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आधार - 6 - क्षमा, उच्चता का प्रतीक है।

क्षमा,
उच्चता का प्रतीक है।
जीवन में प्रत्येक मनुष्य जाने-अनजाने गलतियाँ करता है और कभी-कभी इन गलतियों के कारण कोई दूसरा व्यक्ति आहत भी हो जाता है। आहत व्यक्ति से क्षमा मांगकर भूल सुधार किया जा सकता है और यदि आहत व्यक्ति क्षमा प्रार्थी को माफ कर देता है तो दोनों व्यक्तियों के मध्य सौहार्दपूर्ण वातावरण का पुर्नर्निर्माण भी हो सकता है। यदि व्यक्ति गलती कर दे, लेकिन उसके लिए माफी नहीं मांगे और कोई व्यक्ति माफी मांगने पर भी सामने वाले को माफ न करे तो ऐसे लोगों के व्यक्तित्व में अहंकार संबंधी विकार पैदा हो जाते हैं।
जब हम खुद गलती करते हैं तो लगता है कि काश सामने वाला माफ़ कर दे, परंतु जब किसी और से गलती होती है तो हम रूठ कर बैठे जाते हैं। अपशब्द कहकर अथवा अशिष्ट व्यवहार कर व्यक्ति को दिये गए दंश का प्रभाव अत्यंत गहरा होता है, हमें सदा-सर्वदा इस प्रकार के व्यवहार से बचना चाहिए, परंतु जाने-अनजाने में किए गए व्यवहार को कुछ हद तक भुला देने में क्षमा का एक महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
किसी को उसकी भूल के लिए क्षमा करना और आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना एक बहुत बड़ा परोपकार है। क्षमा करने की प्रक्रिया में क्षमा करने वाला क्षमा पाने वाले से कहीं अधिक सुख पाता है। गलती छोटी हो अथवा बड़ी, एक बार हो जाने पर उसे सुधारा नहीं जा सकता, उसके लिए क्षमा ही माँगी जा सकती है। अगर आप किसी की भूल को माफ़ करते हैं तो आप उस व्यक्ति की सहायता तो करते ही हैं साथ ही साथ स्वयं की भी सहायता करते हैं।
क्षमा मांगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है, और उसी प्रकार क्षमा प्रदान करना भी मनुष्य के व्यक्तित्व में चार चांद लगाने का कार्य करता है। क्षमा करने के लिए व्यक्ति को अपने अहंकार से ऊपर उठ कर सोचना पड़ता है जो कि अत्यंत कठिन कार्य है जिसे एक सहनशील व्यक्ति ही सफलतापूर्वक कर सकता है।
माफी देने वाले व्यक्ति की समाज में चारों ओर प्रशंसा होती है और उसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल जाती है। लोग उसके द्वारा किए गए कृत्य को उदाहरण स्वरुप प्रस्तुत करने लगते हैं। लेखकों और कवियों ने अपने द्वारा रचित कृतियों में क्षमा को अपने-अपने ढंग से महिमा मंडित किया है। रहीम दास जी के अनुसार
'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात,
कहाँ रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात'
जैसी पंक्तियाँ यही संदेश देती हैं कि क्षमा करना बड़ों का दायित्व है। यदि छोटे गलती कर देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें माफ न किया जाए।
वहीं रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है
‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसका क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो।'
वह लिखते हैं कि
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
अर्थात असहाय व्यक्ति के लिए उसके ऊपर किए गए अशिष्ट व्यवहार को सहन करने अथवा भुला देने की मजबूरी हो सकती है, परंतु साधन संपन्न व सक्षम व्यक्ति के द्वारा अपराधी को क्षमा किया जाना एक आदर्श कृत्य माना जा सकता है।
सभ्य समाज में क्षमा याचना और क्षमादान दोनों का ही विशेष महत्व होता है। क्षमा में बहुत बड़ी शक्ति होती है। क्षमाशीलता का भारी महत्व है, पर हम इस बात पर में बहुत कम ध्यान देते हैं। हम अपने भीतर क्षमाशीलता की भावना पैदा करने का कोई प्रयत्न नहीं करते।
बहुत से लोग जीवन में सर्वदा जीतने अथवा सफलता प्राप्त करते रहने की भावना से इस कदर भरे रहते हैं कि क्षमाशीलता के महत्व को समझ ही नहीं पाते। क्षमायाचना करने के लिए व्यक्ति को अपनी गलती, असफलता और कमजोरी को स्वीकार करने की क्षमता उत्पन्न करना परम आवश्यक है। निरंतर जीत की भावना से ओतप्रोत होने के कारण हमें अपनी गलतियों और कमजोरियों को स्वीकार करने का वक्त ही नहीं मिलता। लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर एक दूसरे का अपमान करते हैं और स्वयं भी अपमानित होते हैं। यदि कोई उनसे ईमानदारी के साथ क्षमायाचना कर ले या फिर वे खुद ही ईमानदारी से क्षमा मांग लें, तो व्यर्थ के मानसिक तनाव से बच सकते हैं।
क्षमाशीलता, तनाव जैसे रोगों का निदान भी कर सकती है। क्षमायाचना की सबसे अधिक आवश्यकता व्यक्तिगत जीवन में पड़ती है। जब हम किसी व्यक्ति की अकेले में या सार्वजनिक रूप से जाने-अनजाने उपेक्षा करते हैं, उसे अपमानित करते हैं या उसे छोटा अथवा हीन साबित करने का प्रयास करते हैं। ऐसा कर हम उस व्यक्ति के अहम को ठेस पहुंचाने का कार्य करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने विषय में एक धारणा बनाकर जीवन जीता है। उसकी अपनी विचारधारा होती है। वह स्वयं के व्यक्तित्व का एक रूप तय कर लेता है। व्यक्ति के लिए यह स्व-धारणा बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस पर वह जरा-सा भी कटाक्ष बर्दाश्त नहीं कर पाता है, जब स्व-धारणा आहत होती है, तो व्यक्ति उम्मीद करता है कि उस पर अपशब्द कहने वाला व्यक्ति क्षमा मांगकर अपनी गलती सुधारे। यदि तत्काल क्षमा मांग ली गई, तो उसे सुकून मिलता है और वह उस घटना को भुलाना ठीक समझता है।
क्षमायाचना की प्रक्रिया में आहत करने वाले और आहत होने वाले के बीच 'शर्म' और 'शक्ति' का आदान-प्रदान होता है। हम स्वीकार करते हैं कि हमने किसी के अहम को ठेस पहुंचाई है, उसे नीचा दिखाया है और क्षमायाचना करके हम यह बताना चाहते हैं कि वास्तव में गलती मेरी थी। इसलिए छोटा तो मैं हूं, आप नहीं। हमारा यह व्यवहार आहत महसूस करने वाले व्यक्ति को क्षमाशीलता की शक्ति का एहसास करता है। यदि सही ढंग से क्षमा नहीं मांगी गई तो वह प्रभावहीन हो जाती है। सही क्षमायाचना तब होती है, जब हम स्पष्ट शब्दों में अपनी गलती को रेखांकित कर क्षमा मांग लेते हैं। यह व्यवहार कटुता दूर करके संबंधों को तत्काल सामान्य बना देता है।
लोग क्षमायाचना को दुर्बलता का पर्याय समझ लेते हैं। जबकि क्षमायाचना शक्ति और ईमानदारी का प्रतीक होती है। यदि हम अपने जीवन में परेशान या दुखी हैं तो दूसरे व्यक्ति के खुशहाल जीवन को देख कर हम सच्चे मन से कभी उसके कार्यों की सराहना नहीं कर सकते। एक हारा हुआ इंसान कभी भी किसी जीतने वाले इंसान को सच्चे मन से बधाई नहीं दे पाता। इसके पीछे उसकी कोई दुर्भावना नहीं होती बल्कि अपनी आत्मग्लानि होती है। इसलिए किसी का भी कल्याण करने की पहली सीढ़ी है कि व्यक्ति स्वयं खुश एवं संतुष्टि हो। ऐसा कहा जाता है कि आप उसी वस्तु का दान कर सकते हैं जो आपके पास हो। आप उस वस्तु का दान कैसे सकते हैं जो वस्तु आपके पास उपलब्ध ही नहीं है? इसलिए यदि आप लोगों को उनकी गलतियों पर क्षमा करते रहते हैं तो ये आप का अनजाने में उनपर किया गया उपकार होता है जिसकी आपको कुछ भी कीमत नहीं चुकानी पड़ती।
क्षमा माँगना और क्षमा करना दोनों महान गुण है जो मनुष्य के मन को हल्का कर उसे सुखी बनाते हैं। क्षमा माँग कर या क्षमा प्रदानकर हम किसी पर कोई एहसान नहीं कर रहे होते वरन् अपने मन के सुकून का उपाय कर रहे होते है। शोध में पाया गया है कि लम्बे समय तक प्रतिशोध, जलन, ईर्ष्या, क्रोध, आत्मग्लानि, दुख, धोखा इत्यादि के विचार रखने से तन और मन रुग्ण हो जाते हैं जिसके लिए क्षमा से अच्छी कोई दवा नहीं है। क्षमा सदा और सर्वत्र सभी के लिए फायदेमन्द साबित होती है। यह एक ऐसी अद्भुत चीज है जो चाहे माँगी जाए या दी जाए, मनुष्य को महान और देव तुल्य बनाती है।
क्षमा माँगने से अहंकार ढलता है और सुसंस्कार पलता है। क्षमा, अहिंसक का अस्त्र, प्रेम का परिधान, विश्वास का विधान, सृजन का सम्मान, नफरत का निदान, पवित्रता का प्रवाह, नैतिकता का निर्वाह, सद्गुण का संवाद, अहिंसा का अनुवाद, दया की ज्योति और अहिंसा की अँगूठी में मानवता का मोती है।
प्रत्येक धर्म में क्षमा की महिमा बतलाई गई है। सनातन धर्म में क्षमा संबंधी कई आख्यान और दृष्टांत हैं। जैन धर्म में तो क्षमा का विशेष महत्व है। इस्लाम में भी क्षमा के महत्व की महत्वपूर्ण मिसालें हैं। वैज्ञानिकता के आधार पर भी क्षमा के जादू को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि क्षमा के द्वारा ही हम अपने चारों ओर सकारात्मक विद्युत चुंबकीय तरंगों का आवरण तैयार कर लेते हैं और जो व्यक्ति इस आवरण में प्रवेश करता है, वह सकारात्मकता के प्रभाव में आकर हमारा अनुसरण करने लगता है। आप अंदर से जितना प्रसन्न, संतुष्ट व सकारात्मक होंगे, उतनी जल्दी आप दूसरों को क्षमा करने की शक्ति उत्पन्न कर पायेंगे।
सप्ताह में कम से कम एक दिन ऐसा निर्धारित करें जब हम अपने मन की जाँच करें कि कहीं मन में किसी के प्रति थोड़ी​ सी भी घृणा, द्वेष, ईर्ष्या अथवा नफरत का भाव तो नही है यदि है तो उसे इसी पल सच्चे दिल से माफ करके अपने मन को साफ करें। अतः क्षमा करो और भूल जाओ, यही महापुरुषों का कृत्य है।
अंत में परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वह चारों ओर सकारात्मकता का वायुमंडल तैयार कर मनुष्यों में इतना आत्मबल प्रेरित करें कि मनुष्य अहिंसा को अपनाकर दूसरों को क्षमा करने का गुण उत्पन्न कर सके।
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