आगोश, तेन और साजिद बहुत उत्साहित थे। आज वो लगभग चार घंटे समुद्री यात्रा करके उस वीरान मगर बेहद नयनाभिराम टापू को देखने जाने वाले थे, जिस पर तेन और आगोश ने मिलकर एक छोटा सा जंगल ख़रीदा था।
इस छोटे से टापू की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि पानी में से आते हुए इसे दूर से देखने पर ये प्रतिपल रंग बदलता हुआ दिखाई देता था।
ये कैसा चमत्कार था कुदरत का। कोई नहीं जानता था कि ऐसा क्यों होता था।
कभी- कभी लगता था कि जैसे उस टापू के सघन पेड़ों की पत्तियां रंग बदल लेती हैं तो शायद इसीलिए दूर से पूरे के पूरे टापू के शेड्स ही बदले हुए दिखते हों।
या फिर समंदर से उठ कर आती हवाओं में मौजूद कणों का कोई जादू यहां बिखरा हुआ हो।
या फ़िर सूरज की किरणों का वहां गिरना परावर्तन का कोई प्रभाव पैदा करता हो।
राम जाने, क्या था। और राम भी क्यों जाने, ये सुदूर निर्जन टापू कोई अयोध्या के राज की सीमा में थोड़े ही आता था। ये तो समंदर- पार जापान के एक निर्जन - बीहड़ से टापू का हिस्सा था। इसके आसपास बिल्कुल छोटे- छोटे चार- पांच टापू और थे जिन पर दूर से ही इक्का- दुक्का निर्माण दिखाई देते थे। वहां रहने वाले लोग भी बहुत कम और किसी जनजाति के वाशिंदे थे।
इनके बारे में प्रचलित धारणा ये थी कि समंदर के बदन पर नगीनों की तरह जड़े ज़मीन के ये अद्भुत टुकड़े अपने गर्भ में अनगिन सम्पदा छिपाए हुए थे मगर यहां के रहवासियों की धार्मिक- सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण कोई इन्हें हाथ नहीं लगाता था। इसी से ये जापान जैसे तकनीकी रूप से संपन्न देश का हिस्सा होते हुए भी अब तक उपेक्षित पड़े थे।
मनप्रीत ने सुबह ही मना कर दिया था कि वो साथ में नहीं जाएगी।
मधुरिमा को लगा कि शायद मधुरिमा के न जाने के कारण मनप्रीत भी जाने से मना कर रही है। वह उससे बोली- अरे, मेरा तो देखा हुआ है इसलिए नहीं जा रही, फ़िर ये तनिष्मा भी परेशान करती है... तू तो देख आ!
पर मनप्रीत ने इंकार कर दिया। बोली- इन्हें ही जाकर आने दे। मैं तो दिनभर सोऊंगी आज!
- ओह, अच्छा! मैं तो भूल ही गई थी कि साजिद तुझे सोने कहां देता होगा? तीन ही तो दिन हुए हैं अभी।
- दिन मत गिन। इसने तो कलेंडर पहले ही फाड़ कर फेंक दिया था। मनप्रीत की इस बात पर मधुरिमा मुस्कुरा कर रह गई।
मधुरिमा कुछ कहती इससे पहले ही आगोश कमरे में आ गया और मनप्रीत से बोला- बस, थक गई? इतना ही स्टेमिना है... साजिद का जोश देख। अभी भी फड़क रहा है घूमने- फिरने के लिए। जो कुछ तूने किया वो उस बेचारे ने भी तो किया होगा!
- उसी ने किया सब...। मनप्रीत धीरे से बुदबुदाई।
- ओके मैडम आयशा, टेक रेस्ट! कहते हुए वह निकल गया।
तीनों के चले जाने के बाद मधुरिमा ने तनिष्मा को भी सुला दिया और नाश्ता करके दोनों बैठ गईं गप्पें लड़ाने।
मधुरिमा ने दिल्ली एयरपोर्ट छोड़ने के बाद से घटी एक- एक बात का खुल कर ब्यौरा देना शुरू किया।
यों तो बीच- बीच में दोनों लगातार फ़ोन पर संपर्क में रहीं फ़िर भी आमने- सामने मिल- बैठने की बात ही निराली थी। यहां आने के बाद से ऐसा मौक़ा भी आज पहली बार ही मिला था कि सब चले गए हों और दोनों सहेलियों को फुर्सत की पूरी लंबी- चौड़ी दोपहर अपनी बातों के लिए मिली हो।
तेन को लेकर मधुरिमा काफ़ी ख़ुश थी। तेन ने उसे कभी किसी बात की कमी नहीं महसूस होने दी। तेन के बाक़ी घरवाले भी पास ही किसी कस्बे में रहते थे पर वहां काम के चलते उनका यहां आना- जाना लगभग न के बराबर ही था।
तेन ही कभी- कभी जाकर उनसे मिल आता था। मां और एक उनकी बड़ी बहन... बस।
आगोश ने भी यहां से कुछ दूरी पर रहने की एक छोटी सी जगह किराए पर ले रखी थी जो उसके भारत चले जाने पर अक्सर बंद ही रहती थी। जब वह यहां आता तो तेन और आगोश का मिला- जुला ठिकाना वही जगह होती। वह आगोश का दफ़्तर- कम- आवास था।
मनप्रीत मधुरिमा से पूछ बैठी - तेन का तनिष्मा को लेकर क्या रवैया रहता है? क्या उसने कभी इस बारे में तुझसे कोई पूछताछ की कि इसका पिता कौन है और वो किस तरह तुझसे संपर्क में आया।
- नेवर, कभी नहीं पूछता कुछ भी, कभी- कभी तो मुझे लगता है कि शायद आगोश ने उसे सब बता दिया है.. लेकिन केयरिंग है, कभी उपेक्षा नहीं करता। मधुरिमा ने कहा।
- एक बात पूछूं ? मनप्रीत ने कुछ झिझकते हुए कहा - तेन से तेरा तालमेल कैसा है?
- ताल या मेल? मधुरिमा ने एक- एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा फ़िर हंस पड़ी।
- मतलब तू अगर ये आर्यन की निशानी साथ में लेकर नहीं आई होती तो क्या ख़ुश रहती इसके साथ? मनप्रीत ने जैसे अपनी जिज्ञासा का खुलासा किया।
तूफ़ान आ गया जैसे। जैसे अमेरिका ने जापान पर कोई बम गिरा दिया हो...जैसे तर्जनी अंगुली पर पर्वत उठाए खड़े कृष्ण ने अपनी अंगुली एकाएक खींच ली हो...
एक झन्नाटेदार थप्पड़ मधुरिमा ने मनप्रीत के गाल पर जड़ दिया।
मनप्रीत बौखला कर हक्की- बक्की रह गई।
अगले ही पल मधुरिमा अपनी अंगुलियों को हाथ से तोड़ने की कोशिश करती हुई मनप्रीत को भींच कर तड़ातड़ चूमने लगी... जैसे उससे अपनी भूल की माफ़ी मांग रही हो..
मनप्रीत एक क्षण के लिए तो घबराई पर तुरंत ही मधुरिमा का पश्चाताप भांप कर सामान्य हो गई और मधुरिमा से लिपट गई... एक पल का सन्नाटा रहा फ़िर मनप्रीत ही बोली- सॉरी यार, मैंने ग़लत सवाल कर दिया।
मधुरिमा ने तुरंत उसके होठों पर अंगुली रखते हुए कहा- तूने ग़लत सवाल नहीं किया, बल्कि मैं ही पल भर के लिए पगला गई थी, मैं आपा खो बैठी... यार जाने दे, भूल जा।
फ़िर मधुरिमा एकाएक फूट- फूट कर रो पड़ी।
मनप्रीत ने तत्काल उसे संभाला और अपने सीने से चिपटा लिया। मधुरिमा देर तक सुबकती रही और मनप्रीत उसकी पीठ पर हौले- हौले हाथ फेरते हुए उसे सहलाती रही।
मनप्रीत को महसूस हुआ कि उसने बेकार ही ये बात छेड़ी।
वह उठी और मधुरिमा के लिए पानी लेकर आई। कुछ देर के बाद मधुरिमा संयत हुई और उठ कर उसने पहले तो वाशरूम में जाकर मुंह धोया फ़िर मनप्रीत के लिए बना कर रखा हुआ आलूबुखारे का शेक दो गिलासों में डाल कर लेकर आई।
मनप्रीत ने हाथ के इशारे से मधुरिमा को कुछ भी बोलने से रोक दिया... मधुरिमा हिचकी और सिसकी के अवशेष एक साथ सांसों में समाए उसे बता रही थी कि तेन किसी काम का नहीं है... कुछ नहीं है उसमें!
हाय! ऐसे में कितना ख़तरनाक सवाल पूछ डाला था मनप्रीत ने... थप्पड़ न मारती तो और क्या करती बेचारी मधुरिमा? खंजर तो उसने ख़ुद भौंका।
तनिष्मा नींद से जाग कर आ गई थी और आंखें मलते हुए मधुरिमा की गोद में समा गई।
दोनों उससे खेलने में व्यस्त हो गईं।
दोपहर बाद चाय पीकर मनप्रीत ने गहरी नींद भी निकाली।
रात को डिनर के बाद देर तक सब बैठे बातें करते रहे। साजिद ने मनप्रीत को बताया कि आज उसने क्या मिस किया। कितनी अनोखी जगह थी। ऐसा लगता था मानो ब्लू-लेगून के भटकते किरदारों की तरह दिन बिताया उन सबने।
इतने साफ़ और नीले बीच साजिद ने कभी नहीं देखे थे।
रात को सोने के लिए जब मनप्रीत और साजिद कमरे में आए तो मनप्रीत साजिद को तेन और मधुरिमा की ज़िन्दगी का सच बताने के लिए जैसे छटपटा रही थी।
लेकिन साजिद ने जैसे ही 'मौसम तो यहां भी गर्म है.. कह के लोअर हटाया, मनप्रीत सब भूल गई!
- तूने तो ख़ूब नींद निकाली होगी आज दिनभर... मुझे बार- बार मत जगाना, कहते हुए साजिद ने पीठ फेर ली।
मनप्रीत ने उसकी पीठ पर इतने ज़ोर से मुक्का मारकर नाखून गढ़ाया कि साजिद तिलमिला उठा।
जापान की एक और रात ढलने लगी।