नेतागिरी हो गई, गुंडों की दुकान: बौधगम्य दोहावली
समीक्षक-राजनारायण बोहरे
अनुभव के पैगाम नामक दोहा संग्रह में 705 दोहे शामिल है। यह संग्रह दतिया के बुजुर्ग कवि अवध किशोर सक्सेना की 6 वी पुस्तक है जो मनु मुरैना का प्रकाशन हैं।
इन दोहो को सत्रह भागों में बाटां गया है। स्वयं कवि ने विषय के अनुसार इन दोहोें का विभाजन किया है दोहां में गजल के नए चलन की गजल वाल हिस्सा भी इसका एक अलग भाग है इन दोहों में ज्यादातर दोहे तीर्थ स्थानों की प्राकृतिक सुशमा, आध्यात्मिक महत्व और उपदेशात्मक है। प्रथम अनुभाग में कवि को सहज भाव से लिखा है कि जैसा मैनें अनुभव किया लिख दिया।
दोहे अवधकिशोर के अनुभव के पैगाम।
जो देखा अनुभव किया लिखा सुबह ओ शाम।।
राजनीति आदि के संबंध में कई दोहे द्रष्टव्य है।
मन में लगती है बहुत, इच्छाओं की हाट।
संयम का सम्बल न हो, नर हो बाराबाट।।
नेतागिरी हो गई, गुंडों की दुकान।
रोना किस्से रोइये, बहरे सबके कान।।
कौवे मोती चुग रहे, भटक रहे है हंस।
कौन देखता आचरण, कौन देखता वंश।।
समय डाकिया बाटता, सबकी चिठ्ठी रोज।
हर्ष विवाद हुआ करे, उसे न किन्चीत सोच।।
ऋतुओं के संदर्भ में शीर्षक से सम्मिलित होते में कुछ विलक्षण बातें सक्सेना कहते है-
अम्बर से डोरे चली, चांदी जैसा श्वेत।
उसे समेटा धरा ने, हर्षित प्रेम समेंत।।
इतरा कर चल दी नदी हुई खुग बरसात।
क्योंकि मिनिस्टर की वधु, करे न सीधी बात।।
शीत काल में गगन से, औस गिरे अविराम।
लगता जैसे प्रकृति को, हो सा गया जुकाम।।
सरसों फुलों से सजी, बार-बार झुक जाए।
जैसे आभुषण पहन युवती, अति शरमाए।।
गरमी के आतंक से, धरा हुई बेहाल।
पाती भेजी सिंधु को उमड़ा हृदय विशाल।।
पर्यावरण व समकानलीन स्थितियों पर इनके दोहे दृष्टव्य।
मूढ मुढ़ाये से खड़े, पे पहाड़ हैं, मौन।
वृक्ष-सवरूपी बाल थे, काट ले गया कौन।।
हुआ तहलका काण्ड का, जब से पर्दाफाश।
राजनीति का हेा गया, धूमिल सा आकाश।।
कर्फ्यू जब से लग बया हाल हुए बेहाल।
साग सब्जियों का पड़ा, घर में बड़ा अकाल।।
चौराहें पर हो गई, प्रजातंत्र से भेंट।
मुखसूखा अंाखे सजल, लगा पीठ से पेट।।
भगतसिंह सुख देव भी, सुन सारा आख्यान।
बोले व्यर्थ गया अरें, हम सबका बलिदान।।
श मतलब में चौकस सभी, खुले सभी के राज।।
मल्टी चैनल पर खुले नये-नये स्कूल।
बिना इश्क के सीरियल, होते नहीं कबूल।।
गजल में शेरों की जगह, दोहा लिखने का प्रयास देखिये।
राजनीति हर काम में दिखती है भरपूर।
मतलब पर बेटा लड़ें, मां से बिना कसूर।।
आये दिन बहुयें जलें, जलती सुनीन सास।
नारी की यह त्रासदी कैसे होगी दूर।।
अपनी प्रथम पत्नी और उनकी पुत्री से बिछोड़ में कवि ने लिखा है।
चन्द्रा के बिछोड़ में, हुई ज्योत्सना ग्लीन।
मुझे बिलखता छोड़कर बना गई अतिदिन।।
इस प्रकार कवि को श्रीमान् में जब हिलोर उठी, उन्होनें दोहे लिखें है। दोहा सबसे सरल विधा हैं, इसलिए हर कवि दोहा लिखना चाहता है, लेकिन केवल दो पंक्तिायों का छंद होने से यह उतना ही कठिन है। मेरा आशय यह है कि तुक मिल जाना भर दोहा नहीं है, उसका अर्थ गांभीर्य और दूर तक जाता संदेश उसे पूर्णता प्रदान करता है। और मजा तो तब है जब पाठक गुनगुनाये।
प्रस्तुत दोहों में तमाम ऐसे हैं, जो आनंदित करते हैं लेकिन कुछ दोहे वैसा गहरा प्रभाव नहीं छोंड़तें, केवल उपदेश नुमा, अखबारी या सीधे-सपाट है। आशा हैं, कवि आगे इस तरफ ध्यान देंगे।