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नाला में जिंदगी

भोला अपने मां बाप का एकलौता बेटा गांव से शहर नौकरी करने के सिलसिले में आ जाता है। माता पिता जरा गरीब होते हैं लेकिन बेटे को लेकर उनके सपने बड़े हैं। पर इतने भी बड़े नहीं कि पूरे न हो सके। पिता गांव में खेतिहर और मां घर घर जाकर सब्जी बेचने का काम कर जीवनयापन करते हैं। दिन रात एक कर भोला दसवीं की परीक्षा तो पास कर लेता है, मां बाप के उम्मीदों पर खरा उतरता है। भोला भी, अन्य नौजवानों की ही तरह सपनों की गठरी लेकर मुंबई शहर की भीड़ में निकल पड़ता है। चमकती दमकती शहर की जिंदगी अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है, इस भंवर जाल में कुछ फंस जाते हैं तो कुछ बच निकलते हैं। मगर फंसने वालों की संख्या ज्यादा है।
भोला शहर में पहले एक सप्ताह फुटपाथ पर सो कर गुजारता है और फिर होटलों में सफाई का काम करना आरंभ करता है। उसी में से कुछ पैसे अपने मां बाप को भी समय असमय भेजा करता है। होटल का मालिक उसके रहने का प्रबंध अपने किसी जानने वाले के यहां कर देता है। उसके काम से खुश होकर एक पुराना रेडियो होटल के मालिक की ओर से उसे भेंट में मिल जाती है, फिल्मी गीतों को सुनकर अपना मन बहला लिया करता है। इस तरह चार महीने बीत जाते हैं, सभी उसकी मेहनत और ईमानदारी से प्रसन्न होते हैं। होटल पर कई लोग नाश्ता पानी करने आते-जाते हैं, वहां तरह-तरह के पकौड़े व चाय पीने की इच्छा रखने वाले लोगों का तांता लगा रहता है। एक दिन नगरपालिका का एक व्यक्ति उसे सरकारी नौकरी की लालच में अपने साथ चलने को कहता है। बस यह उसकी जिंदगी का एक ऐसा मोड़ होता है जिसमें कोई यू टर्न नहीं मिलने वाली थी किन्तु इस बात से वह बेखबर होता है।
सावन का महीना आने वाला था और मुंबई शहर की हालात से भोला बेखबर था। ऐसे में उसे सफाई कर्मचारी की नौकरी का अवसर मिल जाता है किन्तु इस बात से बेखबर कि सफ़ाई नाले की भी करनी है। नाले गड़ढे जो जगह-जगह मुंबई सरकार की कमियों को उजागर करने में बहुत ही सफल भूमिका निभा रही थी लेकिन भोला बड़े शहरों की दोहरी मार खा रहा था। परिवार से दूर, खाने पीने की परेशानी पैसे कमाने के साथ कुछ बन पाने की कोशिश में उलझता जा रहा था।
जुलाई का महीना बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा था, ऐसे में सड़कों की हालत बिगड़ती ही जा रही थी। भोला ने एक दिन पांच साल के बच्चे को नाले में गिरने से बचाया। उसके इस कार्य को सराहा गया। इनाम के रूप में पांच सौ रुपए बच्चे के पिता ने दिया ये कहते हुए कि आज तुमने हमारी जिंदगी हमें वापस दे दी। कोई काम छोटा नहीं होता है तुम ईश्वर के रूप में हमारे लिए प्रकट हुए हो। ईश्वर तुम्हें लंबी आयु दें। भोला का हौसला बढ़ने लगा । वह जिस काम को कभी छोटी नज़र से देखा करता था, उसी में अब मन लगाकर काम करने लगा। सोचा जबतक कोई और काम नहीं मिल जाता वह इस काम को छोड़ेगा नहीं। हरदिन वह एक नये उत्साह के साथ आता और साफ़ सफाई में अपना योगदान देता।
मगर यह दिन हर उस दिन से कुछ अलग ही साबित हुआ। बारिश से शहर का बुरा हाल जन जीवन अस्त व्यस्त हो रहा था। सभी लोग आफिस दफ्तर में फंसे हुए थे, बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। घंटों बारिश होने के कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा, नाला कहां है और कहां नहीं यह समझ पाना मुश्किल हो रहा था। फिर भी घर से बाहर निकलने वाले कुछ लोग तो थे ही, जिंदगी रुकती कहां है? भोला हर दिन की तरह उस दिन भी काम पर आया, बारिश कुछ कम तो हुई मगर सड़कों पर पानी जहां तहां भरा पड़ा था। एक पिता समान ही बुजुर्ग को आते देख वह बोला," बाबा इधर की तरफ नहीं आना नाले और गड़ढे हैं।" पर शायद उस व्यक्ति को ऊंचा सुनने की आदत थी। वह फिर भी आगे बढ़ता आ रहा था यह देख भोला को रहा नहीं गया और उसे रोकने के लिए झटपट भागने लगा ऐसे में वह स्वयं नाले में गिर पड़ा । यह देख आस-पास के लोग उसकी मदद के लिए आगे आए, अन्य कर्मचारी तरकीब सोच कर भोला को बचाने में लग गए। अंततः कोशिश कामयाब हुई और उसे सुरक्षित निकाल कर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जब उसे होश आया तो खुद को अस्पताल की बिस्तर पर पाया, सामने उस बुजुर्ग व्यक्ति को खड़े देखा जिसे बचाने की वजह से वह गिर पड़ा था। ऐसे में उसे अपने माता-पिता की कमी बहुत महसूस हुई। उसे अपने गांव की बरगद पेड़ की छांव, मां के हाथ का भोजन सब कुछ जैसे याद आने लगा। दो दिन पश्चात वह निर्णय लेने पर विवश हो गया कि अब वह गांव जाकर ही अपने माता-पिता के साथ मिलकर काम करेगा। उनके काम को ही आगे बढ़ाएगा। यथार्थ में जीएगा, बनावटी जिंदगी से परहेज़ कर वापस अपनों के बीच लौट जाएगा। जिंदगी का मज़ा अपनों के साथ ही है, उसे इस बात का एहसास हुआ।

----अर्चना सिंह जया

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