गरीबी और झूठ ( व्यंग्य ) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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गरीबी और झूठ ( व्यंग्य )

गरीबी और झूठ



मंडी के पास एक हम्माल दीनू और ठेला चलाने वाला छोटू कुछ देर बैठे थे । दीनू बोला "आज तो मंडी में माल ही नहीं आया, काम है ही नहीं। है ....कि ...नहीं ।" छोटू ने उसकी हां में हां मिलाई और बोला " आज तो मुझे भी कोई काम नहीं मिला ;न जाने आज क्या होगा? " दीनू सर हिलाते हुए बोला " होगा क्या..... जो कुछ घर में है घर में बचा हो, वह बच्चों का खिलाओ और खुद भूखे सो जाओ; हमेशा की तरह‌। है.... कि.... नहीं। " हाथ ठेले वाला सर तो मैं हिला रहा था लेकिन उसकी आंखें अनंत में कुछ तलाश कर रही थी । वह धीरे से बोला " सुना है. ... कहीं पांच रूपये में खाना मिलता है वह भी पेट भर । " दीनू हम्माल ठहाके के साथ बोल पड़ा " लो कल्लो बात पांच रूपय में खाना..... हा हा हा । तुम्हारा दिमाग तो ठीक है? है.... कि.... नहीं।" छोटू भी अपनी बात पर अड़ गया " मैंने सेठ जी की दुकान में टी वी. पर ऐसा कुछ सुना था।" दीनू ने भी जमाना देखा था । वह समझाने पर उतर आया " पहली बात तो यह कि ऐसा हो नहीं सकता; दूसरे तुमने सुना ही है तो वह जरूर ही किसी नेता का भाषण होगा । है‌... कि . ..नहीं ‌। " छोटू को अपने देखे पर विश्वास था । वह बोला " नहीं यार.... वो तो चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था ....दिल्ली में पांच रूपय में भर पेट खाना । हम्माल बीच में ही बोल पड़ा " तो खाना खाने दिल्ली चलें ? है... कि... नहीं । " छोटू खींझ कर बोला
" सुनता वुनता तो है नहीं । दिल्ली हम क्या जाएंगे ? दिल्ली तो हम भेजते हैं । वे जरूर ही सस्ता में खाने के लिए चुनाव लड़ते होंगे है ! खैर.... टी.वी. पर वह बोल रहा था मुंबई में बारह रूपय में खाना...... । " अपने शहर का भाव बताया क्या ? " दीनू बात काटते हुए बोल पड़ा । छोटू को लगा कि दीनू उसका मजाक उड़ा है,वो तेज आवाज में बोला " तेरे कूं तो मजाक लगता है तो चल सेठ जी से पूछवा देता हूं । " दीनू हम्माल फीकी सी हंसी के साथ हंस दिया और बोला " यार मैं और तू क्या मजाक करेंगे और क्या समझेंगे ? हमारा मजाक तो यह लोग ही उड़ाते हैं । है ...कि... नहीं । " छोटू को कुछ समझ नहीं आया उसने पूछ लिया " वो कैसे ? " दीनू की आंखों के सामने झोपड़ी दिखने लगी वह धीरे-धीरे बुदबुदाने लगा " ये लोग कहते हैं कि हम गरीब लोग कम हो रहे हैं । है.... कि... नहीं ‌। मुझे तो नहीं लगता जहां पहले दो झोपड़े थे वहां आज चालीस- पचास हैं । पहले शहर में दो भिखारी थे । अब गिनना मुश्किल है ...और ये कहते हैं गरीब कम हो रहे हैं । है ...कि ...नहीं।" छोटू को अब कुछ समझ में आने लगा वो कैसे पीछे रहता हाथ मटका कर बोला " यार तू सही कहता है, पिछली बार वो मुझे और मेरे ठेले के मालिक दोनों को ही गरीब कहते थे ‌। अब मैं गरीब नहीं हूं ...लेकिन वो गरीब है । " हम्माल को उस पर तरस आने लगा वह बोला " तेरे पास साइकिल है ...कि... नहीं । छोटू ने जवाब दिया " है न कबाड़ेवाले से ली थी न यार .....‌ ।" दीनू समझदारों की तरह बोलने लगा " जब तेरे घर सरकारी आदमी..... अरे यार तुम्हारे स्कूल के मास्टर जी आए थे तो तुमने सच ही बोला होगा। है... कि... नहीं । " छोटू को तो अपनी सच्चाई और ईमानदारी पर बहुत ही नाज है बोला " हां ... कैसी बात करता है यार; हम और सच न बोलें । हम गरीबों के पास और है ही क्या ? " दिनू ठेंगा दिखाते हुए बोला " अब चाट अपने सच को .. । अब तू गरीब नहीं रहा ... । है ...कि... नहीं । " ठेलेवाला छोटू बोला " हां यार.. झूठ बोल देता तो आज मैं भी गरीब ही रहता । सच बोलने से तो कई गरीब अमीर हो गए होंगे... तो...तो फिर जो बच गए वह कौन है यार ?है ... कि... नहीं । " छोटू जोर से हंसा और त ताली ठोकते हुए बोला "झूठे... हा हा हा...झूठे....हा हा हा ...। " दिनू अपना हिसाब- किताब लगाए जा रहा था । धीरे-धीरे बोला "अबे तो फिर सब सच बोलने लगे तो देश में गरीबी नहीं रहेगी ! अबे यार देश अमीर हो जाएगा ....अमीर ...। है. .. कि... नहीं ‌ ।" उन्हें लगने लगा जैसे भी समस्या की जड़ में पहुंच गए । छोटू को देश की सोने की चिड़िया वाली बात याद आ गई । वह बोला " अब समझ में आया कि सोने की चिड़िया इन झूठ बोलने वालों के कारण उड़ गई है । तू क्या कहता है ? देश की असली समस्या क्या है झूठ या गरीब ?"। दीनू दार्शनिक अंदाज में बोला " अबे हम क्यों देश के बारे में सोचें ? जब वह हमारे बारे में नहीं सोचता । हम गरीबों को मानव न मान कर एक संख्या माना जाता है । फिर भी मुझे लगने लगा है ; असली समस्या की जड़ में तो वह भिखारी हैं जो हर पांच साल बाद हमारे दरवाजों पर भीख मांगने आ जाते हैं । असली गरीब तो वे ही हैं । ....है ...कि... नहीं...। छोटू ने आते हुए ट्रक को देखा और बोला छोड़ यार माल आ गया चल कुछ काम धंधा कर लेते हैं ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी "