पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 24 Asha Saraswat द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 24



अध्याय सत्रह

दादी जी— अनुभव, एक आदमी के बारे में यह कहानी है, जिसने यह सीखा था कि भगवान उसी की मदद करते हैं, जो स्वयं अपनी मदद करता है—

कहानी (25) आदमी, जिसने कभी हार नहीं मानी

यव एक ऋषि का बेटा था ।वह देवताओं के राजा इंद्र का आशीर्वाद प्राप्त कर ने के लिए भयंकर तपस्या कर रहा था।
तपस्या से उसने अपने शरीर को घोर यातना दी । इससे इंद्र की करुणा उसके प्रति जाग उठी । इंद्र ने उसे दर्शन दिए और उससे पूछा, “तुम अपने शरीर को यातना क्यों दे रहे हो?”

यव ने उत्तर दिया, “मैं वेदों का महान विद्वान होना चाहता हूँ । किसी गुरु से वेदों का अध्ययन करने में बहुत समय लगता है । मैं उनके ज्ञान को सीधे प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रहा हूँ । आप मुझे आशीर्वाद दीजिए ।”

इंद्र मुस्कुराये , उन्होंने कहा, “बेटे तुम ग़लत मार्ग पर चल रहे हो । घर वापस लौट जाओ, किसी अच्छे गुरु को खोजो और उनके साथ वेदों का अध्ययन करो। तपस्या ज्ञान का मार्ग नहीं है, उसका मार्ग अध्ययन और केवल अध्ययन है ।” ऐसा कहकर इंद्र चले गये ।

किंतु यव ने हार न मानी । उन्होंने अपना आध्यात्मिक अभ्यास , तपस्या और भी परिश्रम से जारी रखे। इंद्र ने यव को फिर दर्शन दिए और पुनः चेतावनी दी । यव ने घोषणा की कि यदि उसकी प्रार्थना न सुनी गई, तो वह एक-एक करके अपने हाथ पैरों ो काटकर आग को समर्पित कर देगा। पर , वह कभी भी अपना मार्ग नहीं छोड़ेगा । उसने तपस्या जारी रखी । अपनी तपस्या के दौरान एक सुबह जब वह पावन नदी गंगा में स्नान करने गया, तो उसने देखा कि एक वृद्ध पुरुष मुट्ठियों में रेत भर-भर कर गंगा में डाल रहा था ।

“वृद्ध पुरुष आप यह क्या कर रहे हैं?” यव ने पूछा ।

वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, —मैं नदी के आर-पार एक पुल बनाने जा रहा हूँ । ताकि लोग आसानी से गंगा को पार कर सकें । देखते हो , अभी नदी पार करना कितना कठिन है ।
लाभदायक काम है , है न ?

यव हँसा । उसने कहा, “कैसे मूर्ख है आप, आप सोचते हैं कि अपनी मुट्ठी भर रेत से आप इस महान नदी के आर-पार पुल बना देंगे । घर जाओ और कोई लाभदायक काम करो। इसमें समय मत ख़राब करो ।”

वृद्ध पुरुष ने कहा, “क्या मेरा काम तुम्हारे काम से अधिक मूर्खता का है, जो तुम अध्ययन करके नहीं, तपस्या से वेदों का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो?”

अब यव को पता चल गया कि वृद्ध पुरुष और कोई नहीं, इंद्र ही थे । यव ने बहुत श्रद्धा और निष्ठा से इंद्र से भिक्षा माँगी कि वे उसे व्यक्तिगत आशीर्वाद के रूप में वेदों के ज्ञान का वरदान दें।

इंद्र ने यव को आशीर्वाद दिया और निम्न शब्दों के साथ सांत्वना भी दी, “ मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान देता हूँ । जाओ और वेदों को पढ़ो, तुम अवश्य ही विद्वान बनोगे ।”

यव ने वेदों का अध्ययन किया और वह वेदों के महान विद्वान बने ।इस प्रकार ज्ञान सिर्फ़ पूजा तपस्या से नहीं मिलता । ज्ञान पाने के लिए अध्ययन करना आवश्यक होता है ।

सफलता का रहस्य है— हर समय उस वस्तु का चिंतन करना, जिसकी तुम्हें चाह है और जब तक तुम्हें, जो तुम चाहते हो, वह मिल नहीं जाती । हिम्मत न हारो , प्रयत्न न छोड़ो । देर से शुरू करने, आलस और लापरवाही जैसे नकारात्मक विचारों को अपने मार्ग में न आने दो ।

किसी भी काम या अध्ययन को आरंभ करने से पहले या समाप्त करने पर ब्रह्म के तीन नामों— ओम् तत् सत् —
का जाप करो ।

अनुभव— ओम् तत् सत् का क्या अर्थ है दादी मॉं?

दादी जी— इसका अर्थ है— केवल कृष्ण, सर्वशक्तिमान भगवान ही सब कुछ है । किसी काम या अध्ययन के प्रारंभ में ओम् का उच्चारण किया जाता है ।
ओम् तत् सत् या ओम् शांति: शांति: शांति: भी किसी काम के अंत में कहा जाता है ।

अध्याय सत्रह का सार— भोजन तीन प्रकार के हैं—
सात्विक, राजसिक और तामसिक ।

वे हमारे जीवन पर प्रभाव डालते हैं । सच बोलो किंतु प्रिय सच बोलो । सुपात्र को दान दो और इस प्रकार दो कि
उसका दुरुपयोग न हो । यदि तुम अपने ध्येय को ध्यान में रखकर परिश्रम करोगे, तो तुम वह बनने में सफल होंगे, जो तुम बनना चाहते हो ।

सदैव अच्छा शुद्ध भोजन करो , सदैव प्रिय सत्य बोलो ,
अपना लक्ष्य निर्धारित कर उसी में ध्यान दो तो अनुभव, तुम सदा सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करोगे ।

अगला अध्याय मैं तुम्हें सरल भाषा में कल सुनाऊँगी, अनुभव।



क्रमशः ✍️


सभी पाठकों को नमस्कार 🙏