इश्क फरामोश - 9 Pritpal Kaur द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क फरामोश - 9

9. ऐसा भी वक़्त आता है

अगले दिन सुबह जब किरण अपने बेडरूम में दाखिल हुयी तो आसिफ सो ही रहा था. किरण ने उसकी तरफ देखा और नज़र घुमा ली. वह अपनी ज़िंदगी तो बर्बाद कर चुकी थी, सुबह और आज के दिन को जाने क्यूँ बचा ले जाना चाहती थी. इसी तरह अब उसे जीना था. एक-एक दिन को बचा कर ले जाते हुए, फिसलन भरी राह पर बच-बच कर चलते हुए. एक एक दिन बचा कर ही एक उम्र तक लांघ कर जाना होगा.

किरण का दिल इस वक़्त धुंआ-धुंआ हो रहा था. जाने कैसे दिन आ गए थे नीरू के जीवन में आते ही. कितने शौक से इस बच्ची को अपनी ज़िंदगी में स्वागत किया था. और कैसी मुसीबतों से पाला पड़ रहा था. किरण कुछ भी सोच समझ नहीं पा रही थी.

पूरा बदन टूटा पड़ रहा था. रात भर सो नहीं पायी थी. रात का दर्दनाक हादसा अभी मन में पूरी तरह बिखर कर बैठा था. इससे कैसे निपटेगी, नहीं जानती थी. ये घाव बहुत गहरा था और हर बीतते पल के साथ और भी गहरा और दर्दनाक होता जा रहा था. पीठ और गर्दन दर्द से जकड़े हुए थे. पेट अलग खराब था. खट्टी-खट्टी डकारें आ रही थीं.

सुबह के छः बज चुके थे. रसोई से आवाजें आ रही थीं. कनिका उठ कर सब के लिए चाय बना रही होगी. सुबह की पहली चाय वही बनाती है और नीरू के उठने से पहले ही उसके और आसिफ के लिए चाय उनके बेडरूम में दे जाती है. सात बजे साजिद आ जाता है और आगे का दिन का काम वह संभाल लेता है.

किरण का बिकुल मन नहीं है आसिफ के सामने पड़ने का. वह फौरन कमरे से बाहर निकल आयी और ड्राइंग रूम की तरफ जाते हुए कनिका को आवाज़ दी.

“कनिका, मेरी चाय यहीं ले आओ. मैं इधर हूँ ड्राइंग रूम में.”

“जी, अच्छा.” ये बहुत अच्छा कहती है कनिका. सीख गयी है किरण के साथ रहते-रहते. किरण का इन बातों पर बहुत ध्यान रहता है. आया अच्छी जुबां बोलेगी तो बेटी भी अच्छी जुबां सीखेगी. ज्यादा वक्त तो आया के साथ ही गुज़रता है बच्ची का.

कनिका चाय दे गयी तो किरण ने बाहर का दरवाज़ा खोल कर अखबार उठाये. ये काम रोज़ वही करती है. अपनी न्यूज़ की दुनिया की नौकरी के चलते आसिफ लगभग सारे अखबार मंगवाता है. मगर देखता एकाध ही है. अलबत्ता किरण को अब आदत पड़ गयी है सभी अखबारों को सुबह घंटा भर टटोलने की. देश-दुनिया की सारी जानकारी उसकी टिप्स पर रहने लगी है. मगर आज मन नहीं लग रहा अख़बारों में भी.

छोड़ कर उठ खड़ी हुयी. चाय पी चुकी थी. डकारों का आना कुछ कम हुआ था. लगता था पेट खाली हो जाने के बाद अब चाय पीने से सुधरने की तरफ चल पड़ा है. मगर मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. जी किया ऑफिस से छुट्टी ले कर कहीं निकल जाए. शौपिंग या दोस्तों से मिले. थोडा मन बहले.

लेकिन फिर लगा ऑफिस जाना ठीक रहेगा. वहां काम में डूब जायेगी. अब दोस्त भी तो ले-दे कर वही ऑफिस वाले ही रह गए हैं. इन्हीं से रोजाना वास्ता पड़ता है और इन्हीं से दुःख सुख की बातें होती हैं इन्हीं में से कुछ अच्छे दोस्त भी बन जाते हैं. पिछले बारह साल से इसी ऑफिस में है. सभी से जान-पहचान है. दोस्तों में भी लगभग सारे साथ ही इसी ऑफिस में ही हैं. ऑफिस से बाहर के दोस्त तो वही हैं जो स्कूल कॉलेज के ज़माने से हैं. उनसे मिलना कम हो पाता है. सब तो दिल्ली से बाहर हैं. सिर्फ पूनम और मोहन ही दिल्ली में हैं. मगर दोनों ही बेहद व्यस्त ज़िन्दगियों वाले. साल में एक बार भी मुश्किल से मिलना होता है. फ़ोन पर भी बात बहुत कम ही हो पाती है. लेकिन किसी दोस्त से आज मिल भी ले तो बातचीत नहीं हो पायेगी.

अपना ये इतना निजी दुखड़ा किसके सामने रोयेगी किरण? पहली बात तो किसी से कह नहीं पायेगी. और अगर हिम्मत कर के कह भी दिया तो कोई समझ ही नहीं पायेगा. पति ने बलात्कार कर दिया? "योर हस्बैंड रेपड यू? आर यू क्रेजी?"यही कहेंगे सब.

हो सकता है सलाहें देने लगें कि उसे इस बात को दिल से नहीं लगाना चाहिए. आखिर तो पति ही है. उसका हक़ भी तो है.

हक़? ये शब्द एक बड़ा सा सवाल उठा कर चला गया. बलात्कार करने का हक? दिल दहल गया. जी घबरा गया. कुछ समझ नहीं आया कि क्या करे.

नीरू के कमरे में दाखिल हो गयी बिना जाने बूझे और देखा बेटी अभी चैन से सो रही थी. उसे प्यार से देखती रही. कैसी तो प्यारी बच्ची है. क्या इसके बाप के मन में इसे देख कर भी अफ़सोस होता है? क्या वो कभी बाप की नज़र से देखता भी है इसे?

ये सवाल उठा तो बेतरह घबरा गयी किरण. क्या आसिफ बाप होने लायक है एक बेटी का? मन में एक साथ कई सवाल उठ खड़े हुए.

कल रात से जो सवाल रह-रह कर उठ रहे थे वे घनीभूत हो कर अन्दर पारे की तरह बैठ गए. क्या किरण को कोई फैसल करना ही होगा अपनी आने वाली ज़िंदगी के बारे में? उसकी टांगें कांपने लगीं. वह वहीं नीरू के बेड के पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी.

नीरू को निहारती हुयी वह ज्यादा सोच नहीं पायी. दिल बहुत-बहुत उदास था. मगर रोना नहीं चाहता था. बेटी के कमरे में उसके सिरहाने बैठ कर तो कत्तई नहीं. इस बेटी के लिए तो जीना है उसे. खुश रहना है. दुनिया की सारी खुशियाँ इसको देनी हैं. खुद खुश नहीं रहेगी तो इसे क्या देगी?

प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर बाहर निकल आयी. निकल तो आयी मगर क्या करे? बेडरूम में जायेगी तो आसिफ का सामना होगा. जो वो नहीं चाहती.

कैसी विडंबना है. अपराध आसिफ ने किया है और सामना करने से वह बच रही है. तभी ख्याल आया कि उसे आसिफ का सामना करके उसके इस वयवहार के लिए कठघरे में खड़ा करना चाहिए. लेकिन अगले ही पल ये विचार उसने दिमाग से निकाल दिया. अगर आसिफ अकड़ गया तो बात और बिगड़ जायेगी.

मम्मी पूरे दो साल के बाद भारत आ रही हैं. बेटी की बेटी को पहली बार देखने. उनके आने और आ कर चले जाने तक किसी भी तूफ़ान को रोकना है. उनका ये भ्रम बना रहे कि बेटी चैन से है अपनी ज़िन्दगी में, तभी ठीक रहेगा. ये इरादा मन में पक्का कर के ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गयी.

थोड़ी देर और यहीं बैठेगी. फिर अन्दर जा कर नहा धो कर तैयार हो कर ऑफिस चली जायेगी. आज आसिफ से बिलकुल बातचीत नहीं करनी. अगर बात हो गयी तो वह फट पड़ेगी. आज बहुत रोष है मन में. मगर बम के फटने को अभी रोकना है. सही बात है. मम्मी को जिन्होंने सारी उम्र अकेले रह कर उसे पाला है, इस लायक बनाया है, उन्हें इस उम्र में ऐसा दुःख नहीं देना है.

साजिद की आवाज़ रसोई से आने लगी थी. यानी सात बज गए. मन मार कर थकी हुयी किरण उठी. बेडरूम में दाखिल हुयी और बिस्तर पर लेटे आसिफ की तरफ देखे बगैर बाथरूम में चली गयी.

आसिफ देख रहा था. उसकी आँखें तब भी खुली ही थीं जब पहली बार सुबह किरण कमरे में आयी थी. और अब भी खुली थीं. किरण को इनका भान न हुआ हो ऐसा भी नहीं था. मगर किरण ने उसे पूरी तरह इग्नोर कर दिया था. इससे उसके अंदर और आग भड़क गयी थी. ये औरत खुद को समझती क्या है? रात औकात दिखा ही दी थी. फिर अकडेगी तो फिर दिखा देगा.

यही सब सोच रहा था. लेकिन थोडा डरता भी है किरण के व्यक्तित्व से आसिफ. स्ट्रोंग औरत है. अगर मुश्किल खड़ी करने पर उतर आये तो वाकई परेशान कर सकती है. मगर ये भी जानता है कि बेटी के लिए ये सब कुछ सहेगी. और यही तुरुप का पत्ता आसिफ के हाथ में है. जिसकी वजह से उसे लगता है कि वो जैसा चाहे बर्ताव किरण के साथ कर सकता है और वह सहेगी. इसके अलावा किरण का अकेला होना भी आसिफ को बल देता है. दुनिया में सिर्फ माँ ही है उसकी वो भी सात समंदर पार. वो क्या सहारा देगी इकलौती बेटी को?

मगर भूल गया आसिफ कि किरण को किसी सहारे की ज़रुरत थी ही नहीं. उसने आसिफ से सहारे के लिए नहीं बल्कि प्रेम के लिए, घर बसाने के लिए शादी की थी. भावात्मक लगाव के लिए शादी की थी.

ये सब अगर वो शादी में उसे मुहैया नहीं करवाएगा तो शादी को बचा कर रखने का कोई कारण वह किरण के पास नहीं छोड़ पायेगा. इसके बाद क्या किरण जैसी आत्म-निर्भर और आत्म-सम्मानी लडकी इस शादी को बचाना चाहेगी?  इतना नहीं सोचा आसिफ ने. करवट बदल कर उठने से पहले एक और झपकी लेने की सोची.

उस दिन किरण का मन बहुत खराब रहा. दिन भर काम में तो डूबी रही मगर जब भी एक भी पल को दिमाग कहीं भटकता तो भटक कर वहीं रात के हादसे पर पहुँच जाता. यहाँ तक कि जितनी बार भी नीरू का ख्याल आया उतनी ही बार उसके पिता यानी आसिफ का ख्याल आया और आसिफ के ख्याल के साथ ही उसका रात का बदसूरत चेहरा भी याद आया.

किरण दुखी तो थी ही इसके साथ ही बार-बार ये ख्याल आ रहा था कि एक ही पल में किसी एक ही घटना के आधार पर कैसे किसी भी इंसान को लेकर मन के भाव बदल सकते हैं. कैसे कोई इंसान जो आपकी ज़िंदगी की धुरी हो, अपनी उस ख़ास जगह से छिटक कर हाशिये पर जा सकता है.

ऐसा नहीं कि आसिफ को लेकर कोई ठोस फैसला किरण ने अपने मन में कर लिया हो. वह इस बार भी आसिफ को अपनी सफाई का मौका देना चाहती थी मगर उससे पहले उसे अपने अन्दर से इस घटना का ज़हर खींच कर बाहर निकालना था. आखिर तो वह पति था किरण का. सोच समझ कर उसने शादी की थी. प्रेम करता था किरण से और कहता भी था कई बार.

हालाँकि जब से नीरू हुयी थी तब से किरण ने कभी उसके मुंह से नहीं सुना था इस प्रेम के बारे में. फिर भी भरोसा था भीतर कि आखिर कार उसका प्रेम जागेगा बेटी के लिए भी. और उसी दिन के इंतज़ार में वह एक साल के करीब तो काट ही चुकी थी.

लेकिन कल रात के बाद आज उसके मायूस दिल से कुछ और ही तरह की आवाजें आ रही थीं. दिल कह रहा था कि किरण बिला वजह अपना वक़्त नष्ट कर रही है. ये इंसान अपनी ज़िंदगी से जो उम्मीदें ले कर चल रहा है, किरण की गृहस्थी उन पर खरी नहीं उतर रही है.

ये घर किरण की गृहस्थी इसलिए भी थी कि यहाँ वही उपस्थित थी पूरे होशो हवास के साथ. घर का सारा कारोबार किरण के इरादों और इशारों पर चलता था. नीरू के आने के बाद से तो और भी ज्यादा. घर का हर छोटा-बड़ा काम, व्यवस्था, सामान, मरम्मत, टूट-फूट; हर चीज़ पर किरण की नज़र रहती थी और किरण के चलाये ही सब चल रहा था.

पिछले कुछ महीनों से तो आसिफ ने घर में दिलचस्पी लेना बिलकुल ही बंद कर दिया था. वह मेहमान की तरह रहने लगा था. साजिद या कनिका में से कोई भी उसे किसी काम के लिए कहते या कोई बात पूछते तो उसका एक ही जवाब होता.

"किरण से पूछ लो. या किरण को कह दो."

किरण के यहाँ व्यवस्था को सँभालने की सलाहियत शुरू से ही है. सिंगल माँ की इकलौती बेटी होने की वजह से उसे बचपन से ही अपनी ज़रूरतें खुद ही देखने और उनका बंदोबस्त खुद ही करने की आदत भी है और इसमें उसे आनंद भी आता है.

स्कूल कर लेने के बाद कॉलेज में जब वह आयी थी तो अक्सर माँ के भी बहुत से निजी काम उसने करने शुरू कर दिए थे. उसके पास वक़्त होता था और माँ को आराम दे कर उसे दिल से सुकून मिलता था. इसके अलावा ऐसा करने से माँ-बेटी को एक दूसरे के साथ ज्यादा वक़्त बिताने का मौका भी मिलता था.

अब जब आसिफ ने घर से पूरी तरह हाथ खींच लिया तो किरण ने बजाय कोई बखेड़ा खडा करने के घर के पहले से ही तनावयुक्त हो चुके माहौल को और तनाव से भरने की बजाय सारी ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर ले ली. इस तरह घर तो बखूबी चल रहा था मगर घर की जो रूह थी, जिसमें पुरुष और स्त्री के प्रेम से जीवन का स्पंदन आता है, वह रुखी पड़ गयी थी.

घर वैसा ही था. सब सामान करीने से रखा रहता था. खाना उसी तरह स्वादिष्ट बनता था. नीरू की खिलखिलाहट घर में रच बस गयी थी. उसके खिलौने पूरे घर में चहल-पहल करते हुए इसे रंगों से सराबोर कर देते थे. मगर घर में रस नहीं रह गया था.

घर एक प्लास्टिक के अनार की तरफ दिखाई पड़ने लगा था. एक ऐसा अनार जो बेहद खूबसूरत था. जिसके लाल, रस से सराबोर षटकोणीय दाने रोशनी से नहाए दमक रहे हों, खोल से बाहर आ कर रस को जहां-तहां टपका देने को उतावले भी हों. लेकिन हाथ लगाने पर पता लगे कि ये तो नकली हैं. यहाँ न रस है न रंग. सिर्फ प्लास्टिक का एक भुलावा है जो सिर्फ और सिर्फ एक झूठ को जी रहा है.

उन दिनों किरण इन्हीं खाली बर्तनों सरीखे दिनों से हो कर गुज़र रही थी. उसे कई बार ये एहसास भी होता था कि शायद आसिफ भी ऐसे ही दिनों से गुज़र रहा था. उखड़ा हुया सा घर में रहता. उखड़ा हुया सामने बैठ कर खाना खाता. नीरू को यूँ ही हलके से बेमन से कभी प्यार से सर पर हाथ फेर कर सतही लाड़ जताता. अपने में ही गुम ज्यादा वक़्त बेडरूम में सोते हुए बिताता.

कभी-कभी किरण को उस पर दया आने लगती थी. मगर कल की रात के बाद किरण बेतरह उखड़ गयी थी.

उस रात के बाद जब अगली शाम को किरण घर आयी तो रास्ते भर ये सोचती हुयी आयी थी कि आने वाली रात का सामना कैसे करना है. इसके लिए उसे कोई स्ट्रेटेजी बनानी होगी. वह आसिफ के साथ एक ही कमरे में नहीं सो सकती थी. इस ख्याल के साथ ही आँखों में आंसूं भी उतर आये. मगर दिल को कड़ा कर के उसने सोचा तो यही तय पाया कि घर जाते ही आसिफ का सामान बेडरूम से हटा कर गेस्ट रूम में शिफ्ट करना होगा और उसे सख्ती से वहीं सोने को कहना होगा.

अगर ऐसा न करने का उसका इरादा हो और वो बखेड़ा खडा करे तो उस स्थिति के लिए भी किरण को मानसिक तौर पर तैयार रहना होगा.

आसिफ को ये बात साफ़ शब्दों में समझनी होगी कि ये घर दोनों का है. और अब नीरू भी आ गयी है सो तीनों लोगों की सुविधा को देखते हुए घर का बंदोबस्त चलेगा. किरण उसके साथ नहीं सो सकती. लेकिन अपने स्थान, अपना बेडरूम और अपनी सुविधा का त्याग नहीं करेगी.

सो आसिफ को गेस्ट रूम में रहना होगा. गनीमत ये थी कि दो फ्लाटों से बने घर की वजह से घर में दो गेस्ट रूम थे. तो ज़ाहिर है मम्मी के आने पर कोई असुविधा नहीं होने वाली थी. लेकिन माँ को इस अलगाव के बारे में क्या कहेगी उस पर उसने विचार फिलहाल टाल दिया. उसने मन को समझाया कि ये तब देखा जाएगा. आज सिर्फ आज की बात.

जब घर आ कर उसने साजिद को बेडरूम में बुला कर आसिफ के कपडे और बाथरूम का सामान शिफ्ट करने को कहा तो उस वक़्त आसिफ घर पर नहीं था. इन दिनों वह ऑफिस और भी देर से आने लगा था. लगभग रात के नौ बजे. आता, खाता और सो जाता.

जो हरकत उसने पिछली रात की थी उसके बाद तो आज शायद और भी लम्बा बाहर रहने वाला था इसका अंदाजा किरण को था. सुबह किरण के जाने के वक़्त बिस्तर में मुंह छिपाए दुबका रहा था. उसकी हिम्मत ही नहीं हुयी थी किरण के सामने पड़ने की.

आधे घंटे के अंदर ही आसिफ का सामान करीने से गेस्ट रूम में शिफ्ट हो कर लग चुका था. किरण ने खुद सब ठीक-ठाक कर दिया और फिर नीरू के साथ बिजी हो गयी.

नीरू को जब माँ मिलती है तो वह उसे छोड़ना नहीं चाहती. उसे गोद में बिठाए हुए ही थकी और भूखी किरण ने खाना खाया. बीच बीच में नन्ही बेटी को भी दाल और चावल का स्वाद चखाया जो उसने मुंह बनाते हुए जीभ से चटखारे ले कर खाया भी और होठों से बाहर लुडकाया भी. किरण और कनिका दोनों नीरू के इस आनंद और ठाठ को देख-देख कर आनंदित होती रहीं.

नीरू को गोद में लिए-लिए ही किरण आ कर ड्राइंग रूम में टेलीविज़न लगा कर बैठ गयी. नीरू तब तक थक चुकी थी. कनिका ने दूध की बोतल ला कर दी तो नीरू ने लपक कर उसे होठों से लगा लिया. किरण लाड से उसे दूध पीते देखती रही.

उसकी गोद में बेटी का जिस्म नींद से भारी से और भारी होता चला गया. बेटी की खुशबु से उसके नथुने भर उठे थे. प्रेम में आकंठ डूबी किरण टेलीविज़न से छूट चुकी थी और एकटक नीरू को दूध पीते और आहिस्ता-अहिस्ता नींद में डूबते देख रही रोम रोम माँ हो आयी थी. इस पल किरण सिर्फ और सिर्फ एक माँ थी. एक खिलास माँ जिसके लिए उसका बच्चा ही दुनिया की एक इकलौती हस्ती थी. बाकी सब कुछ उस वक़्त उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था.

इसी तरह जाने कितना वक़्त बीत गया था जब अहिस्ता से कनिका ने उसे कंधे पर छुया था. बेटी को इसी तरह प्यार से निहारते हुए वह खुद भी आराम कुर्सी की पीठ से सर टिका कर सो गयी थी. दिन भर की थकी-हारी किरण आखिर कितनी जंग और करती नींद के साथ ?

कनिका ने अहिस्ता से नीरू को उसकी गोद से लिया और अंदर उसके कमरे में ले गयी. नीरू ने कोई प्रतिवाद नहीं किया. वह गहरी नींद में थी. कनिका को अन्दर गए दसेक मिनट हुए होंगें. नीरू को उसने बिस्तर में कम्बल ओढ़ा कर अच्छे से लपेट कर सुला दिया था. अब दरवाज़ा बंद कर के अपने सोने की तैयारी में लगी थी. जब उसने बाहर के दरवाज़े के खुलने की हल्की सी आवाज़ सुनी थी.

सोचा साजिद गया होगा या फिर साहब आया होगा. मगर उसके बाद कोई आवाज़ नहीं आयी तो समझ गयी कि साजिद चला गया. याने रात के साढ़े नौ बज चुके थे. साहब का कोई पता नहीं अभी तक. वैसे भी देर से आता है. इन दिनों दोनों में बातचीत भी नहीं होती. आज तो मैडम ने साहब का सामान भी बेडरूम से हटा दिया है.

किसी अंदेशे से कनिका का मन डरा हुया है. सुबह छह बजे उठना होता है. साहब और मैडम की चाय बनाने के लिए. फिर बेबी को सोते में ही दूध की बोतल देने के लिए सो. कनिका ने आँखें बंद की और जल्दी ही सो भी गयी.

किरण एक छोटी सी झपकी ले कर कुछ ताकत बटोर चुकी थी. उसे आसिफ के घर लौटने का इंतजार करना ही था. ना चाहते हुए भी उसका सामना करना था. उसे उसके सोने और रहने की नयी व्यवस्था के बारे में बताना ही था.

आखिर सवा दस बजे घर का दरवाज़ा खुला और आसिफ अन्दर दाखिल हुआ. किरण ने टेलीविज़न बंद कर दिया.

आसिफ बिना उसकी तरफ देखे बेडरूम की तरफ बढ़ ही रहा था कि किरण की आवाज़ ने उसके पाँव रोक दिए.

"सुनो, वहां मत जाओ. तुम्हारा सामान गेस्ट रूम में रखवा दिया है. आज से तुम वहीं सो रहो. "

"व्हाट डू यू मीन?"

"यू हर्ड मी."

"यस. आय हर्ड यू." आसिफ की आवाज़ ऊंची हो गयी थी.

किरण उठ खड़ी हुयी. कद में आसिफ से एक ही इंच कम है. जब आमने-सामने खडें हों तो उसके विशाल व्यक्तित्व के सामने आसिफ बौना महसूस करता है.

"तो चुपचाप वहीं चले जाओ. गेस्ट रूम में. या आज ही बात करनी है तुम्हारी कल की हरकत के बारे में?" किरण की आवाज़ बेहद ठहरी हुयी तो थी मगर उसमें तुर्शी अच्छी खासी थी.

आसिफ कुछ घबरा गया.

"किस चीज़ के बारे में?"

"अच्छा? कल रात तुमने क्या किया था मेरे साथ?'

आसिफ घबरा गया. उसे लग रहा था बात धीरे-धीरे दब जायेगी. मगर ये घाव कितना गहरा था. इसका अंदाज़ा उसे अभी तक नहीं हुया था.

"याद है? कि मैं बताऊँ?" किरण की आवाज़ इस बार कुछ इस तरह हॉल में फैल गयी थी कि आसिफ घबरा गया. ये आवज भारी-भरकम थी. ठहरी हुयी थी. इसमें छुरी की धार जैसी काट डालने वाली तेज़ी भी थी.

आसिफ वहीं खडा रह गया. उसे शायद इतनी तेज़ और गहरी प्रतिक्रिया का अंदेशा नहीं था. उसे सचमुच इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसने एक प्रबदुध स्त्री के खिलाफ कैसा संगीन अपराध कर डाला था. वो भी उसकी अपनी ही पत्नी.

उसके मन में कोई ग्लानी या पछतावा नहीं था. सिर्फ एक पल था. उत्तेजना का एक पल जो उसने अपने मन मुताबिक जी लिया था. जो उसके गुस्से से उपजा था. उसकी निराशा से पैदा हुया था. उसकी ज़िंदगी के नाकाम इरादों की सोच से पनपा था. बस. इसका असर उस स्त्री पर कितना गहरा हुया था यह देख कर वह भौंचक्का था.

"देखो. आसिफ कल रात तुमने जो हरकत की है. उसे बलात्कार कहते हैं. यू हैव रेपड मी. मैं जब तक उस हादसे से बाहर नहीं निकल पाती तब तक तुम मेरे बेडरूम में कदम नहीं रखोगे. गेस्ट रूम में सब ठीक से लग गया है. वहीं रहो. और अगर नहीं रह सकते तो घर छोड़ कर भी जा सकते हो. जब तक हालात बेहतर नहीं होते तुम जो चाहो करो, मगर मेरे बेडरूम में कदम नहीं रखोगे. "

आसिफ सन्न खड़ा सुनता रहा. काफी देर के बाद वह इस झटके से बाहर निकल पाया.

आखिर उसकी ज़ुबान खुली. "नहीं यार, मैंने ऐसा नहीं किया. वी मेड लव."

"वी? आय वास नॉट देयर. मैं तो सो रही थी. नींद में बेहोश थी." किरण तड़प उठी थी.

"बट आय मेड लव टू यू." कह तो गया मगर उसके शब्द और टांगें दोनों लड़खड़ा रहे थे.

"यू कॉल इट लव? शेम ऑन यू." हिकारत से इतना ही कह पायी. उसके तन-बदन में इस वक़्त आग लगी हुयी थी. कल रात का सारा प्रकरण एक बार फिर जिंदा हो गया था उसके अंदर.

वह तेज़ी से बेडरूम की तरफ चली गयी.

आसिफ उसके पीछे लपका. उसे लग रहा था अब भी वो बात संभाल सकता है. ये वही किरण है जो उसे बे-इंतहा प्यार करती है. मगर किरण तब तक अन्दर से दरवाज़ा लॉक कर चुकी थी.

आसिफ वापिस पलटा तो देखा टेबल पर खाना लगा हुआ है. देख कर भूख जाग गयी. उसने चुपचाप बैठ कर खाना खाया. इतना भूखा और हैरान था कि क्या खा रहा था कुछ समझ नहीं आया. मगर पेट भर के खा कर उठा तो हमेशा की तरह बचा हुआ खाना संभाल कर फ्रिज में रखने का मन नहीं हुया. ना ही अपनी प्लेट रसोई में रखने का.

बेडरूम की तरफ कदम उठाया ही था कि किरण का चेहरा आँखों के सामने आ गया. गेस्ट रूम में गया तो देखा बिस्तर पर साफ़ सुथरा बेड कवर लगा था. अलमारी करीने से लगी थी. चादर धुली हुयी थी. स्लिपर बिस्तर के पास रखे थे. उसका अपना तकिया तक वहां था.

चौबीस बाय चौबीस के विशाल बेडरूम से बारह बाय चौदह के इस गेस्ट रूम में उसका तबादला उसे इस घर में उसकी औकात दिखा रहा था. एक बारगी गुस्से में भर उठा. मगर अगले ही पल शांत भी हो गया. गलती तो उसने की ही थी.

जानता है कल रात जिस तरह का 'मेक लव' उसने किया था वो गाँव कसबे की किसी सीधी सादी बीवी के लिए कोई बड़ी बात शायद न होती, मगर पढ़ी-लिखी अपने अधिकारों के प्रति सजग प्रबुद्ध और स्वतंत्र किरण के लिए बेहद अपमान जनक था. इसका खामियाजा आसिफ को भुगतना ही होगा लेकिन कब तक? ये उसे नहीं पता था.

मन मार कर चुपचाप कपडे बिना बदले ही बिस्तर पर लेट गया. थोड़ी देर में जब नींद आने लगी तो तंग कपडे और जूते परेशान करने लगे. उठा और सब उतार कर सिर्फ अंडरवियर पहने ही बेड कवर उठा कर उसके अन्दर घुस गया. फिलहाल यही सही. कल देखेगा इस मसले का हल कैसे निकलता है.

आसिफ जानता है ये स्थिति लम्बे समय तक नहीं चलने वाली. किरण की माँ के आने की बात आज सुबह कनिका ने उसे नाश्ते के वक़्त बता दी थी. जब किरण दफ्तर जा चुकी थी. उनके सामने किरण पति-पत्नी के रिश्तों की पर्दा-दारी रखेगी. आसिफ को बेडरूम में उसकी वही जगह फिर मिल जायेगी. आगे का मोर्चा आसिफ खुद संभाल लेगा. अपनी मर्दानगी और मीठी बातों पर उसे भरपूर भरोसा है. कम से कम जिस माहौल से आसिफ बचपन से वाकिफ है वहां के हिसाब से वह सही सोच रहा था.