विश्वासघात--(सीजन-२)-भाग(१६) Saroj Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--(सीजन-२)-भाग(१६)

करन भइया! हमने सोचा था कि आप दोनों को कुछ देर अकेले छोड़ दे तो आप लोंग दूसरे से अपने दिल का हाल बयां कर लें लेकिन आपलोंग तो आपस में अपनी अपनी रसोई बयां करने लगें,सुरेखा हँसते हुए बोली।।
ऐसा कुछ नहीं था सुरेखा,शर्मिला बोली।।
हाँ...हाँ...अब छुपाने से कोई फायदा नहीं,हमें सब पता चल गया है,सुरेखा बोली।।
लाज दीदी! आप ही सुरेखा को कुछ क्यों नहीं समझातीं?करन बोला।।
अब मैं क्या समझाऊँ? वो सही तो कह रही है,लाज बोली।।
दीदी! आप भी! करन बोला।।
जो दिल में है कह दो ना एकदूसरे से,लाज बोली।।
आप लोंग मुझे परेशान कर रहे हैं,मैं जा रहा हूँ यहाँ से,करन बोला।
करन! ठहरो! लो हम लोंग चले जाते हैं यहाँ से,लाज बोली।।
नहीं दीदी! आप भी हमलोगों से बातें कीजिए,शर्मिला बोली।
नहीं! शर्मिला! अब तुम लोंग बातें करो,मैं और सुरेखा यहाँ से जाते हैं,लाज बोली।।
और इतना कहकर लाज ,सुरेखा के साथ भीतर चली आई....
उन दोनों के जाने पर करन बोला...
चलो भाई! चलीं गई दोनों बहनें...
क्यों ? उनका जाना आपको अच्छा लग रहा है,शर्मिला बोली।।
मैने ऐसा तो नहीं कहा,करन बोला।।
तो आपके कहने का क्या मतलब था? शर्मिला बोली।।
यही कि हम थोड़ी और कुछ वक्त साथ में बिता पाएंगें,करन बोला।।
अच्छा तो ये बात थी,शर्मिला बोली।।
जी! हाँ! यही बात थी,करन बोला।।
उसकी बात सुनकर शर्मिला शरमा गई और दोनों फिर से अपनी बातों में मगन हो गए....
और उधर लाज अकेली बैठी हुई थी तभी प्रकाश ने उसके पास जाकर पूछा....
खाना खा लिया आपने!
जी! हाँ! और आपने खाया,लाज बोली।।
जी,मैने भी खा लिया,प्रकाश बोला।।
बहुत बढ़िया,लाज बोली
और आप ठीक तो हैं ना! प्रकाश ने पूछा।।
जी!बिल्कुल!ठीक हूँ।। लाज बोली।।
जी! तो अब चलूँ! देर हो रही है,माँ इन्तज़ार करती होगी,प्रकाश बोला।।
माँ से मिलने की इच्छा तो मुझे भी है,लाज बोली।।
जल्द ही मिलवाता हूँ ,प्रकाश बोला।।
तभी अनवर चाचा ने प्रकाश को पुकारा... प्रकाश! यहाँ तो आना जरा,
जी! अभी आया इतना कहकर प्रकाश चला गया।।
आओ बर्खुरदार! अब आगें की योजना क्या है?जरा सबको बताओ!!,अनवर चाचा बोले।।
पहले सबको एक साथ बुला लीजिए,फिर योजना समझाता हूँ,प्रकाश बोला।।
ठीक है और इतना कहकर अनवर चाचा ने सबको इकट्ठा कर लिया,अब प्रकाश ने सबको योजना बतानी शुरू की,
सबसे पहले लाज जी अब क्लब जाना शुरू करेगीं और शकीला आण्टी ,विश्वनाथ से कहेंगीं कि उनकी याददाश्त आना शुरू हो चुकी है उसे कुछ कुछ याद आ रहा है,लाज जी क्लब जाएगीं तो हरदयाल थापर भी क्लब आएंगे,
क्लब मे जो कुछ होगा वो हरदयाल जी ,विश्वनाथ को जरूर बताएंगे और हरदयाल जी की बातें शर्मिला जी सुनेंगीं,उनके टेलीफोन काल्स भी रिकॉर्ड किए जाएगे और फिर देखते हैं कि क्या क्या और कौन कौन सी बाते विश्वनाथ के विषय में सामने आतीं हैं।।
हाँ! यही ठीक रहेगा,करन बोला।।
मुझे दोबारा क्लब नहीं जाना,बड़ी मुश्किलों से पीछा छूटा है,लाज बोली।।
लेकिन दीदी! विश्वनाथ का पर्दाफाश करने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा,करन बोला।।
मुझे अच्छा नहीं लगता था क्लब जाना ,पहले तो मजबूरी थी लेकिन अब तो कोई मजबूरी भी नही है,लाज बोली।।
बिटिया! किसी को अच्छा नही लगता कि हमारे घर की बेटियांँ यूँ क्लबों में जाएं,लेकिन अपने पिता पर लगा कलंक हटाना चाहती हो ना ! माँ के हत्यारे को सजा दिलवाना चाहती हो ना !तो ये सब करना पड़़ेगा,गिरधारीलाल जी बोले।।
मैं तो कभी नहीं कहूँगा कि मेरी बेटी फिर से उस दलदल मे फँसे,धर्मवीर बोला।।
लेकिन भाईसाहब! इसके सिवाय कोई और रास्ता भी तो नहीं है,शकीला बानो बोली।।
शायद आप ठीक कहती हैं बहनजी! लेकिन लाज का दोबारा वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं,धर्मवीर बोला।।
लेकिन मैं रहूँगा ना वहाँ पर , मुझे भी उनकी फिक्र है,प्रकाश बोला।।
मुझे आप पर पूरा भरोसा है प्रकाश भइया! करन बोला।।
और मैं भी तो रहूँगा वहाँ पर भइया के साथ,विकास बोला।।
तुम दोनों कहते हो कि लाज की सुरक्षा करोगे तो मै भी रजामंद हूँ,धर्मवीर बोला।।
चलो ठीक है अब सब चलते हैं,शर्मिला को देर हो रही है,अगर उसके पिता जी को कुछ पता चल गया तो आफ़त आ जाएगी,अनवर चाचा बोले।।
हाँ! आप सही कहते हैं,अनवर चाचा!करन बोला।।
तो मैं अब चलती हूँ,शर्मिला बोली।।
कैसे जाओगी बिटिया !इतनी रात को?गिरधारी लाल जी ने पूछा।।
जी! मैं मोटर लाई हूँ,चली जाऊँगी,शर्मिला बोली।।
डर रही हो तो मैं अपनी मोटर में छुड़वा दूँ,साथ में सुरेखा को भेज दूँ,गिरधारीलाल जी बोले।।
जी नहीं अंकल मैं चली जाऊँगी,शर्मिला बोली।।
ठीक है बिटिया! गिरधारी लाल जी बोले।।
अब चलती हूँ !और इतना कहकर शर्मिला चली गई,लाज और शकीला बानो भी अपनी मोटर से चले गए,इधर अनवर चाचा और धर्मवीर भी अपनी टैक्सी से चले गए।।
शर्मिला घर पहुँची ही थी कि उसके पिता पहले से ही घर में हाजिर थे और शर्मिला मोटर गैराज मे लगाकर जैसे ही भीतर पहुँची,उन्होंने शर्मिला से पूछा....
कहाँ से आ रही हो? इतनी रात गए।।
जी! डैडी! सहेली के यहाँ गई थी,उसकी सालगिरह मनाने,शर्मिला ने जवाब दिया।।
सच कह रही हो,हरदयाल ने पूछा।।
जी! डैडी! मुझे आपसे झूठ बोलने की क्या जरुरत है? शर्मिला बोली।।
ठीक है,लेकिन आइन्दा इतनी देर ना हो याद रखना,हरदयाल बोला।।
जी! डैडी ! याद रखूँगी,शर्मिला बोली।।
मैं कब से खाने के लिए तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था? बताकर जाती तो खाना खा लेता,हरदयाल बोला।।
डैडी! मैं खाकर आई हूँ,आप खाना खा लीजिए,शर्मिला बोली।।
अब भूख नही है,दूध पी लूँगा,हरदयाल बोला।।
लेकिन आप भूखे क्यों सोएगे? शर्मिला बोली।।
अब भूख नहीं है,मैं अपने कमरे में जाता हूँ और तुम भी जाकर सो जाओ,हरदयाल बोला।।
ठीक है डैडी! और शर्मिला भी इतना कहकर अपने कमरें में सोने चली गई।।

और उधर विश्वनाथ के अड्डे पर.....
बाँस! एक ख़बर लाया हूँ, जाँन ने विश्वनाथ से कहा।।
जल्दी बको,विश्वनाथ बोला।।
बाँस! मैने इन्सपेक्टर करन के घर से हरदयाल की बेटी को निकलते देखा है,कुछ तो चल रहा है वहाँ,जाँन बोला।।
क्या बकते हो? विश्वनाथ बोला।
हाँ! बाँस और तो और वो आपकी शकीला बानो और जूली भी उसके घर से लौट रही थीं,जाँन बोला।।
कुछ ना कुछ तो खिचड़ी जरूर पक रही है लेकिन क्या? उसका पता तो लगाना होगा,विश्वनाथ बोला।।
हाँ! बाँस,जाँन बोला।।
चौबीसों घण्टे नज़र रखो इन्सपेक्टर पर,एक एक बात की खबर लाकर मुझे दो,विश्वनाथ बोला।।
यस बाँस! जाँन बोला।।
मैं अभी हरदयाल को टेलीफोन करके पूछता हूँ कि क्या माजरा है? और इतना कहकर विश्वनाथ ने हरदयाल को टेलीफोन लगाया....
हरदयाल के घर के टेलीफोन की घंटी बजी....
हरदयाल ने टेलीफोन उठाकर कहा....
हैलो! हरदयाल स्पीकिंग...
मैं विश्वनाथ बोल रहा हूँ,विश्वनाथ बोला।।
अच्छा..अच्छा..कहो,हरदयाल ने कहा।।
तुम्हारी बेटी इन्सपेक्टर के घर में क्या कर रही थी?,विश्वनाथ ने पूछा...
कहना क्या चाहते हैं ? हरदयाल ने पूछा।।
यही कि अभी कुछ देर पहले तेरी बेटी इन्सपेक्टर के घर से लौटी है,विश्वनाथ बोला।।
ये झूठ है,वो ऐसा कभी नहीं कर सकती,मैने उसे मना किया था,हरदयाल बोला।।
और तो और शकीला और जूली भी वहाँ गए थे,हरदयाल तू मेरे साथ बहुत बड़ा गेम खेल रहा है,मैने तुझे समझाया भी था,अब तूने शेर के मुँह में अपना पंजा डाला है,उसकी सजा तो तुझे भुगतनी पड़ेगी,विश्वनाथ बोला।।
मुझे इस बारें में कुछ नहीं पता,विश्वनाथ!हरदयाल बोला।।
झूठ बोलता है तू,विश्वनाथ बोला।।
मैं सच कहता हूँ,हरदयाल बोला।।
अब देख तेरा क्या अंजाम होगा? इतना कहकर विश्वनाथ ने टेलीफोन काट दिया।।
विश्वनाथ की बात सुनकर हरदयाल ने फौरन ही कागज के टुकड़े मे कुछ लिखा,फिर उसकी तबियत बिगड़ने लगी ,डर के मारे उसे पसीना आने लगा , कुछ ही देर में उसके सीने में जोर का दर्द हुआ , वो छाती पकड़कर रह गया और कुछ ही देर में वो जमीन पर गिर पड़ा...
सुबह हुई,जब नाश्ता करने हरदयाल टेबल पर नहीं पहुँचा तो शर्मिला उसे बुलाने उसके कमरें पहुँची,कमरे में पहुँचते ही उसके होश उड़ गए,हरदयाल को जमीन पर पड़ा हुआ देखकर उसने फौरन डाक्टर को टेलीफोन किया और डाक्टर ने जैसे ही हरदयाल का चेकअप किया तो पता चला कि हरदयाल कब का दुनिया छोड़कर जा चुका है।।
ये सुनकर शर्मिला चीख उठी...अब वो अनाथ जो हो चुकी थी.....उसने हरदयाल का हाथ पकड़ा तो देखा कि हाथ में कागज का टुकड़ा है,नौकरों और डाक्टर की नज़र बचाकर उसने वो टुकड़ा निकाला और पढ़ा...
उसमे लिखा था कि शर्मिला बेटी !विश्वनाथ से बचकर रहना,अब शर्मिला को सब समझ आ गया था कि रात को टेलीफोन की घंटी बजी थी शायद विश्वनाथ का ही टेलीफोन होगा और उसने ही डैडी से कुछ कहा होगा तभी डैडी की तबियत बिगड़ी होगी...
हरदयाल के अंतिम संस्कार के बाद शर्मिला बिल्कुल अकेली हो गई थी,उसे डर भी लगता था इसलिए गिरधारीलाल जी उसे अपने घर बुला लिया......
और अब विश्वनाथ ने क्लब की बागडोर किसी और के हाथ में सौंप दी थी,इधर जूली और शकीला का राज जानने के लिए विश्वनाथ आतुर हो उठा,जूली क्लब जाती तो वो भी वेष बदलकर वहाँ जाता,लेकिन जूली की सुरक्षा के लिए प्रकाश और विकास भी वहाँ जाते हैं।।
और आखिर एक दिन विश्वनाथ को कुछ पता चला...

क्रमशः...
सरोज वर्मा.....