धारा - 2 Jyoti Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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धारा - 2

धारा ( भाग-2)

दिनभर पेशेंट्स को देखने के बाद धारा फिर से देव के रूम में पहुंच गई..!! उसने बेड के नीचे से स्टूल खींचा और उसपर बैठ गयी।

धारा ने देव का हाथ अपने हाथ मे लिया और उससे बातें करने लगी। "तुम मेरी ज़िंदगी के वो पहले व्यक्ति हो देव जिसे मैंने अपना दोस्त माना..! क्योंकि आजतक मेरी ज़िंदगी मे जो कुछ भी हुआ उस वजह से मैं किसी के साथ दोस्ती करना तो दूर बात करने से भी घबराती हूँ..!! बीते तीन-चार सालों में शायद हम दोनों की ज़िंदगी ही बदल गयी है..!! इन बीते सालों में जो हम दोनों की ज़िंदगी मे हुआ है, उसने हम दोनों को ही बदल कर रख दिया है..!!! इन चार सालों में तुम कहाँ थे..? क्या कर रहे थे..? किन हालातो में थे..?कैसे थे..??? ये तो मैं नही जानती देव, लेकिन इतना जरूर जानती हूँ कि तुम जरूर किसी न किसी वजह से ही सबसे दूर थे!! अब तो भगवान से एक ही प्रार्थना है...तुम जल्दी से जल्दी ठीक हो जाओ बस..!!!"

धारा ने अपने दोनो हाथों से देव का हाथ थाम लिया और आंखे बंद कर ली..!! धारा को कुछ महसूस हुआ।.! उसने झटके से आंखे खोली और देव की ओर देखा..! मगर देव आंखे बंद किये था !! धारा ने सोचा, भ्रम था शायद..!! वो उठकर चली गयी।
धारा के जाते ही देव की उंगलियों में फिर से हलचल हुई और उसने आंखे खोलने का प्रयास किया मगर सफल नही हो पाया।

धारा अपने घर पहुंची..!! हॉस्पिटल से कुछ ही दूरी पर था उसका घर..! छोटा सा घर जहां वो अकेली ही रहती थी..!! जिसे अपनी मेहनत की कमाई से खरीदा था उसने..!! खाना बनाना तो आता नही था उसे इसलिए टिफिन लगवाया हुआ था..!
आज थकान हावी हो गयी थी उसपर !! उसने हाथ मुंह धोकर मंदिर में दिया-बाती करके देव के लिए प्रार्थना की और जाकर सो गई। आधी रात को उसका मोबाइल बजा..!!

धारा ने नींद में ही फ़ोन उठाकर कान से लगाते हुए कहा,"हेलो...! कौन..??"

उधर से आवाज़ आयी," हेलो ! डॉक्टर धारा!! मिस्टर देव को होंश आ गया है..!!"

धारा एक झटके में ही उठकर बैठ गयी !! सारी नींद और थकान गायब हो गयी उसकी..! उसने उत्साहित होकर पूछा," कौन बोल रहे हैं आप..? कहां से..?आपको किसने बताया देव के बारे में..??" धारा सवाल पर सवाल पूछे जा रही थी फिर उसने अपने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा, डॉक्टर नकुल का कॉल था.!!
डॉक्टर नकुल जिनके अंडर में देव का ट्रीटमेंट चल रहा था !!

डॉक्टर नकुल ने कहा," डॉक्टर धारा नींद से जागिये और फौरन हॉस्पिटल आइए..!!"

धारा ने "ओके डॉक्टर नकुल..मैं बस दस मिनट में आई" कहकर कॉल रखा और बिस्तर से बाहर निकल गयी..!! धारा की खुशी का ठिकाना ही नही रहा..!
उसने समय देखा, रात के चार बजने को थे ! अब रात के चार क्या ये तो सुबह का ही समय होने को था..!!

धारा ने जल्दी से हाथ मुंह धोए और ड्रेस चेंज की..!! स्कूटी की चाबी उठाई और निकल पड़ी हॉस्पिटल के लिए।
धारा भागकर देव के रूम पहुंची !
तब तक डॉक्टर धीरज भी आ चुके थे !! धारा ने देखा, देव की आंखे बंद थी.!! उसने हैरानी से डॉक्टर धीरज और नकुल को देखा..!

डॉक्टर धीरज ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा," बधाई हो धारा, तुम्हारे छह महीने की प्रार्थना और परिश्रम का आज फल दे ही दिया ईश्वर ने तुम्हे..! देव को आखिरकार होंश आ ही गया..!!!"

धारा ने देव की ओर देखा फिर धीरज से कहा," लेकिन ये तो.......! डॉक्टर नकुल उसकी बात काटकर,"सोया हुआ है..!!"

डॉ. धीरज ने कहा," इंजेक्शन्स का असर है ! इसलिए सो गए हैं ये ! बट यु डोंट वरी..!! अब ये स्वस्थ हैं..!!"

"लेकिन.. पूरी तरह नही !!" डॉ. नकुल ने कहा। धारा ने पूछा,"मतलब..??"

डॉक्टर नकुल ने उसे समझाते हुए कहा,"मतलब ये डॉ. धारा, इन्हें होंश तो आ गया है लेकिन छह महीने बाद..! इनका मानसिक संतुलन स्थिर होने में समय लगेगा..! ये जितना ज्यादा होंश में रहेंगे अभी उतना ही ज्यादा लोड पड़ेगा इनके मस्तिष्क पर !जो इनके लिए हानिकारक है ! इस वजह से इन्हें धीरे-धीरे होंश में लाना पड़ेगा..! जिसके लिए लगभग एक सप्ताह का समय और लग सकता है..!!"

"मुझे को प्रॉब्लम नही है डॉक्टर..! जहाँ छह महीने इंतज़ार किया वहाँ एक सप्ताह और सही ! बस देव बिल्कुल ठीक हो जाये...!!" धारा ने कहा।। उसके मन मे फिर एक शंका उत्पन्न हुई। उसने डॉक्टर से पूछा," पर डॉक्टर...... इसकी याददाश्त...!!"

"अभी तो कुछ नही कह सकते धारा..!! इन्हें पहले पूरी तरह होंश में आने दो..!!" डॉक्टर धीरज ने जवाब दिया।

धीरे-धीरे दिन बीतने लगे..! देव ठीक होने लगा और साथ मे ये भी कन्फर्म हो गया कि उसे कुछ भी याद नही है..! बीता हुआ सबकुछ भूल चुका है वो..!! होंश में आते ही उसने किसी को नही पहचाना..! स्वयं को भी नही..!!

धारा जहां एक ओर चिंतिंत थी वहीं दूसरी ओर निश्चिंत भी। चिंतित इसलिए कि देव को कुछ भी याद नही है..! ऐसे में अगर कभी उसके सामने वो लोग आए जो उसके दुश्मन है तो वो उन्हें कैसे पहचानेगा..!
और निश्चिंत इसलिए कि, अब देव फिर से अपनी जान जोखिम में नही डालेगा..!!

जब देव बिल्कुल स्वस्थ हो गया और उसके डॉक्टर ने उसे डिस्चार्ज कर दिया तब धारा उसे अपने ही घर ले आयी..!

एक डर था धारा के मन मे, "देव को इस तरह अपने घर लाना क्या ठीक रहेगा..??मैं अजेली रहती हूँ घर मे..! ऐसे में एक लड़के के साथ रहना..!! कोई क्या सोचेगा
.??"
लेकिन फिर उसने सोचा," जब उसके साथ इतना कुछ हुआ, तब भी कौनसा लोग उसके साथ खड़े थे..! मुझे कोई फर्क नही पड़ता कोई क्या सोचे..? देव के पैरेंट्स ने भी तो मुझे अपने साथ रखा!! आज जो कुछ भी हूँ उन्ही की वजह से ही तो हूँ..! अब मेरी बारी है उनके प्रति अपना कर्तव्य पालन करने की..!!"

धारा ने अपने बगल वाले कमरे में ही देव का सामान शिफ्ट कर दिया..! उसकी सारी दवाइयां, जो सामान उसके पास से मिला था वो ..!
साथ ही धारा ने अपने पास रखी हुई देव की फैमिली फ़ोटो भी देव के रूम में ही लगा दी..!!

देव ने पूछा," ये कौन हैं..??"

धारा ने कहा,"ये तुम्हारे पैरेंट्स हैं..!" बीच मे खड़े बच्चे की ओर उंगली से इशारा करके,"और ये इन दोनों के बीच मे तुम..!!"

"ये मेरे पैरेंट्स हैं..?? मुझे तो कुछ भी याद नही ! कौन हूँ मैं.? क्या नाम है मेरा.? कहां रहता हूँ.?? क्या करता हूँ..?यहां कैसे आया..? मेरी याददाश्त कैसे गयी..?? और तुम कौन हो..??" देव ने फिर से सवालो की झड़ी लगा दी धारा पर।

धारा ने मुस्कुराते हुए कहा,"कितनी बार ये प्रश्न करोगे देव..?? तुम्हारा नाम देव है..! तुम जब अपने पैरेंट्स के साथ कहीं जा रहे थे तब एक एक्सीडेंट में उनकी डेथ हो गयी और तुम्हारी याददाश्त चली गयी। पिछले छह-सात महीनों से तुम कोमा में थे..!! इसी महीने होंश आया है तुम्हें..! और तुम्हारे बारे में तुम्हे जो कुछ भी जानना है, धीरे-धीरे जानते जाओगे..!! अभी दिमाग पर ज्यादा प्रेशर मत डालो प्लीज़..! वरना तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी प्रॉब्लम हो जाएगी !!"

देव असमंजस में पड़ गया। "मेरी वजह से तुम्हे क्या प्रॉब्लम हो जाएगी..? तुम हो कौन..??" उसने फिर से प्रश्न किया।

धारा अपना माथा पीटते हुए," फिर शुरू हो गया ये.! कितने प्रश्न पूछेगा..??
देखो, मेरा नाम धारा है ! तुम्हारी बचपन की दोस्त हूँ !! तुम्हारा इतने महीनों से इलाज और देखभाल करने वाली मैं ही हूँ..!! और मुझे प्रॉब्लम ऐसे हो जाएगी कि इतने महीने से मैं अपने खर्चे पर तुम्हारा इलाज करवा रही हूँ..! अभी तक सारे बिल भी क्लियर नही हुए हैं..!! अगर तुमजे दिमाग पर ज़ोर डाला तो तुम फिर से बीमार हो जाओगे ! तुम्हे फिर से हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ेगा ! बिल और ज्यादा बढ़ जाएगा..!!!" धारा दोनो हाथ जोड़कर," सो प्लीज़, इतना उपकार करो मुझपर..! ज्यादा लोड मत लो. ! आराम करो..! तुम्हारे लिए मैंने खिचड़ी मंगवा दी है..! अभी आ जायेगी ! उसे खाकर तुम दवाई ले लो और सो जाओ..!!"

देव ने फिर प्रश्न किया, " खिचड़ी मंगवाई है मतलब..??? तुम बना लेती ना..!!"

धारा ने मुंह बिगाड़ा..!! फिर कहा,"वो एक्चुअली, हॉस्पिटल से खिचड़ी मंगवाई है मैंने तुम्हारे लिए..! वो क्या है ना, वहां पर पेशेंट्स के हिसाब की ही खिचड़ी बनती है..!! वही ठीक रहेगी तुम्हारे लिए..!!"

देव ने सिर हिलाया!! थोड़ी देर में खिचड़ी आ गयी ! और धारा का टिफिन भी। टिफिन देखकर देव ने फिर प्रश्न किया,"इस टिफिन में क्या है..??"

"मेरे लिए खाना है..!!" धारा ने जवाब दिया।

"क्यों..? मेरे लिए ना सही तुम अपने लिए तो खाना बना सकती हो ना..??" देव ने पूछा।

"है भगवान..! कहां फंस गई मैं..? ये कोमा में ही अच्छा था !!" धारा अपने आप मे ही बड़बड़ाई। फिर झूठी सी हंसी के साथ बोली,"हाँ वो मेरा हॉस्पिटल जाने-आने का कोई समय नही होता ना इसलिए टिफिन लगवाया हुआ है..!!"

"जब आने-जाने का समय फिक्स नही है तो टिफिन क्यों लगवाया है..??" देव ने पूछा।

धारा मन मे,"क्या इंसान है यार..! याददाश्त चली गयी मगर पुलिसगिरी नही गयी। याददाश्त जाने के बाद भी पुलिस की तरह पूछताछ किये जा रहा है। प्रश्न पर प्रश्न !! अब ये फिर से सवालो की झड़ी लगाए उसके पहले भाग ले धारा..!.!"

"क्या हुआ जवाब नही दिया..!!" देव ने पूछा।

धारा गुस्से से, "तुम चुपचाप ये खिचड़ी खाओ और दवाई ले लो..! मुझे हॉस्पिटल के लिए देरी हो रही है ! तुम्हारे सवालो का जवाब देने बैठूंगी तो यही बैठी रह जाऊंगी..! सवाल खत्म होने का नाम ही नही ले रहे..!!"

धारा ने अपना बैग उठाया और जाने लगी। जाते-जाते उसने देव से कहा,"खबरदार जो घर से बाहर निकले तो..!! मैं वैसे ही बहुत परेशान हूँ सो प्लीज़ चुपचाप घर मे पड़े रहना..! अगर बोरियत हो तो घर मे ही कोई ऐसे काम ढूंढ लेना जिससे दिमाग पर ज़ोर न पड़े..! मैं दोपहर में आ जाऊंगी एक बार..!!" और बाहर निकल गयी।

धारा ने मैन गेट पर बाहर से लॉक लगाया और स्कूटी से हॉस्पिटल के लिए निकल गयी।



क्रमशः