समीक्षा
कृति- जादूगर जंकाल और सोनपरी
कथाकार राजनारायण बोहरे
समीक्षक रामगोपाल भावुक
कथाकार राजनारायण बोहरे को बचपन से ही किस्से कहानियां सुनने का शौक रहा है। बचपन में अपनी बुआ दौलत जिज्जी अर्थाइखेड़ा, भौंरा वाले काकाजू, यानी रामेश्वर दयाल चतुर्वेदी और कन्ना दाज्यू यानी कर्णसिंह प्रजापति से जादूगर,दानव, परियां और बहादुर युवकों के जो किस्से इन्होंने सुने हैं उनके प्रभाव से किशोर अवस्था में कुछ और नये कथानक जोड़कर अनेक कल्पित,रुचिकर और बच्चों को सीख देने वाले अनेक किस्से जैसे आर्यावर्त की रोचक कथाऐं, बाली का बेटा, रानी का प्रेत, सुनसान इमारत, छावनी का नक्शा, और अंतरिक्ष में डायनासौर जैसे किस्से उन्होंनें लिखे जो इसके पहले प्रकाशित हो चुके हैं। मातृभारती पर इनकी लिखी पौराणिक कथाऐं बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक हैं।
कथाकार राज बोहरे बालकों के भविष्य के प्रति चिन्तित दिखाई देते हैं। वे सोचते हैं बालमन कैसे विकसित हो? वे ऐसे ऐसे कथानक लिख देते है जिससे बाल मन उदीप्त हो सके।
बालसाहित्य एवं सम्वेदना आज के परिवेश में बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। मैं एक मिड़िल स्कूल में शिक्षक रहा। यों बालमनोवृति से मेरा नाता शिक्षक जीवन के प्रारम्भ से ही जुड़ गया। अध्ययन काल में बच्चों को डांटने-फटकारने एवं मारने-पीटने की परम्परा मुझे व्यवहारिक नहीं लगी। मैंने शिक्षक जीवन के प्रारम्भ से ही तय कर लिया कि मैं कभी बच्चों पर हाथ नहीं उठाउंगा। यों शुरू-शुरू में यह कार्य बहुत ही कठिन लगा, फिर धीरे-धीरे यह कार्य आसान होता चला गया। हम उन पर तभी झुंझलाते हैं जब उनके प्रश्न का उत्तर देने में हम अपने आप को समर्थ नहीं पाते।
नैतिकता एवं आत्मनिर्भरता के रोचक किस्सों के द्वारा बच्चों व किशोरों में राष्ट्रीय भावना का विकास कैसे हो? इस बात के लिये हमें चिन्तित रहने की आवश्यकता है। पुराणों के महान व्यक्तियों की जीवनियाँ उन्हें पढ़ने के लिये दी जायें। देश के शहीदों की कथायें उन्हें जरूर सुनाई जायें,ताकि बच्चा एक संस्कारित नागरिक एवं राष्ट्र भक्त बन सके।
बालमनोवृति बहुत ही संवेदनशील विषय है। सफेद वस्त्र पर कोई दाग लगना सहज सरल है। किसी भी बात का असर बच्चों के मन पर जीवन भर बना रहता है। संवेदनायें उसे जीवन भर प्रभावित किये रहती हैं।
‘ जादूगर जंकाल और सोनपरी’ मातृभारती पोर्टल एवं प्रकाशन संस्थान अहमदाबाद से सद्य प्रकाशित राजनारायण बोहरे का उपन्यास है।
उपन्यास की पहली तीन पंक्तियां देखिये-‘दोपहर होते ही शिवपुर गांव में के शिव मन्दिर पर के आसपास वंशी की मधुर धुन गूंजने लगी थी। जिसे सुनकर गाय, भैंस भी खुश होकर उस लड़के को देख रही थी।, जो बरगद के पेड़े के नीचे बने चबूतरे पर बैठकर वंशी बजा रहा था।’
यह पंक्तियां पाठक को बांध लेती ंहैं। पाठक इसे रुचि से पढ़ने में लग जाता है।
‘बहुत पुरानी बात है। जब मनुष्य सभ्य नहीं हुआ था। छोटे- छोटे राज्य हुआ करते थे। शिवपुर गांव में एक शिवपाल नाम का शिक्षित युवा दोपहर के समय अपने ढ़ोरों के आराम के समय एक पेड़ पर बैठा वंशी बजा रहा था। उसी समय उसके हाथ पर ऊपर से गरम- गरम बूंदें गिरी तो उसने देखा ऊपर बैठी चंद्रपरी रो रही है। शिवपाल ने उससे पूछा क्यों रो रही हो? तो उसने बतलाया-‘ मेरी बहन को जंकाल नाम का एक जादूगर पकड़कर ले गया है।उस जादूगर को कोई मनुष्य ही मार सकता है। यदि तुम मदद करो तो मेरी बहन जादूगर की कैद से मुक्त हो सकती है। ’
शिवपाल उसे मुक्त कराने को तैयार हो जाता है। वह अपनी मां से अनुमति लेकर सोनपरी को मुक्त कराने निकल पड़ता है। रास्ता बतलाने का कार्य चंद्रपरी करती है।
वे दोनों चटाई पर बैठ जाते हैं। वह चटाई उन्हें उड़ाकर सात समुद्र पार ले जाती है। शिवपाल हरेक समुद्र पार करने के बाद उसे प्रणाम करने नीचे उतरता है। वहीं पहले वहां उसे मगरमच्छ दिख जाता है। वह झाडियों में उलझा था। शिवपाल उसे मुक्त करता है। मगरमच्छ उसकी मदद करने उसी चटाई पर बैठकर उसके साथ चल पड़ता हैं। इसी क्रम में बाज पक्षी, फिर घोड़ा भी शिवपाल की मदद से संकट से मुक्ति पाकर उसी के साथ चल पड़ते हैं। वह रास्ते में एक मछुआरे की सहायता करता है, उसके साथ एक लुहार की भी रक्षा हो जाती है। लोहार का पिता उसे चमचमाती तलवार देता है। इस तरह उसे एक मजबूत रस्सा भी मिल जाता है।
आगे चलकर शिवपाल एक शिकारी से शेर को बचा लेता हैं,शेर भी उसके साथ उसकी मदद में चल देता है।
इस तरह वह घोड़ा, बाज,शेर एवं मगरमच्छ की सहायता से उस स्थान पर पहुंचता है, जहां उस किले में उस जादूगर जंकाल ने उस परी को कैद कर रखा था।
अनेक संघर्षों से जूझते हुए उन सभी की सहायता से वे उस परी को मुक्त कराने में सफल रहते हैं अथवा असफल रहते हैं यह तो उपन्यास पढ़ने से ही पता चलेगा।
इस उपन्यास के नायक की यह विशेषता है कि वह जानवरों एवं पक्षियों की भाषा भी समझता है। वह रोने वाले पेड़ और जादू के बने खुले दरवाजों का रहस्य भी बहुत छोटी सी तिकड़में लगा कर जान लेता है,तो अजगर को भी अपने पक्ष में कर लेता है।
उपन्यास की कथा जिस रोचक मिजाज की है, वह रोचकता कदम दर कदम दिलचस्पी और जिज्ञासा जगाती हुई कभी जंकाल के पुतले पहरेदारों की बात करती है तो कभी परीलोक के उन सैनिकों के रहस्य का पर्दा उठाती है जो जंकाल की सेवा में हैं।
सभी बातें और सारी रोचक घटनायें जानने के लिये जरूर पढ़ें उपन्यास जादूगर जंकाल और सोनपरी।
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कृति का नाम- जादूगर जंकाल और सोनपरी
कथाकार- राजनारायण बोहरे
मूल्य - 150 रु0 मात्र
प्रकाशक-मातृभारती टेक्नोलोजी प्रा. लि 409, सितालावा-भी. सातलेट, अहमदाबाद गुजरात भारत