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योग और जीवन - योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर

योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर (कविता)

योग को शामिल कर जीवन में
स्वस्थ शरीर की कामना कर।
जीने की कला छुपी है इसमें,
चित प्रसन्न होता है योग कर।
घर ,पाठशाला या चाहे हो दफ्तर
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
शिशु, युवा या चाहे हो वृद्ध
योग ज्ञान दो, हर गॉंव-शहर।
तन-मन को स्वस्थ रखकर
बुद्धिविवेक को विस्तृत कर।
इंद्रियों को बलिष्ठ बनाने को,
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
विज्ञान के ही मार्ग पर चलकर
योग-साधना अब हमें है करना।
आन्तरिक शक्ति विकसित करता,
योग की सीढ़ी जो संयम से चढ़ता।
ईश्वर का मार्ग आएगा नज़र,जो
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
दर्शन, नियम, धर्म से श्रेष्ठ
योग रहा सदा हमारे ही देश।
आठों अंग जो अपना लो इसके
सदा रहो स्वस्थ योग के बल पे।
जोड़ समाधि का समन्वय कर,
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर ।

21 june अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हार्दिक बधाई।
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"मैं वृक्ष मित्र तुम्हारा"

मैं वृक्ष हूं मित्र तुम्हारा,

मुझ संग अपना नाता रखना।

न करना स्वयं को मुझसे विलग,

मुझ बिन जीवन की कल्पना है व्यर्थ।

पेड़ पौधों का कर संरक्षण ,

उजड़ने न देना कोई वन उपवन।

निज स्वार्थ के खातिर,

जंगलों का कर दिया तुमने दोहन।

पंक्षी वृंद का उजाड़ घरौंदा,

शहरीकरण से खुद को जोड़ा।

गांव, पेड़, नदी, जंगल, पर्वत से दूर,

शुद्ध हवा और जल बिन जैसे,

हम मानव कितने हुए मजबूर।

कल्पवृक्ष, पीपल, नीम पेड़ संग था नाता,

पेड़ों के छाए को छोड़ कुबुद्धि के आंगन में जा बैठा।

जिस डाल पर था बैठा उसी को आरी से क्यों रेता,

फिर प्राणवायु के लिए तुझे पड़ा भटकना।

पूर्वज से कुछ तो सीखा होता,

वृक्ष पूजनीय है गर समझा होता।

तुलसी आंगन की शोभा होती,

नीम पर पंक्षियों का कलरव होता।

कोयल अमिया पर बैठ गाती,

काक अतिथि का संदेशा देता।

मुझ पादप का मोल तुम जानो,

प्रकृति की धरोहर को संभालो।

अपनी भूल को जल्द सुधार कर,

वृक्षारोपण का लेकर संकल्प,

धरती के ऋण को उतारता चल।

वृक्ष का आशीष तुम्हें मिलेगा,

फल,फूल, छाया सा जीवन फले फूलेगा।

---- अर्चना सिंह जया

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"नई चाह, नई उम॔ग"

प्रकृति की आभा अनोखी,

आशा और विश्वास संग,

नित्य उदित होता नवप्रभात,

लेकर सदा नव दिवस,

नई राह, नई चाह, नई उमंग।


दृढ़ हो हमारा आत्मविश्वास,

थामकर ऊषा का हाथ,

नई रश्मि धरा पर छा जाती,

सुनहरी नवल किरणों का,

आवरण धरा है ओढ़ लेती।


उत्साहित हो पशु-पक्षी, जीव-जंतु

आलस्य त्याग सभी मानव जन,

नई आशा, नई उम्मीद संग,

प्रकृति करती नित नव श्रृंगार,

तरोताजा हो जाता है अंतर्मन।


सुनहरी नूतन धूप बिखरी हुई,

दूब घास पर उज्ज्वल चादर सी।

कोमल पल्लव व नव पुष्पों बीच,

बाग-बगीचे, खेत-खलिहान में,

नवल किरण लेता पंख पसार।


धरती की धूल व कोमल पुष्प

आतुर होता है वह मृदुल स्पर्श को

हार्दिक इच्छा लिए मन में अपार।

चूमती धूल मिट्टी नवल किरणें,

खिल उठता कुदरत का हिय विशाल।


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जीवन का आनंद यही है,

भाई बंधू संग मिल रोटी खा,

सुख में ही नहीं दुःख में भी

साथ निभाओ।

जीवन का आनंद यही है।

रोते को हंसना, भूखे को रोटी

गरीब व नंगे लोगों को

वस्त्र पहनाओ।

जीवन का आनंद यही है।

बड़े बुजुर्गो की सेवा कर

उनके चरणों में

सुख पाओ।

जीवन का आनंद यही है।

माया-मोह से परे होकर

दान-पुण्य कर

धर्म निभाओ।

जीवन का आनंद यही है।

योग,साधना,चिंतन,मनन कर

स्वस्थ तन-मन रूपी

धन पाओ।

जीवन का आनंद यही है।

ईश्वर की आराधना सुखदाई,

भजन कीर्तन में

मन रमाओ।

जीवन का आनंद यही है।

द्वेष,ईर्षा,छल,कपट से परे हो

इंसानियत, सद्भाव व

परोपकार अपनाओ।

जीवन का आनंद यही है।

धूप-छांव,सुख-दुःख में

हरपल धैर्य रख

मुस्कुराते जाओ।

योग साधना को अपनाकर,

जीवन पथ को सुगम बनाओ।

.... अर्चना सिंह जया

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- अर्चना सिंह 'जया'

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