अन्ना राजनीति में ‘‘मत’’ जाना ....
यह आलेख उस समय की तात्कालीन परिस्थितियो में व्यवस्था पर व्यंग्य के रूप में लिखा गया था जो अनेक अखबारों में प्रकाशित भी हुआ था । अन्ना आदरणीय है इस आलेख में पूरे आदर के साथ उन्हें सूत्राधार के रूप में देखें ।
अन्ना जी हमें ऐसा लगने लगा है कि आप तो है एक भोले – भाले व्यक्ति फिर भी राजनैतिक जमात की रोजी - रोटी के पीछे पड़े है । वे आपसे पीछा छुड़ाने के लिए कभी आप को भगोड़ा कहते है तो कभी भ्रष्टाचारी ; कभी वे अलग-अलग आप की प्रशंसा करते है तो कभी एक साथ हो कर आप पर हमला । आप है कि पूरे भोलेपन से इनके पीछे पड़े है । इन्हें तो आपके भोलेपन में भी देशी- विदेशी ताकतों का हाथ नजर आता है । अन्ना जी आप से एक पत्रकार ने राजनीति में आने की छल भरी हामी क्या भरवाली , सभी नेता आप का स्वागत करने लगे। आप इनके स्वागत से खुश मत हो जाना । आम आदमी जो इनसे आज तक नहीं कह पाया था; आप ने कहा है । आपने इन्हें र्निवस्त्र कर दिया , आपने यह बता दिया कि देश के बड़े हम्माम में सभी न सही १६२ तो नंगे है ही। अन्ना जी आप तो जानते है कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है । अब वे खुश हो रहे है क्योंकि एक तो आप उनकी गली में जा रहे है , दूसरे उनका एक प्रबल विरोधी अपने आप ही समाप्त हो रहा है ।
अन्ना जी आप जानते नहीं कि राजनीति सीधे- सादे, भोले – भाले और गरीब – गुरबा लोगों के लिए नहीं है । चलिए मान लेते है कि आप राजनीति में कोई नए नाम के दल के साथ आ भी जाते है तो... तो क्या, दल को खड़ा करने , चलाते रहने और चुनाव लड़ने के लिए पैसे कहॉं से लाएंगे ? आप क्या सोचते है कि राजनैतिक पार्टीयॉं जनता और सदस्यों के दिए एक- एक , दो – दो रुपयों से चलती है ? कुछ लोग आप को मदद भी करना चाहेंगे लेकिन …. हम तो भ्रष्टाचार के खिलाफ है न ? चलिए हमारा दल भी बन गया । अब दल बनाया है तो चुनाव भी लड़ना तो पड़ेगा ही । चुनाव के लिए हमें साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवार भी चाहिए होंगे । यहॉं हमारी मुश्किल बहुत बढ जाएगी क्योंकि पैसे तो कोई भी दे सकता है लेकिन साफ सुथरा उम्मीदवार....। इसके लिए टार्च नहीं ‘पावर हाउस ’ ले कर घूमना पड़ेगा । इस समस्या को कैसे हल किया जाए … तो क्या हम दो – चार सीटों पर ही अपने उम्मीादवार खड़े करने वाले है ? हमारी मुसीबत तो यह है कि हम दूसरे दलों के अनुभवी, तिकड़मी और बाहुबली भागे हुए और भगाए हुए नेता भी तो नहीं ले सकते । हमें मिलेगें कुछ मुफलिस से ईमानदार लोग, कुछ ईमानदार से अमीर लोग और कुछ अमीर से राजनैतिक इच्छा वाले लोग । इन लोगों ने राजनीति को दूर से ही देखा होता है । यदि हमारे उम्मीदवार ऐसे ही हुए तो ... गई भैस चुनाव में । अब इन लोगों को क्या मालूम कि चुनाव लड़ने के लिए लाखों नहीं कराड़ों लगते है ? जिन्दााबाद बोलते , दिन- रात गाड़ियों में घूमने वाले लोग कोई बेगार नहीं कर रहे होते ; वे तो इस समय धंधे पर होते है । फिर जनता भी तो अच्छा – बुरा देख कर वोट नही देती । कुछ लोग हवा का रुख देख कर वोट देते है और बहुत से लोगों को तो शायद यह भी नहीं मालूम होता कि वे किसे वोट दे आए क्योंकि रात भर बँटी बोतलों का असर ही ऐसा होता है । खैर .. अन्ना जी अगर आपके उम्मीदवार ने पर्चा भर भी दिया और वो किसी बाहुबली के लिए खतरा बन गया तो अभी से सोच लो उसे कहॉं छुपाओगे ? क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए गुण्डों की फौज अगर अपके पास नहीं है तो …. ।
अन्ना जी हमारे पास पैसे नहीं है , जोड़- तोड़ भी नहीं , शराब भी नहीं और गुण्ड़े भी नहीं और तो और देख जाए तो हमारे पास साफ- सुथरे उम्मीदवार भी तो नहीं है । ऐसा लगता है कि इस गली में कुत्तों की फौज हमें फाड़ खाएगी। अन्ना जी चुनाव लड़ना एक बात है जीतना दूसरी क्योंकि बड़े – बड़े दिग्वज चुनावों में चड्डी बनियान पर सड़कों पर आ जाते है । चुनावों के बाद अन्ना जी अपने जीते हुए उम्मीएदवारों को फिर से कहीं छुपाना पड़ेगा । अगर किसी को बहुमत के लिए हमारी जरूरत पड़ी तो वो उन विजेताओं को उठा ले जाएगा और तभी छोड़ेगा जब बहुमत साबित कर लेगा । क्योंकि गरीब की बहू.... । अन्नाजी कुछ समय बाद आपके लोग भी किसी सदन में उंघते और झपकियॉ लेते दिखाई देंगे क्योंकि वे ‘कृपया शांत रहिए’ सुनते –सुनते बोर हो गए होगें । सदन में कौन सा प्रस्ताव नींद में उनकी सहमती के साथ पास हो गया , वे खुद भी नहीं बता पाएंगे । आपके लोग वो नहीं कर पाऐगें जो आप करवाना चाहते है कुछ दिन के बाद वे भी वो ही भाषा बोलने लगेंगे जिससे आपको परहेज है । इनके पास तो जनता को दिखाने के लिए आपका ईमानदारी का प्रमाणपत्र भी होगा जिसकी आड़ में वे भी वही सब करेंगे जो दूसरे करते है । इन परिस्थिातियों में हो सकता है कि जोड़ - तोड की सरकार में आप या आपके एक दो लोग मंत्री बन जाए । आपको अपनी पीढियों के लिए कुछ करना भी तो नहीं है जो आपको मंत्री बनना पड़े ।
आदरणीय अन्ना जी आप जनता की आवाज है । आम जनता आपसे वो अपेक्षाएँ करती है जो अपने नेताओं से भी नहीं करती । आप इस दलदल से बचके रहना । अन्नां जी आप राजनीति में मत जाना …….. ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी "