आर्यन का अब एक लंबा शूटिंग शेड्यूल दक्षिण भारत में था। उसने फ़ोन पर ही आगोश को बताया कि वह दक्षिण में जाने से पहले एक- दो दिन छुट्टी में बिताने के लिए घर आने की कोशिश करेगा लेकिन यह निश्चित नहीं है क्योंकि उनका कार्यक्रम कुछ और कलाकारों की सुविधा पर भी आधारित है। जाने छुट्टी मिले न मिले।
आर्यन ने ये भी कहा था कि वो इस बीच आगोश, दोस्तों और घर को बुरी तरह मिस करता रहा है।
लेकिन इस एक- तरफा सी बातचीत में आगोश फ़ोन पर आर्यन को ये बताने की हिम्मत बिल्कुल भी नहीं जुटा पाया कि इस बीच यहां उन लोगों ने क्या गुल खिला दिए हैं।
वैसे भी आर्यन ये तो जानता ही था कि आगोश का मूड एक प्रिज्म की तरह है। न जाने कब उसमें से सात रंग जगमगाते दिख जाएं और न जाने कब एक बेजान सफ़ेद शीशा!
छलकता हुआ ये शीशा ही तो आगोश का सबसे भरोसेमंद साथी था।
इसलिए आर्यन उससे हमेशा कुछ पूछने की जगह अपनी बताने पर ही ज़्यादा ध्यान देता था।
चलो, न आर्यन ने कुछ पूछा, न आगोश ने कुछ बताया।
और आर्यन का यहां आना भी अभी अनिश्चित था।
इस बार आर्यन एक और बेहद मार्मिक कहानी को स्क्रीन पर अपने अभिनय से उतारने की मुहिम में था।
पटकथा तैयार होने से पहले इस मूल कथानक को आर्यन दो- तीन बार पढ़ चुका था, जो उसे दिया गया था। उसे ये समझ में नहीं आ रहा था कि इस कहानी को स्क्रीन पर एक्ट कर पाने योग्य कहानी में कैसे ढाला जाएगा, और इसमें उसके रोल की चुनौती किस तरह से दर्शकों के सामने आयेगी।
आज भी रात को सोने से पहले लगभग पौने दो बजे फ़िर से ये स्क्रिप्ट आर्यन के हाथ में थी। मेज़ पर छोटी सी सुनहरी बोतल और हरे अखरोट की गिरी के साथ बेहद कलात्मक प्यारा सा छोटा प्यालेनुमा गिलास। नर्म गुदगुदा बिस्तर...और उस पर निर्वस्त्र लेटा आर्यन। फैले हुए पैर कुछ उठा कर खिड़की पर टिकाए हुए थे... खिड़की के बाहर एक छोटी पत्तियों का खुशबूदार विलायती पेड़!
कहानी कुछ इस तरह थी-
"एक छोटे से पिछड़े गांव में बच्चों की शिक्षा के लिए पहली बार एक छोटा सा विद्यालय खुला। ये स्कूल कोई सरकारी या किसी बड़ी संस्था की तरफ़ से खोला हुआ नहीं था, बल्कि जनसहयोग से ही आसपास के कुछ समर्थ लोगों के ज़ोर लगाने और सहारा देने पर खुला था। स्कूल के लिए कुछ दूरी पर गांव के बाहर बने हुए एक टीले को चुना गया था ताकि बरसात के दिनों में गांव की कच्ची, कीचड़भरी गलियां कम से कम नन्हें - मुन्नों का रास्ता न रोक सकें। कुछ ऊंचाई पर होने से ये छोटा सा अहाता दूर से दिखाई भी देता रहता था।
जैसे ही ये शिक्षालय बन कर तैयार हुआ आसपास के कई लड़के और औरतें- लड़कियां यहां नौकरी पाने की इच्छा से आ लगे।
इन्हीं के बीच एक बूढ़ा गंजा सा आदमी भी दूर कहीं से आकर यहां अपनी सेवाएं देने लग गया। देखने में बुजुर्ग। गेरुआ वस्त्र पहनने वाला। खिचड़ी दाढ़ी। चौड़ा चिकना माथा। कोई नहीं जानता था कि कहां से आया है पर उसका सेवा भाव और कर्मठता देख कर उसे रख लिया गया।
पहली नज़र में ऐसा लगता था मानो किसी आश्रम या मठ का कार्यकर्ता रहा हो। आंखों से अनुभवी।
लेकिन वहां के लोगों को उसकी गतिविधियां कभी - कभी संदिग्ध सी दिखती थीं। किसी दिन रात को अकेला मोमबत्ती जला कर पाठशाला में बैठा पाया जाता तो किसी दिन न जाने कहां से कुछ खाने का सामान लाकर बच्चों के बीच बांटता दिखाई देता।
गांव में कुछ ही दूरी पर एक फूस की छोटी कुटिया बनाकर रहता था। उससे मिलने रात- बिरात में कई अनजान से लोग आते रहते।
इस बूढ़े की शिकायतें भी खूब होतीं। लेकिन उसके खिलाफ़ कुछ ठोस सबूत न मिलने के चलते उसे अकारण नहीं हटाया जा पाता। बच्चों को शिक्षित करने में मेहनत बहुत करता। कभी कभी शहर से भी कोई आ जाता तो उसकी सेवा भावना की सराहना ही करता। लोग उसके अजीबो - गरीब कार्यकलापों को सह लेते।
एक दिन स्कूल के पिछवाड़े लोगों ने एक बहुत बड़ा सा गड्ढा खुदा देखा। रातों रात इतने बड़े तालाब सरीखे गड्ढे के स्वतः ही बन जाने की खबर गांव भर में किसी दावानल की तरह फ़ैल गई। जितने मुंह उतनी बातें। किसी को कुछ पता नहीं चला कि ये गड्ढा यहां किसलिए खोदा गया है? किसके कहने पर खोदा गया है? और सबसे बड़ी बात ये कि किसने खोदा है।
गांव के तमाम लोग इकट्ठे हो गए। पुलिस में शिकायत की गई। पुलिस द्वारा संदिग्ध मान कर कई लोगों से पूछताछ भी की गई लेकिन इस पर भी गुत्थी नहीं सुलझी। कोई इस रहस्य को नहीं जान पाया..."
इतना पढ़ते ही आर्यन की उत्सुकता इस बात को जानने के लिए और भी बढ़ गई। लेकिन मज़े की बात ये थी कि कहानी लेखक ने केवल इतना ही लिख कर छोड़ दिया था और नीचे एक नोट लिखा था कि गड्ढा किसने खोदा, क्यों खोदा और इसका परिणाम क्या हुआ, ये अभिनेता को मौखिक रूप से शूटिंग के दौरान ही बताया जाएगा ताकि ये रहस्य पहले ही उजागर न हो जाए और सीरियल के प्रसारित होने तक इसकी पूर्ण गोपनीयता बनी रहे।
लेखक का दावा था कि इस रहस्य को जानने के बाद दर्शक अवश्य ही दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर हो जाएंगे। आर्यन की बेचैनी अपनी तन्हाइयों में भी हल्के- फुल्के स्मित हास्य में बदल गई। वह कसमसा कर सोने के लिए तैयार होने लगा।
रात को स्क्रिप्ट पढ़ना बंद करके जब आर्यन ने सोने के लिए बत्ती गुल की, लगभग साढ़े तीन बजे थे।
सुबह देर तक सोता रहा आर्यन और जब उठा तो चाय के साथ - साथ उनकी यूनिट के एक स्पॉट ब्वॉय ने उसे ये जानकारी भी लाकर दी कि दक्षिण में जाने से पहले उसे तीन दिन के लिए घर भेजने की व्यवस्था की जा रही है। आर्यन का टिकट भी बुक करा दिया गया था।
आर्यन ख़ुश हो गया।
उसने तत्काल फ़ोन करके आगोश को बताया कि वह आ रहा है। आगोश ख़ुश हो गया।
आगोश ये नहीं जानता था कि मधुरिमा की शादी की खबर को आर्यन किस तरह से लेगा और उसकी प्रतिक्रिया इस सारे घटना क्रम पर क्या होगी, फ़िर भी आगोश मन ही मन ये सोच कर ख़ुश हुआ कि आर्यन को सब कुछ बता देने के बाद कम से कम उसके मन का बोझ तो उतर जाएगा।
आर्यन के पास केवल तीन दिन का ही समय था इसलिए उसके साथ कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं बनाया जा सकता था क्योंकि आर्यन इस बार काफ़ी दिनों बाद आ रहा था और उसके घर वाले भी उसके लिए पलकें बिछाए बैठे थे।
फ़िर भी जानी दोस्त महीनों बाद आ रहा था। उसके आगमन को बेजश्न भी तो छोड़ा नहीं जा सकता था। आगोश ने मित्र- मंडली में शोर मचा दिया... सबा से ये कह दो कि कलियां बिछाए, वो देखो वो जाने बहार आ रहा है!
उनके पुराने स्कूल का प्रशासन जो आर्यन को आमंत्रित करके विद्यार्थियों के बीच उसका स्वागत करने का अवसर महीनों से ढूंढ रहा था, वो भी मुस्तैद हो गया कि आर्यन को एक बड़े समारोह में बुला कर सम्मानित करे।
उसके इस्तकबाल के लिए बाकायदा एक समिति गठित कर दी गई। आगोश को इस आयोजन के बिचौलिए के रूप में घेर कर कमिटी सक्रिय हो गई।
शुरुआत हुई मीडिया में इस खबर से कि एंटरटेनमेंट की दुनिया का बड़ा स्टार आर्यन शहर में तशरीफ़ ला रहा है... जो स्कूल के भव्य ऑडिटोरियम में अपने चाहने वालों से रूबरू होगा।