Dhara - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

धारा - 14

धारा मंदिर पहुंची ! बड़ा ही विशाल और भव्य मंदिर था ! हर जगह राम जी का नाम लिखा हुआ था ! धारा चकित रह गयी देखकर !! "वास्तव में, प्रतिमा चाहे हनुमानजी की है लेकिन मंदिर तो रामजी का ही है !! यहां के कण कण में रामजी के होने का आभास हो रहा है !!" धारा मुग्ध होते हुए खुद से ही बोली।

धारा ने अंदर जाकर भगवान के दर्शन किये और पंडित जी को प्रसाद दिया चढ़ाने के लिए। धारा बड़े ही गौर से पूरे मंदिर को देख रही थी ! बड़ी ही बारीकी नक्काशी की गई थी कलाकृतियों को उकेरा गया था !!

पंडित जी ने पूजा कर प्रसाद चढ़ाया एयर धारा को देते हुए बोले, " देव नही आया तुम्हारे साथ..*?"

धारा चौंक गई ! प्रसाद लेते हुए वो आश्चर्य से बोली, "आपको कैसे पता चला मैं कौन हूँ ? किसके साथ रहती हूँ..??"

पंडित जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी ! वे बोले, " कौन कहां से आया है? कब आया है? किसके यहां या किसके साथ आया है कब गया या जाएगा सब पता होता है मुझे बेटा !! हर व्यक्ति की खबर होती है मुझे ! सिर्फ इतना ही नही कौन किसलिए आया है इसकी भी जानकारी होती है !!"

पंडित जी की अंतिम लाइन धारा को और अधिक हैरान कर दिया !! एक साथ हज़ारों सवाल उमड़ने लगे दिमाग मे ! उसकी मनःस्थिति को भांपते हुए पंडित जी ने कहा, " सब रामजी की माया है बेटी ! कब क्या हो जाये उनके अलावा कोई नही जानता ??"

पंडित जी ने ये क्यूं कहा धारा के समझ से परे था !! कुछ समझ आने के बजाय और ज्यादा उलझ गया सबकुछ उसके लिए ! उसने जैसे ही बोलने के लिए मुंह खोला, पंडित जी ने इशारे से उसे कुछ भी कहने से मना कर दिया और प्रसाद का एक डिब्बा उसे देते हुए बोले, " ये कल की विशेष प्रसादी है !! खा लेना..घर जाकर !!"
पंडित जी ने "घर जाकर" शब्द पर विशेष जोर देते हुए कहा!

धारा ने आसपास देखा !! दर्शन करने वालो की भीड़ थी ! अब समझ आया धारा को, की क्यो पंडित जी इतना घुमा फिराकर बात कर रहे थे और क्यों धारा को भी कुछ बोलने नही दे रहे थे !!

धारा ने फिर से भगवान के हाथ जोड़े ! और बाहर आ गयी ! मंदिर के प्रांगण में एक पीपल का वृक्ष था ! मान्यता थी कि जब दर्शन करने आते हैं तब उस वृक्ष की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए !!

धारा ने भी हाथ जोड़े और परिक्रमा करने लगी ! जैसे ही धारा दो चार कदम चली, उसे लगा जैसे कोई उसपर नज़र रख रहा हो !! धारा ने मुड़कर देखा, कोई नही था! उसे लगा भरम है ! लेकिन फिर से उसे लगा जैसे कोई देख रहा है उसे !!
धारा ने जल्द से परिक्रमा की और सामान उठाकर घर की ओर निकल पड़ी ! घर पहुंचने तक धारा ने पीछे मुड़कर नही देखा ! घर पहुंचते ही धारा ने झटपट लॉक खोला और अंदर घुसते ही गेट बंद कर उसी के सहारे से टिक तेज़ी से सांसे लेने लगी !!
कुछ समय लगा धारा को नार्मल होने में !! धारा की नज़र देव पर गयी जो सभी तक सोया हुआ था ! देव के पास जाकर उसे जगाने के लिए धारा ने उसके गाल को थपथपाया ! थोड़ा सा कसमसा कर देव फिर से गया !
धारा ने भौहें उचकाई और इस बार थोड़ी ताकत से थपथपाया या शायद थप्पड़ मार दिया !
देव हड़बड़ाते हुए उठकर बैठ गया और धारा सामने कुर्सी पर बैठकर हँसने लगी।

"क्या है यार ? कितने सुकून की नींद ले रहा था मैं! तुम्हे बर्दाश्त नही होती बच्चे की जान सुकून में रहे !!" देव ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।

धारा, " ओ.... बच्चे की जान से कोई दुश्मनी नही है ! ऐसे घोड़े बेचकर सो रहे थे, अगर कोई आकर ताला तोड़कर तुम्हे उठा कर भी ले जाता ना तो भी तुम्हे पता नही चलता !!"

देव, "इतना भी कोई बेपरवाह नही हूँ मैं ! समझी तुम !!"

धारा ने जैसे ही प्रसाद का पैकेट उठाया, उसे याद आया पंडित जी ने उसे एक डिब्बा दिया था प्रसाद का ! धारा में झट से डिब्बा खोला ! डिब्बे को देखते ही धारा शॉक्ड रह गयी।

उसे ऐसे देख देव ने पूछा, " क्या हुआ..? ठीक तो हो ! क्या है इसमें !!" देव ने धारा के हाथ से डिब्बा लिया ! तीन चाभियाँ रखी हुई थी उस डिब्बे में !

देव ने बड़ी बड़ी आंखे कर हैरानी से धारा को देखा ! जो दोनो हाथों को सिरपर धरे बैठी थी।

धारा देव को कोसते हुए , "इस घर मे जितने ताले नही है ना उससे ज्यादा तो चाभियाँ मिल चुकी है हमे !! भगवान जाने ऐसे कौन सी तिजोरियां है जिनकी चाभिया तुमने ऐसे जगह जगह छुपा कर रखी हुई है !! मुझे लगा उन पंडित जी ने प्रसाद दिया होगा ! पर.....!"

"पर उन्होंने एक ओर समस्या दे दी ! है ना..!!" देव ने धारा का वाक्य पूरा किया जिसपर धारा ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, " पहले ही आधी से ज्यादा चाभियों का कुछ मसझ नही आ रहा, उसपर ये तीन चाभियाँ ओर ! अभी तो ये सीडी का पासवर्ड भी........" बोलते हुए जैसे ही धारा ने लैपटॉप पर नज़र घुमाई, लैपटॉप ऑन था !!

" मैं चाय बनाकर लाता हूँ !!" बोलते हुए देव किचन में चला गया !.

धारा अब तक लैपटॉप को ही देख रही थी क्योंकि उसे अच्छे से याद था कि वो लैपटॉप को बंद कर के गयी थी। उसने लैपटॉप उठाया और फिर से पासवर्ड सोचने लगी।
देव चाय लेकर आया ! धारा को यूं उलझा हुआ देख उसने लैपटॉप को अपनी ओर घुमाया और पासवर्ड डालकर फोल्डर को खोल दिया।

धारा दंग रह गयी देखकर !! "तुम..तुमने कैसे ओपन कर लिया ये?? पासवर्ड कहाँ मिला तुम्हे..?? तुम्हे कैसे पता चला पासवर्ड.? याददाश्त आ गयी तुम्हारी देव...??" चौंकते हुए धारा देव से सैकड़ों सवाल कर गयी।

देव बड़े ही इतराते हुए शर्ट की कॉलर खींचते हुए," देव के लिए कुछ भी नामुमकिन नही है धारा मैडम ! माना कि याददाश्त चली गयी ! पर तुमने ही कहा था ना, बन्दा अपनी स्किल्स कभी नही भूलता!!!"

स्किल्स बात अलग होती है, कुछ बातें याद रखना अलग !!" धारा ने टोंट कसा देव को।

"तुम्हे इस घर का नंबर याद है !! हाउस नंबर..??" देव ने पूछा।

धारा, "अम्म..नही तो !!"

देव , "बाहर बोर्ड लगा हुआ है देखकर आओ !!"

धारा ने बाहर आकर देखा ! बाहर नेम प्लेट पर देव का नाम और हाउस नंबर लिखा हुआ था 'D-44'

धारा ने अंदर आते हुए कहा, "D-44 लिखा हुआ है !!"

"हम्म...करेक्ट ! ब्लॉक डी मकान नंबर 44 !! उस स्लिप में भी M44-P44 लिखा हुआ था ! मकान नंबर D-44 है !
मेरी मम्मी का नाम मंगला जो M से स्टार्ट होता है, पापा का नाम प्रकाश जो P से स्टार्ट होता है और D से मेरा नाम स्टार्ट होता है !!4 अप्रैल मेरी बर्थ डेट है ! मतलब 4-4 !
और उस दिन घर की सफाई के समय मुझे एक एल्बम मिली थी ! जिसमे मैंने देखा था पापा मम्मी की मैरिज एनिवर्सरी भी 4 अप्रैल को ही आती है !! कुल मिलाकर 4 इस लकी नंबर फ़ॉर मी !! और पासवर्ड 5 शब्दो का था जिसे अल्फाबेट्स और न्यूमेरिक नंबर से बनाया हुआ था ! मैंने जोड़तोड़ कर नंबर सेट किया ! लाइक- MPD44, !! तीन चार तरीको से लिखकर देखा ! पर पहली बार मे ही सफलता मिल गयी !! माँ-पापा-देव-44 !!"


धारा ने देव को झूठी शाबासी दी क्योंकि देव ने जो भी उसे समझाया, सब उसके सिर के ऊपर से गया ! लेकिन एक गुत्थी सुलझते ही दूसरी ने धारा के मन मे जन्म ले लिया ! धारा अपने मे ही डूबी हुई बोली, " तुम्हे पहले से ही पता था क्या देव..कि, तुम्हारी याददाश्त जाने वाली है !! इसलिए पासवर्ड कही स्लिप पर लिख लो !! बाद में काम आएगा..??"


"तुम सच मे डॉक्टर ही होना..? या कोई खुफिया एजेंसी में काम करने वाली ! दिमाग तो खूब चलता है तुम्हारा...??" देव धारा के दिमाग की दाद देते हुए बोला। क्योंकि उसे भी धारा का कहा सच लगा।

धारा ने फोल्डर ओपन किया ! इतना कुछ खास नही था उस फ़ाइल में ! या शायद धारा को समझ नही आ रहा था, यदि कुछ विशेष हो तो भी !! कोई स्टीमेट था शायद ! जिसकी एक्सेल शीट को सेव किया हुआ था !!धारा ने दिमाग लगाया पर कुछ सूझा नही।


चाभियों को देखते हुए देव ने कहा, " अच्छा एक काम करते हैं ! इन चाभियों को उन लाकर्स में लगाकर देखते हैं !!"

धारा ने ये कहते हुए मना कर दिया कि, " मुझे नही लगता देव! ये चाभियाँ इन लॉकर्स की होंगी ! अगर होती तो पुजारी जी के पास नही होती ! बल्कि यही कहीं रखी होती !!"

देव, "पर एक बार ट्राय करने में क्या जाता है..? क्या पता किसी लाकर की ही हो...??"

धारा ने सहमति दी ! फिर दोनो ने जाकर फिर से उन चाभियों को अलमारियों में लगाया ! "एक मिनट..!" अचानक धारा को कुछ ध्यान आया ! उसने देव से कहा, " मुझे ये चाभियाँ दो !!"

देव ने सारी चाभियाँ धारा को पकड़ा दी !! धारा ने अब तक कि सारी मिली चाभियों को निकाला और टेबल पर रख दी ! फिर सारी चाभियों को उनके साइज के अनुसार क्रम से जमा दिया।
देव कभी धारा को देखता तो कभी चाभियों को ! "अमेजिंग यार !! तुम्हे ये सब सूझा कैसे..??"देव ने आश्चर्य जताते हुए पूछा।

जिसपर धारा ने उसके कंधे पे अपनी कोहनी टिकाते हुए कहा, " जैसे तुम्हे पासवर्ड सूझा बिल्कुल वैसे ही !! पंडित जी ने जो चाभियाँ मुझे दी थी ना वो तीनो ही तीन साइज की थी ! और अब तक मिली हर चाभियो का साइज भी अलग अलग था ! इसलिए अचानक ही मेरे दिमाग मे ये बात आई !! और देखो, बिल्कुल सही बात आई दिमाग मे !!"


देव में सबसे बड़ी चाभी उठाई और पूरे रूम में नज़र घुमाई ये देखने के लिए की किस लॉक की चाभी है ये !!
धारा अब भी किसी सोच में डूबी हुई थी ! देव ने उसे ऐसा देखकर सवाल किया, "क्या हुआ धारा..? किस सोच में गुम हो?"

धारा कुछ सोचते हुए निचले होंठ को दांतों से दबाते हुए बोली, "पता नही देव ! कुछ अजीब सा लग रहा है ! मुझे ऐसा लग रहा है जैसे हम ये सब अपनी मर्ज़ी से नही कर रहे हैं ! कोई हमसे करवा रहा है...!!"

देव, "मतलब..? मैं कुछ समझा नही !!"

"हमे यहां आए हुए महीना भर से ज्यादा का समय हो गया है ! एक दो पड़ोसियों से ज्यादा कभी किसी ने हमसे बात नही की ! ना ही कोई आया मिलने !! तुम पता नही कितने समय बाद यहां आए हो उसके बाद भी सोसायटी के सेक्रेटरी ने या किसी व्यक्ति ने आकर तुमसे गायब होने का कारण नही पूछा ! घर इतने समय से बन्द था, यहां किसी को किसी से मतलब नही, अगर तुम्हारे किसी दुश्मन को कोई सबूत या जो भी तुम्हारे खिलाफ अगर कुछ भी चाहिए था, तो वो आसानी से आकर ले सकता था ! पर नही !!
और सबसे बड़ी बात, जैसा कि विमलेश अंकल ने कहा था कि तुम्हारे पता नही कितने दुश्मन है..?लेकिन आज तक एक भी नही आया ! ना ही तुमपर ऐसा कोई हमला हुआ या हादसा !! मैं कितनी बार बाहर गयी मुझे कुछ नही हुआ !! ऐसा कैसे हो सकता है...??" धारा ने एक एक बात पर ज़ोर देते हुए कहा। जिसे सोचने पर देव भी मजबूर हो गया !!

देव, "मतलब कुछ बहुत ही मिस्टीरियस है धारा ! जो हम समझ नही पा रहे..??"

धारा, "एसेक्टली ! या तो कोई ये सब काम हमसे बड़ी ही आसानी से करवा रहा है ! या फिर काम तो हम अपनी मर्ज़ी से ही कर रहे हैं ! पर कोई है जो ये चाहता है कि हम ये सब करे !!!"

देव, " हो सकता है, इसमें उसका भी कोई फायदा हो !!"

कुछ देर तक धारा और देव चाभियो को ही देखते रहे ! देव ने उससे कहा, " ये चाभियाँ पंडित जी ने दी न तुम्हे ! हो सकता है उन्हें कुछ पता हो..?? उनसे पूछना चाहिए हमे !!"

"सुबह मैंने कोशिश की थी देव ! पर उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया ! मतलब वहां भीड़ थी इसलिए वो कुछ नही बोले ! और मुझे भी कुछ बोलने से मना कर दिया !!" धारा ने मंदिर वाली बात तो देव को बता दी पर उसे जो भ्रम सा लग रहा था कि कोई उसका पीछा कर रहा है, ये बात उसने देव को नही बताई !!


देव, "मुझे ना ऐसा लगता है कि हमे एक बार और पूरे घर कप अच्छे से चेक करना चाहिए !! शायद अच्छे से देखा न हो...??"

"ओह हेलो ! कहना क्या चाहते हो तुम...?? तुम्हारा तो आता नही पर मैंने इस घर का एक एक कोना अच्छे से चेक किया है !! समझे !!" धारा देव को भड़कते हुए बोली।

देव मुंह फुलाकर बाहर जाने लगा ! धारा ने उसे टोकते हुए पूछा, " किधर चले मुंह फुलाकर..??"

"बाथरूम में ! कपड़े धोने !!" देव मुंह बिचकाकर बोला ! जिसपर धारा को ओर मज़ा आया उसे चिढ़ाने में ! धारा ने कहा, " रहने दो ! बुखार है तुम्हे ! गीले में हाथ पैर करोगे तो और बीमार पड़ जाओगे..!!"

देव खुश हो गया सुनकर ! खुशी से उछलते हुए बोला, " ठीक है तो , मैं कपड़े बाथरूम में रख देता हूँ तुम धो देना !!" देव को लगा धारा बड़े ही प्रेम से उससे हाँ बोलेगी, मगर धारा ने उसके उलट जवाब देते हुए कहा, " मैं नही धोने वाली तुम्हारे कपड़े ! मैंने बोला, अभी रहने दो ! बुखार है !! जब तबियत ठीक हो जाये तब धो लेना !!" और बाहर चली गयी।

देव मुंह खोले देखता ही रह गया !

धारा का मोबाइल बज रहा था ! उसने देखा, डॉ नकुल का कॉल था ! धारा कॉल रिसीव करते हुए, " हाँ डॉ नकुल ! कहिए !!"

धारा डॉ नकुल से बात करने लगी और देव बड़े ही प्यार से उसे देखने लगा ! मगर जब उसकी नज़र अपने गंदे कपड़ो पर गयी तो हाथ पैर ढीले पड़ गए उसके !! उसने सारे कपड़े उठाकर अपने मुंह पर रख लिए।

डॉ नकुल, " डॉ धारा, कैसी हैं आप..? देव कैसे हैं ??"

धारा ने देव को देखा ! जो अपने गंदे कपड़ो को मुंह ओर और गोद मे धर के बैठा हुआ था ! उसे देख धारा को ज़ोर से हंसी आ गयी ! वो हंसते हुए बोली, " देव भी बिल्कुल ठीक है डॉ नकुल !! बस हल्का सा फीवर था जो अब कम हो चुका है !!"

डॉ नकुल, " क्या हुआ आप हंसी क्यों इतनी तेज़..??"

धारा, " नही कुछ नही ! बस वो नज़ारा तो फनी था, इसलिए हंसी आ गई !! वैसे आप बताइए कॉल कैसे किया..??"

डॉ नकुल, " हाँ अच्छा याद दिलाया ! मैं भूल ही गया था ! एक्चुअली आप को याद है ! मेरा एक पेशेंट था, जिसकी दिमागी हालात थोड़ी खराब थी..??"

धारा, " हाँ, पर वो तो ठीक हो गया था ना..? अब फिर से क्या हुआ उसे..??"

डॉ नकुल, " अरे वो ठीक तो हो गया था ! पर उसके घरवाले बोल रुए हैं कि घर जाकर ये फिर से वैसे ही हरकते करने लगा है !! इसलिए आपकी एक हेल्प चाहिए थी !!"

धारा, " हाँ तो कहिए ना कैसी हेल्प चाहिए थी आपको..??"

डॉ नकुल, " आपको याद है एक बार मैंने आपके लैपटॉप में कुछ पेशेन्ट्स की जानकारी सेव की थी पीडीएफ फ़ाइल के रूप में !! तो मुझे वही पीडीएफ फ़ाइल चाहिए !! यदि अभी भी वो फाइल्स हो आपके पास उपलब्ध, तो क्या आप मुझे भेज सकती है !!"

धारा, "या व्हाई नॉट डॉक्टर..? मैंने आजतक कभी कुछ डिलीट ही नही किया है ! होगी वो फ़ाइल मेरे पास ! मैं मेल करती हूँ आपको अभी !!"

"ओके डॉ धारा ! थैंक यू सो मच !!" कहते हुए डॉ नकुल ने फोन रख दिया !
डॉ नकुल को फ़ाइल भेजने के लिए धारा ने लैपटॉप खोला और फ़ाइल सर्च करने लगीं। काफी ढूंढने पर भी जब वो नही मिली , तब धारा को ध्यान आया कि एक बार मेमोरी ज्यादा भर जाने से उज़्ने स्पेस खाली करने के लिए कुछ फाइल्स डिलीट कर दिए थे !
धारा ने रीसायकल बिन में जाकर डाटा रिस्टोर करने का सोचा !! बहुत सारी फाइल्स थी। धारा ने सारी डिटेल फाइल्स को कट किया ओर माय फाइल्स में लेजाकर पेस्ट कर दिया ! फिर धीरे धीरे वो एक एक फाइल्स को खोलकर देखने लगी !!
उन्ही सबके बीच वो फोल्डर भी था जो देव ने डिलीट किया था। धारा ने उसे ओपन किया। कुछ वीडियोस थे उसमे ! धारा ने एक वीडियो प्ले करके देखा !
हैरानी से आंखे बड़ी हो गयी धारा की वीडियो देखकर ! उसने अजीबसा मुंह बनाया और बोली, " छि, यक... इतने चीप वीडियोस, मेरे लैपटॉप में !! पर मैंने तो कभी देखे ही नही तो इसमें कैसे आये...?? कहीं देव।ने तो...??"

धारा के मन में देव का ही ख्याल आया !! क्योंकि इस समय सिर्फ एक वही शख्स था जो उसका लैपटॉप यूज़ करता था ! धारा ने पहले डॉ नकुल को उनकी पीडीएफ सेंड की फिर कुछ सोचा और लैपटॉप लेकर देव के रूम में पहुंच गई।

धारा के तमतमाते चेहरे को देख देव के मन मे एक घबराहट बैठ गयी।
देव कुछ कहे उसके पहले ही धारा ने कहा, " कब तक ये याददाश्त जाने का नाटक करोगे देव..*?"

देव के चेहरे की हवाइयां उड़ गई ........!!



जारी..........


(JP )

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