जीवित मुर्दा व बेताल - 6 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीवित मुर्दा व बेताल - 6

शारदा एक - एक कर उस रात के भयानक दृश्यों को देखती रही । एक धुएँ का गोला शारदा के चारों तरफ फैला है उसी में जमील मांझी के अंतिम समय के दृश्य चल रहे हैं ।

आखिर यह शारदा कौन है और उसे इतनी सारी शक्ति कैसे मिली ? अब थोड़ा शारदा के बारे में जान लेते हैं ।...

मुखिया जगन्नाथ सिन्हा , लक्ष्मीपुर गांव के दक्षिण तरफ पुराने बड़े जमींदार घर में अब वो अकेले ही रहते हैं । दादा व पिता के बाद यह तीसरी जमींदार पीढ़ी है । वंश परंपरा में उन्हें यह जमींदारी का कार्य मिला लेकिन उन्हें इस पर जरा भी रुचि नहीं था इसीलिए धीरे - धीरे जमीन जायदाद उनके हाथ से जाते रहे । अब केवल यही एक जमींदार महल उनके पास है । लेकिन यह घर भी ठीक-ठाक नहीं है , कहीं-कहीं दीवार खराब हो गया , कमरे की खिड़कियां
टूटकर झूल रही हैं तथा सभी जगह मकड़ियों का जाल फैला हुआ है । केवल उत्तर दिशा वाला कमरा अच्छी तरह है , उसी कमरे में जगन्नाथ सिन्हा रहते हैं । घर की ऐसी हालत है लेकिन मुखिया साहब का इस पर कोई ध्यान नहीं । बचपन से ही उन्हें ऐतिहासिक वस्तुएं पसंद थी , यही उनका शौक है। बहुत सारा पैसा खर्च करके उन्होंने देश के कई जगहों से ऐतिहासिक दुर्लभ वस्तुओं को मंगवाया है। वो इन्हीं सब में इतना मशगूल रहते थे कि अपने वंश का चिराग जलाना भी भूल गए । अब उनका उम्र 60 वर्ष पार कर चुका है लेकिन कभी उन्होंने अकेला महसूस नहीं किया । जब भी उन्हें लगा कि वह अकेले हैं उसी वक़्त अपने संग्रहालय में चले जाते और अपने बहुमूल्य वस्तुओं को निहारते रहते। लेकिन पिछले कुछ सालों से किसी कार्य में वह बहुत ही व्यस्त हैं । आजकल घर से बाहर नहीं निकलते तथा पहले की तरह लोगों से मिलते - जुलते भी नहीं। दिन के अधिकांश वक्त एक कमरे में न जाने क्या करते रहते हैं । शायद बहुत ही गोपनीय कुछ जिसे पूरी दुनिया से छुपाकर रखना चाहते हैं । इसीलिए आजकल उन्हें कुछ ज्यादा ही पढ़ना पड़ रहा है । अपना पूरा दिन वह विभिन्न किताब व पोथी को पढ़ने में बिता देते हैं और फिर दिन का उजाला समाप्त होते ही अपने उस विशेष कमरे में चले जाते हैं । ऐसा क्या है इस कमरे में और वहाँ मुखिया साहब करते क्या हैं ?
शारदा के मन में इस बारे में बहुत ही कौतूहल है। रामदयाल इस जमींदार घर का रख - रखाव संभालते थे , उनके दादा व पिता के बाद वह भी इस जमींदार वंश के सेवा कार्य को करते थे। शारदा इसी रामदयाल की लड़की
है । उसने अपनी लड़की की शादी करवाई थी लेकिन किसी बूढ़े के साथ , एक साल बीतते ही वह बूढ़ा स्वर्ग सिधार गया । इसीलिए रामदयाल ने शारदा को ससुराल में न रखकर अपने पास बुला लिया । इसके बाद मुखिया साहब के यहां काम पर लगवा दिया ।
रामदयाल को मरे हुए कुछ साल बीत गए , इसके बाद से इस जमींदार घर का सभी कार्य शारदा के ऊपर है।
मुखिया साहब के संग्रहालय पर शारदा की नजर हमेशा है। पिछले एक दो सालों में मुखिया साहब में बहुत सारा परिवर्तन आया है , शारदा की नजर इस पर भी है । लेकिन किस कारण से ऐसा हुआ शारदा को इस बारे में कुछ भी नहीं पता । उस कमरे में मुखिया साहब आखिर ऐसा क्या करते हैं जिसके बारे में वो किसी को भी नहीं बताते । शारदा के मन में कौतूहल दिन पर दिन बढ़ता ही रहा। पिछले कुछ दिनों से मुखिया साहब ने नहाना - खाना भी लगभग छोड़ दिया है । हमेशा न जाने क्या बड़बड़ाते रहते । कहीं यह आदमी पागल तो नहीं हो गया ?
एक दिन दोपहर के समय उन्होंने शारदा को बुलाकर कहा
" शारदा आज और तुम्हें कोई काम नहीं करना है , तुम्हें तीन दिन की छुट्टी देता हूं। तीन दिन बाद फिर आना । "
छुट्टी किसे पसंद नहीं इसीलिए शारदा को भी बुरा नहीं लगा लेकिन उसके दिमाग़ में कुछ सवाल अवश्य दौड़ रहे थे ।

इसके 3 दिन बाद की घटना है । प्रतिदिन सुबह 10 बजे मुखिया साहब को नाश्ता बनाकर देना पड़ता है इसीलिए शारदा साढ़े आठ बजे ही जमींदार घर में आ गई । घर का गेट खोलकर अंदर जाते ही सड़न की बदबू शारदा की नाक में आई । जमींदार घर के चारों तरफ वातावरण में कुछ सड़ा हुआ गंध मिला हुआ है । शारदा अपने नाक को कपड़े से दबाकर घर के अंदर जाने लगी। एक काला अदृश्य अंधेरा मानो पूरे घर के चारों तरफ घूम रहा है । अंदर मुखिया साहब का कोई अता पता नहीं । वह पहले रसोई घर में गई तथा वहां पर धूल जमा हुआ देखकर समझ गई कि 3 दिनों से यहां पर कोई भी नहीं आया ।
इसका मतलब क्या मुखिया साहब कुछ दिन घर में नहीं थे ?
अब शारदा मुखिया साहब को बुलाते हुए उनके कमरे में गई लेकिन वहां भी वह नहीं मिले । कई बार बुलाने के बाद भी जब मुखिया साहब नहीं दिखे तो उसने सोचा शायद वह घर के पास वाले बाग में गए होंगे ।
इधर सड़न की बदबू अब और भी तीव्र हो गया था , अब शारदा को उस कमरे के बारे में याद आया । वह रहस्य में कमरा जहां पर मुखिया साहब दिन का अधिकांश वक्त बिताते थे ।
मुखिया जगन्नाथ सिन्हा के कमरे के पास एक गली है। उसी गली नुमा जगह से सीधा जाने पर बाएं तरफ एक छोटा सा सीढ़ी है । शारदा उसी तरफ गई , उसे थोड़ा डर भी लग रहा है। सीढ़ी पर बहुत ही अंधेरा हैं और यहां से सड़न की बदबू भी और बढ़ गया । शारदा ने नाक को कपड़े से ढककर धीरे - धीरे सीढ़ी से नीचे उतरने लगी।
वहाँ नीचे एक कमरा है लेकिन उसका दरवाजा बंद है ।
शारदा जान गई कि सड़न की बदबू इसी कमरे से आ रही है । उसने जल्दी से दरवाजा खोल दिया । दरवाजे को खोलते ही जो दृश्य उसके सामने आया वह देख शारदा पूरी तरह सुन्न हो गई । दौड़ते हुए वह कमरे से बाहर जाने वाली थी लेकिन उसी वक़्त उसके अंदर का साहस जाग गई । वह धीरे - धीरे कमरे के और अंदर गई । वहां पूरे कमरे में कई प्रकार के सामान बिखरे हुए थे । जैसे कि बाल, बंदर का हाथ ,नाखून का टुकड़ा , कंकाल की खोपड़ी इसके अलावा कई जगह राख फैला हुआ है । और कमरे के बीचो - बीच मुखिया साहब का मृत शरीर पड़ा हुआ है। उनका मृत शरीर सड़ने की वजह से दुर्गन्ध आ रहा था । मुखिया साहब के शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं है लेकिन उनके फैले हुए अचंभित आंखों को देखकर समझा जा सकता है कि उन्होंने कुछ इतना भयानक देखा कि उनके दिल का धड़कन ही जवाब दे गया । मुखिया साहब के मृत शरीर के पास ही रखे एक विशेष मूर्ति की तरफ शारदा की नजर गई । यह तो वही मूर्ति है , मुखिया साहब के संग्रहालय में रखे सभी वस्तुओं में शारदा को यही मूर्ति सबसे ज्यादा पसंद है । यह मूर्ति देखने में बहुत ही सुंदर है ऐसी कोई बात नहीं लेकिन उसमें बहुत ही तेज आकर्षण है। यह मूर्ति पूरी तरह काला है । मूर्ति के दो हाथ तथा दोनों हाथों से किसी सरीसृप की तरह दो आदमी को पकड़ रखा है । मूर्ति में पुरुष व स्त्री उभय रूप से वर्णित है लेकिन मूर्ति का चेहरा बकरे के जैसा है । सिर के दो सींग ऊपर उठकर पीछे की तरफ मुड़ा हुआ है । पूरी मूर्ति एक मीटर के जितना लम्बा है ।
उस मूर्ति को अपने पास रखने की चाहत शारदा को हमेशा से ही थी और आज उसके पास बढ़िया मौका है ।
मूर्ति को उठाते वक्त शारदा ने देखा कि उसके पास ही एक लाल रंग का छोटा कॉपी रखा हुआ है । ना जाने क्या सोच शारदा ने मूर्ति के साथ उस कॉपी को भी उठा लिया

फिर मूर्ति व कॉपी को साड़ी से छुपाकर जल्दी ही जमींदार घर से निकल अपने घर की तरफ चली गई । ...

.... क्रमशः...