इश्क फरामोश - 10 Pritpal Kaur द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क फरामोश - 10

10.  ये क्या हुया?

भापाजी का वो दिन बेकार नहीं गया था. हालाँकि वकील साहब को साथ लेने का कोई कानूनी नफ़ा-नुक्सान तो नहीं हुया था. लेकिन जिस तरह की सिचुएशन बेटे पर आन पडी थी भापा जी कोई भी असावधानी रख के बाद में पछताने की स्थिति में हरगिज़ नहीं थे.

अब जिस्म में जवानी जैसी ताकत नहीं रह गयी है. जिसके चलते भावनात्मक तौर पर शुरू से ही कुछ कच्चे से रहे भापाजी अब बहुत जल्दी घबरा जाते हैं. उनकी तबीयत एकदम गिर जाती है. गायत्री तो हमेशा ही शुगर और गठिया के चलते ढीली-ढीली सी रहती हैं, सो कोई खतरा मोल नहीं लेते.

पुलिस सुपरिटेंडेट के घर वे जब दल-बल सहित पहुंचे तो वे अपने बरामदे में मेज़ कुर्सी लगाये उन्हीं के इंतज़ार में बैठे थे. उनके पहुँचते ही अर्दली को चाय नाश्ते का इंतजाम करने अंदर भेज दिया था.

बड़े भाई के जिगरी दोस्त के साथ उनका अपना जिगरी दोस्त था, ये बात बड़े भाई ने आगरा से फोन कर के बता दी थी. सख्त ताकीद के साथ कि उनकी जितनी इमदाद हो सके करनी है.

बेटे पर नाहक ही उसकी पत्नी ने शिकायत लिखवा दी है. घर का मामला है. बहुत सुलझे हुए समझदार रसूख वार लोग हैं, खुद ही निपटा लेंगें. एक बार इस मामले को पुलिस के इस झटके से निकाल दो. उन्हें तो पता भी नहीं लगा कि कब नादान बच्ची जैसी बहु को उसके दोस्तों ने बरगला कर ये शिकायत लिखवा दी. वगैरह.

चाय नाश्ते के दौर के बीच भापाजी ने अपनी तरफ से भी सारी बात बतायी.

इस पर सुपरिटेंडेट साहब ने सलाह दी," सर, आप मेरी सलाह मानो बेटे बहु को अलग रहने दो. जहाँ बहु रहना चाहे. इसी में सभी का चैन और शांति है.”

भापाजी अफ़सोस में सर हिलाते हुए बोले, "हम मियाँ बीवी ने कभी नहीं रोका. कभी कुछ नहीं कहा इस बारे में. बेटा खुद ही नहीं अलग रहना चाहता. बच्चे भी हम से दूर रह कर खुश नहीं रहेंगें. उनके बारे में भी तो सोचना चाहिए बहु को.”

गायत्री अब तक चुप थीं. बोल पडी, “मैं भी समझाती हूँ इन दोनों बाप बेटों को. लड़कियों का दिल होता है उनका अपना अलग घर हो. एक बार चली जाएँ. कुछ दिन रह कर बहु का पेट भर जाएगा. जो आराम उसको मेरे घर में मिलता है, वहां नहीं मिलेगा. जब सारा कुछ सर पे आन पडेगा तो अकल आ जायेगी. पर ये दोनों बाप बेटे समझते ही नहीं. अब देखिये क्या मुसीबत उठ खड़ी हो गयी है.”

“नहीं, माताजी. मुसीबत तो नहीं है. हम लोग भी अब ऐसे मामलों में सख्ती से पेश नहीं आते. आप फ़िक्र न करें. पुलिस की तरफ से आपको कोई परेशान नहीं करेगा. हाँ, बहु को उसकी बात मान कर संभाल लें.”

भापाजी बोले, “हां. वो तो करना ही पड़ेगा. ये लोग जाएँ अलग रहें. बेटे को अब फ़ोर्स करना पडेगा कि वो जा के बहु को अलग घर में रखे. इतने बड़े तीन मंजिला घर में हम दोनों भूत भूतनी बन के घूमेंगें.”

गायत्री से रहा नहीं गया, “ये जो गुस्सा है न आप का. इसको कण्ट्रोल करो. कितने दिन रहेगी? आ जायेगी. उसको अलग रहने का शौक पूरा करने दो एक बार. यहाँ जिस शान से रहती है. सब कुछ हम दोनों संभाले हुए हैं. वहां समझ आ जायेगा. इतना बड़ा घर भी नहीं होगा. डॉक्टर की कमाई पर ऐश करगी? दिन? और रौनक तो सारा दिन क्लिनिक में लगा रहता है. अकेली क्या-क्या संभालेगी. आप देखना कुछ ही दिन में भाग आयेगी वापिस. "

सुपरिटेंडेट साहब अब चुप थे. वकील साहब और दोस्त भी चुपचाप सुन रहे थे. घर का मामला हल होता नज़र आ रहा था.

“हाँ अब यही करना पडेगा. ठीक कहती है तू. आ जायेगे भाग के वापिस. पर मेरा तो दिल नहीं लगेगा बच्चों के बिना. मैं चला जाया करूंगा उसके घर.” और अपनी आँखें पोंछने लगे थे. उनका गला रुंध गया था.

माहौल ग़मगीन हो गया था. सुपरिटेंडेट साहब सोच रहे थे ये घरो के मामले भी कई बार कैसे संगीन हो जाते हैं. दिल दुखते हैं लोगों के; कितनों के घर उजड़ जाते हैं. मामले पुलिस और अदालत तक पहुँच जाते हैं. बच्चे अलग पिसते हैं. उनके बचपन खो जाते हैं. सिर्फ इसलिए कि कुछ लोग अपनी भावानाओं और इच्छाओं पर काबू नहीं रख पाते. समाज से धैर्य और दूसरों के लिए छोटे छोटे बलिदान देने की भावना ख़त्म होती जा रही है.

मगर इसमें दोष भी तो नहीं किसी का. कुछ लोग बेवजह दबाये जाते हैं और कुछ उन दबाये हुयों को देख कर ही बेवजह डर जाते हैं. इस डर की वजह से रस्सी को भी सांप समझ कर उस पर हमला कर बैठते हैं.

भापाजी की बहु भी लग रहा था कि बेवजह ही परेशान थी. खैर! एक बार ये मामला इसी तरह ठीक हो जाए तो ये परिवार खुद ही संभाल लेगा.

नॉएडा की उस चौकी में उन्होंने निर्देश दे दिया था कि मामले में आगे कार्यवाही नहीं करनी है और और दोनों को आमने-सामने बिठा कर बता करवानी है.

वहीं से रिपोर्ट आ गयी थी कि पत्नी बच्चों को लेकर चौकी पर आयी थी. बच्चे बाप से लिपट गये थे और पत्नी इन तीनों को वहीं छोड़ कर चुपचाप घर चली गयी थी. बच्चे बाप के साथ घूमने निकल गए हैं. चौकी इंचार्ज ने हँसते हुए बच्चों की बातें भी बतायी थीं. वे भी ठहाका लगा कर हंस पड़े थे.

और बोले, “लडकी बवकूफ लगती है. किसी के बहकावे में है. बच्चों को क्या सिखा रही है?”

“जी सर. आदमी तो काफी समझदार और मच्यौर लगता है" सिंह ने कहा था.

सुपरिटेंडेट जब बरामदे में आये तो भापा जी उन्हीं बातों में खोये अभी तक बार-बार अपनी गीली होती जा रही आँखें और नाक सफ़ेद झक रुमाल से पोंछ रहे थे.

”बच्चे चले जायेंगें तो किसको अच्छा लगेगा? कितने भी पास रहें वो सुबह सुबह उठ कर जो घर में उनकी रौनक होती है, उनकी बातें, शरारतें, वो तो सुनायी नहीं पड़ेगीं न."

और फिर आंसू पोंछने लगे थे. गला उनका लगातार रुंधा हुआ ही था.

इस वक़्त उनको देख कर कोई कह नहीं सकता था कि यही ऊंचा लम्बा मज़बूत कद काठी का प्रौढ़ जब अपने ऑफिस में बैठ कर करोड़ों का धंधा करता है तो कैसा कद्दावर ठोस कारोबारी बन जाता है. उस वक़्त उसके सामने कोई नहीं टिक पाता. अपनी मीठी-मीठी बातों और चतुर कारोबारी दिमाग से किस तरह ये आदमी जिस भी चीज़ को हाथ लगाता है, सोने में बदल डालता है. इस बात के सभी गवाह हैं.

गायत्री उनके इस भावुक संवाद पर मुस्कुरा भी रही थी और थोड़ी सी शर्मिंदा भी हो रही थी. वे खुद इस तरह भावुक नहीं होतीं. जब भापाजी भावुक हो जाते हैं तो गायत्री को शर्म आती है. लेकिन भापाजी इस बात की कत्तई परवाह नहीं करते. अपने दफ्तर के अलावा वे कहीं भी अपना ये रूप दिखा सकते हैं. ख़ास तौर पर तब जब वे दोस्तों के बीच होते हैं. और दो पेग व्हिस्की के बाद तो उनका रूमानी भावुक रूप देखने लायक होता है.

सुपरिटेंडेट चौकी इंचार्ज की कॉल लेने अंदर गए थे. बाहर आते ही देखा भापा जी के भावुक उदगार तो मुस्कुरा पड़े. “भापा जी. परेशान मत होइए. आपकी बहु रानी शांति से घर चली गई है. बच्चे बाप के साथ घूमने गए हैं. मामला शांत हो गया है. अब आप घर जा के जैसा मैंने कहा है अपनी तरफ से बहु को अलग रहने का मौका दीजिये. देखना सब ठीक हो जाएगा. बिलकुल वैसा ही होगा जैसा मैं कह रहा हूँ. इन मामलों में ऐसा ही होता है. बचकानी हरकत की है आपकी बहु ने. मगर जैसी भी है, है तो आपके परिवार की मेम्बर ही."

भापाजी को भी ये सब सुन कर तसल्ली हो गयी थी. फ़ौरन उठ खड़े हुए और पत्नी की तरफ देख कर बोले, ”चल भाग्यवान. घर चलें. अब वहां का मोर्चा संभालें. ”

फिर सुपरिटेंडेट साहब की तरफ मुड़ कर गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया.

“आप का मैं जितना भी आभार करूँ कम है. आपने आज इस बूढ़े की आत्मा को शांति पहुंचाई है. मेरी इज्ज़त बचाई हैं. मेरी जान भी बचाई है. मैं आपका एहसान तो कभी चुका नहीं सकता. मगर आपके लिए हर वक्त हाज़िर रहूँगा. जब भी आप याद करेंगें खड़े पैर हाज़िर हो जाऊँगा. बस आप हुकुम कर देना जी. ठीक है ना जी?’

वे हंस पड़े. “जी ज़रूर. मेरी दुआ है आपका ये घर का मामला अच्छे से संभल जाए. "

वे अन्दर चले गए और ये चारों लोग बाहर आ कर कार में बैठ कर घर की तरफ रवाना हो गए. वापसी में कोई कुछ नहीं बोला. पहले दोस्त को छोड़ा उनके घर और फिर ये लोग घर आये. वकील साहब बाहर उतरे और वहीं से अपनी कार लेकर चले गए.

भापाजी और गायत्री अन्दर आये तो घर में शांति थी. अनीता से पूछा तो उसने बताया बहु ऊपर अपने फ्लोर पर है. नाश्ता वहीं मंगवा कर खा रही है. रौनक और बच्चे अभी आये नहीं हैं.

घर में सामान्य ढंग से सब काम हो रहे थे. लगता ही नहीं था कि आज सुबह कोई तूफ़ान घर की नींव हिला कर गुज़र गया है. एक ऐसा तूफ़ान जो नींव हिलाने के साथ-साथ अंदर ही अंदर रिश्तों में एक महीन सी दरार भी डाल गया है.

लिविंग रूम में सोफे पर बैठ कर लस्सी की फरमाईश करते हुए भापाजी सोच रहे थे कि अब बहु के साथ बहु की तरह ही बर्ताव करना होगा. अब तक वे उसे अपनी दोनों बेटियों की ही तरह लाड भी करते थे और गुस्सा होने पर उसी तरह डांट भी लेते थे.

मगर अब एक दूरी बना कर रखनी होगी. रौनक भी क्या उसके साथ अब सामान्य सम्बन्ध रखा पायेगा?

खैर! ये बात तो रौनक के देखने की है. गायत्री तो बहुत पहले से ही इस बात का अंदेशा देखते हुए बहू से कुछ दूरी बना कर रखती है. ज्यादा लाड भी नहीं करती और ज्यादा सख्त भी नहीं होती. एक मेहमान की तरह का व्यवहार रहता है गायत्री का सोनिया के साथ.

अब भापाजी को भी इस मामले में गायत्री की राह चलना होगा. रौनक को सख्ती से अलग घर में जा कर रहने के लिए कहना होगा. बच्चे तो अभी छोटे हैं जैसा भी होगा वे एडजस्ट कर लेंगें. लेकिन घर पास में ही लेना होगा ताकि जब दिल करे ड्राईवर भेज कर बच्चों को बुलवा कर वे मिल सकें.

शाम के तीन बजने वाले थे जब भापा जी और गायत्री डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे. सोनिया को बुलाने के लिए बच्चों की आया उषा को ऊपर भेजा गया था, जो बच्चों के कपड़ों पर नीचे यूटिलिटी रूम में आयरन कर रही थी. मगर उसने आ कर बताया कि मैडम ने कहा है उन्हें अभी नींद आ रही है वे बाद में खा लेंगी.

सोनिया के ऐसे नाराज़गी भरे तेवर गायत्री ने अक्सर देखे हैं और उनकी पूरी कोशिश रहती है कि किसी तरह घर का माहौल ठीक-ठाक बना रहे. इसी के मारे वे अपने दिल की उदासी के बारे में किसी से बात नहीं करतीं. लेकिन जिस तरह बहु उनसे बेलाग रहती है. उन्हें माँ या घर के बुज़ुर्ग होने का कोई मान नहीं देती इससे उनका मन खासा दुखी तो रहता ही है. आज भी हुया.

आज कुछ ज़्यादा ही दुखी था. इतना कुछ बहु रानी के चलते एक ही सुबह में हो गया था और बहु रानी ही नाराज़गी लिए कमरे में बैठी थी. गायत्री बहु से किसी तरह की माफी या अफसोस जैसी कोई उम्मीद तो नहीं रखती थीं मगर दिल आज बहुत उदास था. अगर बहु आ जाती नीचे, साथ में बैठ कर खाना खाने, तो शायद दिल कुछ हल्का हो जाता.

मगर सोनिया नहीं आयी थी. वह ऊपर अपने कमरे में ही रही. नाश्ता देर से किया था. भूख भी नहीं लगी थी. इसके अलावा वह खासी खिन्न भी थी. ज़ाहिर है उसे उम्मीद थी की जिस तरह की संगीन शिकायत उसने रौनक के खिलाफ पुलिस में की थी उसके चलते पुलिस को उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए थी. उसी के बल पर वह दबाव बना कर रौनक को अपनी बात मनवाने को मजबूर कर सकती थी. लेकिन हुया उलटा ही था.

बच्चों ने माँ की सिखाई हुयी बातें बोलीं तो मगर कुछ इस तरह कि वे भी रौनक के पक्ष में ही रहीं . सोनिया को एहसास हुया कि बच्चे तो अपने पापा के बेहद दीवाने हैं. उनसे उसे ये उम्मीद रखनी ही नहीं चाहिए थी कि वे इस मामले में उसकी कोई मदद कर पायेंगें.

इसके अलावा धारा 498A वाला मामला तो यहाँ नहीं चलने वाला. भापा जी का तो रुतबा ही बहुत ऊंचा है. खुद रौनक ही करोड़ों की संपत्ति का मालिक है. यही सब सोच-सोच कर सोनिया को यकीन हो चला था कि उसके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा है रौनक से अपनी बात मनवाने का. मगर हार नहीं मानी थी उसने. वह लेटी थी और सोच रही थी कि किसी और तरीके से रौनक को इस बात पर राजी कर सके कि वे लोग अलग रह सकें.

आज के सारे हालात पर सोचने के बाद उसे लग रहा था कि अब रौनक को अपनी बात मनवाना उसके लिए और भी मुश्किल हो जाएगा. वह उससे बेहद चिढ़ गया होगा. सुबह से बच्चों को लेकर गया है और अभी तक ये लोग वापिस नहीं आये हैं.

वैसे इस बात से वह सुकून से थी. उसे शांति से सोचने और अगली रण नीति तय करने का समय और स्थान दोनों ही मिल गए थे. इसीलिए उसने खाना खाने के लिए नीचे जाने से भी मना कर दिया. एक तो इस तरह वह सास-ससुर पर इस बात का दबाव डाल सकती थी कि वह नाराज़ और परेशान है. दूसरे उसे उनका सामना करने में कुछ संकोच भी हो रहा था. आखिर तो शिकायत जो उसने लिखवाई थी उसमें सच का अंश लगभग नहीं के बराबर ही था.

तभी उसे नीचे से बच्चों की आवाजें सुनायी दीं. यानी बच्चे आ चुके थे. कुछ देर उसने इंतज़ार किया लेकिन बच्चे ऊपर नहीं आये.

वैसे भी बच्चे दादा जी के बेहद लाडले तो हैं ही, दादा-दादी दोनों के ज़बरदस्त फैन भी हैं. जब तक वे खुद थक कर उन्हें माँ के पास न भेजें वे उन्हीं के पास बने रहना पसंद करते हैं. आज तो यूँ भी उससे पूरा घर नाराज़ होगा तो वे ज्यादा से ज्यादा देर बच्चों को उसके पास आने से रोके रखेंगे. ऐसा उसे लग रहा था. लेकिन जल्दी ही बच्चे ऊपर आ गए और आते ही उससे लिपट गए.

"मम्मी, आज हम पता है कहाँ गए थे?" ये अदिति थी.

अम्बर अक्सर कम ही बोलता है. ख़ास कर जब अदिति सब बता रही हो और दोनों के पास बताने को अलग-अलग कोई बात न हो तो वो अदिति को ही अपनी टीम का प्रवक्ता बने रहने देता है.

"मम्मी हम रेल म्यूजियम गए. वहां पर रेल में बैठे. बहुत मज़ा आया. मम्मी ये तो रोने लगा. डर के मारे. डरपोक. " अदिति भाई को चिढ़ा भी रही थी. अपने मज़े भी सुना रही थी और साथ ही अपनी बहादुरी के बखान भी कर रही थी. मगर सोनिया का मन कही और उलझा था. वो बच्चों की किसी भी बात में नहीं लग रहा था.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब सब खामोश क्यूँ थे. उसे लग रहा था कि भापाजी से तो कुछ डांट पड़ेगी या फिर उसके पापा को फ़ोन कर के इस बारे में बताया जायेगा. लेकिन अभी तक न तो नीचे से भापाजी का बातचीत के लिए बुलावा आया था और ना ही देहरादून से उसके मम्मी-पापा में से किसी का भी कोई फ़ोन.

इसका साफ़ मतलब था अभी तक बात उन तक नहीं पहुँची थी. इसका मतलब उसे समझ नहीं आ रहा था. इस चुप्पी से वह बेहद परेशान हो गयी थी.

नीचे से खाने के बुलावे पर भी नहीं जाने की एक वजह यह भी थी. वह हर तरह की बातचीत से बचना चाहती थी. लेकिन आगे के बारे में सोच भी रही थी. इतना वह तय कर चुकी थी कि यहाँ इस घर में संयुक्त परिवार में उसे उस तरह की आजादी नहीं मिल रही थी जैसी वो चाहती थी सो यहाँ से दूसरे घर में जाना ज़रूरी था.

कैसे? ये आज सुबह के बाद वह तय नहीं कर पा रही थी. रौनक तो अब और भी उखड जाएगा. वो तो अब और भी अपनी उस बात पर अड़ जाएगा जो वह पहले दिन से ही कह रहा जब से सोनिया ने अलग फ्लैट में जा कर रहने की बात शुरू की है. अब ऐसे में सोनिया को क्या करना चाहिए ये अब उसे अपने दोस्तों से ही पूछना होगा.

कई सहेलियां हैं उसकी जो इसी तरह के घरेलू मामलों में उसे अच्छी सलाह देती हैं. उन्हीं से पूछेगी. वे अनुभवी भी हैं. उससे उम्र में बड़ी भी. संयुक्त परिवारों में बियाह कर आयी थीं. और शादी के दस एक साल बाद अलग रहने लगी हैं. पति और बच्चों के साथ. उन्हीं से फिर बात करेगी. उनसे सलाह कर के ही ये कदम उठाया था. शांति दवे ने तो इसी तरह पुलिस, कानून और मुकद्दमे का दबाव बना कर पति को संयुक्त परिवार से अलग कर के नया घर लिया था. मगर सोनिया का ये दांव खाली चला गया था.

बच्चे आपस में ही उलझ गए थे. उषा उन्हें सँभालने में लगी थी. तभी सीढ़ियों से किसी के ऊपर आने की आहट से सोनिया के विचारों को लगाम लगी. ये रौनक था.

पति के कदमों की आवाज़ सोनिया ने एक ही पल में पहचान ली थी. पति से बहुत प्रेम करती है सोनिया. बे-इन्तहा. लेकिन खुद से भी बहुत प्रेम है उसे. वो चाहती है एक ऐसी दुनिया जिसमें उसके बिलकुल निकटतम लोग हों. पति और बच्चे. एक छोटी सी दुनिया. उसे लगता है यही उसे सच्चा सुख दे पायेगा.

घर में हर वक़्त भापाजी और माँ की उपस्थिति सोनिया को उलझन की तरह लगती है. और फिर ये घर तो सासु माँ का है. इस के रख-रखाव और चलाने में उसका कोई ख़ास दखल नहीं है. यहाँ तक कि बच्चों के मामलें में भी उसका एक-छत्र राज नहीं चलता. अक्सर उसे बड़ों के आदेश मानने पड़ते हैं न चाहते हुए भी.

सोनिया का मानना है कि ये बच्चे उसके हैं, जैसा वो चाहे उन्हें पाले, ये उसका हक है. किसी को भी इनके मामले में रोक-टोक नहीं करनी चाहये. लेकिन भापाजी और माँ ये बात नहीं समझते. ना ही रौनक.

रौनक तो माँ-बाप को छोड़ कर नॉएडा में पास ही अलग घर ले कर रहने को भी तैयार नहीं. सोनिया ने समझाया भी था कि आते रहेंगे, मिलते रहेंगे लकिन रहना अलग है. मगर रौनक है कि मानता ही नहीं. उस की इसी जिद के चलते सोनिया ने इतना बड़ा ये दांव खेला था लेकिन चला नहीं.

ये दांव कच्चा पड़ गया. इस बार पक्का दांव खेलना होगा. बेडरूम से बाहर निकल आयी. पति का स्वागत भी करना है, सुबह हुयी बदमजगी को दूर करने का कोई जतन भी करना ही है, साथ ही अपनी नाराज़गी भी बनाये रखनी है. इस तलवार की धार का रास्ता सोनिया का देखा-भाला हुआ है. वह किसी न किसी तरह साध ही लेती है.

रौनक ऊपर आया तो सोनिया बेडरूम से निकल कर लिविंग एरिया में आ गयी. दोनों कुछ देर एक दूसरे को देखते रहे. सोनिया को याद आया ये वही लड़का है जिसे देख कर पहली ही बार में उसने पसंद कर लिया था. इन का विवाह शुरू तो अरेंज्ड मैरिज की तर्ज़ पर हुआ था लेकिन पहली ही नज़र में दोनों एक दूसरे की तरफ आकर्षित हो गए थे.

ताज मानसिंह में मंगनी के बाद दोनों ऊपर के रेस्टोरेंट में जा रहे थे तो रौनक ने किसी तरह ये इंतजाम कर लिया था कि लिफ्ट में वे दोनों ही हों. बेताब हुए दोनों युवा धड़कते दिल एक दुसरे को किस करना चाहते थे. तभी दोनों ने जाना था कि वे दोनों ही इस मामले में अनाडी हैं. रौनक के कफलिंक्स सोनिया के बालों में उलझ गए थे. सोनिया की साड़ी रौनक के पैरों के नीचे दब गयी थी. होंठ एक दूसरे के होठों को छू भर पाए थे. रौनक तो शर्मिंदा हुआ था जबकि सोनिया हंसी के मारे दोहरी हुयी जा रही थी.

तभी उस पल में रौनक को यकीन हो गया था कि जो शादी वे करने जा रहे हैं वह पूरी तरह से कामयाब रहेगी. वे पल उसके मन में सोनिया के लिए एक अलग ही तरह के भाव पैदा कर गया था, जो आज भी जिंदा हैं. जब कभी दोनों का झगड़ा होता है. कुछ पल की नाराज़गी के बाद रौनक फ़ौरन उसी पल में पहुँच जाता है, वही मंगनी वाली गुलाबी साड़ी पहने छरहरी सोनिया उसके सामने आ खड़ी होती है. और वह सब कुछ भूल जाता है.

इस वक़्त ठीक इसी पल भी वही हुया. और अब तक जो भी रोष बचा था रौनक के मन में आज सुबह की घटनाओं को लेकर, वह एक दम से गायब हो गया.

भापाजी ने कहा था सोनिया को लेकर नीचे आने के लिए ताकि भविष्य के बारे में कुछ ज़रूरी बात कर सकें. सो हल्का सा मुस्कुराते हुए हाथ बढ़ा कर बोला, "नीचे चलें? वहीं बैठेंगे. "

एक पल को सोनिया के मन में थोड़ी दुविधा पैदा हुयी. लेकिन रौनक की इस नज़र को वह भी पहचानती है. मन में रौनक के लिए प्रेम उमड़ आया. रौनक साथ हो तो ताकत बढ़ जाती है ये बात सोनिया जानती है. उसके खिलाफ इतनी बड़ी शिकायत करने के बावजूद. इसी साथ को तो पूरा पाने के लिए सारा खेल रचा था. एक बार फिर मन में अफ़सोस उतर आया. अब तो डांट पड़ेगी ही भापाजी से. चलो कोई बात नहीं, रौनक है साथ में. सोनिया ने रौनक का हाथ पकड़ा और दोनों सीढ़ियाँ उतरने लगे.

बच्चों के कमरे से उषा की आवाज़ आ रही थी. "अब तुम दोनों का स्लीप टाइम है. इधर आओ. मेरे को अपने अपने शूज उतारने दो. और चुपचाप सो जाओ."