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राजकाज

कहानी

राजकाज

रामगोपाल भावुक

ग्रीश्म अवकाश के बाद विद्यालय खुल गए हैं। विद्यालय में भर्ती चालू हो गई है। पिछली वर्श पढ़ाई सेन्सस के चक्कर में कम ही हो पाई थी या यों कहो सेन्सस के बहाने में पढ़ाई-लिखाई न कराई गई थी। अधिक पढ़ाया भी क्यों जाता, सेन्सस का बहाना जो मिल गया था। सभी शिक्षक पढ़ाई को छोड़कर अपनी दिलचस्पी सेन्सस से जोड़ बैठे थे। नतीजा यह हुआ कि मिडिल का परिणाम खराब हो गया। विद्यालय की बड़ी बदनामी हुई, इसलिए विद्यालय में लड़के भर्ती होने कम ही आ रहे हैं, सारा स्टाफ चिन्तित रहने लगा है, यदि लड़के कम रहे तो ट्रान्सफर हो जाएगा।

अभी कई विद्यालयों में जगह ही नहीं रही है। यहां अभी तक मात्र 100 छात्र ही हो पाए हैं, जो भी छात्र आए हैं वे रोज आते हैं और चले जाते हैं, एक दिन मिस्टर तिवारी ने अपने हेडमास्टर साहब से कहा-‘अपने विद्यालय का क्या रवैया चल रहा है।‘

तो वे बोले-‘यार तुम व्यर्थ चिन्ता करते हो राजकाज है देश में सभी जगह ऐसे ही हालचाल हैं।‘

सत्र के पन्द्रह दिन निकल गए अभी तक टाइम-टेबिल नहीं बन पाया था। विद्यालय का समय सात बजे का था। इस समय तक आठ बज गए। अभी तक कोई शिक्षक न आया था। विद्यालय का अभी भी ताला बन्द था। कुछ छात्र रेलवे फाटक पर आकर खड़े हो गए और जोर-जोर से शोर मचा रहे थे। इसी समय रेल निकली कुछों ने रेल पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। किसी का पत्थर खिड़की में से अन्दर चला गया था तो बहुत खुश हो रहा था। रेल निकल गई तो सभी पटरियों पर लाइन से टहलने लगे। कुछ अभी स्कूल के पास आस लगाये खड़े थे। अब छात्रों का जत्था रेलवे फाटक से स्कूल पर आ गया था। सभी लड़के सलाह करने लगे, क्यों न शिक्षकों की शिकायत कर दी जाए।

लड़कों में यह बातें हो रही थीं कि मि. किशोर स्कूल में आते दिखे। राश्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक के सम्मान में लड़कों की काई-सी फट गई। वे आकर लड़कों से बोले-‘अभी कोई नहीं आया।‘

एक लड़का बोला-‘अभी कहां साहब अभी तो टाइम है।‘

मि. किशोर ने बात हंसकर टाल दी। अब तक तीन शिक्षक और आ चुके थे। लड़के उन्हें घेरकर खड़े हो गए।

वे उन्हें ट्यूशन के लिए पटाने के लिए प्रवचन देने लगे। लड़केे दत्तचित्त होकर उनकी बातें सुनने लगे। इसी समय चपरासी ने आकर स्कूल का ताला खोला और घण्टी बजा दी। घण्टी लम्बी न थी। लम्बी घण्टी की जरूरत भी क्या थी। लम्बी घण्टी तो दूर तक सुन पड़ती है, सभी लोग जान जाएंगे, अब खुला है स्कूल। यों स्कूल की बदनामी होगी।

लड़कों ने पहली घण्टी को ही प्रार्थना की घण्टी मान लिया। लड़के प्रार्थना करने अपने आप लाइन बनाकर खड़े हो गए। प्रार्थना करने लगे, प्रार्थना क्या घास काटने मंे लग गए थे। उन्हें लग रहा था कि ये कार्यक्रम जल्दी से निपट जाए। शिक्षक प्रार्थना में ऊंघते से खड़े रहे। प्रार्थना का कार्य जल्दी ही सम्पन्न हो गया। बालकों के इस कार्य से शिक्षक प्रसन्न हो गए। अब सभी छात्र कक्षाओं में दौड़े गए। अब तक सभी शिक्षक आ चुके थे, प्रार्थना का कार्यक्रम सम्पन्न देख सभी सोचने लगे-‘कक्षाओं में पहले कौन जाए ?‘

तू-तू मैं-मैं सभी के मनों में चल रही थी। कोई किसी से कुछ न कह रहा था। कुछों ने अखबार उठा लिये थे। कुछ भाशण देने की तैयारी कर रहे थे। मिस्टर जैन और मिस्टर श्रीवास्तव हस्ताक्षरों को लेकर झकड़ पड़े थे। सभी झकड़े का आनन्द लेने लगे। मिस्टर श्रीवास्तव का दावा था कि मिस्टर जैन ने चार दिन के झूठ हस्ताक्षर किए हैं। यह उन्हें पसन्द नहीं है। सभी शिक्षक निर्विकल्प भाव से बिना हस्तक्षेप किए श्रीवास्तव के प्रवचन सुन रहे थे।

कक्षा आठ के लड़के कुछ लड़कों की शिकायत लेकर आ गए थे। शिकायत निपटाने कौन जाए ? सभी एक-दूसरे का चेहरा झांकने में लगे थे। अब तक छोत्रों का दूसरा जत्था शिकायत करने आ चुका था। ऑफिस के सामने भीड़ बढ़ने लगी। लड़ने वाले छात्र आपस में पिट-पिटू कर निपटारा कराने ऑफिस के सामने आ गए।

स्कूल के सारे छात्र तमाशा देखने ऑफिस के सामने इकट्ठे हो गए। अब प्रधानाध्यापक ने स्कूल प्रांगण में कदम रखा। विद्यालय की घड़ी ने उनके स्वागत में नौ घण्टे बजाये।

वे आते ही बोले-‘कितना काम रहता है ? ये क्या हो रहा है ? क्या मुझे ही अकेले तनख्वाह मिलती है। ट्यूशन के लिए सभी करते हैं। पढ़ाने को कोई तैयार नहीं।’

अपने मन से कोई कक्षाओं में जाने तैयार हैं ? बोलो कोई जाता है ? किसी को रूचि ही नहीं है। अभी तक विद्यालय में कुल सौ छात्र हो पाए हैं।‘

प्रधानाध्यापक की बात पर बीच में ही मिस्टर तिवारी ने कहा-‘साहब टाइम-टेबिल...... ? इस पर प्रधानाध्यापक झट से बोले-‘टाइम-टेबिल से क्या होता है ? अभी कुल सौ छात्र हो पाए हैं। कभी किसी ने हिसाब लगाया ?‘

सभी लड़के अपनी लड़ाई भूलकर प्रधानाध्यापक की बातें सुनने में लग गए। उन्हें लगने लगा था बस अच्छे आदमी हैं। तो हेडमास्टर बाकी सभी तो बेइमान हैं।

इसी समय मि. किशोर जी ने जोश बतलाते हुए छात्रों से कहा-‘अच्छा आप लोग कक्षाओं में चलिए, अभी सर आते हैं। वहीं आप लोगों की लड़ाई का निपटारा करेंगे।‘

लड़के कक्षाओं में चले गए। कक्षाओं से शिक्षकों के अभाव में जोर से बातें करने की आवाजें ऑफिस तक आ रही थीं। पर शिक्षकों के कानों पर अभी भी जूं नहीं रेंगी थीं, चूंकि हेडमास्टर साहब ने जो सवाल किया था। उसकी तैयारी में मि. किशोर ने बिल उठा लिया था।

सभी का वेतन जोड़ने में लगे थे। तेरह शिक्षक, सौ छात्र 68000 रूपये शिक्षकों का वेतन, 12000 रूपया शाला का किराया तथा अन्य खर्च अलग से, सौ का योग में भाग दिया गया। 800 रूपये एक छात्र पर मासिक खर्च कर रही है। यह सुनकर सभी को आत्मग्लानि ने आ घेरा। कौन किस कक्षा में जाए ? यह प्रश्न अभी भी हल नहीं हुआ था ?

टाइम-टेबिल बनाने की प्रार्थना सभी शिक्षक प्रधानाध्यापक से करने लगे। ट्यूशन की चालों का ध्यान रखकर, टाइम-टेबिल बनाया जाने लगा, रिश्तेदारी, जातिवाद इत्यादि बातें उन्हें याद हो आईं। ट्यूशन किन विशयों से अधिक मिलता है, उसका किसको अधिक लाभ देना है। किसके साथ बदला लेना है। किशोर को मत छेड़ो यह शाला सांप है, तिवारी क्या कर सकता है उसे उड़ा दो और रद्दी से विशय पकड़ा दो। ज्यादा बड़बड़ाता है।

एक घण्टे भर की मेहनत से रफ टाइम-टेबिल बन गया। टाइम-टेबिल नोट करने का आदेश हो गया। तिवारी ने कहा-‘आपने मुझे जो विशय दिए हैं।’

प्रधानाध्यापक महोदय झट से क्रोध बतलाते हुए बोले-‘तुम्हें क्या आता है ? तुमसे यहां सभी ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, पढ़ाते-लिखाते हो नहीं, ऊपर से नखरे करते रहते हो ?‘

जिन्हें टाइम-टेबिल में लाभ दिख रहा था उन्होंने प्रधानाध्यापक को इस बात की दाद दी। तिवारी ने टाइम-टेबिल नोट कर लिया। सभी के पीरियड लग गए। मिश्रा को तमाम सुविधाएं दी गईं थीं। वह फिर भी बोला-‘साहब यह पीरियड यहां होता तो मुझे जरा आराम रहता।‘ प्रधान अध्यापक ने मिश्रा की बात पर मि. किशोर को छेड़ा। किशोर बिगड़ पड़ा।

बोला-‘तुम्हें सबसे अधिक लाभ मिला है।‘ इस पर मिश्रा को गुस्सा आ गया तो उसने टाइम-टेबिल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

प्रधानाध्यापक महोदय बोले-‘वो तो सब तिवारी जी कराते हैं। उन्होंने ही आग लगाई है।‘

वे यह कहते हुए उठे। अपना बैग उठाकर ऑफिस से बाहर निकल आए। सभी कक्षाओं में लड़के छिबी-छल्ल खेल रहे थे। प्रधानाध्यापक का भाव राश्ट्रीय हो गया-‘किस प्रकार देश के साथ खिलवाड़ की जा रही है।‘

यह बड़बड़ाते हुए वे कक्षा आठ के कमरे में घुस गए। ऑफिस से जोर-जोर की आवजें आ रही थीं, उनमें राजनीति पर बात छिड़ गई थी। एक दल सत्ताधारी दल की प्रशंसा कर रहा था, दूसरा दल तर्कों द्वारा उनकी बातों का खण्डन कर रहा था। बातों के क्र्रम में बातें, अपनी होने लगीं।

श्रीवास्तव कह रहा था-‘शिक्षकों की देश में हालत सबसे अधिक खराब है वे इतने वेतन में स्कूल में आ जाते हैं यही क्या कम है।‘

इसी समय मध्यान्तर का समय हो गया। चपरासी ने मध्यान्तर कर दिया। लड़के जैसे घर से आए थे वैसे घर चले गए। अब बाहर का डिस्टर्ब बन्द हो गया। प्रधानाध्यापक कक्षा आठ से निकलकर बाजार में सब्जी लेने चले गए।

मध्यान्तर में सभी लोग इस विचार से उठ पड़े, चलो किसी होटल में चलकर चाय पियेंगे। जरा थकावट आ गई है। फिर वहीं से घर चले जाएंगे। अब लड़के आने वाले हैं नहीं। यहां रूककर भी क्या करेंगे। यह सोचकर सभी चले गए। चपरासी चुपचाप सबकी बातें समझ गया। वैसे भी उसकी पत्नी की तबीयत ज्यादा खराब थी, इसलिए वह कमरों के ताले लगाने लगा। कुछ लड़के आए भी तो उसने यह कहकर भगा दिया-‘जाओ मेरा नाम न लेना छुट्टी है।‘

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