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सौ साल पुरानी हवेली

सौ साल पुरानी हवेली...!!

बात बहुत पुरानी हैं, आज से लगभग पैतालिस साल पुरानी, तब मै नया नया डाकबाबू हुआ था,एक कोई छोटा सा कस्बा था जहां मेरी पहली पोस्टिंग हुई थीं, नौकरी मिलने की खुशी भी थी और घर छोड़ने का दुःख भी,बस फिर क्या था निकल पड़ा, बोरिया बिस्तर बांधकर, उस कस्बे मे, उस समय इतनी सुविधाएं नही हुआ करती थीं, दिनभर के सफर के बाद बस रात को बारह बजे,उस कस्बे पहुंची।।
अंजान जगह और इतनी रात गए उस जगह कोई ठिकाना भी नही मिलने वाला था, मैं बस से उतरा उस कस्बे के भीतर संकरी गलियों मे चलता गया, कोई भी दुकान और किसी भी घर का दरवाज़ा खुला नही था कि मैं किसी से पूछ सकूँ कि रात गुजारने के लिए कोई जगह मिलेगी, फिर मन मे आया कि वहीं बस अड्डे मे ही किसी से पूछ लेना चाहिए था कि कोई रात भर के लिए सर छिपाने की जगह मिलेगी।।
मैं ऐसे ही चलता चला जा रहा था, तभी गली से हटकर थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा हवेलीनुमा मकान दिखा,जहां से रोशनी आ रही थी,मैने सोचा,चलो कोई तो मिला, जो अभी तक जाग रहा हैं,इसी के घरवालों से पूछते हैं कि यहाँ कोई रात भर के ठहरने की ब्यवस्था हो जाए तो,
मैं उस बडे़ मकान के पास पहुंचा तो वो सच में मकान नही, हवेली ही थी,दरवाजे के पास जाकर उसे खटखटाते वक्त थोड़ा संकोच तो हुआ लेकिन मैंने भी बेशर्म बनकर दरवाज़ा खटखटा ही दिया,क्या करूँ, मजबूरी थी।।
दरवाजा खटखटाते ही एक नवयुवती ने दरवाज़ा खोला, जो कि घूघंट मे थीं, मैनें उसे अपनी समस्या बताई और साथ मे अपना नियुक्ति पत्र भी दिखाया, उसनें मेरी बात पर भरोसा कर लिया।।
फिर वो बोली, अगर आपको एतराज़ ना हो तो रातभर के लिए आप यहीं हवेली मे रूक सकते हैं, बाहर की ओर इस हवेली के साथ लगा हुआ एक नौकरों वाला कमरा हैं, सारा जरूरत का सामान वहां हैं,जैसे कि बिस्तर वगैरह, बस मैं आपके लिए उस कमरें में पीने का साफ रख देती हूँ और कुछ जलपान की ब्यवस्था कर देती हूं।।
मैने कहा इसकी कोई आवश्यकता नही हैं आप सिर्फ़ पीने का पानी रख दीजिए और वो कमरा बता दीजिए कहाँ हैं?बस !वो ही बहुत होगा, मेरे लिए।।इतना क्या कम हैं कि रात भर के लिये सर छुपाने की जगह मिल गई।।
वो बोली ,ऐसे कैसें?
आप हमारे मेहमान हैं, पहली बार पधारे हैं, बिना कुछ खाएं, कैसे सो जाएगें, अभी आपके लिए कुछ लाती हूं और इतना कहकर वो चली गई।।
थोड़ी देर बाद,कुछ बेसन के लड्डू और नमकपारे लेकर मेरे सामने हाजिर हुई,
बोली__लीजिये आप जलपान ग्रहण करें,मैं अभी आपके लिए पीने का पानी लेकर आती हूं और थोड़ी देर मे वो एक छोटा सा मटका लेकर हाजिर हुई।।
थोड़ी देर खड़ी रहकर बोली, एक बात कहनी थी आपसे।।
मैने कहा, कहिए।।
वो सकुचाते हुए बोली, ये पत्र मैनें अपने पति को लिखा है, वो परदेश गए थे पढ़ने अभी तक लौटे नही हैं, आप तो डाकबाबू हैं, क्या ये पत्र आप मेरे पति तक पहुंचा देंगें।।
मैने कहा, क्यों नहीं।।
और वो पत्र मैने उससे ले लिया और वो चली गई।।
मुझे रात को बहुत गहरी नींद आई,सुबह किसी शोर से मेरी नींद खुली,शायद रोड पर कोई नगरपालिका का कर्मचारी झाड़ू लगा रहा था,मैं बाहर आया।।
वो आदमी मुझे देखकर चौक गया।।
मैने उससे पूछा, क्या हुआ।।
उसने कहा, आप इस सौ साल पुरानी टूटी फूटी हवेली मे क्या कर रहे हैं?
मैने कहा, नही तो,ये तो रात को एकदम सही सलामत थीँ।।
उसनें कहा, ऐसा ही होता हैं, यहां जो भी आता हैं,सौ साल पहले इस हवेली की मालकिन ने अपने पति का इंतज़ार करते करते यहां दम तोड़ दिया था लेकिन वो कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती।।
मैंने अपनी जेब में हाथ डाला तो वहीं पत्र निकल आया जो किसी ने इस पत्र को सौ साल पहले इसी हवेली मे लिखा था।।

समाप्त___
सरोज वर्मा___


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