जीवित मुर्दा व बेताल - 4 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीवित मुर्दा व बेताल - 4

आज आसमान में काले बादल हैं । घर लौटने के बाद गोपाल खाना लेकर दुकान की तरफ चल पड़ा । एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में खाने का झोला लेकर गोपाल दुकान की तरफ चलता जा रहा है । चलते हुए उसने एक बार आसमान की तरफ देखा वहां पर अंधेरा ही अंधेरा है । आज उसे जल्दी से लौटना होगा वरना अगर बारिश आ गई तो सब गुड गोबर हो जाएगा । आज वह अपने नाक - कान को खोलकर सतर्क होकर चल रहा है । दुर्गंध के बारे में अपने बड़े भाइयों से पूछना वह भूल गया इसके अलावा आज भी उसे अपने पिता के दुकान पर जाना पड़ेगा इस बारे में वह पहले से नहीं जानता था । अगर वह जानता तो दुर्गंध के बारे में अपने बड़े भाइयों से पूछ लेता लेकिन आज उसे कोई दुर्गंध नहीं मिल रहा । चलते हुए अब वह बांस झाड़ी के पास पहुंचा । चलने की गति को धीमा करके उसने ध्यानपूर्वक यह जानना चाहा कि कोई दुर्गंध आज भी आ रहा है या नहीं लेकिन नहीं आज वातावरण में ऐसा कुछ नहीं है । बांस झाड़ी के बीचोबीच आते ही उसने एक बात पर ध्यान दिया कि आज चारों तरफ कुछ ज्यादा ही सन्नाटा है । कोई भी झींगुर नहीं चिल्ला रहा तथा कोई निशाचर पक्षी की आवाज भी नहीं । चारों तरफ का अंधेरा मानो उसके गले को दबाना चाहता है ।
अब गोपाल के चलने की गति अचानक रुक गई । एक आवाज सुनाई दे रहा है । बांस झाड़ी के अंदर एक जगह कुछ ज्यादा ही घने झाड़ियां हैं शायद यह आवाज उसी के पीछे से आ रहा है । यह आवाज कुछ चबाकर खाने जैसा तथा उसी के साथ हल्की हंसी की फिसफिस आवाज भी है । कोई मानो हंसते हुए कुछ बोलना चाहता है । गोपाल ने ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश किया तथा लालटेन को ऊंचा करके आवाज की दिशा में आगे बढ़ा । इसी बीच चारों तरफ अंधेरा और भी ज्यादा गहरा हो गया है । वही सड़ा दुर्गंध फिर से आने लगा लेकिन गोपाल का उस तरफ कोई ध्यान नहीं , एक आकर्षण उसे आवाज की तरह खींच रहा है । उस आवाज को सुनने के बाद वह उसका पीछा करना चाहता है । अब गोपाल ने सुना कोई हल्की आवाज में उसे बुला रहा है ।

" ये गोपाल खाना को लेकर कहां जा रहा है रे , इधर आ मुझे बहुत तेज भूख लगी है...। खाना मुझे दे । "

यह सुनकर गोपाल का पूरा शरीर डर से कांप गया । तब तक वह घने झाड़ी के पास चला आया था । डर से उसका पैर सुन्न हो गया है तथा उसका पैर मानो शरीर के भार को लेकर नहीं चल सकता । अब शायद वह बेहोश होकर गिर पड़ेगा । किसी तरह थोड़ा आगे बढ़कर लालटेन की रोशनी में उसने जो देखा साहित्य की भाषा में उसकी वर्णना नहीं किया जा सकता ।
उसने देखा एक काला परछाई जैसा मनुष्य आकृति बैठा हुआ है और उसके सामने एक आधा खाया हुआ गाय है । दोनों हाथों से वह गाय के आंतड़ियों को चीर - फाड़कर निगल रहा है ।
इस भयानक विभत्स दृश्य को देखकर गोपाल का चींख निकल गया । अब उस अद्भुत प्राणी ने सिर उठाकर गोपाल के तरफ देखा । गोपाल ने देखा कि उस अद्भुत प्राणी के एक तरफ चेहरे का मांस व चमड़ा निकलकर वहाँ हड्डी दिखाई दे रहा है तथा एक आंख बाहर निकल कर झूल रहा है । उस प्राणी के मुंह के दोनों तरफ से ताजा खून नीचे टपक रहा है ।
गोपाल वहां से उल्टे तरफ दौड़ना शुरू किया लेकिन ज्यादा दूर तक नहीं दौड़ पाया । कुछ दूर जाते ही लताओं व झाड़ी के जड़ में पैर फंसने के कारण वह गिर पड़ा तथा उसी के साथ लालटेन भी हाथ से गिरकर चकनाचूर हो गया ।

चारों तरफ उस वक्त गहरा अंधेरा है । जमीन पर गिरते ही गोपाल ने चिल्लाना शुरू कर दिया लेकिन उसके चिल्लाने की आवाज किसी के कानों तक पहुंचने की संभावना ना के बराबर है । अब अचानक गोपाल को ऐसा लगा कि उसका पूरा शरीर धीरे-धीरे सुन्न हो रहा है क्योंकि वह अपने हाथ पैर भी नहीं हिला पा रहा था । ऐसा लग रहा है कि शायद किसी ने रस्सी के द्वारा उसे बांध दिया है । अब उसने अनुभव किया कि वह भयानक प्राणी सूखे पत्तों पर चलता हुआ उसी के तरफ आ रहा है । चारों तरफ के अँधेरे ने गोपाल को अंधा कर दिया है उसे कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा । अब तक गोपाल चिल्ला सकता था लेकिन अब डर के कारण उसके गले से आवाज भी नहीं निकल रहा । उसने फिर अनुभव किया कि एक ठंडा हाथ नीचे से गले तक आ रहा है तथा तुरंत ही अपने सीने पर उसने एक दबाव महसूस किया ।
गोपाल ने एक और चीज अनुभव किया कि जंगल के लताओं ने उसके हाथ और पैर को मानो जकड़ लिया है जिसके कारण वह थोड़ा भी हिल डुल नहीं पा रहा । उसके सीने पर अब दबाव और बढ़ा तथा एक गर्म सांस गोपाल अपनी गर्दन के पास महसूस कर सकता है । गले के पास दो धारदार दाँत गोपाल को महसूस हो रहा है शायद अभी वह भयानक प्राणी उसके गर्दन को धड़ से चीर डालेगा । इसी वक्त गोपाल को मंदिर के उस अद्भुत व्यक्ति और उसके द्वारा दिए गए कागज की पोटली के बारे में याद आया । तुरंत ही जेब में हाथ डालकर कागज की पोटली को बाहर निकालना चाहा लेकिन यह क्या वह तो हाथ भी नहीं हिला पा रहा । मृत्यु उसके दरवाजे को खटखटा रहा है । दो खून टपकटे धारदार दाँत का अनुभव अब और भी स्पष्ट हो गया है । गोपाल के आंखों से आंसू निकल आए , घर के सभी लोगों के बारे में उसे याद आने लगा । मां - पिता व अपने बड़े भाइयों का चेहरा उसके आंसू निकलते आँखों के सामने घूम रहा था । क्या वह उन्हें अब कभी नहीं देख पाएगा ? नहीं ! इस तरह आसानी से वह नहीं मर सकता बचने की अंतिम कोशिश उसे करना ही होगा ।
देवी काली को शरण कर वह अपने शरीर की पूरी शक्ति से जेब में हाथ डालने की कोशिश करने लगा । पूरी शक्ति लगा किसी तरह कागज की पोटली को जेब से बाहर लाने में सफल हो गया तथा उसे सीने से दबा लिया ।
तुरंत ही चारों तरफ से आंधी जैसे हवा तथा आसमान को चीरते हुए बिजली चमकने लगी । बिजली चमकने के रोशनी में गोपाल ने देखा कि उसके सीने पर वह भयानक मनुष्य आकृति का प्राणी बैठा हुआ है । अब गोपाल ने उस कागज के पोटली को जोर से दबाकर चिल्लाते हुए बोला ,
" जय माँ काली , हे भवतारिणी रक्षा करो । "
हवा के झोंके से बांस झाड़ी की चर - चर तथा बादल कड़कड़ाने की आवाज से चारों तरफ भर गया । बिजली चमकने की रोशनी में गोपाल ने देखा कि उसके सिर के पास एक विशाल महिला मूर्ति परछाई 🌺🌺 है , हवा के झोंके से जिसके बड़े - बड़े बाल उड़ रहे थे । उसी के साथ अंधेरे में उसने सुना कि कई सियार उसके चारों तरफ घेर कर खड़े हैं और किसी को हू हू करके भगाने की कोशिश कर रहे हैं । गोपाल ने अब अनुभव किया कि उसके सीने के ऊपर जो दबाव था वह हल्का हो गया है । बिजली चमकने पर उसने फिर एक बार देखा तो अब वह भयानक प्राणी उसके ऊपर नहीं था ।
इसी बीच वातावरण का सड़ा दुर्गंध भी खत्म हो गया तथा उसकी जगह अब एक पवित्र सुगंध चारों तरफ फैल गया है । इस सुगंध को गोपाल अच्छी तरह पहचानता है तथा यह उसे बहुत प्रिय भी है । बांस जंगल के अंदर क्या किसी ने बहुत सारा धूप - अगरबत्ती जला दिया है ? हाँ वही सुगंध , जिसे वह यादव बस्ती के काली मंदिर में जाने पर ही पाता है ।
कुछ ही मिनट में चारों तरफ फिर सब कुछ सामान्य व शांत हो गया । गोपाल को जरा सा भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह मन ही मन जान गया था कि आज उसके जान की रक्षा स्वयं देवी काली ने किया है । गोपाल ने हाथ जोड़कर देवी काली और मंदिर के सामने मिले उस अद्भुत व्यक्ति के लिए भक्ति भरा प्रणाम किया ।

अगले दिन सुबह गोपाल ने एक सपना देखा । उसने देखा कि वही भगवा वस्त्र पहने व शरीर पर राख लगा हुआ आदमी उससे बोल रहे हैं कि ,
" इस बार देवी काली ने तुझे बचा लिया लेकिन इसके बाद से तुझे अपनी रक्षा खुद से ही करनी होगी । इसके लिए तुझे देवी काली की साधना में मग्न होना पड़ेगा । याद रखना तेरे अंदर साधना की ज्योति है । तू अपने प्राप्त शक्ति व ज्ञान के द्वारा साधारण मनुष्य के विपत्ति को दूर करेगा । ".....

अगला भाग क्रमशः....