आधार - 20 - ईमानदारी, राज शक्ति का अंश है। Krishna Kant Srivastava द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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आधार - 20 - ईमानदारी, राज शक्ति का अंश है।

ईमानदारी,
राज शक्ति का अंश है।
आज के युग में रत्नों की कीमत करोड़ों में आंकी जाती है। आधुनिक इंसान इन रत्नों को खरीदने के लिए ऊंची से ऊंची बोली लगाता है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि इस संसार में ऐसा भी कोई रत्न है जिसकी कीमत अनमोल हो, जिसे धनवान से धनवान व्यक्ति भी बोली लगाकर खरीद ना सके। जिसे पाने की चाहत तो हर किसी में हो परंतु अपना बनाने का साहस ना हो। जी हां, ईमानदार व्यक्तित्व, वह नायाब हीरा है, जिसकी कीमत अनमोल है। जिसके पास यह हीरा है वह इस संसार का सबसे धनवान व्यक्ति है। वह करोड़ों में एक है। वह ईश्वर का सच्चा भक्त है। वह देश का सच्चा नागरिक है। वह सच्ची प्रशंसा का हकदार है।
आप अथवा कोई अन्य व्यक्ति, इस नायाब हीरे को स्वयं की इच्छा-शक्ति के बल पर अपना बना सकते हैं। यदि आपने इस कार्य में विजय प्राप्त कर ली तो निश्चित मानिए आप ऐसे अनमोल रत्न के स्वामी हो जाएंगे, जिसे कोई अन्य व्यक्ति आपसे किसी भी कीमत पर खरीद नहीं सकेगा और ना ही बलपूर्वक छीना सकेगा। हां, आप स्वयं जब चाहें अपने ईमान को गिरवी रख, इस अनमोल रत्न को नष्ट अवश्य कर सकते हैं।
हम सभी जानते हैं कि जीवन में ईमानदार होना बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि ईमानदारी जीवन की बहुत सी समस्याओं का निदान कर उसे सफलता के पथ पर अग्रसर कर देती है। ईमानदारी वह सम्पत्ति है, जो व्यक्ति को बहुत अधिक विश्वास और सम्मान दिलाती है। ईमानदार होकर आप जीवन के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने की राह में कदम बढ़ा सकते हैं।
समय चाहे आज का हो या पहले का, ईमानदारी का महत्व और ज़रूरत तब भी उतनी ही थी जितनी आज है। आज भले ही ये माना और कहा जाता हो कि ईमानदार होना आसान बात नहीं है, ईमानदार व्यक्ति को कोई सुकून से नहीं रहने देता। लेकिन ये हम सब जानते हैं कि जितना सुकून ईमानदार होने में मिलता है उतना किसी और स्थिति में नहीं मिल सकता।
न्यूनतम श्रम और अल्प समय में अधिक धन अर्जित कर लेने की अभिलाषा, मनुष्य को बेईमानी का प्रयोग करने को प्रेरित करती है। अपने समाज में बहुत से धनवान व्यक्तियों को हम इस प्रयोग का उपयोग करते देखते हैं। देखते हैं कि कैसे एक व्यक्ति कम समय और मेहनत के बल पर अकूत संपत्ति अर्जित कर लेता है। साथ ही ईमानदारी के साथ जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति अभाव ग्रस्त जीवन व्यतीत कर रहा है। इन दिनों संसार में धन की प्रमुखता है। धन के बल पर सुख सुविधाएं, सफलता और सम्मान प्राप्त किये जा सकता हैं। इसलिए सामान्य जन की अवलोकन क्षमता भ्रमित हो जाती है। वह बेईमानी की राह पर चलने को प्रेरित हो जाता है। आज समाज के व्यापक क्षेत्र में फैली हुई बेईमानी का यही प्रधान कारण है।
बेईमानी सभी धर्मों में पाप समझी जाती है हालांकि, कुछ लोग निज लाभ व स्वार्थ हेतु इसका प्रयोग करते हैं। परिवार और समाज के लोग, ऐसे व्यक्तियों से सदा घृणा व अविश्वास करते हैं। बेईमान व्यक्ति का कोई साथ भी नहीं करना चाहता। उन्हें अच्छे लोगों से यहाँ तक कि, भगवान से भी कोई सहानुभूति या समर्थन नहीं मिलता। वे अपने जीवन में कभी भी नैतिक रुप से मजबूत नहीं होते हैं और जीवन के अंतिम दिन दुखों में गुजरते हैं।
इसके विपरीत एक ईमानदार व्यक्ति समाज में आजादी से घूमता है और अपनी खूशबू सभी दिशाओं में फैलाता है। ईमानदार व्यक्ति को समाज में सम्मान, विश्वास तथा भरपूर सहयोग प्राप्त होता है। ईमानदार होने का यह लाभ व महत्व है कि उसे सहयोग देने वालों की कोई कमी नहीं होती। ईमानदार व्यक्ति के सम्बन्धी एवं मित्रगण उसके बुरे वक्त अथवा आवश्यकता के समय तन, मन व धन से पूर्ण सहयोग देने को तत्पर रहते हैं।
ईमानदारी किसी प्रकार का भार नहीं है जिसे उठाने में शक्ति या साहस की आवश्यकता हो। इसके कुछ नियम हैं जिनको सच्चाई व निष्ठा पूर्ण निभाने से इन्सान ईमानदार बन सकता है। ईमानदारी को अपनाने के लिए इन्सान को जीवन में सर्वप्रथम अपने परिवार के सदस्यों, सम्बन्धियों, मित्रों तथा समाज के प्रति कुछ कर्तव्यों एवं मर्यादाओं का पालन करना होता है। जो इन्सान अपने परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठ व पूर्ण समर्पित होता है, उसको परिवार भी पूर्ण सम्मान प्रदान करता है। समाज के प्रति सजगता एवं मर्यादा से ईमानदार इन्सान सभी स्थानों पर सम्मान प्राप्त करता है। यह उसके ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ होने का पुरस्कार है। जो इन्सान परिवार, सम्बन्धों व समाज की परवाह न करते हुए अपनी अय्याशी, मनोरंजन व स्वार्थ पूर्ति में लिप्त रहते हैं, उन्हें परिवार एवं समाज की दृष्टि में बेईमान समझा जाता है। ऐसे इंसानों को ना सम्मान प्राप्त होता है और न आवश्यकता पड़ने पर किसी प्रकार का सहयोग प्राप्त होता। यदि कोई इन्सान परिवार या सम्बन्धों की कर्तव्य परायणता में पूर्ण प्रयास करते हुए भी असमर्थ रहता है तो उसे मजबूर तथा असहाय समझा जा सकता है। क्योंकि इन्सान परिस्थितियों के आगे सदैव विवश होता है और विवशता बेईमानी नहीं होती।
जीविका उपार्जन के लिए इन्सान व्यापार करता है। व्यापारी की ईमानदार छवि होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ईमानदारी से किया गया व्यापार भविष्य के लिए सुदृढ़ होता है। समाज ईमानदार व्यापारी से ही खरीददारी करना पसंद करता है इसलिए ईमानदारी से किया गया व्यापार सफलता का प्रमाण पत्र होता है। यहां व्यापारी की ईमानदारी का अर्थ सामान के भाव से नहीं है क्योंकि अधिक दाम वसूलने वाला इन्सान लोभी कहलाता है बेईमान नहीं। व्यापार में ईमानदारी का अर्थ किसी सामान में मिलावट तथा वजन में हेराफेरी ना करना होता है। व्यापारी यदि किसी घटिया सामान को उसकी कमियां बतलाकर ग्राहक को बेचता है तो वह पूर्ण ईमानदार कहलायेगा, परन्तु जो घटिया सामान को उत्तम बताकर बेचता है, वह बेईमान होता है।
सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत इन्सान का ईमानदार होना उसकी सफल नौकरी का प्रमाण पत्र होता है। नियोक्ता ईमानदार कर्मचारी को पसंद करता है। नौकरी में ईमानदारी का अर्थ समय पर कार्यस्थल पहुंचकर अपने सभी कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ करना होता है। यह कर्मठ व ईमानदार कर्मचारी के लिए अत्यंत सरल होता है। जो कर्मचारी देर से कार्यस्थल पहुंचते हैं तथा कार्य करने में आनाकानी या बहानेबाजी करते हैं अथवा समय बर्बाद करते हैं उन्हें कभी ईमानदार कर्मचारी नहीं कहा जा सकता। कार्य सम्पन्न करने के पश्चात विश्राम करने वाला कर्मचारी ईमानदार होता है परन्तु कार्य से पूर्व विश्राम करने वाला बेईमान कहलाता है।
वादा निभाना ईमानदारी है परंतु वादाखिलाफी बेईमानी होती है। किसी परेशानी या लाचारी के प्रति अवगत करवाकर वादा पूर्ण ना कर पाने की क्षमा मांगने वाला इन्सान बेईमान नहीं मजबूर कहलाता है। जो वादा पूर्ण करने में सक्षम होकर भी उसे निभाने में आनाकानी या मना करते हैं उन्हें बेईमान कहां जाता है। उधार लेकर समय पर वापस करना आवश्यक होता है यदि वापस करने में किसी प्रकार की मजबूरी उत्पन्न हो जाए तो उधार देने वाले को मजबूरी समझाकर समय मांगने व क्षमा मांगने से ईमानदारी कलंकित नहीं होती। उधार लेकर बहाने बनाना तथा छुपना ईमानदारी को कलंकित करना है।
ईमानदारी जीवन भर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसे खुली आँखों से स्पष्ट देखा जा सकता है। समाज में ईमानदार की संज्ञा पाना किसी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। यह व्यक्ति के जीवन की वास्तविक सम्पत्ति है, जो कभी भी खत्म नहीं होती है। आजकल, बेईमानी लोगों के बीच फैली सबसे बड़ी महामारी है। विरले ही इससे अछूते हैं और जो अछूते हैं वहीं समाज में तारों की तरह चमकते हैं। बेईमानी की यह प्रवृत्ति अभिभावकों-बच्चों और विद्यार्थियों-शिक्षकों के बीच उचित पारस्परिक सम्पर्क के अभाव के कारण उत्पन्न होती है। ईमानदारी कोई वस्तु नहीं है, जिसे खरीदा या बेचा जा सके। इसे धीरे-धीरे, बच्चों में विकसित करने के लिए सतत प्रयास की आवश्यकता होती है, जो बच्चे के अभिभावक अथवा गुरुजन ही कर सकते हैं।
ईमानदारी की आदत को विकसित किए बिना, हम जीवन की अन्य अच्छाईयों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। बिना ईमानदारी के हम दो संसारों में रहते हैं, एक सच्चा संसार और दूसरा झूठा संसार जो हम विकल्प के रुप में बनाते हैं। एक ओर जहाँ ईमानदारी हमें सरलता की ओर ले जाती है, वहीं बेईमानी हमें दिखावे की ओर। जीवन में मित्रों के बीच अंतरंगता ईमानदारी लाती है, न कि दिखावा। ईमानदारी जीवन में अच्छा, वफादार और उच्च गुणों वाला मित्र बनाने में मदद करती है, क्योंकि ईमानदारी सदैव ईमानदारी को आकर्षित करती है। यह भरोसेमंद होने में हमारी मदद करती है और जीवन में बहुत अधिक सम्मान को प्राप्त करती है, क्योंकि ईमानदार लोगों पर दूसरे हमेशा विश्वास करते हैं। यह मजबूती और आत्मविश्वास लाती है और दूसरों के द्वारा खुद को कम करके न आंकने में मदद करती करती है।
ईमानदार लोग आसानी से कल्याण की भावना विकसित कर लेते हैं और शायद इसी कारण वे लोग एक बेईमान की तुलना में ज्यादा आरामदायक जीवन जीते हैं। अतः यह शान्तिपूर्ण जीवन जीने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। प्रारंभ में ईमानदारी को विकसित करने में कुछ अधिक प्रयास करने होते हैं परंतु धीरे-धीरे यह अभ्यास में आ जाता है। तब इसे बनाए रखने में अधिक कष्ट नहीं होता।
इतिहास बताता है कि, झूठ कभी सफल नहीं होता है यह स्थितियों को और भी अधिक बुरा बना देता है। कुछ लोग विशेष कारणों से सच का रास्ता नहीं चुनते हैं, और धीरे-धीरे वे सच से इतना दूर हो जाते हैं कि फिर उनमें ईमानदारी से जीने का साहस उत्पन्न नहीं होता। ऐसे व्यक्ति जीवन के कठिन समय में ईमानदारी के महत्व को महसूस कर पछताते रहते हैं। ईमानदारी का अभाव हमें बड़ी कठिनाईयों में जकड़ सकता है, जिसे हम सहन नहीं कर सकते हैं, इसलिए हमें अपने जीवन में ईमानदार और भरोसेमंद होना चाहिए।
जीवन के हर मोड़ पर आपकी अपेक्षा यही रहती है ना, कि आपके आसपास मौजूद लोग आपके प्रति सच्चे हो, आपके साथ छल करने के बजाये आपके गुणों को सराहे और आपकी कमियों के बारे में सच्चाई के साथ सतर्क करते रहें, लेकिन जब आप अपने आसपास मौजूद माहौल में ऐसे सच्चे और ईमानदार लोगों की कमी महसूस करते हैं तो थोड़ी निराशा भी महसूस करते होंगे। आपको इन परिस्थितियों में हताशा पालने से बचना चाहिए क्योंकि ईमानदारी कुछ वक्त तक नज़रअंदाज़ तो की जा सकती है परंतु पराजित कभी नहीं की जा सकती।
ईमानदार व्यक्ति जिस रिश्ते से भी जुड़े होते हैं, उसके व्यवहार में पारदर्शिता साफ देखी जा सकती है। रिश्ता चाहे परिवार का हो, कार्यस्थल से जुड़ा हो या समाज से जुड़ा हो, ईमानदार व्यक्ति हर रिश्ते को पूरी पारदर्शिता के साथ निभाते हैं, जिससे सम्बन्ध और भी ज़्यादा मजबूत हो जाया करते हैं। ईमानदार व्यक्ति आत्म-अनुशासन में रहते हुए प्रत्येक कार्य को समय पर पूर्ण कर पाते हैं। दया, सहानुभूति, सहयोग और सद्भावना जैसे भाव ईमानदार व्यक्ति में कूट-कूट कर भरे होते हैं जो हर कदम पर उसके व्यक्तित्व में निखार लाते हैं। ईमानदार व्यक्ति भरोसेमंद होते हैं, जिन पर आँख बंद करके भी भरोसा किया जा सकता है और मुश्किल हालातों में पीठ दिखाकर भागने की बजाए ऐसे लोग मुसीबत में साथ खड़े देखे जा सकते हैं।
ईमानदारी की प्रशंसा जितनी भी की जाए कम है। ईमानदार व्यक्ति को किसी बात का डर नहीं होता क्योंकि वो जानता है कि उसने किसी के साथ कोई छल नहीं किया है। इसी कारण ईमानदार व्यक्ति का व्यक्तित्व शांत होता है, वे बेईमान लोगों की तरह अपने दोष को छिपाने के लिए उग्रता नहीं दिखाते हैं। साथ ही वे अपने कर्तव्यों का निर्वाह भी सच्चाई और समर्पण के साथ करते हैं।
ईमानदारी को अपनाने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती। जिस पल आप चाहे, उसी पल से स्वयं के प्रति, अपनों के प्रति, समाज-देश और इंसानियत के प्रति, इसे अपना सकते हैं। ये बेहद आसान है। आप जिन ईमानदार लोगों को अपना आदर्श मानते हो, उनकी राह का अनुसरण करना प्रारंभ कर दें आप देखेंगे कि कुछ ही दिनों में आप इसके अभ्यस्त हो जाएंगे और आप के जीवन जीने की विधि में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा। यदि सभी लोग गम्भीरता से ईमानदार व्यक्तित्व प्राप्त करने का अभ्यास करें, तो कुछ ही दिनों में समाज सही अर्थों में आदर्श समाज होगा। वह भ्रष्टाचार व सभी बुराईयों से मुक्त हो जाएगा।
अंत में परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह सामाजिक और आर्थिक सन्तुलन को बनाए रखने के लिए इंसान को आशीर्वाद दे कि वे ईमानदारी के मूल्य को समझें, ईमानदारी का अनुसरण करें, कठिन परिस्थितियों को ईमानदारी से सुलझाने और संभालने में सक्षम बनें। वे कर्तव्य, मर्यादा व सत्य का पूर्ण निष्ठा से पालन करते हुए समाज में सकारात्मक मानसिकता को जन्म दें।

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