विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१५) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१५)

शकीला ने जब विश्वनाथ की सच्चाई सुनी तो उसके होश उड़ गए,उसने कहा...
वहशी,दरिन्दा इसलिए फूल सी बच्ची से बदला लेना चाहता था,इतने सितम किए इस नन्ही सी जान पर,मुझे नहीं मालूम था कि वो इतना गिरा हुआ इन्सान है नहीं तो मैं कभी भी उसका साथ नहीं देती,
कोई बात नहीं बहनजी! जो आपसे हुआ वो अन्जाने मे हुआ,धर्मवीर बोला।।
लेकिन अब मैं किसी भी कीमत पर उसका साथ नहीं दूँगी,कितने दुख सहे हैं मेरी बच्ची ने ,अब और नहीं,शकीला बोली।।
लेकिन बहनजी! आपकी वज़ह से ही तो हमारी बेटी को ममता की छाँव नसीब हो पाई,गिरधारीलाल जी बोले।।
मेरी तो यही है जो कुछ भी है,शकीला बोली।।
खालाज़ान! मुझे माफ कर दीजिए,मैने आपसे झूठ बोला,लाज बोली।।
कोई बात नहीं मेरी बच्ची! मेरे मन में अब तेरे लिए कोई मलाल नहीं है,तुझे तेरा परिवार मिल गया,तुझे तेरी खुशियाँ मुबारक,तू हमेशा ऐसे ही हँसती खिलखिलाती रहे,शकीला बोली।।
और शकीला ने प्यार से लाज को गले से लगा लिया.....
तभी प्रकाश भी अपने भाई विकास के संग वहाँ आ पहुँचा....
करन ने जैसे ही प्रकाश को देखा तो बोला....
आइए !प्रकाश भइया!...आइए..आइए...आपका ही इन्तज़ार हो रहा था...
तब प्रकाश ने अपने भाई विकास को करन से मिलवाते हुए कहा....
ये है मेरा छोटा भाई विकास!
कैसे हो विकास? करन ने पूछा।।
ठीक हूँ,विकास बोला।।
तो चलो फिर खड़े क्यों हो? टेबल पर खाने का इन्तजाम है,उस ओर चलकर खाने का लुफ्त उठाओ,सुरेखा ने खाने की बहुत गज़ब की तैयारी की है,करन बोला।।
तो फिर मैं तो चला,मुझे तो बहुत जोरों की भूख लग रही है,विकास बोला।।
ओए...भुक्खड़! औरों के लिए भी छोड़ देना,प्रकाश ने मज़ाक करते हुए विकास से कहा।।
विकास ! तुम जाकर खाने का लुफ्त उठाओ,मैं और प्रकाश भइया बाद में आते हैं,मुझे इनसे कुछ जुरूरी बात करनी हैं,करन बोला।।
ठीक है जी! मुझे कोई एतराज़ नहीं,मैं तो चला खाने और इतना कहकर विकास खाने की टेबल की ओर आया,प्लेट उठाई और तीन-चार मूँग पकोड़े ,कुछ हरी चटनी डाली प्लेट में और जैसे ही चेयर की ओर बैठने के लिए मुड़ा तो उसके सामने सुरेखा आकर बोली...
ये क्या हो रहा है ? और तुम कौन हो? तुम्हें यहाँ किसने बुलाया?
अरे,आप तो वही दुपट्टे वाली मोहतरमा है,जिनका दुपट्टा उस दिन मेरे मुँह पर आ गया था और मेरी हड्डियाँ टूटते टूटते बचीं थीं,विकास बोला।।
खूब पहचाना आपने,सुरेखा बोली।।
भला ऐसी आफ़त को कौन भूल सकता है,विकास बोला।।
अच्छा जी! तो मैं आफ़त हूँ,सुरेखा बोली।।
और क्या? मुझे तो कोई शक़ नहीं है,विकास बोला।।
आपके कहने का मतलब क्या है जी? सुरेखा ने पूछा।।
वही जो आप समझ रहीं हैं,विकास बोला।।
मैनें क्या समझा भला? सुरेखा बोली।।
वही जो मैने कहा,विकास बोला।।
आपने क्या कहा? सुरेखा ने पूछा।।
वही जो आपने समझा,विकास बोला।
ए..सुनो! जो भी हो तुम! ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो, ऐसी गोल गोल बातें करके मुझे घुमाने की कोशिश मत करो,मैं सब समझती हूँ कि तुम यहाँ बिन बुलाए मेहमान हो,सुरेखा बोली।
आप उन साहब से जाकर क्यों नहीं पूछतीं कि मैं कौन हूँ? विकास ने प्रकाश की ओर इशारा करते हुए कहा।।
अरे! वो तो प्रकाश भइया हैं,सी आई डी में हैं ,तुम्हारी सब हेकड़ी निकाल देगें,सुरेखा बोली।
मोहतरमा! आप तो खामखाँ में इतनी गरम हो रहीं हैं,आप क्या चाहती हैं कि मैं ये पकौड़े ना खाऊँ? विकास बोला।।
देखा डर गए ना! प्रकाश भइया का नाम लेते ही और इतना कहकर सुरेखा ने विकास के हाथों से प्लेट छीन ली।।
विकास कुछ नहीं बोला और दूसरी प्लेट उठाकर उसने अपनी प्लेट में कचौरियांँ रख लीं ,
बड़े बेशर्म इन्सान हो ,इतना बेइज़्ज़ती के बाद भी कोई लिहाज नहीं है,सुरेखा बोली।।
देखिए,मोहतरमा! खाने के मामले में मैं कोई शर्म लिहाज नहीं करता ,मुझे चुपचाप खाने दीजिए,विकास बोला।।
मुफ्त का माल है ना तो दबाए जाओ...दबाए जाओ,सुरेखा ने इतना कहकर फिर से प्लेट छीन ली।।
अब तो विकास के गुस्से का पार ना था और वो बोला....
मोहतरमा! क्या तकलीफ़ है आपको?मेरे खाने से...
आपने उस दिन माँफ़ी क्यों नहीं माँगीं?सुरेखा बोली।
ये अच्छा है भाई! मै उस दिन गिरते गिरते बचा और माँफी भी मैं ही माँगू,ये आपका कहाँ का इन्साफ है,विकास बोला।
तो गलती मेरी भी नहीं थीं,दुपट्टा उड़कर आपके चेहरे पर चला गया तो मैं क्या करूँ? सुरेखा बोली।।
उन दोनों की बहस देखकर लाज उनके पास आकर बोली....
क्या हुआ सुरेखा? और ये साहब कौन हैं?
वही तो इतनी देर से मैं भी इन जनाब से पूछने की कोशिश कर रही हूँ कि ये कौन हैं लेकिन ये सिवाय ठूसने के कुछ और कह ही नहीं रहें,सुरेखा बोली।।
माफ कीजिएगा मोहतरमा! अभी तक एक निवाला भी मेरे पेट मे नहीं गया,झूठ मत बोलिए,आपने दोनों बार मेरे हाथों से प्लेट छीन ली,विकास बोला।।
सुरेखा! ये क्या है? ऐसा कोई करता है भला,प्लेट क्यों छीनी? लाज बोली।।
माफ कीजिएगा दीदी! लेकिन ये भी हठधर्मी कर रहें हैं,सुरेखा बोली।।
आप ही बताइए दीदी! किसी भूखे इन्सान की प्लेट छीन लेना ,ये कैसा सलूक हुआ भला? विकास बोला।।
लेकिन दीदी! इस भूखे इन्सान से ये भी तो पूछो कि ये ब्राह्माण्ड के किस ग्रह से आएं है?सुरेखा बोली।।
हाँ,भाई! पहले तुम सुरेखा के सवाल का जवाब दो,लाज बोली।।
जी!मैं तो पृथ्वी ग्रह का प्राणी हूँ ,विकास बोला।।
लेकिन जनाब आपको यहाँ किसने बुलाया? सुरेखा ने खीझते हुए पूछा।।
जी! मैं तो अपने बड़े भइया के साथ आया हूँ,विकास बोला।।
और तुम्हारे बड़े भइया कौन हैं? सुरेखा ने पूछा।।
जी! वो रहें ,मेरे प्रकाश भइया! विकास बोला।।
तो पहले नहीं बोल सकते थे, इतनी देर से परेशान किए जा रहे हैं,सुरेखा बोली।।
लेकिन मोहतरमा!आपने मौका कहाँ दिया कुछ बोलने का,विकास बोला।।
मैने....मैने मौका नहीं दिया,ये क्यो नहीं कहते कि आप ठूसने मे बिजी थे,सुरेखा बोली।।
अब पता चल गया ना! अब तो बेचारे को खाने दे,चलो विकास मैं तुम्हारी प्लेट लगा देती हूँ,लाज बोली।।
देखो...और सीखो कुछ अपनी बड़ी बहन से कि किसी शरीफ़ के साथ कैसे पेश आया जाता है? विकास बोला।।
बहुत देर से आपकी बक बक सुन रही हूँ,अब चुप भी हो जाइए नही तो....सुरेखा बोली।।
क्या कर लेगीं आप? विकास बोला।।
अरे! तुम जैसों से तो बात करना ही बेकार है,सुरेखा बोली।।
तो मोहतरमा ! क्यों कर रहीं हैं बात? जाइए ना! और मुझे खाने दीजिए,विकास बोला...
सुरेखा! चल तो हम भी कुछ खा लेते हैं,इतना कहकर लाज ,सुरेखा को विकास से दूर ले गई।।
सबका खाना पीना चल ही रहा था कि तभी शर्मिला भी आ पहुँची और सबसे माँफी माँगते हुए बोली....
माँफ कीजिएगा! मुझे थोड़ी देर हो गई,डैडी घर पर थे इसलिए समय से नहीं निकल सकी....
तभी लाज बोली....
इसमें माँफ़ी माँगने की कोई जरूरत नहीं है शर्मिला! हम सब तुम्हारी मजबूरी समझ सकते हैं....
शर्मिला को देखते ही करन की बाँछें खिल गई,वो मन ही मन मुस्कुरा उठा,
उस रात शर्मिला की खूबसूरती देखते बनते थी,आज वो साड़ी पहनकर आई थी,धानी रंग की पारदर्शी हल्की साड़ी में उसकी छरहरी काया झलक रही थी,साथ में स्लीपलैस ब्लाउस साड़ी की मैंचिंग का था,उसने बीच से माँग निकाल कर लम्बी सी छोटी बना रखी थी,गलें में पतली सी सोने की चेन और कानों में सोने के ही छोटे छोटे टाप्स उसकी सुन्दरता पर चार चाँद लगा रहे थे।।
कुछ देर तक शर्मिला सबसे बातें करती रही,लाज ने उसे शकीला बानो से भी मिलवाया और फिर उसने सुरेखा और लाज के साथ ही खाना खाया।।
करन की बेताबी लाज और सुरेखा से छुप नहीं रही थी,वो चाहता था कि वो भी कुछ पल अकेले में शर्मिला के साथ बिताएं लेकिन उधर मौजूद बुजुर्गों का थोड़ा लिहाज तो करना ही पड़ता है क्योंकि वहाँ धर्मवीर,सेठ गिरधारीलाल जी और अनवर चाचा भी मौजूद थे फिर करन की इस उलझन को सुरेखा और लाज ने कुछ यूँ सुलझाया.....
शर्मिला! खाना ठीक से खाया ना तुमने,सुरेखा ने पूछा।।
हाँ,बहुत अच्छे से खाया,शर्मिला बोली।।
तुम्हें सबसे ज्यादा क्या पसंद आया? सुरेखा ने पूछा।।
मुझे सबसे ज्यादा दही-बड़े और मलाई कोफ्ता पसंद आया,शर्मिला बोली।।
और कुछ खाओगी तो लाऊँ,सुरेखा ने पूछा।।
बाप रे! बहुत खा लिया और खाऊँगी तो पेट फट जाएगा,शर्मिला बोली।।
अच्छा चलो तो थोड़ी देर लाँन की खुली हवा में जाकर बातें करते हैं,सुरेखा बोली।।
तो चलो,शर्मिला ने कहा...
और दोनों लाँन में लगे झूले पर जा बैठी,उन दोनों ने थोड़ी देर बात ही की थी कि लाज वहाँ आ पहुँची और सुरेखा से बोली...
सुरेखा! शकीला खालाज़ान तुमसे कुछ बात करना चाहतीं हैं....
लाज की बात सुनकर सुरेखा ने शर्मिला से कहा...
बस,अभी आई तुम यहाँ बैठो शर्मिला ! इतना कहकर सुरेखा अंदर गई और करन से बोली...
भइया! दीदी बाहर लाँन में झूले पर बैठीं हैं और आपको बुला रहीं हैं,कुछ जुरूरी बात है....
ठीक है !अभी जाता हूँ और इतना कहकर करन बाहर लाँन में आ पहुँचा,झूले के पास पहुँचा तो वहाँ शर्मिला अकेले बैठी थीं,शर्मिला को बैठे हुए देखकर करन ने पूछा...
आप यहाँ अकेले क्या कर रहीं हैं?
मैं तो सुरेखा के साथ यहाँ आई थी लेकिन लाज दीदी उसे बुलाकर ले गई हैं कुछ जुरूरी काम था,शर्मिला बोली।।
ओह...अच्छा! ,करन बोला।।
आप खड़े क्यों हैं? बैठिए ना! शर्मिला बोली।।
कहाँ बैठू? करन बोला।।
इतना बड़ा तो झूला पड़ा है,इसी पर बैठ जाइए,शर्मिला बोली।।
फिर करन झूले पर जा बैठा और बोला....
यहाँ हवा अच्छी चल रही है....
जी! और उस चाँद को देखिए ना! वो भी कितना खूबसूरत लग रहा है,शर्मिला बोली।।
लेकिन आप से ज्यादा नहीं,साड़ी में आप बहुत ही प्रिटी लग रहीं हैं,करन बोला।।
थैंक्यू! शर्मिला शरमाते हुए बोली।।
आपने ठीक से खाना खाया ना! करन ने पूछा।।
जी! हाँ! खाना बहुत ही लज़ीज़ था,शर्मिला बोली।।
आपको खाना बनाना आता है,करन ने पूछा।।
जी! नहीं! कभी मौका नहीं पड़ा सीखने का,शर्मिला बोली।।
मुझे आता है मैं सिखा दूँगा आपको खाना बनाना,करन बोला।।
तो आप क्या क्या बना लेते हैं खाने में? शर्मिला ने पूछा।।
दाल-चावल,सब्जी-पूरी,हलवा और भी बहुत कुछ आता है मुझे,करन बोला।।
अरे,वाह...तब तो एक दिन आपके हाथ का खाना खाकर देखना पड़ेगा,शर्मिला बोली।।
जी! जुरूर कभी भी आइए,आपका स्वागत है,करन बोला।।
जी जरूर आऊँगी,शर्मिला बोली।।
तभी शर्मिला और करन को किसी के हँसने की आवाज़े सुनाई दीं,उन्होंने नज़रे इधर-उधर दौड़ाकर देखा तो लाज और सुरेखा किसी झाड़ी की ओट से बाहर निकली और फिर सुरेखा बोली.....
दीदी! हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर गया,फालतू में इन लोगों को अकेले बैठने का मौका दिया, ये तो प्यार की बातें ना करके खाना डिस्कस करने बैठ गए....
सुरेखा की बात सुनकर करन बोला ....
तो ये आपलोगों की साजिश थी....

क्रमशः...
सरोज वर्मा.....