जीवित मुर्दा व बेताल - 5 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीवित मुर्दा व बेताल - 5

महोबा गांव का परिवेश इस वक्त बहुत कौतूहल भरा है । गांव की सभी खबरें जमींदार रामनाथ तक पहुंचने पर वो बहुत ही आश्चर्य होते हैं । उनको आश्चर्य होना भी चाहिए क्योंकि भोला पागल का मृत शरीर लगभग एक दिन उनके पास ही था । इसके बाद जब उन्होंने लाश को जमील माझी के नाव में डाला था तब तक उसमें सड़न भी आने लगी थी । वही भोला पागल फिर लौट आया है क्या यह भी संभव है ? रामनाथ समझ गए कि कुछ भयानक व बुरा उनके साथ होने वाला है ।

उधर दिनेश गांव के लोगों को अनपढ़ व कम बुद्धि वाला समझता है इसीलिए उनकी बातों पर उसने ध्यान नहीं दिया और सब कुछ भ्रम बताकर उड़ा दिया । तथा वह अपने दोस्तों के साथ पहले की तरह ही नशे की दुनिया में खोया रहा ।
दिनेश के चार दोस्त हैं , संजय , अनीश , विजय और दिलीप । प्रतिदिन की तरह उस दिन भी बहुत रात तक अड्डा घर में जुआ व नशा चलता रहा । दिनेश बड़े घर का लड़का है इसीलिए जो भी उसकी चापलूसी करता है उसे लाभ होता है । इसीलिए चापलूसी व साथ के मौके को इन चारों में से कोई भी नहीं छोड़ना चाहता । और उस दिन भी एक मौका आया जिसे संजय ने पकड़ लिया । संजय के अलावा उस दिन शराब का नशा सभी को कुछ ज्यादा ही हो गया था इसीलिए दिनेश को घर छोड़ने की जिम्मेदारी संजय ने अपने ऊपर लिया । बाकी सब जब अपने घर चले गए तब दिनेश को लेकर संजय निकल पड़ा । कुछ देर में दिनेश को जमींदार घर पहुंचाकर संजय लौटने लगा । उसका घर गांव के मूल बस्ती से थोड़ा बाहर है । घर तक जाने के लिए उसे एक खेत के पास वाला रास्ता पार करके जाना पड़ता है । संजय एक गाना गाते हुए मस्ती से टॉर्च लेकर चल रहा था ।
सुनसान रात , आसमान में चांद के ऊपर से बीच-बीच में काले बादल तैर रहे हैं । चांद के उस हल्की रोशनी में चारों तरफ का अंधेरा ज्यादा गहरा नहीं लग रहा । झींगुर की झीं - झीं के साथ दूर कहीं एक उल्लू की आवाज सुनाई दिया । सामने रास्ते पर एक मोड़ है उसके बाद ही खेत वाला रास्ता शुरू हुआ है । उसी रास्ते को पार करने पर संजय का घर है । मोड़ से आगे खेत वाले रास्ते पर पहुंचते ही संजय का टॉर्च अपने आप जलने - बुझने लगा । शहर से लाया गया कीमती कंपनी का टॉर्च है अभी कुछ दिन पहले ही दिनेश ने सभी को एक-एक टॉर्च दिया था । इतनी जल्दी तो यह खराब नहीं हो सकता ? संजय ने टॉर्च को एक दो बार हथेली से ठोका लेकिन टॉर्च में कोई फर्क नहीं पड़ा और वह मिनट बाद ही बुझ गया । संजय ने एक दो बार और कोशिश किया लेकिन टॉर्च जला नहीं बल्कि इस बीच वह अंधेरे में कुछ देर खड़ा रहा । अब तक वह टॉर्च की रोशनी से आगे बढ़ रहा था इसीलिए चांद की हल्की रोशनी में उसे रास्ता कुछ ज्यादा ही अंधेरा लगने लगा । कुछ देर खड़ा रहने के बाद जब उसने सामने रास्ते पर एक दो पैर बढ़ाया तो उसने ध्यान दिया कि कुछ बहुत ही तेजी से उसके तरफ चला आ रहा है । शराब का नशा उस वक्त भी उसके सिर से नहीं उतरा था । दोनों हाथ से आंखों को रगड़ते हुए अपने तरफ आते उस वस्तु को संजय ठीक से देखने की कोशिश करने लगा । उसे ऐसा लगा कि मानो एक काला सांड तेजी से उसी के तरफ आ रहा है । संजय पीछे मुड़ कर भागने ही वाला था कि उसे याद आया उसके गांव में तो कोई सांड नहीं है । कहीं वह नशे के कारण कुछ भूल तो नहीं देख रहा ? फिर एक बार उसने सामने देखा और टॉर्च के बटन को दो-तीन बार दबाकर उसे जलाने की कोशिश करने लगा लेकिन टॉर्च नहीं जला ।
अब वह काला वस्तु संजय से कुछ दूरी पर आकर रुक गया है । आसमान में चांद से काले बादल का आवरण हटते ही चारों तरफ अंधेरा कुछ कम हो गया । संजय ने अब ठीक से देखा कि एक काला धुआँ जैसा कुछ रात के इस अँधेरे के साथ मिला हुआ है । अपनी आंखों को रगड़ते हुए उसने उस काले अंधेरे को ठीक से देखना चाहा । आखिर क्या है यह ? ऐसी वस्तु उसने पहले कभी नहीं देखा था । अब उसने ध्यान दिया कि वह काला वस्तु जमीन से ऊपर हवा में तैर रहा है । यह देख उसके शरीर के रोयें खड़े हो गए । डर की वजह से वह वहाँ खड़ा नहीं रह पा रहा । संजय उस भयानक अंधेरे से दूसरी तरफ भागने ही वाला था लेकिन उसके दोनों पैर मानो मिट्टी में धंस गए हैं । अपने पैरों के तरह देखते ही वह चौंक गया
क्योंकि उसके पैरों के नीचे का सख्त मिट्टी न जाने कब गीले दलदल में परिवर्तित हो गया था तथा उस दलदल में संजय का पैर फंसा हुआ था । चारों तरफ के हल्के अंधेरे से एक हंसी की आवाज सुनाई दे रहा है । संजय इस हंसी से परिचित है क्योंकि उस रात को उसने भी मिलकर इस हंसी को हमेशा के लिए खत्म कर दिया था । संजय ने चारों तरफ देखा लेकिन कोई भी नहीं , यह हंसी मानो हवा के साथ बहकर कहीं से आ रहा है । अब संजय के सामने खड़ा वह भयानक अंधेरे जैसी वस्तु काले तरल में परिवर्तित होकर धीरे-धीरे उसके के पैरों की तरफ बढ़ने लगा । संजय छटपटा रहा है लेकिन सब कुछ व्यर्थ है क्योंकि उसकी छटपटाहट उसे दलदल के और अंदर ले जा रहा है । उस काले तरल ने संजय को स्पर्श करके उसके पीछे की तरफ चला गया । उस काले तरल द्वारा संजय को छूते ही वह चीख उठा मानो उसने आग जैसी कुछ वस्तु का स्पर्श पाया है । अब वह क्या करे , आखिर उसके साथ हो क्या रहा है ?
अब वो चिल्लाना चाहा लेकिन मुँह से थोड़ा आवाज निकल बाकी अंदर ही रह गया । संजय ने अनुभव किया कि पीछे से कोई उसके पीठ पर चढ़ बैठा है , अपने दोनों हाथों से गर्दन को पकड़ किसी का शरीर मानो संजय के पीठ पर झूल रहा है । डर व आतंक के कारण संजय के हाथ से टॉर्च नीचे गिर पड़ा तथा वह अद्भुत तरीके से संजय की तरफ ही जल पड़ा । टॉर्च की रोशनी सीधा संजय के कंधे पर आई है , उसी रोशनी में अब धीरे-धीरे एक भयानक चेहरा झलकने लगा । एक छोटा बच्चा जैसे गर्दन को पीछे से पकड़ दोनों पैरों को कमर के बगल से सटाकर झूलते हुए अपने चेहरे को कंधे के पास रख देखा है ठीक उसी तरह संजय के पीठ पर झूलते उस दूसरे शरीर ने उसके कंधे पर अपना सिर रख दिया ।
अपना गर्दन घुमाते ही संजय ने उस चेहरे को स्पष्ट रूप से देखा । भोला पागल का चेहरा , उसके चेहरे पर आधा चमड़ा व मांस नहीं है तथा एक आंख बाहर की तरफ निकला हुआ है । उसके धारदार दाँत इस चांद की हल्की रोशनी में चमक रहे हैं । संजय ने फिर से चिल्लाना चाहा लेकिन इस बार उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया क्योंकि तुरंत ही भोला पागल के मुंह से एक लंबा जीभ निकलकर सांप की तरह संजय के मुंह के अंदर चला गया । अब धीरे-धीरे संजय के शरीर का सारा खून उस लम्बे जीभ द्वारा भोला पागल के पेट में जाने लगा । किसी जहरीले सांप के शिकार जैसा कुछ देर छटपटाकर संजय का शरीर शांत हो गया । हवा में तैरते हंसी की आवाज अब धीरे-धीरे दूर कहीं गायब हो गया ।
अगले दिन सुबह गांव के किसान जब खेत में आए तो उन्हें संजय का सूखा हुआ शरीर दिखा । उन सभी ने जल्दी से यह बात गांव वालों को बताया । खेत के पास वाले रास्ते पर पड़े संजय के उस मृत शरीर को देखकर सभी को आश्चर्य हुआ था । उसके पूरे शरीर पर कहीं कटने का चिन्ह नहीं लेकिन शरीर को देखकर ऐसा लग रहा है कि उसमें खून ही नहीं । मानो किसी ने उसके शरीर के आखिरी खून की बूंद को भी चूस लिया है ।...

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सुवर्णरेखा नदी के किनारे किसी एक सुनसान श्मशान में बैठकर शारदा पिछले पांच दिन से प्रतीक्षा कर रही है । पिछले कुछ सालों में वह तंत्र साधना की पथ पर बहुत ही आगे निकल चुकी है । अब उसे कुछ विशेष शक्ति अर्जित करनी है और इसके लिए उसे कई और भयानक साधनाएं करनी होगी ।
शारदा इस नदी के किनारे श्मशान में किसी शव के प्रतीक्षा में बैठी है क्योंकि उसे अभी शव साधना करनी है । महान उस शक्ति को पाने के लिए शव साधना जरूरी
है ।
इसी वक्त उसने देखा नदी में एक शव बह रहा है । यह देख शारदा की आंखें खुशी से फैल गई । शारदा ने देखा कि बहता हुआ वह शव सड़कर फूल गया है तथा इसके अलावा शरीर से बहुत सारे मांस सड़कर निकल गए हैं ।
शारदा ने एक लंबे बांस द्वारा उस शव को रोका फिर उसे खींचते हुए किनारे पर लेकर आई । उस शव का पेट फूलकर बड़ा सा हो गया है तथा गले से सिर तक का भाग अब भी पानी में है इसीलिए शारदा पहले समझ नहीं पाई । जब दोनों हाथों से पकड़ उस शव को वह पानी से बाहर लेकर आई , पहले दृश्य में ही वह आतंक से पीछे हट गई । हालांकि यह सब देखकर शारदा डरने वालों में से नहीं है लेकिन उसके मन में कौतुहल और बढ़ गया ।
शारदा ने देखा उस शव का कोई सिर नहीं है तथा वह समझ गई थी इस तरह सिर को गर्दन से फाड़कर अलग कर देना किसी मनुष्य द्वारा संभव नहीं । उस शव शरीर को जमीन पर लाकर शारदा एक विशेष साधना में बैठ गई । शारदा ने दो - चार सूखी लकड़ी द्वारा आग जलाकर उसपर एक मिट्टी का हांडी रख दिया तथा कंधे पर झूलते पोटली से कुछ साधना वस्तु को निकाला जिसमें तीन मुख्य सामग्री था चूहे का कटा पूँछ , उल्लू की नाख़ून तथा छिपकली का शरीर । उन सभी को आग में जलाकर राख करने के बाद उस शव से सड़ा हुआ मांस लेकर हांडी में डाला तथा एक विशेष सिंदूर जैसा कुछ छिड़कते ही हांडी के ऊपर थोड़ा सा आग जलकर चारों तरफ धुआं हो गया । शारदा ने उस धुएँ में देखा एक भयानक व विभत्स मूर्ति नाव के ऊपर बैठकर इसी शव के सिर को फाड़कर अंतड़ियों को निकाल अपने मुँह के अंदर डाल रहा है ।..

। अगला भाग क्रमशः.....