टापुओं पर पिकनिक - 74 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 74

आर्यन जब इस बार अपने घर से वापस लौटा तो काफ़ी अनमना सा था। अपना घर, अपना शहर, अपने दोस्त... सब कुछ जैसे उसे बेगाना सा लगा।
यही तो ज़िन्दगी है।
जब हम कुछ पाने के लिए तन -मन -धन से जुट जाते हैं तो हम ये भी भूल जाते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।
लेकिन जब अपने सपनों की पतंग हमारे हाथ लग जाती है तो हम पाते हैं कि आसमान में उड़ता हमारा ये स्वप्न-शरारा बिल्कुल अकेला है। इसका कहीं कोई संगी- साथी नहीं। अब जो भी इसके पास आता है वो केवल इसका पेंच काटने ही आता है।
जीवन की बड़ी कामयाबी इंसान को भी ऐसा ही कर छोड़ती है।
ओह! इतना क्षण- भंगुर सब कुछ?
एक लड़की को चंद दिन चाह कर प्यार से छू क्या लिया कि वो गर्भवती हो गई।
अपने करियर के चलते उसे अपनाने में ज़रा ना- नुकर क्या की, कि वो किसी और की हो गई!
और... और अपने बदन से झरा हुआ नन्हा सा मोती एक हंसती- बोलती जीवित गुड़िया बन गया???
फ़िर ये परियों की सी दुनियां किसी दूर देश जा बसी।
आर्यन हंसा।
मधुरिमा की ज़िन्दगी भी तो एक अजूबा ही बन कर रही। देखो, यहां उसकी शादी का रिसेप्शन धूमधाम से हुआ और वो ख़ुद यहां नहीं थी।
आर्यन फ्लाइट में हमेशा विंडो सीट ही लेता था। आज भी ये सब सोचता हुआ खिड़की से काले बादल और उनके बीच से बरसती बूंदें देखता रहा।
उसे हैदराबाद जाना था। वहां रामोजी फिल्मसिटी में उस की अगली फिल्म का शूटिंग शेड्यूल था।
इस बार उसका मन घर में भी नहीं लगा। उस दिन मनन ने कितना ज़ोर दिया पर उसकी इच्छा ही नहीं हुई कि अचानक मनोरमा की शादी की दावत में पहुंचे।
उसके कारण ही उसके मम्मी- पापा भी नहीं गए, जबकि उन्हें तो तीन दिन पहले से ही निमंत्रण मिल चुका था। हां, उस दिन उन्हें याद दिलाने के लिए मनन ने जब फ़ोन किया तो संयोग से आर्यन से भी बात हो गई। इससे ही सबको उसके आने की खबर लगी।
लेकिन आर्यन को आगोश की कंपनी के जापान में खुल जाने की बात से बहुत अच्छा लगा।
चलो, छोरा थोड़ा व्यस्त होगा तो अपने पिता के प्रति उसके दिमाग़ में उपजी कड़वाहट थोड़ी कम होगी।
बेटा बाप से रंजिश पाले, ये भी तो अच्छा नहीं!
आर्यन को याद आया कि रामोजी फिल्मसिटी में उसकी जो शूटिंग चल रही है वहां उसका रोल ठीक इससे उल्टा ही तो है।
बाप और बेटे के बीच एक बेहद भावनात्मक मार्मिक सी बॉन्डिंग!
आसमान जैसे ही थोड़ा साफ़ हुआ, चमकदार धूप निकल आई।
आर्यन के दिमाग़ की उथल - पुथल भरी झील में किसी उन्मत्त हंस की तरह वही कहानी तैरने लगी जो पर्दे पर उतारने के लिए उनकी पूरी यूनिट कई दिनों से जुटी हुई थी।
इस फ़िल्म में आर्यन पहली बार पिता और पुत्र की दोहरी भूमिका कर रहा था। मज़ेदार बात ये थी कि इसमें बेटा एक बहुत ही समझदार और ज़िम्मेदार युवक के रोल में था जबकि पिता मंदबुद्धि वाला एक ऐसा व्यक्ति था जो बच्चों की तरह बर्ताव करता था।
ऐसा बेटे के बचपन में घटी एक कार दुर्घटना के कारण था जिसमें उसकी मां की तो मृत्यु ही हो गई थी और पिता के मस्तिष्क पर बड़े ज़ख्म से बुरा असर पड़ा था। वो जीवित तो बच गए थे लेकिन उनकी बुद्धि आयु के अनुसार कई वर्ष पीछे चली गई थी। वो बच्चों जैसा व्यवहार करते थे।
आर्यन के लिए ये भूमिका एक बड़ी चुनौती थी और इसी कारण वह पिछले कई दिनों से अपने आप को एक उलझन में पाता था।
जहाज जब हैदराबाद में लैंड करने लगा तो आर्यन को अच्छा सा लगा।
वह कुछ देर सोना चाहता था और अब उसे होटल ले जाने वाली कार एयरपोर्ट के अराइवल पर लग जाने की सूचना उसके मोबाइल पर आ चुकी थी।
आर्यन को अपना दोस्त आगोश एक बार फ़िर याद आया जिसने इस बार उसे जापान में अपने ऑफिस का उदघाटन करने का न्यौता दिया था।
आर्यन ने होटल पहुंच कर कई बार आगोश को फ़ोन मिलाया पर उससे बात हो ही नहीं सकी।
आर्यन थोड़ा झुंझलाया।
ऐसा अक्सर होता है कि जो लोग यात्रा के लिए सीऑफ़ करते समय जाने वाले से ऐसा कहते हैं कि पहुंच कर फ़ोन कर देना वो अक्सर अपने फ़ोन को इतना बिज़ी कर लेते हैं कि जब उन्हें फोन किया जाए तो आसानी से मिले ही नहीं।
बेचारा हारा- थका आदमी यात्रा के बाद अपने गंतव्य पर पहुंच कर भी उलझा- उलझा सा रह जाता है।
इसीलिए कई मस्तमौला किस्म के लोग तो अक्सर दूसरों को ये कहते हैं कि यदि कोई परेशानी की बात हो तो फ़ोन कर देना।
ऐसे लोग हमेशा आराम में रहते हैं क्योंकि एक तो परेशानी दस में से एक अवसर पर होती है, हर बार नहीं होती, और दूसरे, दूर जाने पर कोई भी आदमी अपने परिजनों को अकारण तंग नहीं करना चाहता इसलिए जब तक कोई बहुत बड़ी समस्या न हो, वो फ़ोन नहीं करता।
आर्यन आज अच्छी तरह आराम कर लेना चाहता था क्योंकि वो जानता था कि कल से उसका मेकअप मैन कम से कम तीन- चार घंटे उसे तंग करने वाला है।
उसने कपड़े बदल कर उस कॉफी के लिए भी मना कर दिया जिसका ऑर्डर उसने ख़ुद अभी- अभी कमरे में आने के बाद फ़ोन से कैफेटेरिया में दिया था और बिस्तर पर किसी कटे पेड़ की तरह निढाल हो गया।
लेकिन आर्यन को तमाम कोशिशों के बाद भी नींद नहीं आई।
उसे रह - रह कर इस बार मनप्रीत की कही बात याद आती थी।
मनप्रीत ने उसे बता दिया था कि जापान में मधुरिमा से उसकी किस तरह बातें हुई थीं और मधुरिमा ने अचानक अपने पति तेन की निजी जिंदगी का एक अहम राज किस तरह जाहिर कर दिया था।
अगले दो दिन आर्यन के बहुत व्यस्तता में बीते। काफ़ी काम भी हो गया। उसे मज़ा आ रहा था इस शूटिंग में क्योंकि फ़िल्म में एक बहुत बड़ी एक्ट्रेस को गेस्ट अपीयरेंस के लिए बुलाया गया था।
इतनी बड़ी नायिका का यह कैमियो रोल आर्यन की दिवंगत पत्नी के रूप में था जो फ़िल्म में कार ऐक्सिडेंट के बाद मर जाती है। वो बाद में एक गीत के दौरान भी स्क्रीन पर दिखाई देती है।
यही सीक्वेंस यहां फिल्माया जा रहा था।
अगले दिन शहर के सारे अखबारों में उस टॉप हीरोइन के शूटिंग के लिए यहां आने की खबर छपी थी। एक पेपर ने तो उसके साथ स्पॉट हुए आर्यन का क्लोजअप भी छापा था।
उस दिन का डिनर फ़िल्म के डायरेक्टर, आर्यन और उस अभिनेत्री ने एक साथ ही लिया। रात को देर से मुंबई की फ्लाइट से उसे लौट जाना था।
खाने का दौर चल ही रहा था कि इस बीच आर्यन के मोबाइल पर फ़ोन की घंटी बजी।
आर्यन ने बिना देखे हाथ जेब में डाल कर फ़ोन काट दिया।
घंटी फ़िर बजी।
कुछ देर तक बजती रही।
पूरी रिंग जाकर फ़ोन कट गया।
- लोग इरिटेट कर देते हैं... आर्यन की इस बात पर हीरोइन कुछ मुस्कुराई... आर्यन इससे कुछ असहज हो गया। उसे लगा कि मैडम ने कुछ क्रुक्ड सी स्माइल दी है, मानो उनका अभिप्राय यह हो कि ...बस, परेशान हो गए, अभी आगे - आगे देखो होता है क्या?
आर्यन कुछ बोलने को ही था कि रिंग फ़िर बजी।
मैडम ने आर्यन की ओर से ध्यान हटाकर डायरेक्टर की ओर देखा। ये एक तरह का इशारा ही था कि... यार, कोई ज़रूरी आदमी है फ़ोन पर, अटेंड कर लो!
आर्यन ने अब फ़ोन जेब से निकाल कर देखा और फिर कुछ सकपका कर इस तरह फ़ोन सुनने लगा कि बाक़ी दोनों लोगों को डिस्टर्बेंस न हो। आर्यन ने दूसरा हाथ कान और मोबाइल के ऊपर रखा हुआ था। आवाज़ भी बेहद धीमी थी।
... इज़ एनीथिंग सीरियस आर्यन? मैडम की आत्मीय सी आवाज़ आई।
... मैं रात को दो बजे बात करूं??? अभी ज़रा... आर्यन के इतना बोलते ही उधर से फ़ोन काट दिया गया। मानो फ़ोन करने वाले को ये अहसास हो गया हो कि आर्यन सचमुच कहीं व्यस्त है।