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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 22


अध्याय सोलह

दैवी और आसुरी गुण

अनुभव— मैं अपनी कक्षा में भिन्न-भिन्न प्रकार के छात्रों से मिलता हूँ । दादी जी, विश्व में कितने प्रकार के लोग हैं?

दादी जी— विश्व में लोगों की केवल दो जातियाँ हैं— अच्छी और बुरी । अधिकांश लोगों में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के गुण होते है । यदि तुममें अच्छे गुण अधिक होते हैं
तो तुम्हें अच्छा आदमी कहा जाता है और यदि तुम में बुरे गुणों की अधिक मात्रा है तो तुम्हें बुरा आदमी कहा जायेगा।

अनुभव— यदि मैं अच्छा आदमी होना चाहूँ, तो मुझसे क्या गुण होने चाहिए?

दादी जी— तुम्हें ईमानदार , अहिंसक, सत्यवादी, अक्रोधी, शांत, दुर्वचन-हीन , करुण, लोभ-हीन , सज्जन, क्षमाशील और विनम्र होना चाहिए । इन गुणों को दैवी गुण भी कहा गया है क्योंकि वे हमें भगवान की ओर ले जाते हैं ।

अनुभव— मुझे कौन सी आदतों से बचना चाहिए?

दादी जी— पाखंड , असत्य बोलना, घमंड, दम्भ , ईर्ष्या, स्वार्थ, क्रोध, लोभ , कठोरता, कृतघ्नता और हिंसा ये दुर्गुण हैं क्योंकि ये हमें भगवान से दूर ले जाते हैं ।

दुर्गुण हमें बुरी चीजों की ओर भी ले जाते हैं और हमें कठिनाइयों में डालते हैं । जिनमें ये दुर्गुण हैं, उन लोगों के मित्र मत बनो क्योंकि वे नहीं जानते कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है । जिन्होंने कभी तुम्हारी सहायता की है, उनके प्रति सदा आभारी रहो, आभारी न रहना एक बड़ा पाप है, जिसने कोई प्रायश्चित नहीं है ।

काम , क्रोध और लोभ बहुत ही विनाशकारी हैं । भगवान इन्हें नरक के तीन द्वार कहते हैं ।

लोभ किस प्रकार शोक की ओर ले जाता है, इस विषय में एक कथा इस प्रकार है—-

कहानी ( 21 ) कुत्ता और हड्डी

एक दिन किसी कुत्ते को एक हड्डी मिल गई । उसने उसे उठा कर मुँह में रख लिया और उसे चबाने के लिए किसी एकांत जगह में चला गया । वह वहाँ कुछ समय बैठकर हड्डी चबाता रहा । फिर उसे प्यास लगी । वह मुँह में हड्डी लेकर झरने से पानी पीने के लिए लकड़ी के एक छोटे से पुल पर चला गया ।

जब उसने वहाँ पानी में उसकी परछाईं देखी तो उसने सोचा वहाँ नदी में हड्डी लिए दूसरा कुत्ता है । उसे लोभ हो आया और उसने दूसरी हड्डी भी लेनी चाही। उसने दूसरे कुत्ते से दूसरी हड्डी लेने के लिए भौंकने को अपना मुँह खोला, उसके मुँह से उसकी हड्डी गिर कर पानी में जा गिरी । तब कुत्ते को अपनी गलती का अहसास हुआ, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।हड्डी गहरे पानी में डूब गई वह देखता ही रह गया ।

लोभ पर विजय पाई जा सकती है । उन चीजों से संतुष्ट रहो जो तुम्हारे पास है ।

संतुष्ट व्यक्ति ही सुखी व्यक्ति है । लालची व्यक्ति को कभी जीवन में सुख नहीं मिल सकता है ।

अनुभव— मैं कैसे जान पाऊँगा कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?

दादी जी— अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करो, अनुभव।
हमारे पावन धर्म ग्रंथों में ऋषियों और संतों ने हमें बताया है कि हम क्या करें और क्या न करें । भगवान में आस्था रखो और अपने माता-पिता तथा गुरुजनों की बात सुनो , समझो और उस पर अमल करो।

हमें जितनी संभव हो सके, उतनी अच्छी आदतें डालनी चाहिए । लेकिन ऐसा कोई भी नहीं जिसमें केवल अच्छी ही आदतें हो और कोई भी बुरी आदत न हो । किसी में अच्छी आदतों की अधिकता है और बुरी आदतें कम मात्रा में है तो उसे हम अच्छे व्यक्ति की श्रेणी में रखेंगे । यदि किसी में बुराइयों की मात्रा अधिक है और अच्छाई कम हैं तो उस व्यक्ति को बुरे व्यक्ति की श्रेणी में रखेंगे ।

इस प्रकार के सत्य को रानी द्रौपदी ने अपने अनुभव से कैसे खोजा, इसके बारे में एक कथा इस प्रकार है—

कहानी (22) रानी द्रौपदी की कथा

द्रौपदी पॉचों पाण्डवों की पत्नी थी इस बात को लोग अपने ढंग से उचित नहीं समझते । लेकिन द्रौपदी ने कारण जान लिया था और वह ख़ुशी से रहने लगीं ।

वह अपने पूर्व जन्म में एक ऋषि की बेटी थीं । वह बहुत सुंदर और गुणवती थीं ।किंतु अपने पूर्व जन्म के कर्म के कारण, उनका विवाह नहीं हो सका था, इससे वह बहुत दुखी रहती थी । उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या शुरू कर दी । भगवान शिव को उन्होंने लम्बी और कठोर तपस्या से प्रसन्न कर दिया । भगवान शिव ने द्रौपदी से मनोवांछित एक वरदान माँगने को कहा, उन्होंने एक ऐसे पति का वरदान माँगा जो अत्यंत धार्मिक, बलवान, महा योद्धा, सुंदर और सज्जन हो । भगवान शिव ने उन्हें मनोवांछित वरदान दे दिया ।

अपने अगले जन्म में द्रौपदी का विवाह पॉंच भाइयों के साथ हुआ किंतु वह इस विचित्र स्थिति से प्रसन्न नहीं थी ।विवाह एक आयोजित स्वयंवर में हुआ था ।
द्रौपदी भगवान श्री कृष्ण की महान भक्त थीं— जो सब जीवों का भूतकाल, वर्तमान और भविष्य जानते हैं ।उन्हें,द्रौपदी के दुख का पता था ।

श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि उन्होंने पिछले जन्म में क्या माँगा था । भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वे सब गुण जो वह अपने पति में चाहतीं थीं, किसी एक व्यक्ति में मिलना असंभव था । इसलिए उनका विवाह इस जीवन में पॉंच पतियों के साथ हुआ जिनमें सबके गुणों को मिलाकर वे सब गुण थे।

स्वयं भगवान श्री कृष्ण से यह सुनकर द्रौपदी, उनके पिता राजा द्रुपद , माता एवं उनके पाँचों पतियों ने सहर्ष अपना भाग्य स्वीकार किया और वे आनंद से एक साथ रहने लगे ।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी पति या पत्नी में सब अच्छे या बुरे गुण नहीं मिल सकते ।इसलिए व्यक्ति को भाग्य ने जो दिया है, उसके साथ ही रहना सीखना चाहिए । कोई भी पति या पत्नी पूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि किसी में भी केवल अच्छे गुण ही नहीं होते और कोई भी बुरे गुणों से रहित नहीं है ।

अध्याय सोलह का सार— केवल दो ही प्रकार के मानव रहें, अच्छे या दैवी और बुरे या आसुरी। अधिकांश लोगों में अच्छे -बुरे दोनों गुण होते हैं ।

आध्यात्मिक विकास के लिए बुरी आदतों से छुटकारा पाना और अच्छी आदतों का डालना आवश्यक है । आत्मज्ञान होने पर सभी बुरे गुण अपने आप चले जाते हैं ।
जिस प्रकार कितना भी अंधकार हो , सूर्य के आते ही अंधकार चला जाता है और उजाला आ जाता है । अनुभव, हमें और सभी को बुरे गुणों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाने का भरपूर प्रयास करते रहना चाहिए ।

आगे के अध्याय में तुम्हें मैं और अच्छी कहानियाँ सुनाते हुए समझाऊँगी ।

क्रमशः ✍️


सभी पाठकों को नमस्कार 🙏
सरल भाषा में भगवद्गीता को समझाने का प्रयास किया है,आप पढ़िए और परिवार में बच्चों को सुनाइए ।





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