इश्क फरामोश - 13 Pritpal Kaur द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क फरामोश - 13

13. यूँ मिलना किसी का अचानक

इतवार का दिन पूरे घर के लिए बहद व्यस्तता से भरा रहा. नीरू को अचानक बुखार हो गया. सुबह उठते ही किरण ने डॉक्टर से बात कर के अपॉइंटमेंट लिया. तैयार हो कर बेडरूम से निकली तो देखा सुजाता भी तैयार थी. कनिका को सुजाता ने घर पर ही रहने को कह दिया था. दोनों ने जल्दी से नाश्ता किया और बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास गए. नीरू चिडचिडी हो रही थी. नानी से कल जो नयी-नयी दोस्ती हुयी था, आज उसका नामो निशाँ तक नहीं बचा था.

सुजाता को थोड़ी मायूसी हुयी. दिल उदास भी हो गया. रहा नहीं गया.

“देखा, मेरे देखते ही नज़र लग गयी हमारी नीरू को. कहते हैं अपनों की नजर भी फ़ौरन लग जाती है बच्चों को. मुझे इतना इतना प्यार आया इस पर. और ये भी तो मुझसे कितना हंस-हंस कर खेल रही थी.”

किरण ने मुड़ कर माँ की तरफ देखा. लग रहा था कि वे मज़ाक कर रही हैं. लेकिन चेहरा देखा तो समझ गयी मज़ाक तो है, मगर इस मजाक में कुछ दर्द भी छिपा है. थोडा डर भी कि कहीं सचमुच ही नज़र न लग गयी हो बच्ची को.

“क्या मम्मी आप भी? कैसी बातें करती हैं?”

नीरू गोद में लेटी हुयी आधी कच्ची नींद में थी. बुखार के लिए पैरसिटामोल सिरप घर पर ही पिला दिया था नीरू को. कुछ बुखार उतरा था कुछ दवा का असर था. वो शांत थी. रो नहीं रही थी.

डॉक्टर ने अच्छे से नीरू की जांच की और कहा, “डोंट यू वरी. मामूली मौसमी बुखार है. वायरल. बच्चों में हो रहा है आजकल. मैं एंटी-बायोटिक लिख रहा हूँ. पांच दिन दे दीजिये. शी विल बी फाइन.”

ज्यादा कुछ बात नहीं थी इसके बाद करने को, सो वे लोग उठ आये. नीरू लगातार सो ही रही थी. बीच-बीच में आँख खोल कर किरण को देखती. कभी-कभी सुजाता को भी देखती. मगर कुछ बोल नहीं रही थी. ज़ाहिर है परेशान थी. बच्चे की परेशानी से माँ और नानी दोनों ही उदास हो गयी थी.

 

दवा ले कर घर आये तो आसिफ घर पर नहीं था. सुजाता को ये बात कुछ अच्छी नहीं लगी. कल जब से आयी थीं, आसिफ हर कोशिश उनसे बचता फिर रहा था. हालाँकि पति-पत्नी के बीच चल रहे लम्बे मन-मुटाव का उन्हें पता लग गया था, ये बात तो वो जान ही गया होगा, मगर फिर भी वे रिश्ते में उसकी माँ थी.

आखिर तो किरण और आसिफ पति-पत्नी थे तो इतना वे उम्मीद कर रही थी कि वो उनका सम्मान करेगा. पास बैठेगा. बातचीत करेगा. मगर वो तो सिरे से ही उनकी उपस्थिति को नकार रहा था.

सुजाता को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे सुजाता का उसके घर में रहना नापसंद है, इसलिए वह इस तरह से अपना रोष दिखा रहा है, ताकि वे समझ कर यहाँ से चली जाएँ. अगर ऐसी बात है तो वह खासा अजीब इंसान है. ये घर किरण का है और वे किरण की माँ हैं. उसकी अगर ये सोच है तो उन्हें हरगिज़ यहीं रहना होगा और उसे समझना होगा कि वह अपनी सोच को दुरुस्त करे.

सुजाता को ये भी समझ आ गया था कि आसिफ को कई बातें समझाना होंगीं. वे जान गयी थी कि आसिफ जिस तरह के माहौल में पला-बढ़ा है वही उस पर हावी बना हुआ है. इसी की वजह से वह किरण को अपने बराबर का दर्जा नहीं दे पाता. उसे पत्नी होने की वजह से खुद से कमतर आंकता है. दोनों के बीच दूरियां आने की सब से बड़ी वजह यही है.

सुजाता कल रात से ही आसिफ के व्यवहार के बारे में सोच रही है. जिस तरह किरण ने हर एक बात खुल कर सुजाता से कह दी है, उसके बाद से वह परेशान तो हैं, लेकिन इस परेशानी को ज़ाहिर नहीं होने दे रहीं.

तीन महीने यहाँ रहना है इस मसले को हल कर के ही जायेगी. इतना तो तय कर ही लिया है. बड़े हो जाने पर, शादी शुदा हो जाने पर, खुद के बच्चे हो जाने पर भी बच्चों को अभिभावकों की ज़रुरत रहती ही है. ये बात अब जा कर सुजाता को समझ आयी है.

अब तक उन्हें लगता था कि किरण ने अपनी ज़िन्दगी का हर फैसला खुद लिया है, पढ़ाई, नौकरी और शादी. तो आगे भी अपनी ज़िंदगी को खुद ही मज़े से निभा ले जायेगी. उन्हें इस बारे में परेशान नहीं होना पडेगा. मगर उनकी ये धारणा धराशयी हो गयी है.

किरण इस वक़्त बेहद नाज़ुक दौर से गुज़र रही है. बच्ची बहुत छोटी है. उसकी पैदाईश से ही आसिफ ने लगातार उसका दिल दुखाया है. वो भी एक के बाद एक नाजायज़ और बेहूदा बात को ले कर. और इसी प्रक्रिया में बात-बात पर उसे अपमानित भी किया है. उस रात का किस्सा भी पूरा का पूरा किरण ने बयान कर दिया था. सुजाता ने धडकते दिल और जलते हुए कानों से सब चुपचाप सुना था.

बलात्कार का शब्द किरण ने इस्तेमाल नहीं किया था माँ के सामने, मगर माँ के मन में और सुजाता के शब्दों में वही शब्द दबा छिपा हुया लगातार फुंफकार रहा था. सुजाता बेटी के दर्द से छटपटा रही थी. मगर समझ नहीं पा रही थी इस बात को किस तरह से हैंडल किया जाए.

ज़ाहिर है सीधे इन मसलों पर आसिफ से बात करना मुश्किल था. एक तो वह सामने आ ही नहीं रहा था. दूसरे वो ये भी कह सकता था कि पति-पत्नी के निजी मामलों में उन्हें पड़ने का हक़ नहीं है. बात संभलने की बजाय बिगड़ सकती थी.

सुजाता सोच रही थी कि इंग्लैंड में अब तक तलाक हो गया होता. जिस तरह की गलतियाँ आसिफ ने की हैं कोई भी महिला वहां इन्हें बर्दाश्त नहीं करती. उन्हें तो खुद किरण पर हैरानी हो रही थी. जिस किरण को सुजाता ने पाला-पोसा था वो इतनी कमज़ोर नहीं थी कि किसी की भी बेजा हरकतों को चुप रह कर सह जाए.

लेकिन लग रहा था कि शायद किरण अपने आस-पास के माहौल से प्रभावित है, जहां स्त्रियाँ आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होते हुयी भी समाज में अपनी इज्ज़त बनाए रखने के लिए घर में हो रहे बुरे बर्ताव को किसी तरह झेल जाती हैं. इस उम्मीद में कि एक दिन हालात बेहतर हो जायेंगे.

सुजाता को भी लग रहा था, थोड़ी सी उम्मीद थी. आसिफ के बच कर निकलने से ये उम्मीद हुयी थी कि शायद वह खुद भी अपनी हरकतों से शर्मिंदा है. इसीलिये सुजाता का सामना करने से कतरा रहा है. यही सब बातें थीं जो उन्हें उम्मीद बंधा रही थी और वे चाहती थी कि कोई रास्ता बने. वार्तालाप हो और बेटी का घर जिस तरह इस मोड़ पर आ कर दोराहे पर ठिठक गया है, उसमें खुशियों की रोशनी गुलज़ार हो.

उन्हें बार-बार ये सोच कर अफ़सोस हो रहा था कि सिर्फ तीन साल के वैवाहिक जीवन में ही हालात इतने खराब हो गए थे. ये बात भी याद आ रही थी कि शुरू के यही तीन-चार साल ही किसी भी शादी का भविष्य तय करते हैं.

यही सब सोचते-सोचते सुजाता को अपनी दाढ़ का दर्द भी याद आ गया. पिछले लगभग एक महीने से वे अपनी एक दाढ़ को लेकर खासी परेशान थीं. डेंटिस्ट को दिखाया था तो उसने रूट कैनाल ट्रीटमेंट का सुझाव दिया था. तभी तय कर लिया था कि भारत जा रही हैं वहीं करवा लेंगी. इंग्लैंड में डॉक्टरी इलाज खासा महंगा है अगर आप प्राइवेट तौर पर करवाएं. डेंटिस्ट तो बेहद महंगे. अब चूँकि भारत आ ही रही थी तो इरादा कर लिया और डॉक्टर को बता भी दिया. इत्तेफाक से वह भारतीय ही था. वह भी हंस पडा.

“बिलकुल, मैडम, मैं भी तो अपनी पढ़ाई वहीं से कर के आया हूँ. अब आप जा ही रही हैं तो वहीं करवा के आइयेगा. मैं आप की डिटेल्स और एक्स-रेज़ आप को दे देता हूँ. ये संब आप वहां दिखा दीजिये. दिल्ली में कहाँ जायेंगी? मेरे दोस्त भी हैं. मैं उनके नंबर दे देता हूँ. आप उनमें से किसी से भी मेरा रेफरेंस दे कर अपॉइंटमेंट ले लें. यू विल बी ट्रीटेड वेल.”

और डॉक्टर खुराना ने सारे ज़रूरी कागजों के साथ ही एक स्लिप पर दिल्ली के अपने डेंटिस्ट दोस्तों के नाम और नंबर भी लिख दिए थे.

आज शाम सुजाता ने वे अपने बैग से निकाले और कनिका से घर का लैंडलाइन ला कर देने को कहा. कनिका पास ही नीरू को गोद में ले कर के कर बैठी थी. नीरू का बुखार तो उतर गया था मगर वह दवाइयों की महक और वायरल से त्रस्त बेहद चिडचिडी हो गयी थी. किरण ने कनिका को बैठे रहने को ही इशारा किया. ताकि नीरू डिस्टर्ब न हो और उठ कर माँ को फोन पकड़ाया.

साथ ही पूछ भी लिया, “मम्मी, किस को फ़ोन करना है? मैं लगा दूं.”

“ये नंबर मेरे पास हैं. मैं लगा लूंगी. दिल्ली के नंबर हैं. डेंटिस्ट के. क्या कोड लगेगा नंबर से पहले?”

“डेंटिस्ट के? क्यों?”

“मेरे लिए. मेरा रूट कैनाल होना है. एक दाढ़ ने बहुत तंग कर रखा है. यहाँ आ रही थे तो सोचा यहीं करवा लूंगी.”

“ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा. मगर ये नंबर किस डेंटिस्ट के हैं? समवन यु नो?”

“नहीं बेटा, वहीं के डेंटस्ट ने दिए हैं. कहता था उसके दोस्त हैं. दिल्ली में. एक तो डिफेन्स कॉलोनी में है.”

“मम्मी, दूर पड़ जायेगा. यहाँ नॉएडा में बहुत अच्छे डेंटिस्ट हैं. मैं अभी पता करती हूँ. मेरी एक कुलीग की बेटी के ब्रेसेस लगे हैं. दो साल से ट्रीटमेंट चल रहा है और वो बहुत तारीफ कर रही थी इस डेंटिस्ट की. यहीं पास में ही है. लेट मी फाइंड आउट. उतना दूर क्यों जाना?”

“ठीक है. पता कर लो और अपॉइंटमेंट भी ले लो. अपने हिसाब से ले लो. मैं अकेली भी जा सकती हूँ वैसे तो. तुम चलोगी तो अच्छा लगेगा.”

किरण के मन में माँ की इस बात पर ढेर सारा प्यार उमड़ आया. उसने उठ कर माँ के पास आ कर उन्हें अपने आलिंगन में ले लिया.

“मेरी प्यारी मम्मी. मैं जाऊंगीं न आपके साथ. मैं मेरी प्यारी प्यारी माँ को अकेले थोड़े ही जाने दूंगी डेंटिस्ट के पास. डर जायेगी न मेरी माँ.”

लिविंग रूम दोनों की हंसी से गुलज़ार हो गया था. सुजाता का मन जो कुछ पल पहले किरण और आसिफ के बारे में सोच सोच कर उदास था, खिल उठा.

दोनों एक दूसरे को आगोश में लिए काफी देर बैठी रहीं. चुपचाप. नीरू ने आँखें खोल कर देखा तो उसका भी दिल माँ के पास आने को हुआ. वह कनिका की गोद में मचली तो कनिका ने फ़ौरन उठ कर उसे माँ-बेटी की इस सम्मिलित गोद में डाल दिया और रसोई का रुख किया.

जाते जाते सुजाता की तरफ देख कर बोली, " मम्मी जी आज आपके लिए बैंगन का भुर्जी बनाएगा. सरसों का तेल में. आप को भोत अच्छा लगेगा. आपका बेटी को भोत अच्छा लगता है.”

“हाँ हाँ कनिका. ज़रूर बनाओ. मुझे सारी बंगाली चीज़ें खिलाओ, जितने दिन मैं यहाँ हूँ.”

कनिका थोडा सा शर्मा कर रसोई में गयी. सुजाता ने सुना वह साजिद से कह रही थी, “मम्मी जी कितनी प्यारी है. बिलकुल मैडम जैसी. तू हट आज बैंगन मैं बनायेगी.”

साजिद ने थोडा नाराज़गी दिखाई,”क्या तू कनिका. तू अपना काम देख नी. बेबी को देख. मेरा काम मुझे करने दे.”

“नहीं. बेबी नानी के पास है. आज मैं बनायेगी. तू सीख ले. कल को मेरे जैसा बना के खिलाना सब को. मुझे भी.”

साजिद की आवाज़ फिर नहीं आयी. सुजाता समझ गयी कनिका सब जगह अपना रास्ता बना लेती है. उसकी मीठी वाणी और दबंग व्यक्तित्व सुजाता को बहुत पसंद आये थे.

किरण ने डेंटिस्ट का पता किया. डॉक्टर छाबडा. .नाम सुना सुना सा लगा. फिर याद आया. यहीं तो है सेक्टर पचास की मार्किट से पहले इसका बड़ा सा आधुनिक शीशों वाली बिल्डिंग वाला डेंटल क्लिनिक. बाहर से देखने से कोई छोटा-मोटा हस्पताल लगता है. मगर नाम है 'छाबड़ा क्लिनिक'.

कुलीग स्वाति ने बताया," उसके पास तीन चार डॉक्टरों की टीम भी है. मगर वो खुद बेहतरीन डेंटिस्ट है. तुम उसी का अपॉइंटमेंट लेना. थोडा महंगा है मगर ही इज द बेस्ट. और उसका ट्रीटमेंट शुरू हो गया तो वही देखेगा. फिर किसी दूसरे डेंटिस्ट को बीच में दखल नहीं करने देगा."

सो किरण ने व्हाटस एप्प पर भेजे डॉक्टर छाबड़ा के क्लिनिक के नंबर पर कॉल की और पांच मिनट में अगले दिन सुबह का नौ बजे का अपॉइंटमेंट फिक्स कर लिया. डॉक्टर तो आठ बजे ही आ जाता है क्लिनिक पर. मगर यही स्लॉट खाली था जो इत्तेफाक से किसी और मरीज का था मगर उन्होंने आगे पोस्टपोन करवा लिया था.

नीरू का बुखार अगली सुबह तक पूरी तरह से उतर चुका था मगर तबीयत अभी ढीली ही थी. हंस-खेल नहीं रही थी. और लगातार किरण या कनिका से चिपकी हुयी थी. उस रात किरण ने उसे अपने कमरे में अपने ही बेड पर साथ सुलाया. सुबह वह काफी ठीक लग रही थी.

कुछ देर बाद जब किरण और सुजाता डेंटल क्लिनिक जाने के लिए निकल रहे थे उस वक़्त कनिका नीरू को दलिए का नाश्ता करवा रही थी. किरण ने बिना कुछ कहे ही निकलना चाहा कि कहीं नीरू बिखर ना जाए.

कभी-कभी किरण के ऑफिस जाने के वक़्त वह साथ चलने की जिद कर बैठती थी. ऐसे में किरण को रुकना पड़ता और उसे किसी तरह बहला फुसला कर चुपके से घर से बाहर आती. आज भी उसका ऐसा ही कुछ इरादा था. अपॉइंटमेंट के टाइम के हिसाब से डेंटल क्लिनिक पहुंचना था. और उसके बाद सुजाता को घर छोड़ कर उसे खुद ऑफिस जाना था. वहां उसने फ़ोन कर के बता दिया था कि आज उसे ऑफिस पहुँचने में देर हो जायेगी.

मगर नीरू ने उन्हें जाते देखा और जाने आज उसके मन में क्या आयी कि किरण और नानी की तरफ देख कर मुस्कुराई और हाथ हिला कर बोली, "बाय!"

सुजाता को तो जैसे खज़ाना ही मिल गया. एक ही दिन में बच्ची उन्हें मान दे रही थी. दिल किया जाने से पहले उसे एक बार चूम लें. मगर किरण ने हाथ के इशारे से उन्हें रोका. और दोनों "बाय बाय" कहते हुए घर से निकल लीं.

अपॉइंटमेंट टाइम से ही रहा. डॉक्टर छाबड़ा की तारीफ इस मामले में भी किरण के ऑफिस में की जाती है कि वह टाइम का बहुत पाबंद है. न खुद लेट होता हैं न ही किसी को लेट करता है. समय से उसके क्लिनिक से सारी जानकारी फ़ोन पर कॉल कर के या मेसेज कर के दे दी जाती है. और अगली अपॉइंटमेंट भी क्लिनिक की तरफ से ही समय रहते ही फ़ोन कर के फिक्स कर दी जाती है.

नौ बजे के दो मिनट बाद ही रिसेप्शनिस्ट ने सुजाता को अंदर जाने का इशारा कर दिया. डॉक्टर उनके आने के पहले से ही अंदर था.

किरण ने पूछा,"मैं चलूँ साथ मम्मी?"

"नहीं बेटा. डोंट बी सिली." वे हंस पडीं.

कल का मज़ाक उन्हें याद आ गया था. किरण भी वही याद कर के हंसती हुयी वहीं बैठी रही.

सुजाता को अन्दर ज्यादा वक़्त नहीं लगा. वे अपनी सारी रिपोर्ट्स ले कर गयी थीं. डॉक्टर छाबड़ा ने देख कर डॉक्टर खोसला की बात को दोहराया कि उनकी इस दाढ़ को रूट कैनाल ट्रीटमेंट की ज़रुरत थी. वे चाहें तो आज ही शुरू करवा सकती थीं. अभी डॉक्टर के पास शुरुआती सफाई, ड्रिलिंग और फिलिंग के लिए काफी वक़्त था.

सुजाता ने एक पल सोचा और फिर कहा, "मैं अपनी बेटी से पूछ लूँ. उसे ऑफिस जाना है और उसके हिसाब से ही मुझे यहाँ आना होगा. मैं यहाँ के रास्ते वगैरह जानती नहीं हूँ."

"हाँ ज़रूर. आप उन्हें अन्दर बुला सकती हैं. रुकिए. मैं बुलवाता हूँ." कह कर उसने इण्टरकॉम ऑन करके रिसेप्शनिस्ट को कहा," मिस सुजाता के साथ जो लेडी आयीं हैं उन्हें अन्दर भेज दो."

किरण अन्दर दाखिल हुयी तो सुजाता डेंटल चेयर पर आधी लेटी थीं. डॉक्टर छाबड़ा की पीठ दरवाज़े की तरफ यानी किरण की तरफ थी.

उसके कदमों की आहट से ही उसका आना समझ कर डॉक्टर ने कहा, "इनका रूट कैनाल होना है. आप के पास टाइम हो तो आज ही शुरू कर दिया जाए. मुझे बताया कि इन्हें वापिस इंग्लैंड जाना है. अभी शुरू कर देंगे तो बाद में काफी समय रहेगा इनकी प्रोग्रेस को चेक करने के लिए. ताकि इन्हें वहां जा जा कर कोई परेशानी न हो."

"जी बिलकुल, मम्मी. आप करवाना चाहती हैं अभी?"

सारी बात तो सुजाता के मानसिक तौर पर तैयार होने की थी ट्रीटमेंट के लिए. क्योंकि किरण को लग रहा था कि वे सिर्फ राय लेने आयी थीं. आज उनका ट्रीटमेंट लेने का इरादा नहीं था.

मगर वे सब सोच समझ चुकी थीं. समय उनके पास गिना चुना ही था. काम और भी कई निपटाने थे.

इसलिए जल्दी ही फैसला कर के बोलीं," बेटा. तुझे ऑफिस जाने की जल्दी नहीं है तो अभी शुरू करवा ही लेते हैं. आज का दिन और यहाँ आना बेकार नहीं जाएगा. "

"ठीक है मम्मी. इफ यू आर रेडी. आय ऍम फाइन. मैं अपने ऑफिस में फ़ोन कर देती हूँ." किरण ने चैन की सांस ली. सुजाता का ये काम बहुत ज़रूरी है.

इतना कह कर उसने अपने बैग में देखते हुए अपना फ़ोन निकालने के लिए बैग में हाथ डाला और डॉक्टर छाबड़ा ने उस की तरफ अपना मुंह किया. ये दोनों काम एक साथ हुए.

वो कुछ बोलना ही चाहता था कि किरण को देख कर ठगा सा खडा रह गया. किरण ने अभी उसकी तरफ देखा नहीं था. किरण ने बैग से फ़ोन निकाला और बोली,"मैं अभी फ़ोन कर के आती हूँ. मम्मी, आय विल स्टे विद यू हियर."

ये कह कर वह बाहर जाने के लिए मुडी ही थी कि उसकी नज़र डॉक्टर छाबड़ा की तरफ पडी. वो चुपचाप खडा था, चेहरे पर एक मुस्कान भरी पहचान लिए, इस इंतजार में कि किरण उसे देखे तो वो बात करे.

किरण ने देखा तो उसकी आँखें फैल गयीं. वो जहाँ खड़ी थी वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. एक पल के लिए तो समझ ही नहीं पायी कि क्या करे. कुछ बोले या चुप रहे. बोले तो क्या बोले. डॉक्टर रौनक छाबड़ा तो अब तक नियति के इस अचानक हुए हमले की आकस्मिकता से उबर चुका था.

वही पहले बोला, "किरण! हाय. व्हाट आर द ऑड्स? तुम्हारी मम्मी इंग्लैंड से रूट कैनाल करवाने इंडिया आती हैं और उनको मिलता है डेंटिस्ट जिसका नाम है रौनक छाबड़ा. नाईस मीटिंग यू माय फ्रेंड. " ये कह कर उसने अब तक का रोका हुआ ठहाका लगाया और किरण का हाथ पकड़ कर बेहद गर्मजोशी से मिला लिया.

किरण भी अब संभल गयी थी. उसने रौनक की गर्मजोशी का जवाब उतनी ही ताज़गी और प्यार से दिया.

"रौनक रौनक यू रॉक" कहते हुए स्कूल के ज़माने को याद किया और बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. इसके साथ ही दोनों को अपना टीनएज और युवावस्था की वय:संधि का काल याद आ गया. मगर ये वक़्त नहीं था कुछ भी याद करने का.

सुजाता अब तक दोनों को देख रही थी. उनकी तरफ किरण का ध्यान गया.

"मम्मी. हम एक ही स्कूल में थे. "

"जी. मैं इनका सीनियर था." रौनक ने सुधार किया.

उनके असमंजस को दूर करते हुए किरण ने बताया.

"ओह! अच्छा. तभी मैं सोच रही थी कि तुम कॉलेज में तो साथ नहीं पढ़े होगे तो कैसे जानते हो एक दूसरे को?" उनकी खुशी भी उनके चहरे पर साफ़ लिखी पढ़ रही थी. मन को भरोसा हो गया कि डॉक्टर भी अच्छा है और बेटी का सहपाठी भी, तो इलाज अच्छे से करेगा.

तब तक रौनक भी अपने प्रोफेशनल रोल में आ गया था.

"तो मैडम, अब मैं आप को एक इंजेक्शन दूंगा, जिससे आपकी कुछ नर्वेस नम हो जायेंगी. बिलकुल कोई एहसास या दरद नहीं होगा. आधे घंटे बाद इनमें एहसास वापिस आ जाएगा. "

ये सब कहते हुए उसने अपनी असिस्टेंट को इशारा किया और वो भी जो अब तक मंद-मंद मुस्कुराती हुयी बचपन के दोस्तों का भारत मिलाप देख रही थी, मुस्तैदी से काम में लग गयी.

"यस सर. हियर यू आर सर. "

किरण बाहर आयी. ऑफिस में फ़ोन कर के पूरी बात बताई. उसके इमीडियेट बॉस मिस्टर भाटिया ने सुझाव दिया कि बजाय देर से या लंच के बाद आने के उसे घर पर ही रह कर अपनी माँ के साथ वक़्त बिताना चाहिए और जो भी काम है वहीं से कर लेना चाहिए. किरण ने एक बड़ा सा थैंक यू कहा और फ़ोन बंद कर के अंदर आ गयी.

लोकल एनेसथीसिया का इंजेक्शन अब तक अपना काम कर चुका था. रौनक गंभीरता और मुस्तैदी से मुंह पर मास्क लगा कर अपने काम में लगा था. ड्रिल की धीमी सी सुगबुगाहट सी आवाज़ बीच बीच में रुक-रुक कर आ रही थी. किरण ने कुछ सेकंड देखा फिर डॉक्टर की टेबल के सामने रखी कुर्सियों में से एक पर बैठ गयी.

रौनक का आज यहाँ इस तरह मिलना उसे बेहद चौंका गया था. नियति उसे क्या इशारे दे रही थी?

रौनक और किरण स्कूल में साथ थे, बहुत गहरे दोस्त. लगभग हर बात एक दूसरे के साथ शेयर करते थे. मगर स्कूलिंग के दौरान उनके दूसरे दोस्तों के छेड़े जाने और तरह-तरह के सुझाव दिये जाने के बावजूद उनके बीच कोई रोमांटिक भावना नहीं पनपी थी. कम से कम किरण तो ऐसा ही सोचती थी.

एक बार दोस्तों के उकसाने पर रौनक ने वैलेंटाइन'स डे पर उसे एक गुलाब पेश कर ही दिया था. जिसे ले कर वह हंसती हुयी चली गयी थी. कुछ कदम चली थी और फिर कुछ सोच कर उन्हीं कदमों से लौट आयी थी.

"रोज तो ठीक है. वेयर इज द चॉकलेट?"

वो हंस रही थी. रौनक भी हंस रहा था. ये मज़ाक उन दोनों ने उन दोस्तों पर खेला था जिन्होनें उकसा कर रौनक को ये गुलाब किरण को पेश करने के लिए मना लिया था.

वे सोच रहे थे कि उन्होंने मोर्चा मार लिया है. लेकिन हकीकत ये थी कि रौनक ने पिछले दिन ही इस बारे में किरण को बता दिया था. किरण ने इस पर सोचा था और इसका यही तोड़ निकाला कि दोस्तों को इस तरह पटखनी दी जाए.

वे लोग जो रौनक के गुलाब पेश किये जाने के वक़्त स्कूल के हॉकी ग्राउंड में दूर से खड़े सब देख रहे थे अब तक काफी पास आ गए थे. सुन सकते थे. और ये दोनों जोर से बोल भी रहे थे.

"यार वो तो मैं भूल ही गया."

"वैरी बैड ऑफ़ यू. बिना चॉकलेट के कोई कैसे तुम्हारी गर्लफ्रेंड बन सकती है?"

ये कह कर वो गुलाब को सूंघती और सहलाती हुयी वहां से चली गयी थी. कनखियों से सब को देखती और अंगूठे से चिढ़ाती हुयी. रौनक मुस्कुराता हुया सब को देख रहा था.

स्कूल ख़तम हो गया था. सब लोग अलग कॉलेज में चले गए. कुछ विदेश चले गए मगर कोई भी ठीक से समझ नहीं पाया था था कि किरण और रौनक के बीच आखिर रिश्ता था तो क्या. सिर्फ दोस्त या उससे कुछ ज्यादा या फिर गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड.