" वाउ। कितने कुल हो तुम।" जूही की कही बाते अभी भी वीर प्रताप के कानो मे गूंज रही थी। अपने लिविंग रूम मे टहलते हुए। एक सुकूनभरी मुस्कुराहट के साथ वो कुछ पल थम गया। तभी राज ने घर मे एंट्री ली।
" वाउ अंकल। आज तो आप काफी अच्छे मूड मे लग रहे है । स्माइली स्माइली। आंटी मिली थी क्या ???" राज ने मज़ाक करते हुए पूछा।
" किस भाषा मे समझावु ? इस घर मे तुम्हारे लिए कोई जगह नही है। चले जाओ।" वीर प्रताप ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।
" अरे में तो दूसरे अंकल से मिलने आया था। कहा है वो ??" राज ने पूछा।
" पता नही शायद काम पर होगा।" वीर प्रताप।
" ओ.... नाईट शिफ्ट मे भी ओवर टाइम। कुल। में भी सोच रहा हूं। मरने के बाद उनके जैसा यमदूत बन जाता हु। बिल्कुल उन्ही की तरह हैंडसम और कूल।" राज ने अपने बाल संवारते हुए कहा।
" कहना तो नही चाहता था, पर तुम जैसा दुष्ट यमदूत नही बन सकता। यमदूत बनने के लिए बोहोत बड़ा पाप करना पड़ता है। एक मिनिट रुको तुम्हे कैसे पता चला?" वीर प्रताप।
तभी यमदूत राज के पीछे आकर खड़ा हो गया।
" बोहोत बड़ा पाप। जैसे की क्या खून??? क्या वो एक खूनी है। ओह... सच कहते है लोग कवर देखकर किताब नही खरीदनी चाहिए। कौन उन्हे देख के बताएगा की वो खून कर सकते है। है......" यमदूत को अपने पीछे देख राज चौक गया।
" तो क्या बाते हो रही है यहां?" यमदूत।
" वो सब छोड़ो। तुम्हे कैसे पता राज की ये यमदूत है??? बताओ।" वीर प्रताप ने चौंकते हुए कहा। यमदूत ने भी अपनी बड़ी लाल आंखे राज को दिखाई।
" आप को नही लगता ये सवाल पूछने के लिए आपने ज्यादा देर कर दी।" राज धीरे धीरे अपनी जगह से पीछे जा रहा था। " अरे अपनी हरकते देखिए आप दोनो किसी को भी आसानी से पता चल जाएगा। याद है अंकल आप उस दिन घर मे तूफान ला रहे थे। तब में भी डर गया था, लेकिन ये बिना डरे आपके पास आए। इतना ही नहीं तब आप दोनो ने एक दूसरे को यमदूत और पिशाच कह कर बुलाया। फिर कुछ दिन पहले जब दादाजी आए थे, तब इन्होंने बाहर बैठे बैठे सीढ़िया बर्फ मे जमा दी। फिर दरवाजे पर गायब हो गए। आप दोनो को शक्तियां संभालने की बिल्कुल समझ नही है।" वीर प्रताप उसे मारने दौड़े उस से पहले राज दरवाजे की ओर भागा।
" तुम्हारी वजह से उसे पता चला।" यमदूत।
" बिल्कुल नही। तुम्हे शक्तियां इस्तेमाल करनी नही आती।" वीर प्रताप ने चिल्लाते हुए कहा।
" मैने अंदर आते वक्त तुम्हारी बाते सुनी।" यमदूत।
" तो ? बुरी आदत। छुप कर बाते सुनना।" वीर प्रताप।
" मेरा मतलब। ऐसा क्या किया था मैने जो ये हुवा???" यमदूत।
" इस भोली शक्ल के पीछे कौनसा घिनौना चेहरा छिपा है ? में क्या जानू।" मज़ाक मे कही गई बात सुनने के बाद यमदूत का चेहरा और ज्यादा उतर गया। वीर प्रताप को अपनी बात का पछतावा था।
यमदूत अपने कमरे मे जाकर एक कागज और पेन लेकर सारे पाप लिखने लगा।
" खून, डकैती, बच्चो को मारना, नामर्द, बीवी से अत्याचार, पराई औरत को गंदी नजर से देखना।"
नही में कभी इन मे से कुछ नही कर सकता। यमदूत ने सोचा।
तभी वीर प्रताप अंदर आया।
" सुनो।"
" अब क्या चाहिए??? इतने बड़े पापी से बात तो नही करना चाहोगे तुम। तो क्यों आए हो यहां??" यमदूत।
" मुझे........ मुझे माफ कर दो।" यमदूत ने उसे देखा।
" हा सही सुना। वो मज़ाक मज़ाक मे मैने अपनी हद पार कर दी इस लिए। वैसे नामर्द वाला पाप तुम अपनी लिस्ट से हटा सकते हो।" वीर प्रताप ने हसते हुए कहा।
" तो बताओ क्या पाप किया था मैने ??? जो मुझे ये सजा मिली।" यमदूत ने पूछा।
" नही जानता। पर क्या फर्क पड़ता है। जानने के बाद भी में तुम्हे इतना ही ना पसंद करूंगा।" वीर प्रताप की बात सुन यमदूत की हसी छुट गई।
" सही। पर मुझे तुम्हारी बात पर हंसना नही चाहिए।" यमदूत।
" जाओ जी लो अपनी जिंदगी। ये बात में तुमसे तो नही कह सकता। पर हा आगे बढ़ने की सलाह जरूर दूंगा। तुम क्या थे, इस से कोई फर्क नही पड़ता। पर क्या हो और आगे क्या बनोगे। इस से पड़ता है। खुश रहो।" वीर प्रताप अपने कमरे मे चला गया।
वही दूसरी तरफ मिस्टर कपूर राज को पुश अप्स करा रहे थे।
" जैसे ही दोनो ने एक दूसरे को देखा। दोनो को अपने पुराने दिन याद आ गए। उन दोनो ने एक दूसरे से दोस्ती कर ली। फिर अंकल ने उन्हे घर मे रहने की इजाजत दी। उसमे मेरी क्या गलती।" राज ने खड़े होते हुए कहा।
" एक है जो अपनी यादें भुलाकर तड़प रहा है और दूसरा है जो अपनी यादें ना भूलने की वजह से तड़प रहा है। ऐसे मे फिलहाल दोनो एक दूसरे का सहारा बन गए है। उनकी इस लंबी जिंदगी मे हम बस एक किरदार है, जो वक्त के साथ बदल जायेंगे। इसीलिए उनके लिए निर्णय लेने का तुम्हे कोई हक नही। इसी की सजा है ये। चुपचाप फिर से शुरुवात करो समझे।" मिस्टर कपूर ने राज को छड़ी से पीटते हुए कहा।
" अगर में आपका सगा पोता होता, तो आप कभी मेरे साथ ऐसा बर्ताव नहीं करते।" राज बड़बड़ाया।
" क्या कहा तुमने?" मिस्टर कपूर की बढ़ी हुई आवाज सुन कर उस ने फिर से पुश अप्स शुरू किए।
क्या वो सच मे एक आखरी मुलाकात थी ?? सोफे पर बैठे बैठे वीर प्रताप अभी भी जूही के बारे मे सोच रहा था। तभी यमदूत कही बाहर जाने निकला।
" कहा जा रहे हो ?" वीर प्रताप ने सोफे पर से उठते हुए कहा।
" शॉपिंग करने मॉल जा रहा हूं।" यमदूत ने एक बड़ी सी बैग निकाल कर उसे दिखाई।
कुछ ही देर मे मॉल के अंदर दोनो खाने का जरूरी सामान खरीद रहे थे।
" कहा था ना मार्केट जा रहा हूं । कभी तो यकीन कर लिया करो। " यमदूत ने सब्जियोको ट्रॉली मे रखते हुए कहा।
" यकीन करना चाहता हूं। लेकिन तुम्हारी फितरत से कर नही पता।" वीर प्रताप।
" अगर में कह रहा हूं की में उस गुमशुदा आत्मा की तरफ हूं। तो में हूं। क्योंकि यकीनन उसके इस दुनिया से जाने से ज्यादा तुम्हारा मेरे घर से चला जाना अच्छा होगा।" यमदूत।
" ठीक है। तो वादा करो, मेरे जाने बाद उसे खुशीसे रहने दोगे। अपने साथ ले जाने की कोशिश नही करोगे।" वीर प्रताप ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।
" वादा नही कर सकता। पर अगर तुम घर छोड़ दो। तो में गुमशुदा आत्मा को अकेला छोड़ दूंगा। यकीन करना हो तो करो। वरना..." यमदूत फिर से सब्जियों के काउंटर पर चला गया।
" ठीक है। यकीन किया।" वीर प्रताप।
" तो कब जा रहे हो वापस?" यमदूत।
" परसो। लेकिन एक बात याद रखना अगर तुमने उसकी तरफ देखने की भी कोशिश की तो में वापस आ जाऊंगा और तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा।" वीर प्रताप ने अपना खरीदा सामान बैग मे भरा और मॉल के बाहर चला गया। वो जैसे ही मॉल के दरवाजे से बाहर निकला जूही के घर के सामने खड़ा था। तभी जूही ने घर के बाहर का गेट खोला।
" अरे तुम यहां क्या कर रहे हो ??? चलो यहां से।" जुहि हाथ पकड़ उसे घर के बाहर ले आई।
" तुम इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ? अगर मेरी आंटी ने हमे साथ देख लिया, तो मेरी खैर नहीं। वो बोहोत खडूस है। जाओ यहां से।" जूही।
" अंदर कोई नही है। घर खाली है, तो तुम्हे फिक्र करने की जरूरत नही।" वीर प्रताप की नजरे उसके चेहरे पर टिकी हुई थी, मानो वो उस चेहरे को हमेशा के लिए अपने जेहन मे उतार लेना चाहता हो।
" तुम्हे कैसे पता ?" जूही।
" मैने उन्हे उनके कर्मों की सजा दे दी है। इसलिये अब वो तुम्हे कभी नही सताएंगे। बेफिक्र हो कर अंदर जाओ। वैसे इतनी रात को तुम यहां क्या कर रही थी ?" वीर प्रताप ने पूछा।
" कुछ लेने आई थी। मुझे लगा वो सब सो गए होंगे। तो चुपचाप ले कर चली जाऊंगी। वैसे तुम यहां क्या कर रहे थे ?" जूही ने पूछा किसी जवाब की उम्मीद ना करते हुए। लेकिन इस बार भी वो गलत थी।
" तुम्हे देखने आया था।" वीर प्रताप की बात सुन वो दंग रह गई। " ऐसे मत देखो । आ जाती है कभी कभी याद। में परसो हमेशा के लिए जा रहा हु, तो सोचा तुमसे मिल लूं। मिलना हो गया, अब चलता हु। अपना ख्याल रखना।"