कहानी
पंचमहली गंध
रामगोपाल भावुक
मोहल्ले के बच्चे उसे काफी कहते हैं। वह कभी निराश नहीं दिखती थी। जब से पन्ना बीमार पड़ा है, वह खोई-खोई रहती है। यह सोचती रहती है-एक-एक करके तीन बच्चे पैदा हुए तीनों चल बसे। सोचा था-पेड़ रहेगा तो फल लग जाएंगे। अब तो पति की ही खराब स्थिति हो गई, उसे लगने लगा-‘अब वे बच नहीं पाएंगे। डाक्टरों ने जवाब दे दिया। फेफड़े गल गए हैं।‘ तभी से वह निराश रहने लगी। पति की सेवा-सुश्रूशा में कमी न रखती थी।
ज बवह किसी काम से निकल जाती तो पन्ना सोचने लगता-‘सुसरी तीन बच्चों की मां हो गई पर ढलाब नहीं आया। मैं ...मैं कोई कम न था। भरा-पूरा जवान था, शादी हुई, उम्र 24-25 से कम न थी पर शान्ति की उम्र कच्ची थी। घर में और कोई था नहीं, जो समय की प्रतीक्षा करने को विवश करता। फल अभी गदराया भी न था कि कच्चा ही खा लिया गया। इसके सभी परिणाम सामने दिखने लगे। अतृप्त जीवनधारा बह निकली। आज भी शान्ति उसे कच्ची उम्र की वधू ही दिखती है।‘
शान्ति घर लौट आई थी। उसे देख पन्ना बोला-‘काये शान्ति कहां चली गई थी ?’
वह बोली-‘तुम्हारी बीमारी के चक्कर में काम-धन्धो बन्द पड़ गओ है। मैं हूं कहूं मजूरी के काजें नहीं जा पाती। आज महाते कक्का की खटिया बुनिवे की खबर आई तो विनिके झां चली गई थी।‘
यह सुनकर पन्ना ने अपने अन्तस् में पड़ी सुश्रुप्त बात कही-‘बस थोड़े दिनन की बात और है।‘
यह सुनकर वह झट से बोली-‘तुमसे नेक कछू कही सो ऐसी बातें कन्न लगतओ जों नहीं सोचते कै मेरो कहा हो गयो।‘
यह सुनकर उसने झट से उत्तर दिया-‘शान्ति तेरो कहा होतो मोसे निपटकें दूसरो ब्याह करलिये। मेरी जायदाद पड़ी है आराम से रहियो।‘
यह सुनकर शन्ति ने उसे डांटते हुए कहा-‘तुम हमेशा ऐसी ही बातें कत्त रहतओ। ऐसें औरू कोऊ कत्तो।‘
यह जवाब सुनकर पन्ना उसे समझाते हुए बोला-‘शान्ति और कोई कहे चाहे न कहे। मोय तो जो बात जी में आई ते कह दई फिर तें जानें। आदमी को एक को वधिका होवे में फायदा है। इज्जत बनी रहते।‘
यह सुनकर वह बोली-‘पहले अपयीं तबियत की बातें सोचो। कैसे ठीक होयेगी ?‘
यह सुनकर पन्ना ने आंखों में आंसू भरकर कहा-‘देख शान्ति, अब तो तबियत मरघटा में ही ठीक होयगी। वैसे मरिवे के दिना तो न हतये। कोई डूड़ पेड़ नाने, ताके सहारे तें बनी रहती।‘
इस तरह की बातों से उसने अपने दिल पर पत्थर रख लिया था। मन लगाकर पति-सेवा में लग गई। उसकी पति-सेवा से सभी आश्चर्यचकित थे। उसके मरने के बाद उसकी पति-सेवा की चर्चा घर-घर होने लगी।
पन्ना के जाते ही कुछ दिन तक वह गुमसुम बनी रही। फिर सामान्य दिखने लगी। शायद जीवन के प्रवाह में आगे बढ़ने का फैसला हो चुका था।
उसे दूसरी जगह बैठना है। यह राज अधिक दिनों तक छिपा न रह सका। यौवन के अतृप्त लोगों का आना-जाना शुरू हो गया। कुछ इसी टोह में उसके घर आने लगे। आते मजदूरी के लिए तलाशने और बातें करने लगते प्यार की। उम्र ऐसी भी न थी कि जल्दी बहक जाती। उसके चुप रहने का अर्थ लोग गलत लगाते। सोचते इसे फांसा जा सकता है और इस तरह डोरे डालने वाले कई लोग चक्कर लगाने लगे। गाँव में एक गन्नू बढ़ई और था। उसके एक लड़का था गौरी। उसकी शादी भी हो चुकी थी, बाल-बच्चेदार था। उसे जायदाद का लाभ सताने लगा। उसने अपने लड़के से कहा-‘गौरी ?‘
‘काये दादा।‘
‘ज शान्ति अपयी जात की है, अपुन बाकी रक्षा नहीं करेंगे तो और को करेगो ?‘
‘लेकिन दादा......?‘
प्रश्न सुनकर गन्नू पुलार भरी डांट पिलाते हुए बोला-‘रे तें कछू नहीं जान्त। कहूं शान्ति झें आ गई तो समझ ले, सब गाँव पै अपनो कब्जा हो जायेगो फिर जितैक काम कराई मांगेंगे तितैक गाँव किन्ने झें देनों परेगी।‘ बात सुनकर गौरी ने उसका विरोध किया -‘दादा सब गाँव विरोध करैगो।‘ यह सुनकर उसने अपने पुत्र को उपदेश दिया-‘रे मियां-बीबी राजी कहा करैगो काजी। फिर तो कोऊ कछू नहीं कर सकत। तें तो बाके झां जान आन लग। बातिन में देले। सोई सब काम बनिगओ मौज करैगो।‘ यह सुनकर गौरी बात गुनने में लग गया।
आकाश में बादलों की तरह यह खबर सारे गाँव में फैल गई कि गौरी शान्ति के घर जाने-आने लगा है। शान्ति को उसने बातों में ले लिया है। इस खबर से गाँव के लोगांे को बात का अन्दाज लगाने में देर न की। सभी समझ गए क्या घटना घटने वाली है। इसका गाँव पर क्या प्रभाव पड़ेगा। बात चौधरी रामनाथ की बैठक में भी जा पहुंची। बातें चलने लगी। कमलेश जी बोले-‘मुझे तो लगता है सरपंच साहब कि गौरी शान्ति को पटाये लेता है।
गाँव में बढ़इयों के अब तक दो घर थे। अब एक ही रह जाता है। शान्ति के साथ उसके किसान भी मिलेंगे। कमाऊ पत्नी, ऊपर से जायदाद किसे बुरी लगती है ? पण्डित रामस्वरूप बोले-‘भैया फिर आनन्द-ही-आनन्द है, किसी का हल टूट गया तो ठीक होने का नम्बर चार दिन में आएगा। दो-तीन दिन तो अभी लगा लेता है।‘ चौधरी ने फबती कसी-‘अब गौरी काम करेगा कि दो-दो औरतों की सेवा करेगा।‘
कमलेश ने बात आगे बढ़ाई-‘चौधरी साब आप जाकर पूछो कि वह क्या चाहती है।‘ बात गुनते हुए चौधरी झट से बोले-‘वह यदि गौरी के यहां जायेगी तो हम उसे जाने ही नहीं देंगे। इसमें सारे गाँव का अहित है ?‘
रामस्वरूप बोला-‘वह न मानी तो ........ ?‘ बात पर चौधरी झट से बोले-‘यह बात नहीं है वह समझ जाएगी। नासमझ थोड़ी है। ना उस पर इतनी जवानी ही सवार होगी कि वह भटक जाए।‘ यह सुनकर कमलेश बोला-‘तो चौधरी साब आपको कुछ भी पता नहीं है। वहां तो रंग बरस रहे हैं। प्रेम चर्चाएं वहां से रोज-रोज नई-नई निकल रही हैं।‘ यह सुनकर चौधरी ने निर्णय दिया-‘तो इस मामले में जल्दी करना पड़ेगी, औरत है, कुछ कर बैठी तो अपुन कछु न कर पायेंगे।‘
कमलेश ने सलाह दी-‘हां चौधरी साब, आप उससे आज ही मिल लें।‘ यह सुनकर चौधरी ने उत्तर दिया-‘वह मुझसे बातें करेगी ?‘ प्रश्न सुनकर कमलेश का भाव व्यंग्य का हो गया। बोला-‘क्यों न करेगी। समझेगी ये भी प्रेम-प्रसंग लेकर आए होंगे।‘ यह सुनकर चौधरी को लगा-‘ये कैसा आदमी है। मैं गाँव का सरपंच हूं। यदि ये जन-प्रतिनिधि ही ऐसा करने लगेंगे तो देखना किसी दिन लोगों का इनमें विश्वास जाता रहेगा।‘
अब चौधरी रामनाथ उठे और कुछ सोचते हुए शान्ति के घर की तरफ चल दिए। लोगों ने उसकी सुन्दरता की बड़ी प्रशंसा की है। हिरनी-सी आंखे बतलाई हैं, नितम्ब देखते ही बनते हैं। इसी कारण मन चले आकृश्ट हुए बिना नहीं रहते। यों मन-ही-मन आनन्दित होते हुए उसके घर पहुंुचे। पौर के किवाड़ खुले पडे़ थे। उन्होंने दरवाजे पर ही आवाज लगाई-‘ओ शान्तिऽऽ।‘
शान्ति उन्हें देखकर खड़ी हो गई। चौधरी अन्दर पहुंच गए। पौर में एक चबूतरा था, उस पर खटिया पड़ी थी, लाल खां वहां मौजूद था। वे उस खटिया पर बैठ गए। लाल खां जरा मनचला था। कुछ दिनों से शान्ति के घर आया-जाया करता था। दादा था, गाँव में उसकी चलती थी। चौधरी उसे विरोधियों में गिनते थे। लाल खां चौधरी के सम्मान में पहले से बोला-‘इधर कैसे भूल पड़े चौधरी साब, का यहां की खुशबू आप तक पहुंच गई ?‘
यह सुनकर चौधरी होश में आ गए। अन्तस् का सारा प्रेम-प्रसंग जाने कहां चला गया। सोचने लगे-‘यह तो मेरी इज्जत ही लिये ले रहा है। जैसा खुद है साला, मुझे भी वैसा ही समझता है।‘ यह सोचकर झट से बोले-‘अरे मियां खुशबू, तुम्हें लग रही होगी, मुझे तो लग रहा है बदबू फैल रही है।‘ यह सुनकर लाल खां ने समझा-‘चौधरी साब उसे चैक करने आए होगे।‘ वह शान्ति की स्थिति भी समझ रहा था, बोला-‘साब शान्ति ठीक ही सोच रही है। उसका इस तरह गुजारा तो नहीं हो सकता। उसे कहीं-न-कहीं तो बैठना ही पड़ेगा।‘ यह सुनकर चौधरी ने प्रश्न कर दिया-‘लेकिन मियां शान्ति को अपने मन की करना चाहिए या गाँव के हित की सोचकर चलना चाहिए। अरे जब देश पै संकट आ जातो तब सिपाहीअन ने शहीद होनो पत्तो कै नहीं।‘ यह सुनकर शान्ति ने उत्तर दिया।
‘एन होनो पत्तो, तो ज बात मानिवे की मैं कब मना कर रही हों।‘ चौधरी ने प्रश्न कर दिया-‘तो अपने मन की बात तो सुना दे।‘ यह सुनकर वह बोली-‘दद्दा जू व हमाये बाये दद्दा के लरिका हैं वे रोज चक्कर लगा रहे हैं। बिनको सोऊ मन दिखा रहो है।‘
यह सुनकर चौधरी ने उसे समझाया-‘व सुसरो एक को पेट तो भर नहीं पा रहो। अब दो-दो जनीं रखेगो।‘ बात कहने से कुछ क्षण रूके, फिर बोले-‘तें अपनी जिन्दगी क्यों खराब कर रही है। अरे किसी को अलग से बुलायें देते हैं। ते पसन्द कर लिये। यहां ही रेगा। तें बापै राज्य करिये। क्यों लाल खां, बात ठीक है ना ?‘ लाल खां ने उत्तर दिया-‘हां, ज ठीक कही चौधरी साब ने। तेरें जायदाद है, यहां आकर रहेगा तो तेरे कहने में उसे चलना ही पड़ेगा। आधा गाँव तेरो है, दोऊ मिलिकें कमाई करियो।‘
चौधरी ने यह सुनकर उत्तर दिया-‘यही तो मैं सोचता हूं मियां, अब शान्ति जैसें कहे। नहीं .......हम चक्कर में न पड़ें। लेकिन अब यहां गौरी न आये। उससे साफ कहानों पड़ेगी। नहीं तुझे बाद में परेशानी आयेगी। अरे थोड़े दिना अच्छे चल लेऊ। दो-चार दिन में इन्तजाम किये देते हैं। लेकिन कह देऊ तो हम चक्कर में पड़ें।‘
शान्ति ने उत्तर दिया-‘दद्दा जू तुम मेरे हित की हूं सोचोगे। वैसे हमाये दद्दा जू के लरिका हू अच्छे हैं।‘ चौधरी बात काटकर बोले-‘वह हमें तो नहीं जचों। हमें तो गाँव को हित सोऊ देखनो है तुझे यदि जच रहा है तो एन चली जा। फिर हम कर ही क्या सकते हैं।‘ यह सुनकर शान्ति ने समर्पित भाव से कहा-‘नहीं दद्दा जू तुम कहोगे वैसे तैयार हों।‘
यह सुनकर वे बोले-‘जों नहीं, पहले ते परख लिये तब रहिवो पक्को करेंगे। फिर यहां आकर गड़बड़ करेगा तो हम किसलिये हैं और तुमने अपने मन की की, तो तुम जानों।‘ शान्ति ने उत्तर दिया-‘नहीं दद्दा जू जैसे कहोगे तैयार हों तुम्हाये सहारे तो झें डरियों।‘ यह कहकर वह रोने लगी। चौधरी बोले-‘रोती क्यों हैं दूसरा आया जाता है। चैन से रहना। पीछे की बातें छोड़।‘
उनका उपदेश सुनकर वह बोली-‘छोड़नी ही परेंगी। ज जिन्दगी अमैका पतो कितैक है।‘ यह सुनकर चौधरी ही बोले-‘अरे अभी से हिसाब लगाने लगी। ब्याह छोटी उम्र में हो गया। तो जल्दी-जल्दी तीन बच्चा हो गये अभी उम्र क्या है। मौज करेगी।‘ यह सुनकर शान्ति के मन में गुदगुदी-सी उभर आई अब चौधरी लाल खां से बोले-‘मियां जी ज गाँव की वहू-बेटी है। जरा ध्यान राखो ऐसा न होय कि कोई बदमासी दे। नहीं हमसे बुरो कोऊ नाने।‘ बात सुनकर लाल खां को उत्तर देना पड़ा-‘नहीं साब, आप सब बातें सही कह रहे हो।
अरे, अच्छी बातों का भी कोई विरोध करेगा। हां, गौरी जरूर कर सकता है।‘ चौधरी ने उत्तर दिया-‘ करै। विरोध करके कोई क्या लेगा। अरे सारे गाँव का विरोध करके कौन मौज कर पायेगा।‘ यह सुनकर सभी बातों को अपनी तराजू में तोलने लगे। कुछ क्षणों के सन्नाटे के बाद चौधरी बोले-‘अब चलता हूं। आज ही आदमी भेजकर कयथी गाँव से उसे बुलवाए लेता हूं।
शान्ति ने प्रश्न कर दिया-‘कपथी गाँव में को है। चौधरी ने मिइस भरे ढंग में कहा-‘अरे धीरज से काम ले, अधीर मत होय। क्यों चिन्ता करती है मौज करेगी मौज। हां कोऊ तोसे कुछ कहे तो मुझसे कहना। सारे गाँव को अपमान कोऊ नहीं कर सकता।‘ लाल खां बोला-‘सबके भले की बात है।‘ अपना समर्थन सुनकर वे उठ खड़े हुए।‘ लाल खां भी उन्हीं के साथ पीछे-पीछे चल दिया।
खेरापति पर पंचायत मढ़ी थी। चौधरी साहब को यह पता होता कि विरोधी किसी दूसरे आदमी को बुला लंेगे तो वे अपनी ससुराल कयथी से धनुआ को कभी न बुलाते। विरोधी भी इस टोह में रहते हैं। कब मौका लगे, कब नीचा दिखाया जाए। ससुरों ने दूसरा आदमी बुला लिया और पंचायत बैठा दी।
लोग विचार-विनिमय करने लगे। दोनों युवक अपने भाग्य की लाटरी खुलने की बाट जोहने लगे। निर्णय किस प्रकार हो, किसी को कुछ न सूझ रहा था। चौधरी साब के आदमी का अपमान चौधरी का अपमान था। विरोधी अपने आदमी को थोप देना चाहते थे। चौधरी को युक्ति सूझी, बोले-‘यह पंचायत तो जबरदस्ती की है। मुझसे शान्ति मना कर देती तो इसे मैं कभी न बुलाता। मैं पंचायत का विरोध नहीं करना चाहता। पंचायत को दूसरा आदमी पुन्ना अच्छा लगता है तो उसे रख लो।‘
विरोधी दल के नेता तिवारी श्यामलाल थे, वे झट से बोले-‘दोनों के गुण देखकर पंचायत सुनिश्चित कर ले।‘
बात सुनकर चौधरी बोले-‘कौन से गुण ?‘
तिवारी बोले-‘बढ़ईगिरी का काम किसे अच्छा आता है।‘ वह सुनकर चौधरी को लगा कहीं बाजी हार न जाऊं। धनुआ का स्वास्थ्य अच्छा है, पुन्ना मरियल है। यह सोचकर बोले-‘शान्ति का भी तो मन लिया जाना चाहिए।‘
इस पर कुछ मनचले बोले-‘हां-हां, शान्ति को यहां बुलवा लो। पंचों के सामने साफ-साफ कह दे।‘
तिवारी जी को यह बात मर्यादा के प्रतिकूल लगी, बोले-‘यह बात ठीक नहीं लगी। अरे दो पंच चले जाओ और शान्ति से पूछ आओ। उसकी क्या इच्छा है।‘
एक ने कहा-‘लेकिन उसने दोनों को देखा हो तब।‘
लाल खां बोला-‘दोनों शान्ति से मिल चुके हैं। शान्ति से पूछ लेना सही है।‘
निर्णय हुआ, विरोधियों में से दो पंच चुने गए। वे शान्ति के घर पहुंचे। शान्ति पौर में ही थी। एक बोला-‘क्यों शान्ति, पंचों ने यह पुछवाया है कि दो आदमी आए हैं। शान्ति की क्या इच्छा है।‘
यह सुनकर शान्ति सोचने लगी-‘आदमी तो कयथी गाँव वाले धनुआ अच्छे लगे।‘
यह सोचकर बोली-‘चौधरी दद्दा जू की जो राय होय मोय मंजूर है।‘
दूसरा बोला-‘देख चौधरी की बात छोड़, तें तो अपये मन की कहो।‘ यह सुनकर उसने उत्तर दिया-‘नहीं लल्ला जू चौधरी दद्दा जू जो बात कहें वैसे तैयार हों।‘
यह सुनकर वे वहां से चले गए। पड़ौस में तिवारी जी का घर था। उनके दो बच्चे उसके यहां आए और शान्ति से बोले-‘काकी जी, दादी जी पूछती है कि क्या हुआ ?‘
वह सोचकर बोली-‘बेटा दादी जी से कहयो नये कक्का आवे बारे हैं नेक दादी कों झें भेज दियो। मैं कछु जान्त नाने।‘ यह सुनकर बच्चे चले गए थे।
000000