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बेटी का पत्र

क्या हुआ जी?
आज आप बहुत दुःखी लग रहे, ठीक से खाना भी नहीं खा रहे!!
हवलदार रामकिशोर की पत्नी सुधा ने अपने पति से पूछा।।
बस ऐसे ही मन नहीं कर रहा, रामकिशोर बोला।।
पर क्यो?बात क्या है?सुधा ने फिर से रामकिशोर से पूछा।।
हमारी भी एक ही बेटी है!!कल को ये ससुराल चली जाएगी तो क्या हम इसे छोड़ देंगे भूल जाएंगे, अपने दोनों बेटों को ज्यादा अहमियत देने लगेंगे।।
कैसी बातें कर रहे हो जी?क्या हो गया है आज तुम्हें?सुधा ने कहा।।
बस ऐसे ही पूछ रहा हूं, रामकिशोर बोला।।
ऐसा कैसे हो सकता, उसे भी मैंने नौ महीने पेट में रखा है,जन्म दिया है,दूध पिलाया है, पढ़ा लिखा रहे हैं,उसकी शादी के बाद उसे कैसे भूल सकते हैं लेकिन ऐसा सवाल तुम्हारे मन में आया कैसे?
आज जो थाने में हुआ ना उसे देखकर मन भर आया,एक औरत की लाश आई थीं, उसने जहर खाकर जान दे दी थीं और इतना ही नहीं साथ में अपने बेटे और बेटी को भी जहर दे दिया था, बहुत प्यारे- प्यारे बच्चे थे,बारह साल की बेटी और दस साल का बेटा।।
ऐसा क्यों करना पड़ा उसे, कुछ पता चला, सुधा ने पूछा।।
ससुराल वालों की वजह से,पति की वजह से और सबसे ज़्यादा अपने मां बाप की वजह से, रामकिशोर बोला।।
क्यो? ऐसा क्या किया, मां-बाप ने, सुधा ने पूछा।।
उस औरत ने मरने से पहले एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें सब लिखा है,सबूत के तौर पर उस चिट्ठी को रखा गया है जो कि उस औरत ने अपने पिता को लिखी थी।
इन्सपेक्टर साहब से इजाजत लेकर मैंने अपने फोन में उस औरत की चिट्ठी की फोटो ले ली,लो पढ़ लो तुम्हें भी रोना आ जाएगा, हवलदार रामकिशोर बोला।।
सुधा ने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया_____

dear Papa!!

मुझे किसी से अब कोई शिकायत नहीं है, शिकायत तो तब होगी ना,जब कोई सुनने वाला होगा,अब कोई भाव ही नहीं उठते,ना खुशी के ना ही गम के,जीवन बोझ सा लगने लगा,जिसे अब तक ढों रही थी,क्या करूं?सारी संवेदनाएं और भावनाएं ही मर गई है,आप लोगों ने कभी मेरा नाम पुष्पा रखा होगा लेकिन अब मैं फूल से पत्थर बन गई हूं,जीवन से संघर्ष करते-करते बहुत थक गई हूं,अब आराम करना चाहती हूं, हमेशा के लिए।।
कितना बड़ा पाप हो जाता है ना हम बेटियो से इस दुनिया में आकर, सबसे पहले लोगों के मुंह से यही शब्द निकलता है कि हाय राम!!बेटी हुई है, पैदा होते ही मां बाप को चिंता सताने लगती है, मां सोते-जागते बस यही सोचती है कि बेटी है इसे तो पराये घर जाना है इसका दहेज जुटाना है, मां जो सोचती है वहीं विचार दूध के साथ घुल-घुल कर बेटी के शरीर और मन में जातें हैं,उसे हर बात बात पर कहा जाता है,तुझे तो पराए घर जाना है, कैसे खा रही, कैसे बैठ रही है, अभी सीख ले कल को पराये घर जाना है और पराए घर जाकर वहां भी उसे कोई भी अपना नहीं बनाता तो इसका मतलब बेटी का तो कोई घर ही नहीं होता।।
सयानी होने पर अगर राह चलते किसी ने कोई अभद्र टिप्पणी कर दी तो मां को बताने पर मां ने कहा तू अब बड़ी हो गई है दुपट्टा डाला कर,सूट पहना कर, किसी से उलझना नही तुम लड़की हो अगर दादी को पता चल गया तो तेरी पढ़ाई बंद करवा देंगी, मां ने पहली सीख देती कि तुम बेटी हो तो सहो, मतलब अभद्र टिप्पणी करें कोई और हमें चुप इसलिए रहना कि हम लड़कियां हैं,भाई चाहे छोटा ही क्यो ना हो लेकिन उसे हक होता है हमसे कहने का कि बालकनी में खड़ी मत हो, अकेले मत जाना मैं छोड़ आऊंगा, आखिर क्यों?
मां-बाप की हिम्मत ही नहीं होती कि बेटी को बाहर पढ़ने के लिए, यहीं डर रहता कि कोई ऊंच-नीच हो गई तो और लड़के चाहे बाहर रहकर अय्याशी करें, मां-बाप का पैसा उड़ाए क्योंकि वो तो लड़के हैं, उनसे तो वंश बढ़ेगा, खानदान का नाम बढ़ेगा फिर बाद में बहु आने के बाद वो चाहे खाने को भी ना पूछे।।
पापा आपने कभी मेरी पसंद पूछी,आपको तो जो लड़का सही लगा,दादी को सही लगा वहीं शादी कर दी और सबसे बड़ी बात बेटी की शादी करने के बाद लोग तो गंगा नहाने जाते हैं,घर का कचरा थी उसके रहने से हम अपवित्र हो गये थे तो उसकी शादी करके गंगा नहा आते हैं।
और लड़कों को बेटा ये लड़की पसंद है पूछने पर अगर उसने मना कर दिया तो फिर दूसरी लड़की देखी जाएगी और कहीं पचासों लड़कियां देखने के बाद शादी होगी।।
अरे भाई!!कभी हम लड़कियों से भी पूछ लो कि हमें लड़का पसंद है कि नहीं!!
आपको पहले से पता था कि उनकी बड़ी बहु यानि की मेरी जेठानी को उन लोगों ने छत से धक्का देकर मार दिया था फिर भी आपने मेरी शादी उस घर में कर दी।।
शादी के बाद ससुराल में सबकुछ करने के बाद भी तुम्हारे मम्मी-पापा ने कुछ नहीं सिखाया,पति से बोलो तो___
अरे! मां है, बड़ी है कह दिया होगा, बड़ो के बोलने को आशीर्वाद समझा करो,पति बिना बताए घर वालों कितना पैसा दे रहा तो पूछने पर___
तुम्हारी जरूरतें पूरी हो रही है ना!! तो फिर क्यो बोल रही हो,मैं कमा रहा हूं तुम्हें पूछने की कोई जरूरत नहीं है,मायके वालों से कहा तो कहते हैं, बेटा ससुराल है सब सहना पड़ता है, मायके वाले सोचते हैं कि ऐसा ना हो कि बेटी आवाज उठाने लगे तो ससुराल से निकाल दिया जाए, मायके में ना आ जाए रहने के लिए तो चार लोग क्या कहेंगे, मतलब बेटी अगर मर रही है तो बेटी की जिंदगी का फैसला चार लोग करेंगे, आखिर कौन है ये चार लोग?
अपनी मेहनत से मैंने नौकरी भी पा ली थी मगर ससुराल वालों ने छुड़वा दी,काश आप एक बार कह देते कि ऐसा मत करिए आप लोग मेरी बेटी के साथ, पापा मैं आपकी इकलौती बेटी थी,आपके पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी चाहते तो रख लेते अपने घर,एक बार कह देते कि बेटी ये भी तो तुम्हारा ही घर है।।
फिर मैंने बेटी को जन्म दिया,ये मैंने सबसे बड़ा पाप कर दिया,इतने ताने सुने, मेरी बेटी के लिए कोई भी खुशी नहीं थी किसी के मन में,बच्चे के आने के तीन महीने पहले आप लोग के पास भेज दिया ,उन लोगो को पता चल गया कि बेटी हुई है तो छै महीने तक कोई लेने नहीं आया, किसी ने फोन तक नही किया,तब भी आपने कुछ नहीं कहा, फिर दो साल बाद बेटा भी आपके ही यहां हुआ लेकिन तब फ़ौरन बुला लिया गया क्योंकि बेटा हुआ था।।
कैसे दोगले लोग हैं, गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं,आपको पता है जब एक बार मां बिमार पड़ी थी, मुझे उनको देखने आना था, ससुराल में बहुत बहुत किच-किच हुई कोई भी मुझे नहीं आने देना चाहता था,मैं अपने पति के साथ आ तो गई रो कर लेकिन बस में उन्होंने मुझे किसी और आदमी के बगल में बैठा दिया था और खुद किसी और के बगल में बैठ गये थे,उस दिन मुझे लगा था कि इसे मैं अपना समझ रही थी वो तो कभी मेरा हुआ ही नहीं।।
पापा मैंने सब सहा लेकिन उस दिन की घटना मैं ना सह सकीं कोई भी घर में आया हुआ रिश्तेदार मुझे छूने की कोशिश करें, मेरे साथ बदतमीजी करें , मैंने सास से कहा तो बोली मेरे दामाद पर झूठा इल्जाम लगाती है तू ही ऐसी होगी और उन्होंने अपने दामाद की बात का विश्वास कर लिया,उस दिन पति ने भी मुंह मोड़ लिया आप लोगों से फोन पर बात की तो आप लोगों ने कहा कि ससुराल है बेटा!!सहना पड़ता है, आखिर उस दिन मैं अपनों से हार गई, कहां से लाती जीने के लिए इतनी हिम्मत।।
एक हफ्ते तक बहुत सोचा फिर घर में कनेर और धतूरे के पेड़ों के बीज लेकर मैंने पाउडर बनाया, सिर्फ अपने बच्चों और अपनी रोटियों के आटे में गूंथकर रोटियां बनाकर हम तीनों ने खाना खाया और अब खाना खाकर चिट्ठी लिख रही हूं, बच्चों को किस के भरोसे छोड़ती आपलोगो के ,जो मेरे नहीं हुए वो मेरे बच्चों के क्या होंगे।।
सबसे बड़ी गलती मेरी है,इसके लिए मैं ही दोषी हूं, मुझे शुरू से आवाज उठानी चाहिए थी।।
और एक विनती है, मेरी लाश को जलाने के बाद राख को कलश में कैद मत करना,बस मेरी राख को ऐसे ही उड़ने देना, मैं जीते जी तो नहीं लेकिन मरने के बाद आजादी को महसूस करना चाहती हूं,धरती छूना चाहती हूं, आसमां छूना चाहती हूं,जल,थल और वायु में स्वच्छंद उड़ना चाहती हूं, आजादी का मतलब समझना चाहती हूं,अपनी मन मर्जी से सिर्फ उसके पैर पर लगूंगी जिसके पैरो में वाकई लगना चाहती हू़ं, उड़कर खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं जो जीते जी ना कर सकी।।

आपकी बेटी पुष्पा__

सरोज वर्मा___


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