Dhara - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

धारा - 4

"डॉ. धारा, आपसे एक फ़ेवर चाहिए था मुझे..!!" हॉस्पिटल की ही एक अन्य डॉ. दिव्या ने धारा से रिक्वेस्ट करते हुए पूछा।

"फ़ेवर..? कैसा फ़ेवर..? बोलिये न डॉ. दिव्या !!" धारा ने पूछा।

"वो मैं आज किसी जरूरी काम से आउट ऑफ टाउन जा रही हूँ ! तो क्या आप मेरे दोनो बच्चो को संभाल लेंगी.?? सिर्फ आज की ही बात है, कल सुबह तक तो मैं किसी भी हाल में आ जाऊंगी ! प्लीज़..!!" डॉ. दिव्या ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।

धारा जानती थी दिव्या के दोनो बच्चे बहुत उत्पाती और शैतान हैं..! उन्हें अपने साथ रखना मतलब बैठे-बिठाए मुसीबत मोल लेना ! मगर जब भी कभी धारा को किसी चीज़ की जरूरत होती, दिव्या हमेशा उसका साथ देती, सहायता करती ! इसी वजह से धारा को हामी भरनी पड़ी दोनो बच्चो को अपने पास रखने के लिए..! पर अच्छी बात ये थी, बच्चे सिर्फ रात रुकने तक सम्भालने थे, सुबह तो दिव्या आ ही जाएगी।

शाम को धारा, दिव्या के दोनो बच्चो, पूरब और पाखी को लेकर घर पहुंची !
देव ने धारा के साथ दोनो बच्चो को देखकर पूछा,"ये किसके बच्चो को उठा लायी तुम..??"

धारा चिढ़कर,"उठाकर लायी का क्या मतलब है..? मेरे साथ ही डॉक्टर है एक उनके बच्चे हैं ! ये पूरब और ये पाखी..!!" धारा ने देव और बच्चो का आपस मे परिचय करवाया।

"वैसे आंटी !खाने में क्या बनाओगी आप..??" नटखट पूरब ने पूछा।

देव ने हंसकर, "आंटी.." कहा और धारा को देखने लगा।
धारा ने गुस्से में खा जाने वाली नज़रो से देव को देखा !!
देव ने कहा,"क्या..? वो बच्चे ने ऐसी टोन में बोला न तो हंसी आ गयी !! सॉरी..!!"

"सॉरी..!!हुह..!!" धारा धीरे से गुस्से में बड़बड़ाई।
धारा चिंतित हो उठी ! अब तक खुद के लिए तो वो टिफिन पर निर्भर थी। पर अब चार लोग हो गए ! धारा मन ही मन सोचने लगी,"टिफिन वाले से सुबह कहा भी नही, तो वो एक का ही खाना भेजेगा !! अब क्या करूँ..?? इन लोगों के खाने की व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी ना..! बच्चो को भूखा तो रख नही सकती..!!"

धारा को यूं चिंतित देख, देव से रहा नही गया ! वो धारा के पास आकर धीरे से बोला,"क्या हुआ..? किस सोच में मग्न हो???"

धारा चौंक गई !! धारा देव से एक कदम पीछे जाकर बोली,"इतनी धीरे क्यों बोल रहे हो.??"

देव हैरानी से,"क्या? इतनी चौंककर दूर क्यों गयी??"

"नही, वो तुमने अचानक इतनी पास आकर धीरे से कहा तो चौंक गए थोड़ा !!" धारा ने लंबी सांस लेकर कहा ! देव पहले तो चुप रहा फिर बोला,"अब बताओ क्यों परेशान हो रही थी यहां ?? एनी प्रॉब्लम !!"

"हाँ वो सब के लिए खाना...!!" इतना बोलकर धारा चुप हो गयी !

देव ने कहा,"क्या सब के लिए खाना..? खाने में क्या बनाओगी ये सोचकर परेशान हो रही हो ?? अरे तो इसमें इतना परेशान होने वाली क्या बात है?? बना लो कुछ भी हल्का फुल्का..!! इज़ी तो डाइजेस्ट !!"

धारा ने भौहें चढ़ाकर देव को घूरते हुए,"क्या बनाना है ये परेशानी नही !!"

देव ने पूछा,"तो..??"

"कैसे बनाना है ये परेशानी है..!!" धारा ने बच्चो की तरह मुंह बनाकर कहा ! धारा की शक्ल देखके, देव एकपल को उसपर मोहित हो गया ! धारा एकदम मासूम लग रही थी, बिल्कुल किसी बच्चे की तरह !
देव के मुंह से अनायास ही निकल गया,"सो क्यूट !!"

"हम्म, क्या..? क्या कहा तुमने..??" धारा ने चौंकते हुए पूछा! शायद कुछ सुना गया था उसे।

देव हड़बड़ा गया अचानक धारा के प्रश्न करने से! इधर-उधर देखते हुए उसने कहा," नही तो ! कुछ नही ! वो तो मैं ऐसे ही !! तुमने कहा ना अभी के खाना कैसे बनेगा ये परेशानी है..! तो..!!"

"तो क्या..??" धारा ने फिर पूछा।

"अरे तो तुम इस बात को लेकर इतनी परेशान क्यों हो ये पूछ रहा था !!" देव लगभग अपने डर पर कंट्रोल करते हुए बोला।

"परेशान ना होऊँ तो ओर क्या करूँ..? खाना बनाना आता तो अब बना नही लेती..!!" धारा ने बड़बड़ाते हुए कहा। देव चौंक गया धारा की बात सुनकर।
उसने हैरानी से पूछा,"खाना बनाना आता तो मतलब..?? तुम्हे खाना बनाना नही आता..? तुम्हे कुकिंग नही आती..??"

"हिंदी में बोलो चाहे अंग्रेज़ी में ! दोनो का मतलब एक ही है और उत्तर भी ! नही आता मुझे खाना बनाना!!" धारा ने कुछ गुस्से तो कुछ खिसियाते हुए कहा।

"क्या ..? तुम्हे खाना बनाना नही आता !!" चौंकते हुए देव ने लगभग थोड़ा चीखते हुए कहा।फिर नौटंकी करते हुए कहा, "ओह! तो अब समझ आया....क्यों तुमने टिफिन लगवाया हुआ है?? मेरे लिए खिचड़ी भी हॉस्पिटल से ही क्यों लाती हो..?? स...ब समझ गया मैं....!!"

पीछे खड़े पूरब ने जब ये सुना तो मुंह पर हाथ रखते हुए बोला,"हा.... आंटी, आप इतने बड़े हो गए आपको खाना बनाना नही आता! मेरी मम्मी को देखो, सबके लिए खाना बनाती है! हमारे टिफिन में भी हमारे पसंद का खाना बनाके रखती हैं !! और आपको खाना बनाना नही आता...!!"

पूरब की बात सुनकर धारा ओर ज्यादा चिढ़ गयी ! देव पूरब के गाल खींचकर बोला,"हाँ छोटे उस्ताद देखो तो सही..! आंटी तुम्हारी मम्मी के साथ ही काम करती हैं, फिर भी नही सीखा उनसे...!!"

"मैं वहां पेशेन्ट्स का ट्रीटमेंट करने जाती हूँ, खाना बनाना सीखने नही..! समझे..!!" धारा गुस्से से बोली।

"ओफ्फो आंटी..! तो मेरी मम्मी को तो बचपन से ही आता है खाना बनाना ! नानी बोलती है, की उन्हें बचपन मे ही खाना बनाना सिखा दिया था मैंने..!! आपकी मम्मी ने नही सिखाया आपको खाना बनाना..!!" पूरब के सवाल ने धारा को भावुक कर दिया..!
धारा पूरब के पास जाकर घुटने के बल बैठी और अपनी हथेलियों के बीच उसका चेहरा लेकर बोली,"सिखाने के लिए मम्मी का होना भी तो जरूरी है ना बेटा...! अगर मेरी भी मम्मी होती, तो आई एम श्योर, वो भी मुझे आपकी मम्मी की तरह ही बचपन मे सब सिखा देती !!"

देव को एहसास हुआ, अनजाने में ही उसने और पूरब ने धारा का दिल दुखा दिया..! धारा ने कुछ आधा-अधूरा सा बताया था देव को, अपने बचपन के बारे में..!

इससे पहले की धारा रो दे, देव ने बात संभालते हुए कहा,"कोई बात नही वैसे...!तुम्हे खाना बनाना नही आता तो क्या हुआ..? मुझे तो आता है ना..!! तुम बस मेरी हेल्प कर देना ! खाना मैं बना दूंगा..!!"

धारा आंखों में आंसू लिए मुस्कुरा दी.! उसने हां में सिर हिलाया ! देव पूरब के चेहरे को पकड़कर बोला,"बेटा आंटी को खाना बनाने का समय भी नही मिलता ना इसलिए भी नही सीख पाई वो..! पर अब मैं आ गया हूँ ना, मैं सिखाऊंगा तुम्हारी आंटी को खाना बनाना !!"

पूरब देव की तारीफ करते हुए,"वाओ भैया !! आप तो ग्रेट हो..!"

"भैया...??" धारा ने चौंकते हुए बोली !! फिर मुंह बनाकर,"वाह रे पिद्धे !! मैं आंटी और ये भैया..! गजब..!! ये बड़े हैं मुझसे, जब मुझे आंटी बोला तो फिर इन्हें भैया क्यों बोल रहे हो?? इनको भी अंकल बोलो ना..!!"

कोई कुछ कहता उसके पहले ही पाखी धारा का मोबाइल लेकर आई और धारा को देते हुए बोली,"मम्मी का कॉल है..!!"

धारा वहां से एकतरफ आकर फ़ोन कान से लगाते हुए,"हाँ डॉ. दिव्या बोलिये..!!"

"धारा, प्लीज़ यार हॉस्पिटल के बाहर तो कम से कम दीदी बोल सकती हो ना..!!"

इधर धारा, दिव्या से बात कर रही थी और वहां दिव्या शब्द सुनकर देव का सिर चकराने लगा!! उसके सिर की नसें खिंचाने लगी जैसे ये नाम वो बहुत अच्छे से जानता हो..! कोई है इसी नाम का व्यक्ति जिसे, वो पहचानता है! कोई याद जुड़ी हो उससे !

देव की हालत से बेखबर धारा, दिव्या से फ़ोन पर बात करने लगी हुई थी ! दिव्या से बात खत्म कर धारा खुद से ही बुदबुदाई,"मुझे तो पहले ही समझ जाना चाहिए था, फ्राइडे को जा रही है डॉ. दिव्या तो मंडे को ही लौटेगी..!! सैटरडे और संडे की छुट्टी जो मिल जाती है..! बच्चो को साथ लेकर जाएंगी तो मैडम अपना हॉलिडे कैसे एन्जॉय करेंगी..? इसलिए इन शैतानो को मेरे घर छोड़ गई..!!"

अचानक से बर्तन गिरने की आवाज़ से धारा ने पीछे मुड़कर देखा !! देव किचन में स्टैंड पकड़ कर, आंखे बंद किये खड़ा था ! धारा भागकर उसके पास आई और बोली,"देव ! तुम ठीक हो ना ! क्या हुआ..??"

"पता नही अचानक से क्या हुआ..? कुछ समझ नही आया मुझे?? ऐसा लगा जैसे दिमाग की नसें फट जाएंगी अभी..!!" देव अपने दोनो हाथों से सिर दबाते हुए बोला।

धारा देव को सहारा देकर बाहर लायी और उसे सोफे पर बैठाते हुए उसके बगल में बैठ गयी ! धारा ने देव को पानी पिलाया । उसे भी कुछ समझ नही आया, आखिर देव को हुआ क्या..??

थोड़ी देर बाद दोनो बच्चे आकर बोले,"आंटी भूख लगी है !!"

धारा ने कहा,"एक काम करते हैं मैं ऑनलाइन कुछ आर्डर कर देती हूँ ! आ जायेगा थोड़ी देर में !!"

धारा मोबाइल उठाकर जैसे ही नंबर डायल करने लगी, देव ने उसका हाथ पकड़ रोक लिया।
"क्या हुआ.??" धारा ने पूछा।

"ऑनलाइन वाला जब तक लाएगा तब तक तो घर मे ही कुछ बन जायेगा हल्का-फुल्का !" देव ने कहा।

धारा देव की बात काटते हुए,"पर देव मुझे नही आता खाना बनाना..! फिर...!"

"तुम्हे नही आता तो क्या हुआ? मुझे तो आता है ना..!" देव ने कहा।

"नही.. बिल्कुल नही! तुम्हारी तबियत वैसे ही ठीक नही है ! और अभी जो थोड़ी देर पहले हुआ उसके बाद तो तुम बिल्कुल भी काम नही करोगे..!!" धारा ने साफ मना कर दिया देव को।

देव बोला,"अरे तो मैं कहाँ बोल रहा हूँ कि खाना मैं ही बनाने वाला हूँ..!! खाना तुम बनाओगी...मैं हेल्प करूँगा तुम्हारी !!"

थोड़ी आनाकानी के बाद आखिरकार धारा मान गयी..!

दोनो किचन में पहुंचे ! देव निर्देश देते जा रहा था और धारा उसके निर्देश का पालन कर रही थी। रोटी बनाने के लिए धारा ने एक बड़ी थाली में आटा लिया और उसमे पानी डाल दिया।

देव माथा पीटकर,"कर दिया गरीबी में आटा गीला..!! इतना पानी डाल दिया और आता गुंथोगी कैसे..??"

"मतलब..??" धारा ने हैरानी से पूछा।

"अरे मतलब..इतना सारा पानी डाल दिया है अब इस आटे में..हलवा भी नही बनेगा..!!"

देव ने आटा हाथ मे लेकर थोड़ी सी मुट्ठी बांधी और उसे ऊपर से वापस थाली के गिराते हुए देखने लगा !!
धारा को रोना आ गया ! उसने रोनी सूरत बनाकर कहा,"मैंने तो पहले ही कहा था, नही आता मुझे ! अच्छा भला मंगवा रही थी मैं..! लेकिन तुमने मना कर दिया..! अब क्या होगा..??"

धारा को इसतरह पहली बार देखा था देव ने ! बच्चो वाली मासूमियत के साथ उसका बोलना, उनकी तरह ही भावुक हो जाना, देव को भा गया..!!
देव धारा के करीब गया और आटा लगे हाथ से ही उसके आंसू पोंछकर पीछे हटा और हँसने लगा..!!

धारा ने गुस्से में अपने चेहरे से आटा हटाया और अपने हाथ मे आटा लेकर देव की तरफ बढ़ी..!! धारा अपने कदम आगे बढ़ा रही थी और देव अपने कदम पीछे हटा रहा था..!! धारा आटे से सने हाथ लेकर देव के पीछे भाग रही थी और देव उससे बचकर भाग रहा था..!!

दोनो बच्चे देव और धारा को यूं मस्ती करते देख खुश हो रहे थे..!! थोड़ी देर में ही देव की सांसे फूलने लगी..! धारा ने उसे बैठने को कहा और हाथ धोकर मोबाइल उठाकर खाना आर्डर कर दिया !

देव ने धारा को देखकर पूछा,"एक बात पूछुं, अगर बुरा ना मानो तो..??"

धारा ने कहा,"हाँ पूछ लो....मेरे मना करने से तुम मानने वाले तो हो नही..!"

"अब तो बता सकती हो न तुम मुझे मेरे अतीत के बारे में...!" देव ने जैसे ही कहा धारा उठकर जाने लगी..!! देव ने उसका हाथ पकड़ कर वापस खींचकर बैठा दिया और कहा,"देखो धारा, आज नही तो कल बताना ही है.!. अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि मुझे तनाव होगा तो वो तो तुम नही बताओगी तब भी होगा ही..!! क्योंकि तुम नही बताओगी तो मैं खुद ही याद करने की कोशिश करूंगा..!! अब आगे तुम जानो..!!"

"तुम मुझे धमकी दे रहे हो..??" धारा ने आंखे बड़ी करके पूछा।

"बता दो ना आंटी जब भैया इतने प्यार से पूछ रहे हैं तो...!!" पूरब देव के बगल में बैठता हुआ बोला।

"एक थप्पड़ मारूंगी खींच के अगर दोबारा मुझे आंटी और इसे भैया बोला है तो..!!" चिढ़कर धारा ने कहा।

"तो आपको प्रोब्लम किस बात से है..? भैया ने आपको आंटी बोला इस बात से या, देव भैया को भैया बोला इस बात से??" मासूम सी पाखी अपने भाई का पक्ष लेते हुए बोली।

दोनो बच्चो की बात सुनकर देव के चेहरे पर स्माइल आ गयी !!

धारा ने कहा,"मैं भी कहाँ फंस गई यार !! अब क्या बताऊँ मैं तुम लोगों को..??मैं बचपन की बातें बता सकती हूँ जब तक हम लोग साथ थे! उसके बाद मुझे होस्टल भेज दिया गया और इसे भी..,(देव को) !!"

"क्यों? उसके बाद का क्यों नही पता तुम्हे कुछ..??" देव ने कहा।

धारा ने कहना शुरू किया,"ठीक है पहले बचपन का सुन लो..! फिर बाकी का बाद में बिताउंगी..!!"

"ठीक है बोलो..!!" देव ने कहा।

"मुझे इतना क्लियर तो नही पता, मैं कौन थी? कहां से आयी..?? बस इतना याद है कि कुछ लोग मुझे और मेरे साथ कई सारी लड़कियों को अपने साथ लेकर जा रहे थे..!! जैसे कि तुम्हे बता ही चुकी हूँ, तुम्हारे पापा पुलिस में थे ! उन्हें सूचना मिली होगी, लड़कियों की किडनैपिंग करके उन्हें बेचने की, या जो भी हो..! उन लोगों ने रैड मारकर हमे बचाया..!!
फिर हम सब लड़कियों को, जिनकी जानकारी मिल गयी थी घर का पता ठिकाना उन्हें तो उनके घर पहुंचा दिया गया, मगर जिनका कुछ पता नही चला उन्हें एक अनाथालय में छोड़ दिया गया.!! लेकिन वहां पर भी असामाजिक और गैर कानूनी गतिविधियां चलती रहती थी !! एक दिन उस अनाथालय को भी बंद कर दिया गया.!.! हम लोगो के रहने की मुसीबत हो गयी थी..! तब तुम्हारे पापा मेरे साथ-साथ और भी चार लड़कियों को अपने साथ लेकर आये थे। जिनमें से तीन लड़कियां तो भाग गई थी ! क्योंकि उनको आदत थी अकेले रहने की ! घूमने फिरने की! वो रह ही नही पाती थी कहीं स्थिर..!! मुझे और मेरे साथ जो एक ओर लड़की थी हम दोनो को ही तुम्हारे पापा घर लेकर आये..!
हम दोनो के स्वभाव और व्यवहार की वजह से वे हमसे बहुत प्रभावित हुए। हम दोनो की रुचि के अनुरूप ही उन्होंने हमे स्कूल भेजा..!!
मैं हमेशा से डॉक्टर बनना चाहती थी तो मेडिकल के लिए जबलपुर भेज दिया..! हमेशा होस्टल में ही रही मैं..! स्कूल, कॉलेज सब पढ़ाई मैंने होस्टल में रहकर ही कि..!!
एक दिन मुझे खबर मिली, एक रोड एक्सीडेंट में तुम्हारे पैरेंट्स की डेथ हो गयी और तुम हॉस्पिटल में एडमिट हो..! बस में तुम्हे अपने साथ ले आयी..!!
देव मेरी लाइफ में ऐसी कोई दिलचस्प घटना हुई ही नही के में तुम्हे कुछ बताऊं..? और ना ही मुझे तुम्हारे बारे में ज्यादा कुछ पता है !! क्योंकि तुम भी हमेशा अंकल के ट्रांसफर की वजह से अलग-अलग शहरों में घूमते रहते थे.!! कभी-कभार जब छुट्टियों में अंकल मुझे घर लेकर जाते तब ही तुमसे मिलना होता..!!सब इतना ही है..!!!"

धारा अपने बारे में सबकुछ संक्षिप्त में बताकर चुप हो गयी। !! थोड़ी देर की खामोशी के बाद देव बोला,"तो तुम्हे भी मेरे बारे में ज्यादा कुछ नही पता..!! तो फिर तुम मुझे अपने साथ यहाँ क्यों ले आयी.? मेरा घर कहां पर है ये तो तुमने बताया ही नही..!!" देव के फिर से प्रश्न करने पर धारा को कुछ समझ नही आया। देव का दूसरा प्रश्न धारा को ज्यादा परेशान कर गया।
धारा को लगा,"अगर मैंने देव को इसके घर के बारे में बता दिया, तो शायद ये वहां जाने के लिए ज़िद करे..! बताऊं या नही..!!"

फिर धारा ने देव को कुछ सच तो कुछ झूठ बोलने का सोचते हुए कहा,"देव मैं तुम्हे अपने साथ क्यों लायी हूँ इसका कारण बता चुकी हूँ..!! तुम्हारे पैरेंट्स का मुझपर ऐहसान.! और दूसरा प्रश्न के तुम्हारा घर कहां है ये मैं नही जानती..!! क्योंकि, तुम्हारे पापा पुलिस में थे और उनका ट्रांसफर होता ही रहता था ! वे हमेशा या तो पुलिस से क्वार्टर में ही रहते या किराए के घर मे ! एक्सीडेंट का समय वे कौन से शहर में थे ये मैं नही जानती..!! सो प्लीज़, अब कोई प्रश्न मत करना..!!"

डोरबेल की आवाज़ आयी ! धारा ने कहा,"शायद खाना आ गया..!!"

धारा ने गेट खोला, वास्तव में खाना ही था ! उसने आर्डर लेकर, पे किया और अंदर आ गयी ! प्लेट में खाना लगाकर सबको दिया और सब खाने लगे !!

देव के मन मे फिर एक सवाल उठा,"अच्छा, तुम दो लड़कियां थी ना..! वो दूसरी का क्या हुआ..??"

धारा ने कहा,"वो दूसरी को अंकल की तरह ही पुलिस में जाना था ! मगर अंकल उसे आईएएस बनाना चाहते थे..! इसलिए उसे बंगलौर भेज दिया था..! हम दोनो के बीच कॉन्टेक्ट ना के बराबर रहा हमेशा से ही..! मगर अंकल आंटी के एहसानों को वो भी बराबर मानती है..!! पर एक्सीडेंट के बारे के उसे पता चला नही चला, ये मैं नही जानती..! और ना ही उससे मेरा कोई कांटेक्ट है.. ! अभी शायद वो असम के किसी शहर में पोस्टेड है..!!"

"वैसे उसका नाम क्या है..? बताया नही तुमने..!!" देव ने एक ओर प्रश्न किया।

धारा ने बताया,"वही नाम है जो इन दोनों की मम्मी का नाम है..! "दिव्या".. दिव्या नाम है उसका..!!"

"दिव्या..!!" देव ने धीरे से कहा। दिव्या नाम सुनकर फिर से देव का सिर चकराने लगा और उसके हाथ से खाने की प्लेट छूट गयी।




क्रमशः

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