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अस्थि-कलश

कुछ सालों पहले की बात है,तब मेरी शादी नहीं हुई थी,मैं आगरा से झाँसी अपने घर जा रहा था,चूँकि मैं आगरा मैं एक प्राइवेट कम्पनी में जाँब करता था,दशहरे की छुट्टियाँ हुईं तो मैने सोचा आगरा में रहकर क्या करूँगा?क्यों ना अपने घर झाँसी चला जाऊँ?इसलिए समय बर्बाद ना करते हुए मैनें रात की बस पकड़ने का प्लान बनाया ,सोचा अगर नौ बजे की बस भी मिल जाएगी तो रात को दो तीन बजे तक घर पहुँचकर थोड़ा सो भी लूँगा और बस स्टाप आकर मैं बस में सबसे आगे वाली सीट पर आकर बैठ गया,मेरे बगल वाली सीट एकदम खाली थी, बस में ज्यादा सवारी भी नहीं थीं,ज्यादातर खाली ही थी,कुछ देर बाद बस चल पड़ी ,अक्टूबर का महीना था हल्की गुलाबी ठंड थी ,चूँकि बस एयरकंडीशनर नहीं थी इसलिए एकाध घण्टे के बाद मुझे हल्की ठंड महसूस हुई।।
मैं अपने साथ ओढ़ने के लिए कुछ भी ना लाया था,एक चादर तक नहीं,रात का अन्धेरा,बाहर सुनसान सड़क और रात मे भूतों की तरह दिखने वाले पेड़ पौधे,बस में बिल्कुल हल्की नाइट बल्ब की नीली सी रोशनी थी ,ड्राइवर रफ्तार से बस चलाए जा रहा था इसलिए और भी ठण्ड महसूस होने लगी,मैने विन्डो भी बन्द कर दी लेकिन ठण्ड का असर कम होता ना दिखाई दिया।।
मुझे झपकी आ रही थी लेकिन ठण्ड की वजह से मैं सो नहीं पा रहा था,तभी अचानक मेरे बगल वाली सीट पर एक आण्टी आईं और मुझे शाँल देते हुए बोलीं.....
बेटा! मैं बहुत देर से तुम्हें पीछे की सीट से देख रही थी कि तुम्हें ठण्ड लग रही है इसलिए रहा ना गया,ये मेरा शाँल ओढ़ लो तुम्हें ठण्ड नहीं लगेगी....
मैने हल्की रोशनी में उनके चेहरे को ध्यान से देखा तो वो तो हमारे मुहल्ले की ही आण्टी निकलीं जो दो गली छोड़कर रहतीं हैं,मैं उनके बेटे को भी जानता हूँ,उनके बेटे का नाम प्रमोद है जो कि मेरे ही साथ स्कूल मे पढ़ता था।।
मैने आण्टी को नमस्ते की और शाँल के लिए उन्हें थैंक्यू बोला.....
फिर वो बोलीं....
बेटा! तुम्हें क्यों एतराज़ ना हो तो मैं तुम्हारी सीट पर आकर बैठ जाऊँ,पीछे की सीट में दिक्कत हो रही है,
मैने कहा..
आण्टी ! भला मुझे क्या एतराज़ हो सकता है?आप आराम से बैठ जाइए।।
मेरे कहने पर वो मेरी बगल वाली खाली सीट पर बैठ गई,लेकिन उन्होंने शाँल नहीं ओढ़ा था तो मैने उनसे पूछा....
आण्टी ! क्या आपको ठण्ड नहीं लग रही? आपने अपना शाँल मुझे क्यों दे दिया?
वो बोलीं...
बेटा! अब मुझे किसी मौसम का एहसास नहीं होता,तुम आराम से सो जाओ,मेरी चिन्ता मत करो।।
मैने कहा,ठीक है आण्टी !और इतना कहकर मैं सो गया।।
बस करीब रात को ढ़ाई बजे झाँसी पहुँच गई,कण्डक्टर ने सबको आवाज दी....
उतरो....भाई...उतरो...झाँसी आ गया।।
मैं जागा,मैने देखा कि मेरे बगल में आण्टी नहीं थीं ,मैने सोचा पहले ही उतर गईं होगीं,मैने अपना बैग उठाया और मैं भी बस से उतर गया,बाहर आकर देखा तो प्रमोद खड़ा था,मैने सोचा शायद आण्टी को लेने आया होगा....
मैं उसके पास जाकर पूछा...
यार! कैसा है?
वो उदास मन से बोला...
ठीक हूँ यार!
मैने पूछा ,इतना दुखी क्यों है भाई?
वो बोला, मैं कुछ दिनो के लिए अपने आँफिस के काम से आष्ट्रेलिया गया था,तू तो जानता है पापा हैं नहीं,मैने सोचा मम्मी की तबियत भी ठीक नहीं रहती इसलिए मैने उन्हें दीदी के पास आगरा भेज दिया,वहाँ उन्हें हार्ट अटैक आया और वो हमें छोड़कर चलीं गई,मैं बदनसीब उनका अन्तिम संस्कार भी ना कर पाया,कल ही लौटा हूँ इसलिए आज भाँजा इसी बस में माँ की अस्थियों का कलश लेकर आया है,उसी को लेने आया था,ये रहा मेरा भाँन्जा उदित।।
मैने उदित को देखा तो सच में उसके हाथ में अस्थियों का कलश था,ये देखकर मेरा दिमाग एक पल को शून्य हो गया,इतने में प्रमोद बोला.....
यार! अभी मैं चलता हूँ फिर कभी मिलते है और इतना कहकर वो चला गया।।
मैं थोड़ी देर वहीं खड़े होकर सोचता रहा कि वो फिर कौन थीं?जिनके संग मैने बस यात्रा की और उनका शाँल अभी भी मेरे कन्धे पर था।।

समाप्त......
सरोज वर्मा....


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