Ishq Faramosh - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क फरामोश - 5

5. यही कसर बाकी थी

रौनक छाबड़ा इस वक़्त एन.सी.आर. के एक मशहूर इलाके नॉएडा की एक पुलिस चौकी में बैठा हुआ है. दरअसल ये एक रिहायशी फ्लैट है, तीन कमरों वाला. जिसे पुलिस चौकी में तब्दील कर दिया गया था. अन्दर के दोनों बेडरूम के दरवाजे खुले थे. उनमें से अन्दर लगी कुर्सियाँ और मेज़ देखे जा सकते हैं. साथ ही दीवार से लगी लकड़ी और लोहे की बेतरतीबी से लगी अलमारियां और उनमें लगी धूल भरी फाईलें.

अन्दर के किसी भी कमरे में कोई नहीं था. देखने से लगता था उनमें से एक तो थानाध्यक्ष के दफ्तर के काम में लिया जाता होगा. दूसरे कमरे में मेज़ और कुर्सियों के अलावा एक खाट भी लगी हुयी थी जिस पर एक बिस्तर था. मैली सी रंगीन चादर और दो मैले-कुचैले तकियों वाली. दीवारों के साथ यहाँ भी अलमारियां और फाईलें थीं, साथ ही अलमारियों के बीच की बची खुची जगह पर खूंटियों लगी हुयी थीं. जिन पर पुलिस कर्मियों के कपडे टंगे हुए थे. पायजामे, पैंटें, कमीजें और लुंगियां.

ज़ाहिर है पुलिस कर्मी अपना ज्यादा वक़्त ड्यूटी पर ही बिताते हैं. घर जाने का वक़्त इन्हें कम ही मिलता है. या तो साप्ताहिक छुटी पर या फिर लम्बी छुट्टी लेने पर. अलबत्ता बड़े अधिकारी जैसे कि थानाध्यक्ष तो रोज़ घर जाते होंगें क्योंकि उसके दफ्तर में खूंटी तो थी मगर उस पर सिर्फ एक तौलिया टगा हुया था. पहनने के कपडे नहीं थे.

फ्लैट में एक रसोई भी थी. जिसका दरवाज़ा ही नहीं था. यानी टूट चुका था, जिसे बाद में किसी ने गायब ही कर दिया होगा, सो खुली चौपट रसोई थी. स्लैब पर गैस का दो बर्नर वाला चूल्हा था. चाय के बर्तन थे और कुछ थोड़े से खाना पकाने के बर्तन भी. एक छोटी से कैबिनेट ऊपर थी.

स्लैब के नीचे सब कुछ खुला हुया था. जहाँ कुछ बाल्टियां और दो झाड़ू पड़े थे. फिनायल की बोतल और हार्पिक भी. एक सिंक भी था इसी स्लैब के एक कोने में, जो बेहद गन्दा था. इसमें चाय के बर्तन पानी से लबालब भरे हुए साफ किये जाने का इंतज़ार कर रहे थे. काले पड़ चुके स्टील के नलके से लगातार पानी टपक रहा था.

रौनक ने चौकी में दाखिल होते ही पूरे फ्लैट का जायजा ले लिया था. पेशे से डेंटल सर्जन रौनक की आदत है जहाँ भी जाता है वहां की पूरी जानकारी पहले हासिल कर के ही जाता है. अगर जानकारी कहीं से न मिले या अचानक जाना हो तो पहुँचने के बाद सबसे पहले खोजी कुत्ते की तरह पूरी जगह का जायजा ले कर ही उसे चैन मिलता है. मगर यहाँ उसे जायजा लेने के बाद भी चैन नहीं मिला था. इसकी वजह थी यहाँ चौकी में उसके आने का कारण.

आज यहाँ इस पुलिस चौकी में आने का उसका कोई इरादा नहीं था. सितंबर की इस खुशगवार सुबह को वह उठा तो था कुछ परेशान. उसकी पत्नी सोनिया और उसके बीच काफी दिनों से खासी खट-पट चल रही थी. यहाँ तक की पिछले कई दिनों से वह ग्राउंड फ्लोर पर घर के गेस्ट रूम में सो रहा था.

छह कमरों वाला यह दो मंजिला घर नॉएडा में दो प्लाट अगल-बगल ले कर उसके व्यवसायी पिता ने कई साल पहले बनवाया था. अपने क्षेत्र के जाने-माने सफल कारोबारी रोशन लाल छाबडा भापा जी के नाम से जाने जाते हैं. भापा जी चाहते थे कि उनका बेटा रौनक ऊंची पढ़ाई पढ़-लिख कर प्रोफेशनल काम करे. सो रौनक ने उनका ये सपना बखूबी पूरा किया. उसकी दो बड़ी बहने भी हैं जो जो अपने-अपने घरों में सुखी वैवाहिक जीवन बिता रही हैं, कभी-कभार आ जाती हैं माँ-बाप और भाई से मिलने.

रौनक डेंटल सर्जन है. यहीं इसी नॉएडा में एक बेहद सफल डेंटल क्लीनिंक चलाता है जो उसके पिता याने भापा जी ने उसके एम.डी.एस. करते ही उसे बनवा दिया था. और जिसके लिए ज़मीन भापा जी ने उसके डेंटल कॉलेज में एडमिशन के साथ ही खरीद कर रख ली थी.

भापा जी खुद अपने माता-पिता के साथ पार्टीशन के वक़्त गुजरांवाला से शरणार्थी बन कर आये थे. बरसों शिविरों में रह कर अपना कारोबार जमाया. इन्हीं शिविरों में रह कर स्कूल गए थे. खुद ज्यादा नहीं पढ़ पाए थे. लेकिन दुनिया के उसूल और कायदे बखूबी सीखे थे. कुछ घर में अपने माता-पिता से कुछ स्कूल-कॉलेज में और कुछ दुनिया के समंदर में तैरते हुए डुबकियां खाते रह कर.

पचीस के होते न होते भापा जी ने अपना एक स्वतंत्र कारोबार खड़ा कर लिया था. पड़ोस की शरणार्थी शिविर की ही खूबसूरत गायत्री से विवाह रचा लिया था जो एक तरह से लव-कम-अरेंज्ड मैरिज थी.

भापा जी का सूखे मेवों का होल सेल का कारोबार पूरे भारत में फैला हुआ है. कारोबार की सफलता इस पैमाने से तय के जा सकती है कि ईर्ष्या वश कुछ लोग उन्हें स्मगलर भी कहने लगे थे. लेकिन रोशन लाल का कहना है कि वे बिलकुल साफ़-सुथरा धंधा करते हैं. ये बात उन्होंने वक़्त आने पर साबित भी कर दिखाई थी.

उनके प्रतिद्वंदी ने उनकी शिकायत सरकारी महकमे में कर दी थी. भापा जी ने खुद को निर्दोष साबित कर दिया था. उन पर लगाए गए सारे आरोप गलत साबित हुए थे. लेकिन इस दौरान जो मानसिक और सामाजिक पीड़ा उन्हें भोगनी पडी उसके चलते वे नहीं चाहते थे कि उनके इकलौते बेटे को भी जीवन में कभी भी ऐसा कुछ भोगना पड़े.

रौनक उस वक़्त कॉलेज के पहले साल में था. बी. ए. पास कोर्स के. तभी मन में ठान लिया था कि बेटे को ऊंची प्रोफेशनल पढ़ाई करवाना है ताकि वो कोई सम्मानजनक काम करे. उसे ऐसा कोई कारोबार न करना पड़े जिसमें कोई भी उठ कर आपके खिलाफ कुछ भी बोल सकता है. और इस तरह के किसी बेहूदे मामले में फस कर उसे अपमान के घूँट न पीने पड़ें जो उन्हें बेवजह पीने पड़े थे.

पूरी ज़िंदगी इमानदारी के साथ फूँक फूँक कर कदम उठाने वाले भापा जी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके बेटे को भी इस तरह के अपमान का सामना करना पड़ेगा. मगर आज ऐसा ही बेहूदा मामला रौनक को इस पुलिस चौकी पर ले आया था और वे खुद इस वक़्त अपने एक दोस्त औए वकील के साथ नॉएडा के एस. पी. के घर की तरफ जा रहे थे. गायत्री भी साथ थीं.

ये मित्र इसलिए साथ थे क्योंकि इनका छोटा भाई बिहार कैडर से आय. पी. एस. अधिकारी था, जो इत्तेफाक से इन एस.पी. साहब का बैच मेट भी था. ये सारी जानकारी पिछले आधे घंटे में भापा जी ने हासिल की थी. और इन मित्र को साथ ले कर एस. पी. के घर की तरफ जा रहे थे.

गनीमत थी कि जिस शिकायत के निपटारे के लिए रौनक पुलिस चौकी में बैठा था उसमें उसके भापा जी और रौनक की माँ गायत्री के नाम नहीं लिखवाये थे. इसी बात से रौनक कुछ सुकून से था. शिकायत करने वाली कोई और नहीं रौनक की पत्नी और घर की बहु सोनिया थी.

जब घर में शिकायत की अर्जी ले कर चौकी से सिपाही आया तो सोनिया बच्चों के कमरे में दोनों बच्चों के साथ अंदर से दरवाज़ा बंद कर के बैठ गयी थी. काफी खटखटाने पर भी उसने कोई जवाब नहीं दिया था. बच्चों को भी उसने डांट कर चुप करा दिया था. ये सब कमरे के बाहर से सुना और समझा जा सकता था.

सिपाही से बात करने, अर्जी के बारे में जो कुछ उसे मालूम था जान लेने के बाद रौनक और भापा जी ने फैसला किया कि रौनक को कानून का पालन करते हुए सिपाही के साथ चौकी पर चले जाना चाहिए. और वे खुद वकील और दूसरे इंतजाम कर के चौकी पर पहुंचेंगे. घर में बच्चों के साथ सोनिया तो थी ही. बच्चों की आया भी कुछ देर में आने वाली थी.

इस सारे घटना क्रम को देखते-समझते हुए गायत्री ने सोनिया की मौजूदगी में घर पर ठहरने से इनकार कर दिया तो भापा जी ने उनसे भी तैयार हो कर साथ चलने को कहा. घर में मौजूद हाउसकीपर अनीता को घर संभालने और दिन का खाना तैयार करने के आदेश दे कर रौनक, भापाजी और गायत्री लगभग साथ ही बाहर निकले. रौनक ने सिपाही को अपनी ही गाड़ी में बिठा लिया था जो कि रिक्शे से वहां आया था.

इस वक़्त वह चुपचाप थाने के प्रभारी के आने के इंतज़ार में बाहर के कमरे में रखी एक टेढ़ी सी कुर्सी पर बैठा सोच रहा था कि कहाँ उससे गलती हुयी जो उसे आज का यह दिन देखना पडा. इसके साथ ही उसकी आँखों के सामने अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी सोनिया का चेहरा आ गया.

एक बारगी तो रौनक समझ ही नहीं सका कि वो सोनिया से आज भी प्यार करता है कि नहीं. लेकिन उसका ख्याल आते ही चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी और उसे खुद पर ही थोड़ा अफ़सोस हुया कि सोनिया की इतनी बेलिहाज़ बदमजगी के बावजूद उसके दिल में सोनिया के लिए एक सॉफ्ट कार्नर बचा हुया है.

सोनिया है भी तो बला की खूबसूरत और बेहद कमनीय. बिस्तर में उसका जवाब नहीं. जैसा सुख उसने रौनक को दिया है वैसा उसे और किसी औरत से कभी नहीं मिला. इसके अलावा जो दो प्यारे प्यारे बच्चे सोनिया ने उसे दिए हैं, उनके लिए वो सोनिया से कभी कर्जमुक्त नहीं हो सकता. ये बात वो दिल से मानता है. अदिति और अम्बर. जुड़वां बेटी और बेटा चार साल के हैं. ये दोनों उसे जान से भी प्यारे हैं.

पिछले महीने ही उनका जन्मदिन मनाया था. पूरा परिवार गोवा गया था. ये छह लोग यहाँ से. वहीं दोनों बहनें और उनके परिवार भी आये थे. दोनों बहनों के पति, बच्चे और सास-ससुर. अच्छी रौनक रही. पांच दिन कब निकल गए कुछ पता ही नहीं चला. रौनक चाहता था कि सोनिया के माता-पिता भी चलें लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

वे अक्सर रौनक के घर आने से बचते हैं. कई बार लगता है वे भी सोनिया के वयवहार से खुश नहीं हैं. और उनके सामने जब सोनिया बेहूदगी की बातें और हरकतें करती है तो शर्मिंदा होते है. इसी शर्मिन्दगी से बचने के लिए वे रौनक के घर बच्चों के पहले जन्मदिन के बाद कभी नहीं आये. आते हैं तो दिल्ली में अपने बेटे याने सोनिया के भाई के घर रहते हैं और एक दिन इन सब को वहीं किसी होटल या रेस्टोरेंट में बुला कर मिल लेते हैं.

सोनिया के माता-पिता देहरादून में रहते हैं. पिता रिटायर्ड फ़ौजी हैं और दिल्ली में रहने वाला भाई एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में मिडिल लेवल के एक पद पर है. वह सोनिया से तीन साल छोटा है. सोनिया से मिलने से वह भी अक्सर कतराता है.

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