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पहला प्यार

पहला प्यार

मेहंदी की रात

कई सालों पश्चात् मैं फिर से अपनी डायरी के पन्नों पर उस याद को ताजा करने बैठ गई प्यार का रंग जो चढ़ गया था। आज का मौसम रुमानी सा महसूस हो रहा था। न जाने क्यों सूर्य का उदय होनापक्षियों का चहकना हवाओं में एक अजीब सी खुशबू बगीचों म फूलों का मुस्कुराना आदि सब फिर से वर्षों बाद महसूस करने लगी थी। ये सोचने समझने की कोशिश कर रही थी कि ऐसा क्यों मेरे साथ हो रहा है \ वैसे लोगों से कहते सुना करती थी कि पहला प्यार कभी नहीं भूलता। ये आज वर्षा बाद महसूस कर रही थी। शायद मेरे साथ भी कुछ वैसा ही था। पर कुछ प्यार का एहसास भी कभी-कभी जीने के बहाने दे जाता है। कहते हैं अफसाने आँखों से बया हो तो अच्छा होता है मुस्कुराहट किसी की बातों से आए तो अच्छा होता है रोज रोज मिलने म वो बात कहा जो दिनों महीनों बाद म आता है। ऐसा मेरा ख्याल था पर अभी ये एक तरफा प्यार ही था। मैं प्यार जताने का साहस जुटा पाने म असमर्थ थी शायद कुछ पुरानी सोच पुरानी धारणाए हमारे पैरों म बेड़ियों के समान थे किंतु उसी जमाने म लोग ^लव मैरिज^ भी किया करते थे। पर मैं अपनी पढ़ाई और कैरियर को लेकर थोड़ा ज्यादा ही सोचा करती थी। शायद इस जुनून के कारण भी किसी व्यक्ति की तरफ रुझान कुछ कम हो पाता था। पर कहते हैं न कि ईश्वर की संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि पुरुष और स्त्री का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना भी स्वाभाविक है। आकर्षण कभी-कभी प्यार म बदल जाता है। कोलेज का ज़माना था सभी मित्रों के साथ इस पल का आनंद लेते हुए अपने भविष्य की ओर कदम बढ़ा रही थी। कोलेज लड़के लड़कियों दोनों का था जबकि स्कूल हमारा सिर्फ लड़कियों का ही हुआ करता था। कोलेज का परिवेश मेरे लिए जरा नया व अटपटा-सा था। लड़कों से बात कर पाने म मैं जरा पीछे ही रहा करती थी मित्रजन मेरी हॅसी भी उड़ाते थे। मुझे भी यह महसूस होने लगा था कि आखिर कब तक मैं इस तरह शर्माती सहमी सी रहूगी। मेरे भी दिल और दिमाग के मध्य कशमकश छिड़ गई। कोलेज म दोपहर का खाना कभी कबार कैंटीन म जाकर खाया करते थे हम पाच लोग हुआ करते थे जिसम दो लड़के भी थे। लेक्चर साथ म सुना करते थे प्रोफेसर के नोट भी आपस म एक दूसरे से बदला करते थे। प्रश्नों व उत्तर को आपस म ही समझ लिया करते थे। इस प्रकार हमारी दोस्ती पक्की होती चली गई। वक्त गुजर रहा थाइंटरमीडियट करने के पश्चात् हमने इंजीनियरिंग कोलेज म दाखिला लिया। कुछ पुराने दोस्त बिछड़े भी कुछ नए भी बन गए। ऐसा लोग मानते हैं कि दोस्त हमारा ही प्रतिबिम्ब होता है हम जैसे होते हैं दोस्त का चयन भी उसी के अनुसार करते हंै।^ स्वभाव व व्यक्तित्व म कुछ न कुछ समानता होती ही है तभी हम मित्र की ओर आकर्षित होते हैं। ये एक इत्तफ़ाक ही था कि एक मित्र अनुराग कश्यप इंटर कोलेज से ही साथ म था। हम दोनों एक अच्छे दोस्त हो गए। मैंने इंजीनियरिंग करने के पश्चात् नौकरी आरंभ कर ली शायद मेरे परिवार को मुझसे कई उम्मीद थीं । मेरी दो छोटी बहन भी थीं मैं अपने परिवार को आर्थिक सहयोग देना चाहती थी। अनुराग स्वयं भी एक जिम्मेदार लड़का था उसकी एक बहन थी जो विवाह के योग्य हो चली थी। हमारी दोस्ती कायम तो रही पर अब मिलने जुलने के बीच दूरिया आने लगीं। जीवन के उधेड़ बुन के साथ हम जिंदगी की डगर पर कदम बढ़ाने लगे। अनुराग आर्मी में चला गया शायद ये शौक उसे बचपन से था।

फागुन का माह था, हवाओं म भी खुशबू थी। फिज़़ाओं म जैसे रंग घुले हुए थे ऐसा महसूस हो रहा था कि सतरंगी इंद्रधनुष सारे दिशाओं से अंबर पर दिखने लगे हों। हो भी क्यों न अनुराग के घर बहन की शादी जो थी, आज महिलाओं का संगीत व मेहंदी की शाम थी। मैंने अपने हाथों से एक शोल कढ़ाई कर उपहार स्वरुप तैयार किया था जो अनीशा और अनुराग की मा तथा दादी को बेहद पसंद आई। मेहंदी की रात घर रिश्तेदारों से भरा था समा म नृत्य व संगीत गूज रहा था। सभी रौनक ए महफिल के साथ हसी मजाक कर रहे थे व आनंद ले रहे थे। तभी अनुराग की दादी ने मुझे आवाज़ लगाते हुए कहा& अरे बिटिया जा तू भी हाथों पर मेहंदी रचा ले शुभ होता है।शादी जल्दी हो जाएगी ये सुन सभी हस पड़े। मेहंदी लगाने के लिए मैं जैसे ही उठी थी कि अनुराग ने इशारे से बुलाया और हाथ आगे करने को कहा& जैसे ही मैंने हथेली आगे की उसने मेहंदी की एक गोली मध्य म रख दी और कहा शगुन तो मैंने कर दी उम्मीद है कि मेरा प्यार आज रंग लाएगा। इतना कह कर वह दूसरी ओर चला गया। मैं जैसे शर्म से लाल हो गई और दिल म अज़ब सी हलचल होने लगी। यानि अनुराग दिल ही दिल म मुझे पसंद करने लगा था पर अभी तक इजहार करने से झिझक रहा था। मैं निरी बेवकूफ़ उसके प्यार को समझ नहीं पाई। शायद जिंदगी की कशमकश म हम दोनों ही प्यार को नज़र अंदाज कर रहे थे।

जब मैं मेहंदी लगाने वाली के पास जाकर बैठी तो वह हथेली पर गोल देख पूछ बैठी कि ये क्या पहले ही शगुन कर ली तभी अनीशा ने मुस्कुराते हुए कहा - नहीं आंटी जी आप अपने तरीके से अच्छे से मेहंदी लगाना और ये शगुन वाली बिंदी भी रहने देना वरना किसी का दिल टूट जाएगा। बस मैं समझ गई कि ये सब दोनों भाई-बहन की मिली भगत है। इशारों म ही वह मेरी टाग खींच रही थी किंतु न जाने क्यों मैं भी बातों का रस ले रही थी। किसी भी प्रकार की अनिच्छा नहीं व्यक्त कर पा रही थी। ये उस उम्र का असर था शायद। एक मेहंदी की वो शाम थी और आज दस वर्षों के बाद करवाॅ चैथ की एक शाम थी जब मैं मेहंदी लगाने के लिए तैयार हो रही थी। पर आज भी मेहंदी की वह छोटी सी गोली नहीं भूल पाती हू। आज भी मेहंदी की शुरुआत उसी गोली से होती है हा ये अलग बात है कि आज मेरे हाथों म मेहंदी पिया के नाम की होती है। पर मैं अपने उस पहले प्यार की पहली निशानी याद किए बिना मेहंदी नहीं लगाती हूं। वो मीठी स्मृति मेरे अंतर्मन को शकून पहुचाती है। उस प्यारी सी स्पर्श को मैं आज भी महसूस कर पाती हू। मेरे चेहरे पर जैसे एक अदभुत सी हसी खिल उठती है। प्यार के पल या प्यार का एहसास भी कभी-कभी जीने के बहाने दे जाता है। पहला प्यार सदा ही ज़हम म रह जाता है। मेहंदी की छोटी सी गोली सोए प्यार को जगाया करती है।

---अर्चना सिंह जया

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