलग से थी जो सुबह आती थी और शाम को चली जाती थी. बच्चों के लिए खाना बनाने में वो माहिर थी. वो सिर्फ बच्चो के लिए खाना बनाती थी और उनके कपडे खिलौनों आदि की देखभाल करती थी. सोनिया भी अपने निजी काम उससे करवा लेती थी.

एक मेड इन सबसे अलग पूरे घर की सफाई करने, वयस्कों के कपडे धोने, आयरन करने और ऊपर के दूसरे काम करने वास्ते दिन में चार घंटों के लिए आती थी. यानी सोनिया के ऊपर किसी भी तरह के काम का कोई दबाव नहीं था.

सोनिया तो अक्सर बाज़ार भी जाती थी तो अपने कमरे का ए.सी. ऑन छोड़ कर जाती ताकि आते ही उसे गरम कमरे में पांच मिनट भी न रहना पड़े. उसकी इस फ़िज़ूल खर्ची पर माँ कुढ़ती थीं लेकिन भापा जी ये कह कर उन्हें शांत करवा देते थे कि ये नए मिजाज़ के बच्चे हैं, इनके बीच मत बोलो.

रौनक सोच में पड़ गया कि ये सब बातें इस अधिकारी को किस तरह बताये. ये सोच ही रहा था कि वो आखिरी पन्ने पर पहुंचा. वहां सोनिया ने एक बेहद गंभीर आरोप उस पर लगाया था कि वह सोनिया से मांग कर रहा है कि वो अपने पिता से दस लाख रुपये उसे ला कर दे. यह पढ़ कर गुस्से से रौनक का मुंह लाल हो आया.

“ये सरासर झूठ है. सर. एक भी बात सच नहीं है. आप उसे बुलाइए यहाँ. मैं अपने सामने पूछूंगा सोनिया से. वो यह सब कैसे कह सकती है? मुझे बहुत निराशा हुयी है ये सब पढ़ कर."

सिंह ने एक बार फिर नज़र भर कर उसे देखा, फिर बोले,”हमने बुलाया है. आती ही होंगीं. तक आप चाय पीजिये."

चाय पीते-पीते रौनक और भी परेशान हो आया. ये क्या खुराफात समाई है सोनिया के मन में? आखिर चाहती क्या है ये? क्यूँ इतना अच्छा बड़ा घर छोड़ कर अलग एक फ्लैट में रहना चाहती है?

यहाँ क्या कमी है. खुल कर बात करनी होगी. यही सब सोच रहा था कि बच्चों के साथ सोनिया अन्दर दाखिल हुयी. बच्चे उसे देख कर लपक कर उसके पास आ गए.

“पापा.. पापा"

रौनक का दिल जुड़ा गया. दोनों को एक-एक बांह से घेर कर सीने से लगाया और अपनी एक-एक जाँघ पर बिठा लिया. सोनिया ने तीखी नज़र डाली और डांट कर कहा, “चलो दोनों इधर मेरे पास. क्या समझाया था तुम दोनों को?’

“पर मम्मी, पापा. "अदिति कुछ और कहती उससे पहले सोनिया ने दोनों को घसीट कर अपने पास ले लिया और कमरे में दूसरी तरफ रखे सोफे पर दोनों को बगल में चिपका कर बैठ गयी.